अरबी के पत्ते देश भर के कई आंचलिक पकवानों में काम में आने वाली एक सुपरिचित सामग्री है। अलूवडी और पतरोड़े जैसे पकवानों में काम आने वाले इस पौधे के पत्तों की एक दिलचस्प विशेषता है - ये जल विरोधी होते हैं। यानी कोई भी द्रव, जो इनकी सतह पर गिरता है वो सतह को गीला नहीं करता बल्कि लुढ़क जाता है।
एक हालिया अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई ने इस बात की छान बीन की है कि कैसे अरबी के पौधों (कोलोकेसिया एस्कुलेंटा) के पत्तों की बनावट पानी से विकर्षण पैदा करती है। पत्तों की सतह पर शहद के छत्तों के जैसी आकृति से प्रेरित होकर उन्होंने, इपोक्सी बेस्ड पॉलीमर को सिलिकॉन पर अंकित करके एक ऐसे जल विरोधी सतह की सृष्टि की, जिसका उपयोग करके कोहरे से पानी को प्राप्त किया जा सके। साइंटिफिक रिपोर्ट्स नामक पत्रिका में इस अध्ययन को, जो भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित है, प्रकाशित किया गया।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई के अहाते से प्राप्त अरबी के पत्तों का शोधकर्ताओं ने जब स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की सहायता से परीक्षण किया तो उन्हें सतह पर पंचकोण और षट्कोण के समान प्रतिमान मिले। जब इसे और सूक्ष्म रूप से नैनो स्केल के स्तर पर देखा गया तो उन्हें पता चला कि इन प्रतिमानों की दीवारों की संरचना पपड़ी की तरह की थी। “कमल के पत्तों के माइक्रो-पिलर स्ट्रक्चर के कारण जल अवरोधक होने के विषय में काफी विस्तार से अध्ययन किया गया है, परन्तु अरबी के पत्तों के बारे में अधिक ध्यान नहीं दिया गया है,” भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई के प्राध्यापक राजनीश भारद्वाज कहते हैं, जिन्होंने इस अध्ययन का नेतृत्व किया है।
द्रव की बूँदें गिरने पर, अधिकतर सतहें बूंदों को नीचे की ओर खींच लेती हैं। जैसे, अगर हम काँच की सतह पर पानी छिड़कें तो बूँदें सपाट हो जाती हैं। परन्तु एक जल निरोधक सतह पर बूँदें गोलाकार रहेंगी और सतह को बहुत कम छुएँगी। जब शोधकर्ताओं ने पानी की एक बूँद को अरबी के पत्ते पर धीमे से रखा तो यह शहद के छत्तों की संरचना की बीच की जगह को न भर कर ,बगल की परत पर बैठी। क्योंकि पानी की बूँद काफी कम जगह पर छूती है, नीचे की ओर अधिक नहीं खिँचती और करीब करीब गोल ही रहती है। परत और शहद के छत्ते जैसे गड्ढों के कारण ही जल विकर्षक गुण पाए जाते हैं।
अरबी के पत्तों की नक़ल करके शोधकर्ताओं ने सिलिकॉन पर एक इपोक्सी बेस्ड पॉलीमर से विभिन्न आकार के षट्कोण की आकृति की कैविटी की रचना करके एक नई जल विरोधी सतह का निर्माण किया। जैव प्रेरित सतह को डिज़ाइन करने के लिए उन्होंने पंचकोणों की जगह षट्कोणों की बेस ज्योमेट्री को चुना क्योंकि अरबी के पत्तों के ७०% बहुभुज षट्कोण थे। जब उन्होंने पानी की एक बूँद को इस सतह पर रखा और सतह को टेढ़ा किया या उल्टा किया तो बूँद वहीँ पर अटकी रही और फिसल कर नीचे नहीं आई। बूँद वहीं पर इसलिए टिकी रही क्योंकि बूँद पर सतह का लम्बवत खिंचाव उसके भार से अधिक था। शहद के छत्ते जैसी बनावट, जिसके कारण बूँद सतह से अविरल संपर्क बनाए रखती है, इसे चिपके रहने में मदद करती है।
जल विरोधी सतह को बूँद के संपर्क के कोण से परिभाषित किया जा सकता है। यह वो कोण है जो द्रव की बूँद का बाहरी किनारा और जहाँ बूँद सतह को छूती है, के बीच में बनता है। संपर्क का कोण जितना कम होगा, द्रव की बूँद उतनी ही सपाट होगी और उतना ही सतह को गीला करेगी।
वैज्ञानिकों ने जब जैव प्रेरित सतह में षट्भुज के दीवारों की मोटाई समान रखते हुए सिरों की लम्बाई बढ़ाई तो संपर्क का कोण ज़्यादा हुआ और सतह और अधिक जल विरोधक हो गई। परन्तु अगर लम्बाई को समान रखते हुए दीवारों की मोटाई बढ़ाई तो संपर्क का कोण घट गया। इस जैव प्रेरित सतह में अरबी के पत्तों जैसा संपर्क कोण नज़र आता है और इस सतह में इच्छा के अनुसार विकर्षण के गुण पैदा किये जा सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने पानी को विभिन्न वेग से सतह पर गिरा कर अरबी के पत्तों और जैव प्रेरित सतह की जल अवरोध की क्षमताओं की तुलना की। अरबी के पत्ते पर गिरने के बाद बूँद पहले फ़ैल कर सतह को गीला करती है। बाद में बूँद पलट जाती है और ऊपर की ओर खींचकर सतह से संपर्क बनाती है। अंत में सतह से अलग हो जाती है। जैसे जैसे पानी के गिरने का आघात बढ़ता जाता है, बूँद अधिक फैलती है और तेज़ी से फैलती है और पलटने पर अधिक लम्बी हो जाती है।
परन्तु जैव प्रेरित सतह पर बूँद वापस नहीं पलटती बल्कि अपने को सतह से सटा लेती है। वापस पलटने पर बूँद का एक छोटा सा हिस्सा अपने को अलग कर लेता है और बाकी हिस्सा सतह में लगा रह जाता है। अधिक वेग से गिरने पर पानी षट्कोण के आकार के गड्ढों में आसानी से भर जाता है और उसका संपर्क का कोण छोटा हो जाता है। पानी के किसी भी वेग के लिए, मोटाई को घटा कर संपर्क का कोण बढ़ाया जा सकता है।
ऐसी जैव प्रेरित सतह का उपयोग कोहरे से पानी के संक्षेपण को जमा करने के लिए बखूबी किया जा सकता है। कोहरे से पानी को प्राप्त करना, क्योंकि सीधे हवा से नमी का उद्धरण किया जा सकता है, पानी की कमी वाले क्षेत्रों में एक कारगर तरीका पाया गया है। “हमारा अगला कदम है कि इस संरचना की, कई मीटर के बराबर के आकार की रचना की जाए और उनका फ़ॉग हार्वेस्टिंग जैसे प्रयोजनों के लिए परीक्षण किया जाए,” ऐसा कहकर प्राध्यापक भारद्वाज ने अपनी बात समाप्त की।