मानव ने ऊष्मा चालकता, तन्यता या सामर्थ्य जैसे कारकों के वाँछित गुणधर्मों की प्राप्ति हेतु मिश्र-धातुओं एवं मिश्रित पदार्थों (कंपोसिट्स) का सृजन कर लिया है। पूर्णत: रासायनिक सहज ज्ञान पर केन्द्रित, वे सहायक पदार्थों का चयन विभिन्न वस्तुस्थितियों के आधार पर करेंगे। वे मिश्रित पदार्थों का सृजन करेंगे, गुणधर्मों का परीक्षण करेंगे, इसके मिश्रण को परिवर्तित करेंगे एवं पुन: परीक्षण करेंगे। कार्य का स्वचालन (आटोमेशन) अधिक प्रभावकारी हो सकता है, तथापि सहायक सामग्री एवं सम्बद्ध पदार्थों के भौतिक गुणों के चयन हेतु, संभावित विकल्पों की पूर्व जानकारी की आवश्यकता है।
ऐसे किसी पदार्थ के अभिकल्पन के लिए गणितीय विधियों का उपयोग करना एक वैकल्पिक एवं अधिक दक्षतापूर्ण पद्धति होगी। तकनीक न्यूनतम ज्ञात सामग्रियों के निर्माण की सत्यापित युक्तियों का उपयोग करेगी ताकि संबन्धित अज्ञात भौतिक अभिलक्षणों का सफलतापूर्वक अनुमान लगा सके। दूसरे रूप में यंत्राधिगम (मशीन लर्निंग या एम एल) नाम से जानी जाने वाली ये पद्धतियाँ सीमित आँकड़ों के आधार पर स्वतः जानकारी प्राप्त (लर्न) कर सकती हैं एवं तार्किक निर्णय (लॉजिकल डिसीजंस) ले सकती हैं। अतएव इच्छित उपयोग हेतु इनके पास नवीन पदार्थों के विकास में लगने वाले समय एवं संसाधनों को सार्थक रूप से घटाने की क्षमता है।
आईआईटी मुंबई स्थित यांत्रिक अभियांत्रिकी विभागांतर्गत आईसीएमई तथा पदार्थ जीनोम प्रयोगशाला के प्रमुख प्राध्यापक अलंकार एवं उनके शोध दल ने, पदार्थ अभिकल्पन के क्षेत्र में यंत्राधिगम के सामर्थ्य का प्रदर्शन करने हेतु पदार्थों के प्रत्यास्थता (इलास्टिसिटी) व्यवहार का पुनरावलोकन किया है। वे जटिल मिश्र-धातुओं के प्रत्यास्थता गुणधर्मों के पूर्वानुमान के लिए यंत्राधिगम अल्गोरिद्म को प्रशिक्षित करने हेतु साधारण मिश्र-धातुओं से संबन्धित सूचना का उपयोग करते हैं। उन्होंने दर्शाया कि यंत्राधिगम के द्वारा प्रत्यक्षत: मापन योग्य मात्राओं का समूह प्राप्त किया जा सकता है, जिसका उपयोग उन मिश्र-धातुओं के अभिकल्पन हेतु किया जा सकता है, जिनमें दो से अधिक घटक तत्व सम्मिलित हैं एवं प्रत्यास्थता अपेक्षित है। वैमानिकी अनुसंधान एवं विकास मण्डल (एआरडीबी) द्वारा आंशिक रूप से वित्त पोषित यह शोध कार्य, कंप्यूटेशनल मटीरियल्स साइंस नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित किया गया था।
पदार्थ की विरूपण (डिफ़ार्मेशन) से उबरने की क्षमता, उस पदार्थ की प्रत्यास्थता को व्यक्त करती है, जिसका अनुमान प्रत्यास्थता स्थिराँक का मापन करके किया जाता है। हम यंग मापांक जैसे परिमाणों के उपयोग से पदार्थों की प्रत्यास्थता का मापन कर सकते हैं, जो हमें बताता है कि कोई पदार्थ कितनी सरलता से विस्तारित एवं विकृत किया जा सकता है। प्रत्यास्थता स्थिराँकों का निर्धारण सघनता व्यावहारिक सिद्धांत (डेंसिटी फंक्शनल थ्योरी या डीएफटी) नामक एक गणितीय प्रतिरूपण (मॉडलिंग) के माध्यम से किया जा सकता है। तथापि डीएफटी आधारित प्रतिरूपण केवल 0 केल्विन या परम शून्य ताप (-273 ℃) पर ही पदार्थों की भौतिकी की व्याख्या कर सकता है। चूँकि डीएफटी प्रतिरूपण के द्वारा वर्णित भौतिक गुण, मिश्र-धातुओं के कार्यकारी तापमान पर सटीक नहीं होते, अत: डीएफटी के उपयोग से साधारण