वैज्ञानिकों ने आरोपित विकृति के अंतर्गत 2-डी पदार्थों के परमाण्विक गुणों का सैद्धांतिक परीक्षण किया है।

एक आसान रक्त परीक्षण अब अकाल प्रसव का परीक्षण कर भारत में लाखों बच्चों की जान बचा सकता है

Read time: 1 min
बेंगलुरु
20 जनवरी 2020
एक आसान रक्त परीक्षण अब अकाल प्रसव का परीक्षण कर भारत में लाखों बच्चों की जान बचा सकता है

मनुष्यों में, एक स्वस्थ गर्भावस्था लगभग ४० सप्ताह तक रहती है। हालांकि, दुनिया भर में अनुमानित १.५ करोड़ बच्चों का जन्म लगभग ३७ सप्ताह से पहले ही हो जाता है। अपरिपक्व जन्मों से जुड़ी जटिलताओं के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग दस लाख बच्चे मारे जाते है एवं यह पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। भारत में हर साल लगभग ३५ लाख बच्चे जन्म लेते हैं। भ्रूण के विकास को समझने के लिए अल्ट्रासाउंड उपकरणों की कमी के कारण इनमें से कई बच्चों को गर्भावस्था में सही देखभाल प्राप्त नहीं होती।

कनाडा, बांग्लादेश और संयुक्त राज्य अमेरिका के शोधकर्ताओं ने एक सरल, किफ़ायती रक्त परीक्षण का प्रस्ताव दिया है जिससे नवजात शिशु का रक्त प्रशिक्षण कर गर्भावस्था की लंबाई का अनुमान लगा सकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह प्रशिक्षण कम संसाधन वाले देशों में प्रसव से पूर्व जन्म के निदान में मदद कर सकता है। इस तकनीक को बांग्लादेश से नवजात शिशुओं में सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है। बिल एंड मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित यह अध्ययन हाल ही में ई-लाइफ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

नवजात शिशु के रक्त में, माँ की गर्भावस्था की लंबाई पर आश्रित कई रसायन होते हैं। वर्तमान अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इन रसायनों के आधार पर गर्भकालीन आयु का अनुमान लगाने के लिए एक गणितीय सूत्र विकसित किया। कनाडा में एक प्रारंभिक परीक्षण के बाद, उन्होंने बांग्लादेश के एक ग्रामीण क्षेत्र से १०६९ नवजात शिशुओं के रक्त के नमूनों का इस तकनीक का परीक्षण किया। उन्होंने अध्ययन के लिए १०३६ नमूने गर्भनाल डोरियों और ४८७ नमूने एड़ी से एकत्र किए। रक्त परीक्षण से अपने निष्कर्षों को मान्य करने के लिए माताओं की अल्ट्रासाउंड स्कैन रिपोर्ट भी एकत्र की गयी।

शोधकर्ताओं ने पाया कि उनके प्रस्तावित दृष्टिकोण से अल्ट्रासाउंड-मान्य आयु के एक या दो सप्ताह के भीतर गर्भकालीन आयु का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। हालाँकि दोनों, नाभि डोरियों और एड़ी से निकलने वाले रक्त, संतोषजनक परिणाम देते हैं, फिर भी एड़ी के नमूनों से प्राप्त अनुमान गर्भनाल डोरियों की तुलना में अधिक सटीक थे। इस अवलोकन को शोधकर्ता इस तथ्य की ओर इंगित करते हैं कि मूल मॉडल एड़ी नमूनों के आधार पर विकसित किया गया था। हालाँकि अध्ययन में पाया गया एड़ी से रक्त लेने की तुलना में नवजात शिशुओं में माता-पिता गर्भनाल डोरियों से रक्त परीक्षण करवाना पसंद करते थे।

अध्ययन की सीमाओं में से एक, शिशुओं के माता-पिता की उनके नवजात शिशुओं के नमूने  देने के लिए अनिच्छा थी। इस अध्ययन के लिए रक्त के अधिकांश नमूने पूर्ण-अवधि के शिशुओं से आए थे और शोधकर्ताओं के पास बहुत कम (२८-३२ सप्ताह) और अत्यंत अपरिपक्व (२८ सप्ताह से कम) शिशुओं के बहुत कम नमूने थे, जो मॉडल के प्रदर्शन की मान्यता को सीमित करते थे।

अध्ययन भारत जैसे कम संसाधनों वाले देश में प्रसव-पूर्व जन्म के निदान के लिए एक लागत-कुशल दृष्टिकोण प्रदान करता है, जहां अल्ट्रासाउंड स्कैन की पहुंच सीमित है। गर्भकालीन उम्र का अनुमान शिशुओं में असामयिक जन्म से होने वाली मृत्युओं का निवारण करने में महत्वपूर्ण है। लेखक कहते हैं की इस तरह के परीक्षणों से निष्कर्षों का प्रयोग उन नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए किया जा सकता है जो गर्भकाल समाप्त होने से पहले जन्म लेते हैं।