पार्किंसन रोग का उसके प्रारंभिक चरण में पता लगाने हेतु, चलने की शैली के गणितीय विश्लेषण का उपयोग करता एक नवीन अध्ययन।

भारत का सौर सपना पूरा होने में क्या बाधाएं आ सकती हैं?

जनवरी 7,2018 Read time: 3 mins
Asia Chang on Unsplash

भारत में पहली बार इस प्रकार के अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई और भारतीय सौर ऊर्जा संस्थान नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने फोटोवोल्टिक मॉडयूल क्षमता में अवकर्षण को लेकर पूरे भारत में ५१ अलग-अलग स्थानों पर जांच के लिए विस्तृत सर्वेक्षण किया। यह अध्ययन न केवल मॉडयूल की विश्वसनीयता को स्थापित करता है किन्तु  साथ ही भारत के सन २०२२ तक १०० गिगावॉट सौर-ऊर्जा उत्पन्न करनेके महत्वाकांक्षी स्वप्नको सच करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। तत्कालीन अध्ययन के अनुसार गर्म स्थानों, छतों, और छोटे आकार के प्रतिष्ठानों में फोटोवोल्टिक मॉडयूल क्षमता में तेज़ी से अवकर्षण होता है।

भारत में सौर-ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ते हुए निवेश को देखते हुए यह अत्यधिक आवश्यकहै कि फोटोवोल्टिक मॉडयूल के दीर्घकालीन प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जाए। फोटोवोल्टिक मॉडयूल क्षमता ही आने वाले वर्षों में ऊर्जा पैदावार पर हुए निवेश से मिलने वाले लाभ का निर्धारण करेगी। गर्म जलवायु के कारण सोल्डर टांकों में कमज़ोरी और विफलता आती है और मॉडयूल की अनुचित देखभाल के कारण सौलर सेलों में छोटी-छोटी दरारें बन जाती हैं। इस तरह की अवकर्षण के कारण ऊर्जा पैदावार में कमी आती है। इस अध्ययन के सह-लेखक आईआईटी मुंबई के प्राध्यापक जुझर वासी कहते हैं कि, “महत्वपूर्ण बात केवल यह नहीं है कि कितना ऊर्जा क्षमता (GW) स्थापित की है, बल्कि यह है कि फोटोवोल्टिक मॉडयूल अपनी अनुमानित २५ वर्षों के जीवनकाल में कितनी ऊर्जा (GWh या kWh) उत्पन्न करेगा। यदि अनुमानित समय से पूर्व मॉडयूल क्षमता में अवकर्षण आता है, तो वे योजना से कम ऊर्जा का उत्पादन करेंगे।’’

प्राध्यापक वासी और उनके साथी प्राध्यापक अनिल कोट्टाथाराइल और टीम ने करंट-वोल्टेज गुणधर्म और इंफ्रारेड थर्मोग्राफी सहित कई तरह के प्रयोग किए और जोडों के टूटने का और अंतर्वेशन(इन्सुलेशन) प्रतिरोध का परीक्षण किया। भारत में ५१ स्थानों पर फैले ११४८ सौर-ऊर्जा मॉडयूल्स का निरीक्षण कर शोधकर्ताओं ने पूरे वर्षों में उनकी अवकर्षण का अनुमान लगाया। चयनित स्थानों को ६ श्रेणियों में बांटा गया: गर्म व शुष्क, गर्म व आर्द्र, मिश्रित, मध्य, शीत व उज्ज्वल, तथा शीत व मेघाच्छादित।

जिन स्थानों में वर्ष के अधिकांश दिनों में अत्यधिक धूप होती है वह स्थान सौर-ऊर्जा संयंत्र की स्थापना के लिए अनुकूल हैं । राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, और आंध्र प्रदेश में कई सौर-ऊर्जा संयंत्र लगाए गए हैं। लेकिन शोधकर्ताओं ने पाया है कि गर्म और शुष्क स्थानों पर स्थापित प्रतिष्ठानों के सोल्डर टांकों की आवरण सामाग्री में कमज़ोरी और विफलता आती है। प्राध्यापक वासी का कहना है कि, “सौर-ऊर्जा मॉडयूल प्रतिष्ठानों के लिए वह स्थान अत्यंत उपयुक्त होंगे जहाँ तापमान कम हो एवं भरपूर धूप हो। भारत में इस तरह के स्थान केवल लद्दाख में है, जहां भारतीय पावर ग्रिड से जोड संभव नही, तथा स्थानीय जोड भी अच्छे नही हैं।” । इस कारण हमारे पास अच्छी धूप वाले शुष्क और गर्म स्थानों के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। अन्य महत्वपूर्ण अवलोकन यह था कि बडे पावर प्लांट्स की तुलाना में छतों पर स्थापित प्रतिष्ठान का अवकर्षण ज़्यादा तेज़ी से होता है। । यह अवलोकन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भावी योजना में १०० गिगावॉट में से ४० गिगावॉट बिजली छतों पर स्थापित प्लांट्स से आने की है। प्राध्यापक कोट्टनथरयिल कहते हैं “हालांकि हम देख रहे हैं कि छतों पर स्थापित प्लांट्स की अपेक्षा बृहद पावर प्लांट ज़्यादा तेज़ी से लगाए जा रहे हैं, किंतु शायद बेहतर यही होगा की कि छतों से प्राप्त होने वाले उर्जा का लक्ष्य ४० गिगावॉट से कम कर बड़े, जमीन पर लगे प्लांट्स का लक्ष्य ६० गिगावॉट से ज्यादा किया जाए।

चूंकि ये सुनिश्चित है कि भारत में सौर उर्जा प्लांट्स गर्म और शुष्क क्षेत्रों में लगाए जाएंगे, इसलिए मॉडयूल्स् की आरंभी गुणवत्ता उत्तम हो यह  सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। साथ ही देखभाल और प्रतिष्ठान करने की क्रियाविधी सर्वोत्तम हो यह जरूरी है। इसके अतिरिक्त फोटोवोल्टिक मॉडयूल का संचालन करने हेतु प्रशिक्षित कर्मियों की नियुक्त करना भी अत्यधिक आवश्यक है।  संभव है कि आरंभ में उच्च गुणवत्ता के,  कम से कम दरारें या बिल्कुल दरारें न होने वाले मॉडयूल्स् की कीमत ज्यादा लगे, या मॉडयूल्स् लगाते समय प्रशिक्षित कर्मियों से काम करवाना महंगा लगे, किंतु मॉडयूल्स् लंबे समय तक गुणवत्ता में गिरावट के बिना चलते रहे इसके लिए यह आवश्यक है।

भारत ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में  भारी निवेश किया है और भविष्य में इससे भी ज्यादा निवेश होगा, यह देखते हुए, इस तरह के सभी अध्ययन महत्वपूर्ण हो जाते हैं। प्राध्यापक कोट्टनथरयिल का कहना है, “सर्वेक्षण के आधार पर कई सिफारिशें की जा सकती हैं, और यदि सरकार और पावर प्लांट मालिक इस पर ध्यान देते हैं तो वे दीर्घकालिक ऊर्जा उपज प्राप्त कर सकते हैं।”

भविष्य में सन २०१८ और २०२० तक किए जाने वाले सर्वेक्षण के साथ यह वैज्ञानिक व्यापक और विश्वसनीय तथ्य एकत्रित करने की योजना बना रहे हैं। इस तरह के व्यापक और विशसनीय सर्वेक्षण से राष्ट्रीय सौर-ऊर्जा मिशन के लक्ष्यों को हासिल करने में निश्चित रूप से मदद मिलेगी।