रिफाइनरी से प्राप्त उपचारित अपशिष्ट जल जब बालू से होकर बहता है तो इस पर प्रदूषक-भक्षी जीवाणुओं की एक परत निर्मित कर देता है, जो पानी से हानिकारक यौगिकों को दूर करती है।

कक्ष तापमान पर क्वान्टम सूचना प्रक्रिया हेतु एक नया प्रस्ताव

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मुम्बई
27 अगस्त 2020
कक्ष तापमान पर क्वान्टम सूचना प्रक्रिया हेतु एक नया प्रस्ताव

शोधकर्ताओं ने क्वांटम कंप्यूटिंग को संभव बनाने के लिए परमाण्विक रूप से पतले पदार्थ से प्राप्त अनूठे नैनोचिप्स का प्रस्ताव दिया है।

अक्टूबर 2019 में, गूगल ने घोषणा की कि उनके क्वांटम प्रॉसेसर ने एक संगणना केवल 200 सेकंड में प्राप्त की, जिसे करने में,  उनका दावा है कि आज का सबसे उन्नत सुपर कंप्यूटर भी लगभग 10,000 वर्ष लेगा। यद्यपि आईबीएम ने इस दावे को चुनौती दी है, किन्तु संगणनात्मक क्षमताओं में इस प्रकार के प्रबल परिवर्तन मूल रूप से एक नई तकनीक  क्वाण्टम कम्प्यूटर के कारण वास्तव में संभव है।

यद्यपि विकास के अपने उदीयमान चरण में, क्वांटम कंप्यूटर वास्तव में संगणना में क्रांति ला सकता है । ये न केवल तेजी से गणना कर सकते हैं, बल्कि ऐसे समाधान भी प्रस्तुत कर सकते हैं, जिसमें आधुनिक कंप्यूटर साधारणत: अक्षम होते हैं, जैसे कि सूचना के सुरक्षित संकूटन और विग्रह अर्थात एनक्रिप्शन और डीक्रिप्शन के क्षेत्र में। तथापि, एक समस्या है: क्वांटम सूचना प्रक्रिया को जितना संभव हो उतना परम शून्य, -273o C, तापमान के समीप ले जाने की आवश्यकता होती है, जो इसके कार्यान्वयन में चुनौती उत्पन्न करता है। इसकी तुलना में, पृथ्वी पर अब तक का सबसे ठंडा तापमान -93.2o C है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई (आईआईटी बॉम्बे) से वैज्ञानिकों के एक दल ने विशेष रूप से निर्मित किए गए परतीय पदार्थों के क्रमबद्ध विन्यास अर्थात स्टेक्स का उपयोग करते हुए, कक्ष तापमान पर क्वांटम सूचना प्रक्रिया के संचालन लिए एक अनूठी व्यवस्था का प्रस्ताव हाल ही में दिया है। इस कार्य को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया था, और शोध पत्रिका फ़िज़िकल रिव्यू बी में प्रकाशित किया गया था।

वर्तमान कंप्यूटर के संगणना खंड बनाने वाली बिट अवस्थाओं -  0 एवं 1 के स्थान पर क्वान्टम कंप्यूटर अपने क्वान्टम रूप का उपयोग करते हैं, जिसे क्यूबिट कहते हैं। क्यूबिट्स को सिद्ध करने की संभावनाओं में से एक वैली मटेरियल्स के माध्यम से है। ये ऐसे पदार्थ होते हैं, जिनके 'ऊर्जा बैंड' अथवा ऊर्जा समूह जिसे पदार्थ में स्थित इलेक्ट्रॉन्स ग्रहण कर सकते हैं, वैली का आकार ले लेते हैं। चूँकि ये वैली दो विपरीत प्रकारों में दिखाई देती हैं, इसलिए ये दोनों एक क्यूबिट में दो अवस्थाएँ  निर्मित कर सकती हैं।

