क्या आप जानते हैं कि कई अणुओं में हस्त-प्राधान्यता (हैंडेडनेस) होती है? अर्थात ,हमारे बाएँ और दाहिने हाथ की तरह, ये अणु अपने दर्पण प्रतिबिंब (दर्पण छवि) से अलग होते हैं। लेकिन हमें इनकी परवाह क्यों करनी चाहिए? यह पता चला है कि कुछ दवाओं और औषधियों के "दर्पण-जुड़वां" हो सकते हैं जो औषधीय के बजाय विषाक्त हो सकते हैं! क्वांटम यांत्रिकी और अति तीव्र प्रकाशीय विज्ञान (अल्ट्राफास्ट ऑप्टिक्स) में अपने सैद्धांतिक योगदान के माध्यम से और जर्मनी में अपने सहकर्ताओं के साथ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के प्राध्यापक गोपाल दीक्षित ने एक तरीका विकसित किया है जो पदार्थों की हस्त-प्राधान्यता की पहचान करने में मदद कर सके।
अणुओं के हस्त-प्राधान्यता को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि डीएनए, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, स्टेरॉयड इत्यादि सहित कई जैविक अणुओं में हस्त-प्राधान्यता होती है। हस्त-प्राधान्यता की पहचान आणविक स्तर पर मुश्किल क्यों है? अणु आकार में बहुत छोटा होने के साथ-साथ तीव्र गति से चलता है, आणविक स्तर पर इसकी गतिविधि का निरीक्षण करने के लिए एक विशेष प्रकार के प्रकाश की आवश्यकता होती है। एक अति तीव्र लेज़र किरण (अल्ट्राफास्ट लेजर लाइट), जिसे एटोसेकण्ड ( एक सेकंड का अरबवां का अरबवां हिस्सा) लेज़र कहा जाता है, आणविक स्तर पर गति को क़ैद कर सकने का उपाय है। लेकिन हस्त-प्राधान्यता की पहचान करने के लिए, लेज़र स्पंद की एक विशिष्ट स्थिति जिसे ध्रुवीकरण कहते है, को जानना आवश्यक है। ऐसा कह सकते हैं कि अणु की हस्त-प्राधान्यता को जानने के लिए लेज़र स्पंद की हस्त-प्राधान्यता का पता होना ज़रुरी है। प्राध्यापक दीक्षित के सैद्धांतिक दृष्टिकोण इसे संभव बनाते हैं।
प्राध्यापक दीक्षित कहते हैं, “हैंडेड एटोसेकेंड स्पंदो में तरंगदैर्ध्य (वेवलेंथ) अणुओं के आकार के तुलनीय होती है इसलिए स्पंद हैंडेड अणुओं की पूरी संरचना को आसानी से देख सकते हैं।”
प्रकाशीय तरंग का ध्रुवीकरण, विद्युत चुम्बकीय तरंगों में विद्युत क्षेत्र के कंपन की दिशा निर्दिष्ट करता है। कंपन की दिशा बाएँ या दाएँ ओर घूम सकती है, इस प्रकार प्रकाश को हस्त-प्राधान्यता प्रदान की जाती है। हाल ही के दिनों में वृत्तीय ध्रुवीकरण के स्पंदो का उत्पादन करना एटोसेकेंड लेजर शोध में एक प्रमुख सफलता है। दुर्भाग्य से, सटीक ध्रुवीकरण की स्थिति या इन एटोसेकेंड स्पंदो की 'हैंडेडनेस' को निर्धारित करने के लिए कोई तरीका नहीं था। प्राध्यापक दीक्षित और उनके सहकर्ताओं ने गणितीय मॉडल का उपयोग करके भविष्यवाणी की है कि एटोसेकेंड स्पंद लेजर स्पंदो की ध्रुवीकरण की स्थिति (हैंडेडनेस) के आधार पर अणुओं में इलेक्ट्रॉनों को विभिन्न ऊर्जा प्रदान करता है। उन्होंने एटोसेकेंड स्पंद की पूरी ध्रुवीकरण की स्थिति का पुन:र्निर्माण करने के लिए एक सैद्धांतिक विधि तैयार की है। इसने हमेशा के लिए वृत्तीय ध्रुवीकृत, आंशिक रूप से ध्रुवीकृत, और अध्रुवित स्पंदो को पहचानने की चुनौती का समाधान कर दिया है।
भविष्य में वैज्ञानिक इस विधि को कई प्रक्रियाओं के एटोसेकेंड माप के अभिन्न अंग बन जाने की उम्मीद करते हैं।
“हमारा काम अणुओं के अलावा नव पदार्थो की पूरी श्रृंखला का अध्ययन करने के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। इनमें अति-चालक शामिल हो सकते हैं, जो किसी प्रतिरोध के बिना बिजली का संचालन कर सकते हैं या एक टोपोलॉजिकल पदार्थ जो असाधारण व्यवहार करते है, जिस शोध ने 2016 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार अर्जित किया था,” प्राध्यापक दीक्षित ने टिप्पणी की।
आईआईटी बॉम्बे में प्राध्यापक दीक्षित और उनकी टीम ने भारत में एटोसेकेंड लेज़र शोध की शुरुआत की और भारत को इस क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला बना दिया है।