आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं ने शॉकवेव आधारित बिना सुई की सिरिंज विकसित की है जो वेदनारहित एवं सुरक्षित पद्धति से औषधि का वितरण करते हुए त्वचा की क्षति एवं संक्रमण के संकट को कम करती है।

टिड्डे के मस्तिष्क का अनुकरण करते हुए वैज्ञानिकों ने अवरोध-संसूचन में सक्षम अल्प-ऊर्जा कृत्रिम तंत्रिका-कोशिकाएं विकसित की

Read time: 1 min
Mumbai
22 अप्रैल 2024
Representative image of mimicking locust brain. Credit: Dennis Joy

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस; एआई) के इस युग में बृहत् भाषा प्रतिरूप (लार्ज लैंग्वेज मॉडल) के माध्यम से संचालित चैटबॉट से लेकर स्वायत्त वाहनों (ऑटोनॉमस वेहिकल्स) एवं स्वचालित (सेल्फ-ड्रायविंग) कारों तक कई रोचक विकास हुए हैं। हम निरंतर विकसित हो रहे एआई के एक अत्यंत रोमांचक चरण में हैं एवं हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले नवाचारों के साक्षी हैं। एक ओर टेस्ला की स्वचालित कारें कई अन्य देशों के विपणन केन्द्रों में आ चुकी हैं, तो दूसरी ओर भारत का स्वयं का प्रज्ञान रोवर (इसरो द्वारा निर्मित) चंद्रमा की अज्ञात सतह पर स्वयं का मार्गनिर्देशन (नेविगेशन) करने में सक्षम रहा है।

गतिमान अवरोधों (मूविंग ऑब्सटकल) के सटीक एवं शीघ्र संसूचन की क्षमता स्वायत्त वाहनों की एक प्रमुख चुनौती है। जटिल अल्गोरिद्म तथा दृष्टि प्रणालियों (व्हिजन सिस्टम्स) पर आधारित वर्तमान अवरोध संसूचन प्रणालियाँ (ऑब्स्टेकल डिटेक्शन सिस्टम्स), ऊर्जा व्यय एवं आकार के कारण बहुधा अक्षम होती हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) एवं किंग्स महाविद्यालय लंदन, यूनाइटेड किंगडम के शोधकर्ताओं ने एक नवीनतम अध्ययन के अंतर्गत एक अत्यंत अल्प-शक्ति (अल्ट्रा-लो पॉवर) ट्रांजिस्टर की रचना एवं निर्मिती की है। यह ट्रांजिस्टर कृत्रिम तंत्रिका परिपथ युक्ति (आर्टिफिशियल न्यूरॉन सर्किट डिजाइन) में लगाए जाने पर अवरोधों का संसूचन करने में सक्षम हैं। यह परिपथ जैविक तंत्रिकाओं के शिखा तंत्रिका प्रतिरूप (स्पाइकिंग न्यूरॉन मॉडल) का अनुकरण (मिमिक) करता है।

विशिष्ट रीति से सूचना को संसाधित करने की मस्तिष्क की अद्वितीय क्षमता, इस कार्य में शोधकर्ताओं की प्रेरणा बनी। उन्होंने टिड्डियों में स्थित टक्कर का संसूचन करने वाली तंत्रिकाओं के व्यवहार पर विशेष ध्यान दिया। लोब्यूला जाइंट मूवमेंट डिटेक्टर (एलजीएमडी) नामक तंत्रिका, टिड्डियों के मार्ग में आने वाली वस्तुओं के साथ होने वाली टक्कर से रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह प्रणाली एक संगणक (कंप्यूटर) की भाँति कार्य करती है, किन्तु मस्तिष्क का यही व्यवहार संगणक की तुलना में अधिक ऊर्जा-दक्ष होता है। वर्तमान अध्ययन में शोधदल ने एक नवीनतम, अल्प-ऊर्जा संचालित कृत्रिम तंत्रिका परिपथ युक्तिबद्ध किया है जो टिड्डियों में स्थित टक्कर का संसूचन करने वाली तंत्रिकाओं के व्यवहार का निकटता से अनुकरण करता है।

यह नूतन कृत्रिम तंत्रिका परिपथ एक नवीन उपसीमित (सबथ्रेशोल्ड) ट्रांजिस्टर के प्रतिरूप (मॉडल) को सम्मिलित कर युक्तिबद्ध किया गया है, जिसे द्विआयामी (2-डी) पदार्थ का उपयोग करके निर्मित किया गया है। अत्यंत क्षीण (अल्ट्रा थिन) 2-डी पदार्थों के कारण यह पुनर्संरूपण (रीकन्फिगरेबल) एवं अल्प-ऊर्जा संचालन में सक्षम होता है एवं ऊर्जा-दक्ष (एनर्जी एफिशिएंट) अनुप्रयोगों हेतु उपयुक्त है। यह ट्रांजिस्टर अल्प विद्युत शक्ति के अंतर्गत संचालित हो सकता है एवं इसे जैविक तंत्रिकाओं में निहित सोडियम प्रणाली के व्यवहार की प्रतिकृति के रूप में सावधानीपूर्वक निर्मित किया गया है, जो इसकी ऊर्जा दक्षता में वृद्धि करता है।

