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अल्ट्रा-सेंसिटिव बायोसेंसर्स का मार्ग प्रशस्त करती नवीन खोज

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मुंबई
11 दिसम्बर 2020
अल्ट्रा-सेंसिटिव  बायोसेंसर्स का मार्ग प्रशस्त करती नवीन खोज

अन्स्प्लेश छायाचित्र : नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट

जिस प्रकार एक चुंबक घास के ढेर में पड़ी हुई सुई को खोजने में सहायक होता है, ठीक उसी प्रकार जीव-विज्ञानी जैविक संवेदकों अर्थात बायो-सेंसर्स का उपयोग विभिन्न अणुओं से युक्त किसी विलयन में से अल्प सांद्रता वाले किसी विशिष्ट अणु की खोज करने के लिए करते हैं। विशेष रूप से निर्मित अणुओं की श्रंखला से युक्त ये संवेदक ग्राही अर्थात रिसेप्टर्स कहलाते हैं, जो चुने हुये अणुओं को बांध सकते हैं। इसके कुछ अनुप्रयोगों में अत्यधिक संवेदनशील जैविक-संवेदकों की आवश्यकता होती है, जैसे कि अन्य जीन्स के एक पूल में से अत्यंत लघु रूप से उत्परिवर्तित अर्थात स्माल म्यूटेशन वाले डीएनए अनुरेख की मात्रा का मापन।

एक नवीन अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी, बॉम्बे) के शोधार्थियों ने परिमाण निर्धारण एवं जैविक-संवेदकों की सेंसिटिविटी में सुधार के लिए एक सैद्धान्तिक पद्धति प्रस्तुत की है। यह पद्धति उन विशिष्ट मापदंडों या क्रिटिकल पैरामीटर्स की पहचान करती है जो एक विलयन में अन्य अणुओं के प्रचुर सांद्रण के साथ निलंबित लक्ष्य अर्थात टार्गेट अणुओं की अल्प मात्रा का पता लगा सकते हैं। डीएसटी  इंस्पायर फ़ैकल्टी फैलोशिप एवं विश्वेश्वरैया यंग फ़ैकल्टी फैलोशिप के द्वारा वित्त पोषित यह अध्ययन शोध पत्रिका एसीएस सेंसर्स में प्रकाशित किया गया था।

विलयन में लक्ष्य अणुओं की सांद्रता के आकलन हेतु सामान्यत: उपयोग किया जाने वाला एंड पॉइंट नामक जैविक-संवेदक एक निर्धारित समय के बाद संवेदक की सतह पर गृहीत अर्थात कैप्चर्ड अणुओं की संख्या पर निर्भर करता है। यहाँ ग्राही अणुओं पर संलग्न कोई अवांछित अणु त्रुटिवश गणना में आ जाता है जबकि कुछ लक्ष्य अणु जो पहले ही पृथक हुए हो सकते हैं, गणना के बाहर हो जाते हैं। यदि अवांछित अणुओं की सांद्रता लक्ष्य अणुओं की तुलना में बहुत अधिक हो तो इस प्रकार की योजना में गंभीर बाधा हो सकती है।

दूसरी ओर, 'डाइनैमिक ट्रैकिंग जैव-संवेदक' ग्राही अणुओं और विलयन के अणुओं के मध्य होने वाली परस्पर क्रिया के संबंध में वास्तविक समय की जानकारी प्रदान कर सकता है। शोधकर्ता लक्ष्य और ग्राही अणुओं के मध्य परस्पर क्रिया की समय-छाप को चिन्हित कर सकते हैं, जो लक्ष्य अणुओं की शुद्धतम गणना प्राप्त करने में सहायता करता है।

"एंड पॉइंट संवेदक एवं डाइनैमिक ट्रैकिंग जैव-संवेदक दोनों ही अंत में अणुओं की सांद्रता बताते हैं। किन्तु योजना का निर्धारण स्थिर प्रयोगात्मक पाठ्यांक की प्राप्ति में लगने वाले समय, संसूचन अर्थात डिटेक्शन की सीमा, प्रौद्योगिकी की जटिलता और लागत जैसे कारक तय करते हैं," भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में सह आचार्य एवं इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक प्रदीप नायर समझाते हैं।

एक डाइनैमिक ट्रैकिंग जैव-संवेदक में, लक्ष्य एवं ग्राही अणुओं के मध्य विशिष्ट पारस्परिक क्रिया के कारण, लक्ष्य अणु ग्राही के साथ लंबे समय तक जुड़े रहते हैं जबकि अवांछित अणु शीघ्र ही छूट जाते हैं। इस प्रकार ग्राही अणुओं के साथ वांछित एवं अवांछित अणुओं की पारस्परिक क्रिया में लगने वाले समय के आधार पर दोनों के मध्य अंतर कर पाना स्पष्ट रूप से संभव है।