मिश्र-धातुओं का अभिकल्पन (डिज़ाइनिंग) बहुधा अनेकों अवरोधों का सामना करता है। प्रा. अलंकार का कार्य न केवल गणितीय दृष्टिकोण पर ही आधारित एक यंत्राधिगम प्रतिरूपण को विकसित कर इस समस्या को विशिष्ट रूप से हल करता है, अपितु इसे सुगमता से प्राप्त प्रायोगिक आँकड़ों पर भी प्रयुक्त कर आगे के किसी भी तापमान एवं प्रचालन स्थितियों के लिए बढ़ाया जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने सर्वप्रथम डीएफटी प्रतिरूपण से प्राप्त द्विघटकीय मिश्र धातुओं के समस्त सम्भाव्य मिश्रणों की सूचनाओं से यंत्राधिगम प्रतिरूपणों (एमएल मॉडल्स) को प्रशिक्षित किया। इस प्रक्रिया के माध्यम से, यंत्राधिगम अभियुक्ति (एमएल अल्गोरिद्म) पदार्थों के महत्वपूर्ण गुणों के स्वतः पूर्वानुमान हेतु स्वचालित रूप से बोध प्राप्त करती है। यह भौतिक विवरणकों के समूह अथवा 'लक्षण-वैशिष्ठ्य' का उपयोग करते हुये, द्विमिश्र धातुओं के संख्यात्मक चित्रण के रूप में प्रकट होता है। तत्पश्चात शोधकर्ताओं ने उन्हीं आँकड़ों पर यंत्राधिगम प्रतिरूपणों का परीक्षण किया, ताकि सुगमता से मापी जा सकने वाली पदार्थों की अल्पमात्र विशेषताओं जैसे गलनांक, परमाणु त्रिज्या, ऊष्मा चालकता का लघुसूचीकरण किया जा सके, जो मिश्र-धातुओं के समस्त संभावित मिश्रणों के प्रत्यास्थता गुण-धर्मों का पूर्वानुमान कर सकता है। इस विशिष्ट चयन के संबंध में वार्ता करते हुये प्रा. अलंकार कहते हैं - "संक्षित सूची में हम ज्ञात लक्षणों में से किंचित् की ही अपेक्षा कर रहे थे। यद्यपि, हम इनके महत्व के संबंध में निश्चित नहीं थे। जैसे कि परमाणु त्रिज्या अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ।" अतएव अज्ञात गुणधर्मों के अभिनिर्धारण एवं खोज तथा पदार्थ की संरचना से इसका क्या संबन्ध है, इत्यादि जानकारी हेतु यंत्राधिगम एक मंच प्रदान करता है। अन्यथा गणितीय रूप से इसकी व्युत्पत्ति जटिल है।
इस कार्य की निर्णायक उपलब्धि, यद्यपि, तब स्थापित हुई जब शोधकर्ता इन प्रशिक्षित एम एल मॉडल्स को गिलट (निकल या Ni), क्रोमियम (Cr), लौह (Fe), मोलिबेड्नम (Mo) एवं टंग्स्टन (W) युक्त, एक पाँच-घटकीय मिश्र धातु के प्रत्यास्थता स्थिरांकों के वास्तविक प्रायोगिक आँकड़ों से सफलतापूर्वक सत्यापन कर पाए । प्रा. अलंकार व्यक्त करते हैं, "प्रारम्भ करने के लिए हमने द्विघटकीय मिश्र धातुओं के आँकड़ों का उपयोग किया तथा बहुघटकीय मिश्र धातुओं के प्रत्यास्थता स्थिरांकों का पूर्वानुमान करने योग्य हुये। प्रयोगात्मक आँकड़ों के साथ सह-संबंध स्थापित करने की योग्यता के अतिरिक्त, यही वह उपलब्धि है जिससे हम गौरवान्वित हुए ।"
प्रा. अलंकार का अभिनव कार्य नूतन 'पैरोव्स्काइट्स' की खोज एवं अभिलक्षण-निरूपण (कैरेक्टराइजेशन) का मार्ग प्रशस्त करता है। पैरोव्स्काइट्स, कैल्शियम टाइटेनियम-ऑक्साइड आधारित खनिजों का एक वर्ग होता है, जिसे नवीन पदार्थों एवं अन्य असाधारण बहु-घटकीय मिश्र धातुओं के सृजन हेतु अभियंत्रित किया जा सकता है। प्रा. अलंकार एवं उनका शोध दल पूर्व से ही, एम एल मॉडल्स में अंतर्निहित भौतिक सिद्धांतों को लागू कर अपने आगामी कार्यों में इसका अनुसन्धान कर रहे हैं, जिसे 'भौतिकी सूचित यंत्राधिगम' (फ़िज़िक्स-इन्फॉर्म्ड मशीन लर्निंग) के नाम से भी जाना जाता है।