ट्रांजिस्टर के लिए 2-डी पदार्थ चुनने के पीछे तर्क स्पष्ट करते हुए विद्युत अभियांत्रिकी विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के प्राध्यापक एवं इस अध्ययन के प्रमुख लेखक प्रा. सौरभ लोढ़ा कहते हैं कि “मेमोरी एवं कंप्यूटिंग हेतु आधुनिक संगणक की तुलना में मानव मस्तिष्क को अत्यंत अल्प परिमाण की ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अतएव, तंत्रिकाकृति अथवा न्यूरोमॉर्फिक (मानव मस्तिष्क के अनुरूप) इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए अल्प परिमाण का विद्युत व्यय एक प्रमुख आवश्यकता है। 2-डी पदार्थ अपनी परमाणु-क्षीण प्रकृति (एटोमिकली थिन नेचर) के कारण इस उद्देश्य के लिए आदर्श हैं जो अल्प-ऊर्जा संचालन के लिए आवश्यक उत्कृष्ट स्थिरवैद्युतीय (इलेक्ट्रोस्टैटिक) नियंत्रण प्रदान करने में सक्षम हैं। यद्यपि सिलिकॉन जैसे पारंपरिक अर्धचालकों (सेमीकंडक्टर) को भी पतला किया जा सकता है, किन्तु 2-डी पदार्थों के विपरीत, क्षीण किये जाने पर वे तेजी से अपनी क्षमताएँ खो देते हैं।"

शोधकर्ताओं ने नवनिर्मित ट्रांजिस्टर प्रतिरूप को तंत्रिकीय परिपथ (न्यूरोनल सर्किट) में संयोजित कर, अनुरूपण (सिमुलेशन) के माध्यम से विद्युत ऊर्जा के अल्प व्यय का प्रदर्शन किया। उन्होंने दर्शाया कि यह कृत्रिम तंत्रिका परिपथ, एलजीएमडी तंत्रिकाओं की आवश्यक संगणनात्मक विशेषताओं के अत्यधिक निकट है। यह एलजीएमडी जैसा शैख्य (स्पाइकिंग) व्यवहार उत्पन्न कर सकता है, जिसमें निवेशित विद्युत संकेतों (इनपुट करंट सिग्नल) के प्रत्युत्तर में विभव शिखायें (वोल्टेज स्पाइक्स) उत्पन्न होती हैं, जो अल्प ऊर्जा व्यय पर अवरोधों का संसूचन करने में सक्षम हैं। कृत्रिम तंत्रिका-कोशिका (न्यूरॉन) की प्रति स्पाइक ऊर्जा 3.5 पिकोजूल (पीजे) के सन्निकट होने का अनुमान है, जो इसे विद्यमान जैव-अनुकरणीय शिखा तंत्रिका कोशिकाओं (बायोमिमेटिक स्पाइकिंग न्यूरॉन्स) की तुलना में अत्यधिक ऊर्जा दक्ष बनाती है।

संशोधन में आने वाली चुनौतियों के सम्बन्ध में बात करते हुए, वर्तमान अध्ययन के प्रथम लेखक कार्तिकेय ठाकर कहते हैं, "जैविक एलजीएमडी तंत्रिका प्रतिक्रिया के साथ मेल स्थापित करने हेतु, समस्त आवश्यक लक्षणों एवं शिखा समय (स्पाइक टाइम) को प्राप्त करना प्रमुख चुनौती था। पूरे परिपथ के कुल ऊर्जा अपव्यय को अन्य 2-डी पदार्थ आधारित परिणामों के मध्य सर्वाधिक नीचे स्तर तक लाना एक अन्य बड़ी चुनौती थी। 2-डी सबथ्रेशोल्ड ट्रांजिस्टर की विशेषताओं को सावधानीपूर्वक युक्तिबद्ध किया गया। इन दोनों परिणामों को प्राप्त करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम था, जिससे यह शोधकार्य अन्य कार्यों से अलग सिद्ध हुआ ।”

