क्षयरोग, एक घातक जीवाण्विक रोग है जो २०१६ में भारत में ५ लाख से ज्यादा लोगों की मौत का कारण बना था। एक अनुमान के अनुसार मच्छरों द्वारा फैलने वाली एक दूसरी घातक बीमारी ‘मलेरिया’ से लगभग १७ हज़ार लोग मारे गए। सर्वाइकल कैंसर, महिलाओं में एक सामान्य प्रकार का कैंसर है जिससे देश में सालाना लगभग ७४ हजार मौतें होती हैं। आंत्र परजीवी, जो दस्त पैदा करते हैं, मृत्यु का एक अन्य प्रमुख कारण हैं। आख़िर इन सभी बीमारियों में क्या समानता है? इन सभी बीमारियों का यदि समय रहते निदान किया जाए तो अधिकांश मृत्युओं को रोका जा सकता है। परन्तु समय पर उचित निदान की कमी, इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सबसे बड़ी अड़चन के रूप में सामने आती है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के शोधकर्ताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीप लर्निंग का उपयोग कर इन बीमारियों का पता लगाने के लिए एक किफायती, बिजली की कम खपत वाला उपकरण विकसित किया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीप लर्निंग, कंप्यूटर पर आधारित मशीन लर्निंग तकनीकें हैं जो मौजूदा डेटा को देखकर, स्वयं को प्रशिक्षित करने में सक्षम होती हैं। स्वास्थ्य सेवा संबंधित कई नवीन अनुप्रयोगों में इन तकनीकों का उपयोग किया जाता है.
प्राध्यापक मनन सूरी, जिन्होंने इस अध्ययन का नेतृत्व किया है कहते हैं कि,“हालाँकि स्वास्थ्य और निदान -संबंधित अनुप्रयोगों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित कई सॉफ़्टवेयर मॉडल मौजूद हैं, मगर आज के समय में हमें ऐसे पोर्टेबल, समर्पित, कम-शक्ति की खपत और कम-लागत वाले हार्डवेयर की आवश्यकता है जो कुशलता पूर्वक उपलब्ध मॉडलों की जानकारी को एकत्र कर सके , एवं एक कम संसाधनों वाले पर्यावरण में भी सुगमता से प्रयोग में लाया जा सके।”
शोधकर्ताओं ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है जो एक छोटे से कंप्यूटर, रास्पबेरी पाई, पर चलता है जिससे एक इन्फ्रारेड-सेंसिटिव कैमरा जुड़ा होता है। प्रयोगशालाओं में उपलब्ध भारी उपकरणों के मुकाबले, यह एक हल्का एवं वहनीय उपकरण है जो अन्य उपकरणों की तुलना में बहुत कम बिजली का प्रयोग करता है। इस उपकरण को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित एल्गोरिदम के साथ क्रमादेशित किया गया है जो जैविक नमूनों में सूक्ष्मजीवों का पता लगा सकता है। इस उपकरण का प्रयोग कर उच्च सटीकता के साथ मलेरिया, तपेदिक, आंतों के परजीवी, और सर्वाइकल कैंसर का पता लगाया जा सकता है। संसाधनों की कमी वाले स्थानों, जैसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में इस उपकरण का प्रयोग आसानी से किया जा सकता है।
उत्कृष्ट नैदानिक सेवाओं के अभाव में, इन बीमारियों का इलाज ज्यादातर उनके लक्षणों के आधार पर किया जाता है, जिसमें त्रुटियाँ होने की सम्भावना बहुत अधिक है, इससे न केवल मृत्यु-दर में बढ़ोतरी होती है किंतु दवा प्रतिरोध और मरीज़ों पर अनावश्यक दवाओं को खरीदने का आर्थिक बोझ भी हो सकता है। अतः एक तेज, सटीक नैदानिक समाधान उपलब्ध होने से हजारों लोगों के प्राणों की रक्षा की जा सकती है।
इस उपकरण के प्रारूप को को अमेरिका और इटली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य सम्मेलनों में प्रस्तुत किया गया है एवं २०१८ में इस उपकरण के लिए शोधकर्ताओं ने प्रतिष्ठित गांधी युवा प्रौद्योगिकी नवाचार पुरस्कार भी प्राप्त किया था। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनके द्वारा विकसित यह उपकरण जल्द ही ग्रामीण और संसाधन-सीमित क्षेत्रों में प्रयोग किया जाएगा जिससे स्वास्थ्य सेवा में सुधार होगा।