पार्किंसन रोग का उसके प्रारंभिक चरण में पता लगाने हेतु, चलने की शैली के गणितीय विश्लेषण का उपयोग करता एक नवीन अध्ययन।

चलो, परमाण्विक हाइड्रोजन की मदद से ग्रैफीन बनाएँ!

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मुंबई
22 जनवरी 2019
छायाचित्र : अलेक्जेंडर एआईयूएस (विकिमीडिया कॉमन्स)

ग्रैफीन, कार्बन का एक द्वि-आयामी, चद्दर रूपी प्रकार है जिसकी विज्ञान और अभियांत्रिकी में बहुत मॉंग है। वैज्ञानिक न केवल इसके गुणों का पता लगाने और उनका उपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि इसका उत्पादन करने के लिए कुशल और किफ़ायती तरीकों की भी तलाश कर रहे हैं। हाल ही के एक अध्ययन में, भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के प्राध्यापक राजीव दुसाने और डॉ शिल्पा रामकृष्ण ने परंपरागत तरीकों की तुलना में अपेक्षाकृत कम तापमान पर हाइड्रोजन परमाणु की मदद से ताँबे की पन्नी पर नैनोग्रैफीन फिल्मों को उगाने के लिए एक नई विधि तैयार की है।

2004 में पहले सटीक संश्लेषण और पहचान के बाद, ग्रैफीन का व्यापक अध्ययन किया गया है क्योंकि इसमें असाधारण यांत्रिक और वैद्युत गुण हैं। ग्रैफीन को संश्लेषित करने के लिए उपयोग की जाने वाली प्राथमिक तकनीकों में से एक, रासायनिक वाष्प निक्षेपण है जिसमें कार्बन युक्त यौगिक जैसे मीथेन को 1000 डिग्री सेल्सियस तक के  ऊँचे तापमान के संपर्क में लाया जाता है। ऊष्मा के कारण, कार्बन परमाणु मुक्त हो जाते हैं और एक सब्सट्रेट प्लेट पर जमा हो जाते हैं। ताँबे को इसके वाँछित उष्णीय गुणों के कारण ज्यादातर सब्सट्रेट के रूप में उपयोग किया जाता है।

परन्तु, इस विधि में  कमी यह है कि सब्सट्रेट को भी उच्च तापमान पर बनाए रखने की आवश्यकता पड़ती है। डॉ शिल्पा बताती हैं कि, "इस उच्च तापमान की आवश्यकता के कारण सब्सट्रेट्स के रूप में कई अन्य प्रकार के पदार्थों का उपयोग हम नहीं कर सकते। इसके अलावा, उच्च तापमान वाली प्रक्रियाओं में उपकरण और रख-रखाव के लिए अधिक लागत की ज़रुरत पड़ती है। लेकिन, तापमान कम करना एक विकल्प नहीं है क्योंकि सब्सट्रेट के कम तापमान पर, जमा हुआ पदार्थ  अमोर्फोस कार्बन के रूप में रहेगा और क्रिस्टलाइज होकर ग्रैफीन नहीं बनेगा ।

पिछले अध्ययनों में हीरे की फिल्मों और बहुलक फिल्मों को एक सब्सट्रेट पर निक्षेपण करने में परमाण्विक हाइड्रोजन द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताया गया है । इससे संज्ञान लेते हुए, ‘मैटेरियल्स केमिस्ट्री एंड फिजिक्स’ जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी ही तकनीक प्रयुक्त करने का फैसला किया। ताँबे के सब्सट्रेट का तापमान अधिक रखने करने के बजाय, उन्होंने इसे केवल 600℃ पर रखा और 2000℃ तक गर्म किया गया टंग्स्टन फिलामेंट (तंतु) इसके ऊपर रखा। फिर उन्होंने इस समूह में मीथेन गैस प्रवाहित की, जिसके परिणामस्वरूप ताँबे के सब्सट्रेट पर अमोर्फोस कार्बन की एक परत का जमाव हुआ। फिर हाइड्रोजन गैस को फिलामेंट पर प्रवाहित किया गया, जिससे हाइड्रोजन परमाणु विभाजित हो गए और अमोर्फोस कार्बन के साथ प्रतिक्रिया करके ग्रैफीन में रूपांतरित हो गए।

शोधकर्ताओं द्वारा प्रस्तावित विधि को 'गर्म तार रासायनिक वाष्प निक्षेपण’ ' कहा जाता है और कई मामलों में ये पारंपरिक तरीकों से बेहतर है। चूंकि मीथेन अणुओं का विघटन या विभाजन बहुत प्रभावशाली है इसलिए परंपरागत तरीकों की तुलना में गैस की आवश्यक सघनता काफी कम है। इसके अलावा, गर्म फिलामेंट में कम शक्ति खर्च होती है, जिससे ग्रैफीन की बढ़त के लिए सब्सट्रेट को उच्च तापमान की आवश्यकता नहीं होती। ये कारक उत्पादन की कुल लागत कम करने में सहायक होते हैं।

उत्पादित ग्रैफीन के एक नैनो पैमाने के अध्ययन से पता चला है कि अनावरणकाल और हाइड्रोजन की सघनता को बदलकर ग्रैफीन के विकास को नियंत्रित करना संभव है। यह खोज उन संभावित अध्ययनों में मदद कर सकती है जहाँ परमाण्विक हाइड्रोजन रसायन शास्त्र का उपयोग, बजाय केवल सब्सट्रेट -कार्बन की परस्पर क्रिया के, नैनो पैमाने पर ग्रैफीन फिल्म के गुणों को अनुरूप बनाने के लिए किया जाये।

प्राध्यापक दूसाने और उनकी टीम ने भविष्य में ग्रैफीन को संश्लेषित करने के लिए एक और व्यापक विधि तैयार करने की योजना बना रही है। प्राध्यापक दूसाने कहते हैं, " परमाण्विक हाइड्रोजन के रसायन शास्त्र का उपयोग करते हुए, हम गर्म तार रासायनिक वाष्प प्रक्रिया का उपयोग करके कम तापमान पर ग्रैफीन बनाने के लिए एक और बेहतर पद्धति तैयार करने की योजना बना रहे हैं।"