शारीरिक पीड़ा का अनुभव करने वाले विश्वविद्यालयीन छात्र कार्य पर हीनतर प्रदर्शन करते हैं एवं पीड़ा रहित लोगों की तुलना में उनकी मनोदशा निचले स्तर पर होती है।