शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

भविष्य की विशेष-मिश्रधातुओं के लिए बोरॉन के सूक्ष्म व्यवहार का अध्ययन

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Mumbai
2 फ़रवरी 2024
Scientifickly, Freepik से रूपांतरित

विशेष-मिश्रधातु(सुपरअलॉय) ऐसी मिश्रधातुएँ हैं जिन्हें दीर्घकाल तक अत्यधिक उच्च तापमान एवं दबाव का सामना करने हेतु युक्तिबद्ध किया जाता है। अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी से संबन्धित उद्योगों में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के शोधकर्ताओं ने निकल-आधारित विशेष-मिश्रधातुओं को सुदृढ़ता प्रदान करने वाले एक प्रमुख तत्व बोरॉन की भूमिका को जानने की दिशा में एक महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। इन मिश्रधातुओंका उपयोग बहुधा जेट इंजनों के उच्चतम प्रदर्शन अवयवों (हाई परफॉर्मेंस पार्ट्स) में किया जाता है। इनकी प्रभावशीलता अधिकतर इनके रासायनिक संगठन एवं सूक्ष्म-संरचना (माइक्रोस्ट्रक्चर) की स्थिरता पर निर्भर करती है। यहाँ जेट इंजन अवयवों के जीवनकाल को बढ़ाने जैसे कार्यों में बोरॉन की विशिष्ट भूमिका है।

धातुओं एवं मिश्रधातुओं में पॉलीक्रिस्टलाइन संरचना होती है, अर्थात ये सूक्ष्म कणों अथवा ग्रेन्स से मिलकर बने होते हैं। ग्रेन्स को आपस में पृथक करने वाले अंतरफलकों (इंटरफेस) को 'ग्रेन सीमा’ (ग्रेन बाउंडरी) कहा जाता है। इन ग्रेन सीमाओं पर ही बोरॉन कार्य करता है, किन्तु वास्तव में यह मिश्रधातु के प्रदर्शन को कैसे सुधारता है, यह शोधकर्ताओं के मध्य चर्चा का विषय रहा है।

“उच्च तापमान की स्थितियों में ग्रेन सीमाओं पर क्रैक न्यूक्लियेशन (क्रैक आरंभ होने की क्रिया) के स्थान निर्मित हो सकते है, जिससे मिश्रधातु आपात रूप से विफल हो सकती हैं। ऐसी स्थितियों में ग्रेन सीमाओं की उपस्थिति अवाँछनीय है। अत: ग्रेन सीमाओं को सुदृढ़ता प्रदान करने वाले कारक के रूप में बोरॉन की भूमिका को समझना उन सभी औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक है जहां विशेष-मिश्रधातुओं का उपयोग किया जाता है,” आईआईटी मुंबई के धातुकर्म अभियांत्रिकी एवं पदार्थ विज्ञान विभाग में कार्यरत, इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका ऋचा गुप्ता बताती हैं।

एक पूर्व अध्ययन में आईआईटी मुंबई की ऋचा गुप्ता, प्राध्यापक प्रीता पंत, प्राध्यापक एम्.जे.एन.वी. प्रसाद एवं आईआईटी मद्रास के प्राध्यापक के.सी.एच. कुमार ने दर्शाया था कि धातु के साथ बोरॉन के यौगिक अर्थात बोराइड्स, इन ग्रेन सीमाओं के साथ लगभग गोलाकार, नैनो-आकार के कणों के रूप में प्रकट होते हैं। ये नैनो कण इन सीमाओं में सूक्ष्म रासायनिक परिवर्तन कर मिश्रधातु की यांत्रिक कार्यक्षमता में सुधार करते हैं। उन्होंने देखा कि ये बोराइड्स ग्रेन सीमाओं पर कार्बाइड के जमाव को रोकते हैं, जो बेहतर प्रदर्शन की संभावना को व्यक्त करता है। इस प्रकार यह संशोधन विशेष-मिश्रधातु में बोरॉन की भूमिका पर कुछ अत्यावश्यक प्रश्नों के उत्तर देता है।

शोधकर्ताओं ने नैनो बोराइड्स की आंतरिक संरचना में समय के साथ धीरे-धीरे बदलाव होता देखा। बोराइड कणों में क्रमिक रूप से रासायनिक परिवर्तन देखा गया। मिश्रधातु की सूक्ष्म- संरचना का विश्लेषण करने हेतु फील्ड एमिशन गन स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप (एफईजी-एसईएम) जैसे उच्च-विभेदन (हाई-रिज़ॉल्यूशन) माइक्रोस्कोपी उपकरण का एवं प्रतिबिम्बन (इमेजिंग) तथा तात्विक विश्लेषण के लिए इनर्जी डिस्पर्सिव स्पेक्ट्रोस्कोपी (ईडीएस) के साथ ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप (टीईएम) का उपयोग किया गया।

