हजारों लोगों के मन एवं जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ने वाले, हिंद महासागर में आये विनाशकारी सुनामी को दो दशक का समय हो चुका हैं। भारत के तटीय क्षेत्र में यदि असंख्य मैंग्रोव झाड़ियों (तट पर दलदल क्षेत्र में बढ़ने वाली वनस्पतियाँ) के रूप में प्राकृतिक अवरोध न होते तो यह विनाश और भी अधिक हो सकता था। यह विकराल प्राकृतिक आपदा इंगित करती है कि सुनामी लहरों के वेग को कम करने एवं मलबे (डेब्री; debris) के प्रसार को अवरुद्ध करने हेतु प्रभावी उपाय की आवश्यकता है। समुद्र में जल-स्तर के प्रसार से उत्पन्न चक्रवात-प्रेरित बाढ़ की कई घटनाएं (स्टॉर्म सर्ज) प्रति वर्ष घटित होती हैं। तटीय मैंग्रोव झाड़ियाँ ऐसी आपदाओं के विरुद्ध जैविक-ढाल के रूप में कार्य करती हैं। समुद्री भित्तियों का निर्माण करने की पारंपरिक विधि वैकल्पिक रूप से संभव तो है, किन्तु यह मँहगी हैं एवं प्राकृतिक प्रक्रियाओं को बाधित कर सकती हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के शोधकर्ताओं ने सुनामी के दुष्प्रभावों के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोधक के रूप में पानी के ऊपर उभरने वाली तटीय वनस्पति (इमर्जेन्ट कोस्टल वेजिटेशन) के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया। अपने नवीन अध्ययन के अंतर्गत उन्होंने प्रयोगात्मक तथा संख्यात्मक दोनों पद्धतियों का उपयोग करके मैंग्रोव की प्रभावशीलता का परीक्षण किया, ताकि वे देख सकें कि भवनों एवं सेतुओं पर सुनामी के कारण होने वाले मलबे के प्रभाव को कम करने में मैंग्रोव झाड़ियाँ कितनी प्रभावशाली हैं। उन्होंने द्रवों के प्रवाह/व्यवहार के अनुरूपण (सिम्युलेशन) में उपयोग की जाने वाली एक संगणनात्मक (कंप्यूटेशनल) विधि पर आधारित ‘स्मूथ्ड पार्टिकल हाइड्रोडायनामिक्स’ (एसपीएच) मॉडल बनाया, ताकि वे पानी, वनस्पति एवं मलबे के मध्य होने वाली जटिल अंत:क्रियाओं का अवलोकन कर सकें।
“हमें यह समझना होगा कि प्रकृति सर्वोच्च है एवं हमें इसके अनुकूल होकर ही कार्य करना है, न कि इसके विरुद्ध। लहरें, तटीय जल धाराएँ तथा तटीय तलछट परिवहन, इस प्रकार की घटनाओं से जुडी नैसर्गिक प्रक्रियाएँ हैं। भौतिक रूप से निर्मित कोई भी तटीय रक्षा प्रणाली, प्राकृतिक प्रक्रियाओं के साथ हानिकारक हस्तक्षेप न करे यही उचित है,” आईआईटी मुंबई के सिविल अभियांत्रिकी विभाग के प्राध्यापक बेहरा प्राकृतिक अवरोधों की आवश्यकता के संबंध में बताते हैं।
शोधकर्ताओं ने तटीय क्षेत्रों में पायी जाने वाले विविध प्रकार की वनस्पतियों में से पानी के ऊपर ‘उभरने वाली वनस्पति’ (इमर्जेंट वेजिटेशन) का अध्ययन हेतु चयन किया। ‘उभरने वाली वनस्पति’ ऐसे जलीय पौधे हैं जिनकी जड़ें मिट्टी में होती हैं, जबकि उनके तने, पत्तियां एवं फूल जल-सतह पर उभर आते हैं। मैंग्रोव पेड़ों की जडें पुष्ट होती हैं जो जलमग्न रहती है एवं तने कठोर एवं शाखाओं से युक्त होते है। ये उभरने वाले पेड़ लहरों के वेग को कम करने में सक्षम हैं।
“मैंग्रोव वनस्पति विकराल महासागरीय आपदाओं के विरुद्ध प्राकृतिक जैविक-ढाल का सर्वोत्तम उदाहरण हैं। ओडिशा के भितरकनिका में स्थित मैंग्रोव वनस्पति ने प्रायः प्रति वर्ष होने वाले चक्रवाती आक्रमण से तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा की है,” प्रा. बेहरा बताते हैं।
इसके विपरीत, अध्ययन के अनुसार तैरने वाली एवं डूबी हुई वनस्पति एक तो सुनामी की लहरों में बह जाती है अथवा लहर की ऊर्जा को कम करने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं होती।
प्रयोगात्मक व्यवस्था के रूप में तटीय क्षेत्र की एक प्रतिकृति (रेप्लिका) निर्मित की गई, जिसमें एक बड़ा पानी का टैंक (डैम-ब्रेक फ्लूम), एक निपातित-माप स्तंभ (स्केल-डाउन कॉलम) एवं एक एल्यूमीनियम मलबे का प्रतिरूप (मॉडल) सम्मिलित था। स्तंभ संरचना एक तटीय भवन की प्रतिकृति थी तथा मलबे का मॉडल एक शिपिंग कंटेनर की प्रतिकृति था। टैंक में सुनामी जैसी स्थितियों के अनुकरण के लिए उच्च वेग से पानी को छोड़ने वाला एक ऊर्ध्वाधर स्लाइडिंग द्वार निर्मित किया गया था। पानी छोड़ने पर स्तंभ में लगे संवेदक ने इससे टकराने वाले मलबे के प्रभाव बल (इम्पैक्ट फोर्स) का मापन किया। मलबे के मॉडल में लगे त्वरणमापी (एक्सेलेरोमीटर) ने टक्कर के पूर्व इसके वेग एवं गति को अंकित किया। अध्ययन में पाया गया कि भारी मलबे की स्थिति में स्तंभ पर लगने वाला बल अधिक होता है।