शोधकर्ताओं ने आदर्श समय सीमा के निर्धारण के लिए एक गणितीय मॉडल विकसित किया है जो अणुओं के दो वर्गों के मध्य स्थित सीमा को परिभाषित कर सकता है। कोई भी अणु जो ग्राही अणुओं के साथ विगणित अर्थात कैलकुलेटेड समय सीमा से भी अधिक समय तक चिपका रहता है लक्ष्य अणु माना जाता है एवं अंतिम सांद्रता-मान में इसकी गिनती होती है। यह मॉडल क्रमशः लक्ष्य अणुओं एवं गैर-लक्ष्य अणुओं से जुड़े हुये ग्राही अणुओं की कुल संख्या तथा अणुओं की पृथक्करण दर, जो कि ग्राही से पृथक होने में अणुओं द्वारा लिए गए औसत समय का व्युत्क्रम है, से संबन्धित आँकड़ों को ग्रहण करता है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि लक्ष्य एवं ग्राही अणुओं के बीच रासायनिक संबंध की जानकारी न होने पर भी यह मॉडल सही समय सीमा का पूर्वानुमान कर सकता है। उन्होंने विभिन्न सिमुलेशन चलाये, जिसमें या तो केवल लक्ष्य अणुओं की पृथक्करण दर ज्ञात थी अथवा दोनों प्रकार के अणुओं की कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं थी, तथा ग्राही पर अणुओं के पृथक होने वाली समस्त घटनाओं को देखा। दोनों ही स्थितियों में लक्ष्य अणुओं की सांद्रता का आकलन करने की समय सीमा उनके गणितीय मॉडल के पूर्वानुमानित मान के समान थी।

"मॉडल इस समय सीमा का पूर्वानुमान केवल तभी कर सकता है जब लक्ष्य अणुओं एवं गैर-लक्ष्य अणुओं के संलग्न होने वाले आकर्षण में अंतर होता है। यदि लक्ष्य अणु ग्राही के साथ 50 सेकंड के लिए संलग्न होता है एवं गैर-लक्ष्य अणु भी 50 सेकंड के लिए ही जुड़ता है, तब यहाँ दोनों को पृथक करने का कोई मार्ग नहीं है," सह आचार्य नायर आगे कहते हैं।

यद्यपि ये सभी गणनाएं सैद्धांतिक रूप से सटीक हो सकती हैं, लेकिन इसके व्यावहारिक उपयोग में सदैव त्रुटि की संभावना होती है। डाइनैमिक ट्रैकिंग एक जैव संवेदक में स्थित ग्राही के समय अवरुद्ध अवलोकन के सिद्धांत पर कार्य करती है। इसमें दो त्रुटि स्रोत हैं : पहला, ग्राही पारस्परिक क्रिया के अवलोकन में लगने वाला समय, एवं दूसरा परीक्षण के अंतर्गत ग्राही अणुओं की संख्या। शोधकर्ताओं ने इन कारकों एवं मापन त्रुटि के मध्य एक विपरीत संबंध पाया। इसलिए, क्रिया-समय अथवा ग्राही अणुओं की संख्या में वृद्धि त्रुटि-मूल्य को कम करेगी। यद्यपि, लंबे समय के लिए प्रत्येक ग्राही में प्रत्येक पृथक्करण की घटना का मापन तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि डाइनैमिक ट्रैकिंग तकनीक में अभी सुधार की संभावना है। "उदाहरण के लिए, हमें यह पता करने की आवश्यकता है कि ग्राही पर संयोजन एवं पृथक्करण घटनाओं की निगरानी कैसे रखी जाये और लक्ष्य अणुओं को प्रभावी निरीक्षण के लिए किस प्रकार टैग किया जाए," सह आचार्य नायर कहते हैं। "किन्तु एंड पॉइंट संसूचन विधि की तुलना में यह विधि तकनीकी रूप से अत्यधिक विकसित है और संसूचन सीमा के संदर्भ में कहीं अधिक श्रेष्ठ है।" यद्यपि उन्हें संदेह है कि शीघ्र ही नियमित मामलों जैसे कि ग्लूकोज़ जैव संवेदक में इसका उपयोग किया जा सकता है या नहीं। "किन्तु मुझे यकीन है कि यह एक उभरती हुई और अत्यधिक संवेदनशील तकनीक होगी," वे निष्कर्ष निकालते हैं।