एक नवीनतम अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अधिक अच्छे प्रकार से समझा कि जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) द्वारा विकसित जीटीडी 444 नामक बोरॉन-संशोधित निकल-आधारित विशेष-मिश्रधातु की संरचना एवं प्रदर्शन को, उच्च तापमान काल-प्रभावन उपचार (हाई टेम्परेचर एजिंग ट्रीटमेंट) किस प्रकार प्रभावित करते हैं। ग्रेन सीमा पर निर्मित होने वाले अवक्षेप (प्रेसिपिटेट्स) अर्थात छोटे कण, जो उच्च तापमान पर एक घटक के जीवनकाल को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं, उनके शोध के केंद्र में थे।

900 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर छोटे कण कैसे विकसित होते हैं, यह जानने हेतु शोधकर्ताओं ने परमाणु प्रोब टोमोग्राफी सहित उन्नत उच्च-विभेदन अभिलक्षण (एडवांस्ड हाई रिसोल्यूशन कैरेक्टराइज़ेशन) का निष्पादन किया, ताकि जेट इंजन के टरबाइन ब्लेड की स्थितियों को अनुरूपित किया जा सके। शोधकर्ताओं ने परीक्षण में पाया कि जब बोरॉन-संशोधित जीटीडी 444 को 900 ℃ पर काल-प्रभावित किया गया तो बोराइड्स 80 घंटे तक स्थिर थे। इस अवधि के उपरांत ये बोराइड्स कार्बाइड में परिवर्तित हो गए, जो एक अन्य प्रकार के लघु कण हैं। उनके द्वारा खोजे गए दो प्रकार के कार्बाइडों को M23C6 तथा M6C के रूप में चिन्हांकित किया गया। M6C में क्रोमियम, टंगस्टन, एवं मोलिब्डेनम तथा 2:1 के अनुपात में कोबाल्ट एवं निकल परमाणु थे, जबकि M23C6 अल्प मात्रा में टंगस्टन और मोलिब्डेनम से युक्त एक भारी क्रोमियम कार्बाइड था। आगे की शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि बोराइड्स का कार्बाइड में रूपांतरण ग्रेन सीमाओं के समीप स्थित क्रोमियम से संबंधित था। बोराइड्स तब तक स्थिर बने रहते हैं जब तक क्रोमियम कण लगभग 8.6 प्रतिशत से नीचे नहीं आ जाते।
शोधकर्ताओं ने पाया कि मिश्रधातुओं में बोराइड्स से कार्बाइड में हुआ रूपान्तरण यांत्रिक सामर्थ्य को कम करता है किन्तु तन्यता अर्थात पदार्थ की बिना टूटे प्रसारित होने की क्षमता के लिए वृद्धिकारक है। ऐसा प्रतीत होता है कि पदार्थ में ग्रेन सीमाओं के साथ बोराइड्स या कार्बाइड्स जैसे पृथक-पृथक कणों की उपस्थिति, इसे ग्रेन सीमाओं पर विफल होने से रोकती है।

ऋचा गुप्ता के अनुसार, “मिश्रधातुोओं में बोरॉन अल्प परिमाण में मिलाया गया है, साथ ही यह अल्प घनत्व वाला तत्व है, अतएव बोरॉन की गुणात्मक एवं मात्रात्मक पहचान बहुत चुनौतीपूर्ण है। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप में उच्च तापमान वाले स्वस्थानीय (इन-सिटु) विरूपण प्रयोगों के माध्यम से बोरॉन की भूमिका का अध्ययन संभव हो सकता है।” उनका आगे कहना है, “इसके अतिरिक्त ग्रेन सीमाओं की सुदृढ़ता में योगदान देने वाले समस्त सूक्ष्म संरचनात्मक कारकों जैसे कि तत्वों का पृथक्करण, अवक्षेप एवं दिशाभिमुखन त्रुटि (मिसओरिएन्टेशन) की जानकारी हेतु बोरॉन की भिन्न-भिन्न मात्रा वाले नमूनों पर इस प्रकार का अध्ययन किया जा सकता है।"

“निकल की विशेष-मिश्रधातु में विरूपण (डिफार्मेशन) के विरुद्ध प्रतिरोध में सुधार के लिए बोराइड्स के गठन एवं वृद्धि को समझना महत्वपूर्ण है। बोराइड्स के विकास एवं इसमें समय के साथ होने वाले परिवर्तन के साथ-साथ पदार्थ के यांत्रिक गुणों पर इसके प्रभाव की दृष्टि से हमारा शोध बहुमूल्य है। सूक्ष्म-संरचना के अनुकूलन एवं मिश्रधातुओं की उच्च तापमान वहन करने की क्षमता में वृद्धि के लिए यह ज्ञान महत्वपूर्ण है,” प्राध्यापक प्रीता पंत संकेत करती हैं।

यह अध्ययन विमानन एवं ऊर्जा जैसे उद्योगों के लिए विशेष रूप से लाभदायक है, जहाँ विशेष-मिश्रधातुओं का व्यापक उपयोग होता है, विशेषकर उच्च दाब एवं उच्च ताप वाले वातावरण में।