क्वान्टम फिजिक्स में, परमाण्विक कण, क्वान्टम अवस्थाओं की रेखीय अध्यारोपण की अवस्था में कहे जाते हैं। क्यूबिट्स केवल तब संभव होते हैं जब यह रेखीय अध्यारोपण कायम रहता है अथवा कोहेयरेंस में होता है। किंतु, सुसंगतता अर्थात कोहेयरेंस, समय के साथ सक्रियता से क्षीण होता है, जिसकी संभावना उच्च परिवेशीय तापमान पर अधिक होती है। और यहाँ चुनौती स्थित होती है क्यूबिट्स को, और इसलिए  क्वांटम कंप्यूटिंग को सिद्ध करने की।

वर्तमान कार्य में, शोधकर्ताओं ने सैद्धांतिक रूप से दो व्यवस्थाएं बनाई, जिसके लिए कक्ष तापमान पर भी क्वांटम सुसंगतता बनाए रखना संभव है। उन्होंने अलग-अलग व्यवस्थाओं में वैली मटेरियल्स के रूप में दो प्रकार की ग्राफ़ीन को चुना। वैली पदार्थ को एक दूसरे पदार्थ के शीर्ष पर क्रमबद्ध विन्यास में रखा गया, जो कि वैली अवस्था में एक्साईटॉन कहे जाने वाले कणों के सुसंगत-अध्यारोपण अर्थात कोहेरेंट-सुपरपोजीशन के लिए उत्तरदाई है। इन पदार्थों के बिना, वैली अवस्थाओं में एक्साईटॉन नहीं होंगे।

"परमाण्विक रूप से पतले पदार्थों के एक दूसरे के ऊपर क्रमबद्ध विन्यास में निर्मित, यह सम्पूर्ण  युक्ति एक सौ नेनोमीटर से कम है," प्राध्यापक अंशुमन कुमार कहते हैं, जो आईआईटी बॉम्बे में क्वांटम पदार्थों की प्रकाशिकी प्रयोगशाला के प्रमुख हैं और अध्ययन के सह-लेखकों में से एक हैं। यह इसे एक मानवीय केश से 1000 गुना पतला बनाता है।

आगे, दल ने इन सैद्धांतिक व्यवस्थाओं के साथ स्थिर वैद्युतीय विभव को जोड़ा और संख्यात्मक गणनाओं के माध्यम से वैली अवस्थाओं की सुसंगतता को निर्धारित किया। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि दोनों व्यवस्थाएं कमरे के तापमान पर भी सुसंगत वैली अवस्थाओं का समर्थन कर सकती हैं। ये क्वांटम अवस्थायें इस प्रकार से क्वान्टम सूचनाओं या क्यूबिट्स के मूलभूत निर्माण खंड हो सकते हैं।

इसके अतिरिक्त, पदार्थों की मोटाई और स्थिर-वैद्युतीय विभव का उपयोग विभिन्न तापमानों पर सुसंगतता के परिमाण को लयबद्ध अर्थात ट्यून करने में भी किया जा सकता है।

"स्थिर-वैद्युतीय विभव के माध्यम से क्वान्टम अवस्थाओं की यह लयबद्धता इसके तकनीकी वास्तविकता में रूपान्तरण को संभव बनाती है," इस सिद्धान्त को व्यावहारिक बनाने में, इसके महत्व पर प्रकाश डालते हुये प्राध्यापक कुमार टिप्पणी करते हैं। यद्यपि, वह स्वीकार करते हैं कि आगे चुनौतियां हैं। "इस व्यवस्था के लिए आवश्यक पदार्थ अत्यंत शुद्ध होना चाहिए, और नेनोमीटर अनुमाप पर, इसे प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण है।"

यद्यपि आगामी कुछ वर्षों में वैली माटेरियल्स का बड़े पैमाने पर निर्माण संभव है, किंतु इतनी पतली पदार्थ समरूपता प्राप्त करने में कुछ समय लग सकता है।

इस तरह के सैद्धांतिक अध्ययन और सक्रिय प्रयोग के बीच एक निरंतर सामंजस्य ही आगे का रास्ता है। शोधकर्ता वर्तमान में प्रायोगिक बोध पर और कुछ तकनीकी चुनौतियों से बचने के लिए, प्रयुक्त पदार्थ के संशोधन पर काम कर रहे हैं।