शोधकर्ता डार्क मैटर के कणों का ब्लैक होल की परछाईयों की वृद्धि पर प्रभाव की तहकीकात कर रहे हैं
कई वर्षों से भौतिक वैज्ञानिकों का ध्यान ब्लैक होल की ओर है क्योंकि आइन्स्टीन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के पूर्वानुमानों की परीक्षा करने के लिए यह एक सहज प्रयोगशाला है। हम ब्लैक होल की फोटो तो नहीं खींच सकते क्योंकि परम गुरुत्वाकर्षण के कारण प्रकाश की किरणें ब्लैक होल के अंदर से बाहर नहीं आ पातीं -लेकिन एक दिलचस्प तथ्य के कारण हम ब्लैक होल के आस पास की तस्वीर खींच सकते हैं। इसका परम गुरुत्वाकर्षण, प्रकाश के साथ प्रतिक्रिया करके, एक ब्लैक होल की परछाईं डालता है जो एक चमकदार छल्ले के अंदर एक अँधेरे आतंरिक भाग जैसा नज़र आता है। एक बहुत शक्तिशाली टेलिस्कोप, जो इवेंट होराइज़न टेलिस्कोप कहलाता है , ने पहली बार ब्लैक होल की परछाईं का चित्र निकाला है। इससे आइन्स्टीन के सिद्धांत द्वारा प्रतिपादित ब्लैक होल के अस्तित्व के पूर्वानुमान की पुष्टि होती है।
इन परछाइयों से हम और क्या जान सकते हैं ? फिजिक्स लेटर्स बी नामक एक जर्नल में हाल में प्रकाशित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे ( IIT Bombay ) के ऋतिक रॉय और प्राध्यापक उर्जित याज्ञिक के लेख में इस तथ्य की तहकीकात की है। इसका उत्तर हमें ब्लैक होल और भौतिक विज्ञान की एक और पहेली, डार्क मैटर, की पारस्परिक क्रिया से मिल सकता है।
बहुत से सिद्धांतकार मानते हैं कि डार्क मैटर, एक्सिऑन नामक कणों से बने होते हैं जिनका द्रव्यमान प्रकृति में पाए जाने वाले अन्य मूल कणों से बहुत कम होता है। इस अध्ययन में ब्लैक होल के इर्द गिर्द पाए जाने वाले दुष्प्राप्य एक्सिऑन की सावधानी से छानबीन करके शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे है कि समय के साथ ब्लैक होल की परछाइयाँ आकार में बढ़ सकती हैं। अध्ययन ये संकेत देता है ब्लैक होल की परछाइयों की बढ़त को प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है .
इस बढ़त का पर्यवेक्षण कर पाना एक दिलचस्प क्रिया पर निर्भर है जो कि क्वांटम यांत्रिकी के दायरे में आती है। ब्लैक होल के भारी गुरुत्वाकर्षण से, निर्वात में से आकस्मिक ही कणों का निर्माण हो जाता है, जो गुरुत्वाकर्षण के खिंचाव से बचकर निकल जाते हैं। इस क्रिया को ‘हॉकिंग रेडिएशन’ कहते हैं क्योंकि स्टीफेन हॉकिंग ने सबसे पहले इस बारे में पूर्वानुमान किया था।
यहाँ पर लेखक कुछ इसी प्रकार के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिसे उन्होंने ‘अर्ध- हॉकिंग इफ़ेक्ट’ का नाम दिया है, इसमें सहसा ही बने कण, ब्लैक होल के पास बजाय बाहर निकल कर एक बादल सा बना लेते हैं। बादलों में इनके संगुटीकरण ( conglomeration ) से ब्लैक होल का स्पिन/घुमाव धीमा हो जाता है जो इस बात का पैमाना है कि ब्लैक होल कितनी तेज़ी से घूम रहा है, जिससे ब्लैक होल की परछाई की वृद्धि होती है।
इस वृद्धि के समय-मान का अनुमान करने के लिए लेखकों ने ब्लैक होल और एक्सिओन्स के गुणों और इनके बीच के गणितीय संबंधों को खोज निकाला। समय-मान का अनुमान, हमारे टेलिस्कोपों द्वारा भविष्य में ब्लैक होल की परछाइयों का अवलोकन करने के लिए आवश्यक है। उन्होंने पाया कि ये समय-मान ब्लैक होल और एक्सिओन्स के गुणों पर निर्भर करते हैं और हमारे तारकपुंज के मध्य में स्थित ब्लैक होल, जिसे सेजिटरियस A* (SgrA*) कहते हैं, इस बढ़त का यथार्थ रूप से अवलोकन करने के लिए सबसे सही उम्मीदवार है।
लेखकों ने इस ब्लैक होल को एक प्रारूप की तरह लेकर, आगे के अध्ययन के लिए उपयोग किया। उन्होंने सांख्यिक अनुकरण और पहले से व्युत्पन्न (derived) गणितीय समीकरणों को साथ लेकर ये निष्कर्ष निकाला कि प्रतिबिम्ब की बढ़त डार्क मैटर के गुणों पर और इस बढ़त का पर्यवेक्षण करने वाले टेलिस्कोप के रेज़ोल्यूशन पर निर्भर करती है। ये पूर्वानुमान एक नमूने की तरह काम में लाए जा सकेंगे जिससे इस बढ़त का अध्ययन किया जा सकेगा.
