वैज्ञानिकों ने आरोपित विकृति के अंतर्गत 2-डी पदार्थों के परमाण्विक गुणों का सैद्धांतिक परीक्षण किया है।

नैनोमेडिसिन में नई खोज से कैंसर के उपचार में आशा की नई किरण

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मुंबई
26 अगस्त 2019
नैनोमेडिसिन में नई  खोज से कैंसर के उपचार में आशा की नई किरण

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई और सीएसआईआर-एनसीएल के शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि गोल्ड-लिपोसोम नैनोहाईब्रिड्स कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर सकने में सक्षम हैं। 

कैंसर के उपचार के लिए, कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थों से बने हुए नैनो स्ट्रक्चर्ज़, जो कि नियर इन्फ़्रारेड लाइट एक्सपोज़र पर  काम करते  हैं,  पर खोज चालू है जिससे कैंसर पीड़ितों के लिए एक आशा की किरण चमकी है।  हालाँकि इस पर काम अभी पूरा नहीं हुआ है , नैनोपार्टिकल का उपयोग करके विशिष्ट कैंसर कोशिकाओं का नाश करना अब बिलकुल सम्भव है। कैंसर कोशकाओं के स्थानीय निदान और उपचार के लिए इन  नैनोपार्टिकल का उपयोग किया जा सकता है और जिससे स्वस्थ कोशिकाओं को कम से कम क्षति पहुँचती है, जब कि परम्परागत विकिरण और कीमोथेरपी की उच्च मात्रा से बहुत से साइड इफ़ेक्ट होते हैं और स्वस्थ कोशिकाओं को भी हानि पहुँचती है। इस अध्ययन में प्राध्यापक रोहित श्रीवास्तव के नेतृत्व में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई और डॉक्टर कलियपेरूमाल सेल्वराज के नेतृत्व में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला के नैनो एंड कॉम्प्यूटेशनल मेटेरीयल्स लैब,  केटालिसिस डिविज़न के वैज्ञानिकों ने कैंसर के उपचार के लिए सोने और लिपिड़्स से बने हाइब्रिड नैनो पार्टिकलस की रचना की है।

“जहाँ तक हमें पता है अभी तक कैन्सर नैनो मेडिसिन, लक्षित क्षेत्र में अल्प अवशोषण की समस्या और जैव असंगति जैसी कमियों से ग्रसित हैं। हमारा मुख्य लक्ष्य है इन कमियों को दूर करना और नैनो मेडिसिन को निरापद  बनाना,”  राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला के नैनो एंड कॉम्प्यूटेशनल मेटेरीयल्स लैब के डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, जो इस अध्ययन के लेखकों में से एक हैं, का कहना है। यह अध्ययन ‘बायोकोंजुगेट केमिस्ट्री’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है और इंफ़ोसिस फ़ाउंडेशन और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा वित्त पोषित किया गया।                     

शोधकर्ताओं ने गोल्ड-लिपिड नैनो पार्टिकल बनाए हैं जो प्रकाश से उत्प्रेरित होते हैं और उन्हें शरीर के अंदर भेजकर गंतव्य स्थान पर औषधि का विमोचन करवाया जा सकता है। यही नहीं, ये जैवानुकूल (बायो कम्पैटिबल) होते हैं अर्थात शरीर के लिए विषैले नहीं होते। ये नैनो पार्टिकल प्रकाश को ताप में बदलकर कैंसर ग्रसित कोशिकाओं का तापमान बढ़ाकर  उनको नष्ट कर सकते हैं. शोधकर्ताओं ने नैनो हाइब्रिड बनाने के लिए सोने को चुना क्योंकि एक धातु होने के कारण,सोना  प्रकाश को दक्षता से ताप में बदल पाता  है। ये नैनो पार्टिकल नियर इन्फ़्रारेड प्रकाश पड़ने पर विघटित होकर अंदर समाई हुई कैंसर निरोधक औषधि का विमोचन कर देते हैं। शरीर इन विघटित पदार्थों का आसानी से त्याग कर देता है जिससे औषधि के विषैलापन का असर कम हो जाता है।

यह गोल्ड-लिपिड नैनो हाइब्रिड सामान्य परिवेश में अपने आप जुड़ जाता है। नैनो हाइब्रिड में लिपिड के गोलाकार मेम्ब्रेन कैन्सर निरोधक औषधि को चारों ओर से ढक लेते हैं और गोल्ड नैनोरॉड मेम्ब्रेन के अंदर और बाहर की सतह पर अपने आपको जमा लेते हैं। ये गोल्ड हाइब्रिड, रोग निदान व रोग चिकित्सा, दोनों के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं और ऐसी एकल प्रणाली, जो रोग निदान व रोग चिकित्सा दोनों के लिए इस्तेमाल किए जा सके, थेरानोस्टिक्स कहलाती है। क्योंकि नैनो हाइब्रिड प्रतिबिम्बीकरण के समय उन्नत वैषम्य (कॉंट्रास्ट) दिखाते हैं,  थेरानोस्टिक्स के दौरान इनका पता लगाना आसान हो जाता है।

“हालाँकि सिनर्जिस्टिक फ़ोटोथर्मल चिकित्सा के बारे काफ़ी कुछ साहित्य उपलब्ध है, गोल्ड नैनो रॉड्ज़ से समर्थित लिपोसोमल नैनो हाइब्रिड्स का कैंसर थेरानोस्टिक्स में उपयोग के बारे में यह पहला व्यापक अध्ययन है,” इस अध्ययन की नवीनता के बारे में डॉक्टर प्रसाद कहते हैं। “जब हमने हाइब्रिड नैनोपार्टिकल्स की क्षमता की कैंसर के इलाज के दूसरे तरीकों से तुलना की तो ये पाया कि नैनोपार्टिकल लगभग ९० प्रतिशत कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करने में सफल रहे हैं.”, डॉक्टर दीपक चौहान कहते हैं, जिन्होंने रचित नैनोहाइब्रिड की कोशिका के स्तर पर जाँच की। शोधकर्ता अब इन नैनोपार्टिकल्स का चूहों पर परीक्षण कर रहे हैं।

अब आप पूछेंगे कि कितने कम समय में हम इस तकनीक का उपयोग जन सामान्य के कैंसर के उपचार में कर पाएँगे?  “नैनो मेडिसिन को चिकित्सालयों और जन सामान्य तक पहुँचाना चुनौतीपूर्ण है”, डॉक्टर प्रसाद ने कहा। “हमें इस औषधि का जीवित अवस्था में चूहों में और बड़े जानवर, जैसे सुअर और बंदरों में, अध्ययन करना है, बाद में मनुष्य पर नैदानिक अध्ययन करना होगा और जनता को उपलब्ध कराने से पहले खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) का अनुमोदन भी पाना होगा”, उन्होंने आगे की योजना के बारे में बताते हुए यह कहकर अपनी बात समाप्त की।