एलजीएमडी जैसे कृत्रिम तंत्रिका परिपथ को जब टक्कर का अनुकरण करने वाला निवेश (कोलीजन मिमिकिंग इनपुट) प्रदान किया गया, तो 100 पिको जूल से भी अल्प ऊर्जा व्यय पर संभावित टक्कर का संकेत देते हुए यह परिपथ, आस-पास उभरती हुई वस्तुओं का सटीक रीति से संसूचन कर सका। साथ ही यह परिपथ उभरती हुई एवं पश्चगामी (लूमिंग एंड रिसीडिंग) वस्तुओं के मध्य अंतर करने में सक्षम था, जिससे सीधी टक्कर के मार्ग में आने वाली वस्तुओं के लिए एक विशिष्ट चयनात्मक प्रतिक्रिया प्रदान की जा सकती है। संभावित संकट के प्रति प्रणाली की प्रतिक्रिया को सर्वोपरि रखने के लिए यह चयनात्मकता महत्वपूर्ण है। जब निवेशित विद्युत धारा में भिन्नता अथवा रव (नॉइस) होता है, तब भी कृत्रिम तंत्रिका प्रणाली विश्वसनीय रूप से कार्य करती रहती है। यह गुण इसे वास्तविक अनुप्रयोगों के लिए दृढता एवं विश्वसनीयता प्रदान करता है।

इस शोध के परिणाम स्वायत्त यंत्रमानविकी (ऑटोनॉमस रोबोटिक्स) एवं वाहन मार्गनिर्देशन (वेहिकल नेविगेशन) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं। अत्यंत अल्प-ऊर्जा के शिखा तंत्रिका परिपथ (अल्ट्रा-लो एनर्जी स्पाइकिंग न्यूरोन सर्किट) को विद्यमान प्रणालियों में निर्बाध रूप से एकीकृत किया जा सकता है, जिससे सटीक एवं ऊर्जा-दक्ष रीति से अवरोध का संसूचन किया जा सकता है। अज्ञात अथवा गतिशील वातावरण में चलने वाले स्वायत्त वाहनों को इससे अधिक सुरक्षा एवं विश्वसनीयता प्रदान की जा सकती है।

किंग्स महाविद्यालय, लंदन के अभियांत्रिकी विभाग में प्राध्यापक एवं इस अध्ययन के सह-लेखक प्रा. बिपिन राजेंद्रन कहते हैं, “हमने दर्शाया है कि इस शिखा तंत्रिका परिपथ का उपयोग अवरोध संसूचन के लिए किया जा सकता है। यद्यपि परिपथ का उपयोग एनालॉग या मिश्रित संकेत तकनीक पर आधारित अन्य न्यूरोमॉर्फिक (मानव मस्तिष्क का अनुकरण करने वाली प्रणालियां) अनुप्रयोगों में किया जा सकता है, जिसके लिए अल्प-ऊर्जा वाली शैख्य तंत्रिकाओं (स्पाइकिंग न्यूरॉन) की आवश्यकता होती है।”

इसे उत्पादनों में लाये जाने की संभावनाओं पर बोलते हुए, प्राध्यापक सौरभ लोढ़ा कहते हैं कि, “अर्धचालक उद्योगों ने अपने भविष्य के ट्रांजिस्टर कार्यक्रमों हेतु 2-डी पदार्थों में अत्यधिक रुचि दिखाई है। यद्यपि उद्योगों में 2-डी पदार्थों का व्यापक उपयोग, इन पर आधारित उपकरणों से संबंधित कुछ तकनीकी चुनौतियों के समाधान पर निर्भर करेगा। विशेष रूप से इन समाधानों को प्रक्रिया एवं जटिलता के दृष्टिकोण से, विद्यमान प्रौद्योगिकी के साथ संगतता (कम्पेटिबिलिटी) दर्शानी होगी, चाहे वह लॉजिक, मेमोरी या एमईएमएस हो। साथ ही अर्धचालक प्रौद्योगिकी की आगे की दिशा पर आधारित अन्य सुविधाओं, जैसे हेट्रोजेनस एकीकरण एवं क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी भविष्य की प्रौद्योगिकी के साथ सरलता से एकीकृत होना होगा।”

यह शोधकार्य, अल्प-ऊर्जा संचालित शैख्य तंत्रिका परिपथ के विकास में 2-डी पदार्थों का उपयोग करके तंत्रिकाकृति अभियांत्रिकी (न्यूरोमॉर्फिक इंजीनियरिंग) एवं स्वायत्त यंत्रमानाविकी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है। शोध के निष्कर्ष संभावित रूप से अवरोधों के संसूचन एवं इनका परिहार करने की दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैं तथा उन्नत तंत्रिकाकृति प्रणालियों की आगामी खोज एवं वास्तविक अनुप्रयोगों में उनके एकीकरण का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।