लेकिन यहाँ लेखक यह चेतावनी देते हैं कि कुछ दूसरी प्रक्रियाएँ भी प्रतिबिम्ब की वृद्धि का कारण हो सकती हैं। “ लेकिन अर्ध-हॉकिंग प्रभाव एक क्वांटम प्रक्रिया है। ये एक धीमी मगर सीधी नियमित प्रक्रिया है जो क्वांटम प्रक्रिया के लिए निर्णयात्मक सबूत सिद्ध होगी,” अपने इस विश्लेषण के बारे में डॉक्टर याज्ञिक बताते हैं।
ब्लैकहोल की परछाइयों में वृद्धि के अवलोकन से हमें एक्सिओन्स की उपस्थिति के बारे में भी सबूत मिल पाएगा जिनकी अभी तक सीधी पहचान नहीं हो पाई है।
“ये पदार्थ पार्टिकल भौतिकी के सैद्धांतिक पहेलियों को बुझाने में महत्त्वपूर्ण मिसिंग लिंक हैं,” ऐसा डॉक्टर याज्ञिक ने आगे कहा। इनके पुष्टीकरण से एक्सिओन्स की सैद्धांतिक समझ को एक नई दिशा मिलेगी। “अर्ध-हॉकिंग इफ़ेक्ट ही हॉकिंग-इफ़ेक्ट का अवलोकन करने का सबसे अच्छा मौका है,” रित्तिक ने कहा।
यह पहला अध्ययन है जिससे साबित हुआ है कि एक्सिओन्स के प्रभाव से ब्लैक होल का स्पिन घट सकता है और प्रचलित तकनीकों में सुधार करके इस प्रभाव को वास्तव में देखा जा सकता है। हालाँकि फिलहाल, इवेंट होराइजन टेलिस्कोप ब्लैक होल के प्रतिबिंबों में परिवर्तन की इतनी धीमी गति का अवलोकन करने में असमर्थ है, इनमें बहुत से संशोधनों की गुंजाईश हैं।
सैद्धांतिक भौतिक शास्त्रियों ने एक नए प्रभाव का पूर्वानुमान कर दिया है, अब अवलोकन करनेवाले खगोलशास्त्रियों की बारी है कि वे अपनी तकनीकों को परिष्कृत करें, ऐसा डॉ.याज्ञिक महसूस करते हैं।
वे कहते है, “एक बार चुनौती पाने पर प्रयोग में रत वैज्ञानिक अपनी तकनीकों को परिष्कृत करके उसका सामना कर लेते हैं”, जैसा कि प्रायः भौतिकी की दुनिया में देखा गया है।
प्रसंगवश, शोधकर्ताओं ने प्रयोग की तकनीकों में महत्वपूर्ण सफलता पाई है। अतः वो दिन दूर नहीं जब ब्लैकहोल की परछाईंयाँ , डार्क मैटर के बारे में कुछ प्रकाश डाल पाएँगी।