तटीय रक्षक प्रणाली का अनुरूपणडॉ. आशीष गुप्ता आईआईटीबी- मोनाश अकादमी, आईआईटी मुम्बई के पीएचडी शोध प्रबंध से साभार (मार्गदर्शन प्राध्यापक बेहरा)
संख्यात्मक विधि में संगणनात्मक अनुरूपण (कम्प्यूटेशनल सिमुलेशन) का उपयोग करके वनस्पति के प्रदर्शन को मापा गया। स्तंभ पर मलबे के प्रभाव एवं लहरों के बल के विरुद्ध वनस्पति की प्रभावशीलता के अनुरूपण हेतु एसपीएच मॉडलिंग का उपयोग किया गया। इस अनुरूपण में पानी पर उभरती दो प्रकार की वनस्पतियों के मॉडल पर लहरों की परस्पर क्रिया का अध्ययन किया गया - रिजिड स्टैगर्ड वेजिटेशन (कठोर वनस्पति जिनकी पंक्तियाँ एक-दूसरे से थोड़ी-सी विस्थापित व्यवस्था में होती है) तथा टिल्टिंग स्टैगर्ड वेजिटेशन (पेड़ कोण पर बढ़ रहे हों या किसी एक ओर स्पष्ट रूप से झुके होते हैं एवं पंक्तियाँ एक-दूसरे से थोड़ी-सी विस्थापित व्यवस्था में होती है)। रिजिड स्टैगर्ड वेजिटेशन सीधा खड़ा रहता है, जो वास्तविक स्थितियों में सुदृढ़ मैंग्रोव या कठोर उभरने वाली वनस्पति का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि टिल्टिंग स्टैगर्ड वेजिटेशन शक्तिशाली लहरों के प्रभाव में प्राकृतिक रूप से झुकी हुई वनस्पति का प्रतिनिधित्व करता है।
एसपीएच अनुरूपण ने लहरों के बल को घटाने, मलबे के वेग को कम करने एवं लहरों की ऊंचाई को घटाने में वनस्पति के प्रदर्शन का परीक्षण किया। इसके लिए अनुरूपण में क्रमशः तीन सूचकांकों का उपयोग किया गया - रिड्यूस्ड फ्लड फोर्स इंडेक्स (आरएफआई), रिड्यूस्ड मोमेंटम इंडेक्स (आरएमआई) एवं ट्रांसमिशन कोएफिशिएंट (सीटी)। रिड्यूस्ड फ्लड फोर्स इंडेक्स एवं रिड्यूस्ड मोमेंटम इंडेक्स रिजिड स्टैगर्ड वेजिटेशन के लिए टिल्टिंग स्टैगर्ड वेजिटेशन की तुलना में अधिक पाए गए। कठोर वनस्पतियों ने पानी की विशाल मात्रा का प्रभावी रूप से प्रतिरोध करते हुए लहरों की ऊर्जा को कम किया। अभिनत (टिल्टेड) वनस्पति ने मलबे के प्रभाव को 89% तक कम किया जबकि कठोर वनस्पति के द्वारा स्तंभ पर मलबे के प्रभाव को 96% तक कम किया गया।
“तटीय क्षेत्रों में रिजिड इमर्जेंट वेजिटेशन को लगाया जा सकता है, ताकि अपक्षरण (इरोजन)कम हो और चक्रवाती लहरों एवं तटीय बाढ़ के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान की जा सके। वनस्पतियों को जैव-ढाल अर्थात पर्यावरण अनुकूल सुरक्षा के रूप में भी जाना जाता है, जो कार्बन अवशोषक का कार्य करेगी तथा भारत के कार्बन शून्य लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगी,” प्रा. बेहरा आगे बताते हैं।
अध्ययन से पता चलता है कि ‘उभरने वाली वनस्पति’ (इमर्जन्ट वेजिटेशन) एक प्रभावी रक्षा प्रणाली है जो तट पर स्थित मूलभूत संरचनाओं में सुनामी लहरों के कारण होने वाली क्षति को अत्यधिक कम कर देती है। विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों, लहरों के गति पैटर्न एवं विभिन्न प्रकार के मलबे के साथ प्राकृतिक स्थितियों में इसे दोहराने के लिए आगे का अध्ययन आवश्यक हो जाता है । शोधकर्ताओं का विश्वास है कि आगे के अध्ययन उन्नत अनुरूपणों पर केंद्रित कर अधिक सटीक निष्कर्ष प्राप्त किये सकते हैं।
शोध निष्कर्ष संकेत करते हैं कि आपदा शमन योजनाएं बनाते समय तटीय योजनाकारों को वनस्पति का चयन एवं इनका उपयोग किस प्रकार करना चाहिए। यह शोधकार्य नीति निर्माताओं एवं अभियंताओं को एक स्थिर (रेसिलिएंट), लागत-प्रभावी तथा स्थायी रक्षा प्रणाली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो प्रकृति पर आधारित समाधान प्रस्तुत कर तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करता है।