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चक्रवात फैलिन से समुद्री मछुआरा समुदाय की बहाली

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मुंबई
8 मार्च 2021
चक्रवात फैलिन से समुद्री मछुआरा समुदाय की बहाली

अरब सागर की तुलना में बंगाल की खाड़ी के ऊपर लगभग पाँच गुना अधिक बार चक्रवात आते हैं। सतह के पानी की गर्म, धाराओं का नीचे के ठंडे पानी के साथ कम परिसंचरण, और इसकी सतह पर हवा की कम धाराएँ बंगाल की खाड़ी को प्राकृतिक चक्रवातों का एक उर्वर क्षेत्र बनाती हैं। वर्षों से, चक्रवात वैश्विक ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) के प्रभावों के कारण अधिक शक्तिशाली होते चले गए हैं, जो सतह के पानी के तापमान को बढ़ाता है, एक ऐसी स्थिति जो चक्रवातों को प्रारम्भ करने और त्वरण के लिए उपयुक्त है। नई सहस्राब्दी में, चक्रवातों के एक समूह ने भारत के पूर्वी तट और पड़ोसी बांग्लादेश को पस्त कर दिया है। भारत के मौसम विभाग ने 2020 के बाद के चक्रवात एम्फान (Amphan) को 1999 के बाद के ‘एकमात्र परम चक्रवात (सुपर साइक्लोन)’, और नौ अन्य को ‘अत्यंत गंभीर चक्रवाती तूफान (साइक्लोनिक स्टॉर्म)’ के रूप में वर्गीकृत किया है जिसमें चक्रवात फैलिन (Phailin) भी सम्मिलित है।

12 अक्टूबर 2013 को, गंजाम ज़िले के गोपालपुर के पास, तटीय उड़ीसा के दक्षिणी भाग पर चक्रवात फैलिन ने कदम रखा। इससे एक करोड़ बीस लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए थे, जिसके परिणामस्वरूप 260 अरब से अधिक रूपयों की क्षति हुई थी। एक हालिया अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी बॉम्बे) के शोधकर्ताओं ने इस बात को ढूंढ निकाला कि चक्रवात के बाद तटीय क्षेत्र में रहने वाले समुद्री मछुआरा समुदायों ने अपनी आर्थिक स्थिति की पुनर्स्थापना कैसे की। चक्रवातों की बढ़ती संख्या के सम्मुख जिनसे बड़ी संख्या में लोग असुरक्षित हैं, विभिन्न बहाली उपायों की सफलता का आकलन करने में ऐसे अध्ययन महत्त्वपूर्ण हैं। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन, नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) द्वारा वित्तपोषित किया गया है।

शोधकर्ताओं ने गंजाम ज़िले के 6 गांवों में 300 मछुआरे परिवारों का घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया। अध्ययन के लेखकों में से एक, प्राध्यापक तृप्ति मिश्रा कहती हैं कि “हमने अपने अध्ययन में चक्रवात फैलिन के कदम रखने के आसपास के गांवों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया”। उन्होंने प्रत्येक घर के मुखिया से चक्रवात से पहले जो संपत्ति उनके पास थी जैसे कि उनके घर, आय के साधन, नौकाओं (यदि उनके पास थी)आदि की बहाली के बारे में पूछा। उड़ीसा की रहने वाली प्राध्यापक मिश्रा कहती हैं कि हम दोनों सर्वेक्षणों के लिए स्वयं ही लोगों के घरों में गए। उन्होंने 2013 के साथ ही साथ 2014 और 2018 के चक्रवातों के तुरंत बाद के इसी प्रकार के आंकड़ों को एकत्रित किया और उनकी तुलना की।

शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया कि कैसे मछुआरों ने चक्रवात फैलिन द्वारा पहुँचे आघात से अपनी आजीविका की भेद्यता को कम किया जिसमें विभिन्न प्रकार के मानवीय , वित्तीय, भौतिकी, प्राकृतिक और सामाजिक संसाधनों तक उनकी पूर्व पहुँच थी, की छानबीन की। उन्होंने पाया कि मानवीय कारक जैसे उम्र, औपचारिक शिक्षा का स्तर, और परिवार के सदस्यों की संख्या बहाली की प्रक्रिया को इतना प्रभावित नहीं करती है, जितना कि पूर्व में परिग्रहित सोना। एक चौथाई से भी कम परिवारों के पास आय के नियमित, औपचारिक या संविदात्मक संसाधन थे। यद्यपि 50.7 प्रतिशत परिवारों ने 2018 में अपनी आय को चक्रवात से पूर्व के स्तर पर पुनः पा लिया था, लेकिन 30.7 प्रतिशत की आय में पहले की तुलना में कमी आई थी। जिन परिवारों की कुल आय 8000 रूपए प्रतिमाह प्रतिघर थी उनकी बहाली में कोई भूमिका नहीं थी। लेकिन जिन परिवारों के पास सोना परिग्रहित था उन्होंने तुरंत ही उसका उपयोग स्वास्थ्य, घर और नौकाओं की त्वरित बहाली में किया।

हालाँकि लगभग 83 प्रतिशत परिवारों ने सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों से वित्तीय सहायता प्राप्त की थी, लेकिन चक्रवात के तुरंत बाद की बहाली में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं रही थी। दीर्घावधि में, अर्थात चक्रवात के एक साल और पाँच साल बाद, वित्तीय सहायता से परिवारों को आघात से उबरने में मदद मिली। छानबीन से पता चलता है कि पर्याप्त मात्रा में सहायता और संसाधनों को प्रभावित परिवारों तक पहुँचने में बहुत अधिक समय लगा था।

अध्ययन में पाया गया कि चक्रवात से पहले जो परिवार पक्के घरों में रहते थे उन्हें चक्रवात के आर्थिक संकट से उबरने में ज़्यादा मार नहीं झेलनी पड़ी। कुछ परिवार जो अर्ध-स्थाई मिट्टी या घास-फूस की छत के घरों में रहते थे, उन्हें स्थानीय सरकार की सहायता से चक्रवात से पहले सुरक्षित स्थानों जैसे विद्यालय भवनों में पहुँचा दिया गया था। ऐसे परिवारों की पीने का पानी, खाना, और आधारभूत स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच प्राप्त थी, जिससे उन्हें अपनी आर्थिक और दैनिक गतिविधियों को बहाल करने में कम समय लगा बजाय उनके जिन्होंने अपनी जगह नहीं छोड़ी थी। जबकि सर्वेक्षण में सम्मिलित 43.3 प्रतिशत परिवारों ने चक्रवात के बाद स्थाई रूप से अपने घरों का पुनर्निर्माण किया है, 32.3 प्रतिशत परिवारों ने अस्थाई रूप से अपने घरों को बनाया है। 2018 तक 12 प्रतिशत परिवार अपने घरों का पुनर्निर्माण नहीं कर सके थे।

शोधकर्ताओं ने समस्त बहाली पर सामाजिक नेटवर्क के प्रभाव को भी देखा। मछुआरे घरों में अपने समुदाय के भीतर मज़बूत बंधन होता है, यहाँ तक कि 75.3 प्रतिशत परिवारों में आपसी रिश्तेदार होते हैं। 2013 और 2014 के मध्य अपने समुदाय या गांवों के बाहर के लोगों के साथ सम्बंध रखने वाले परिवारों के बीच बहाली पर एक प्रतिकूल प्रभाव दिखाई दिया। शोधकर्ताओं को लगता है कि मछुआरा समुदाय और इन परिवारों को अपने समुदाय के बाहर के लोगों के साथ वित्तीय सहायता और अन्य अप्रत्यक्ष संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करना काफी कठिन लगता है। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि स्थानीय सरकार के साथ विश्वास और सहयोग ने चक्रवात से उबरने की प्रक्रिया को बहाल करने में सहायता की, लेकिन ऐसे साहचर्य से उपजे लाभ समय के साथ धूमिल पड़ जाते हैं।

तत्पश्चात , शोधकर्ताओं ने बहाली के विभिन्न रूपों के बीच पारस्परिक क्रिया पर ध्यान दिया। उन्होंने पाया कि आर्थिक बहाली ने घरों की बहाली में महत्त्वपूर्ण सकारात्मक भूमिका निभाई थी। जिन परिवारों के पास पूर्व से सोना था उनकी बहाली की प्रक्रिया तेज़ी से हुई , जबकि सहायता प्राप्त करने और परिवार में साक्षर सदस्य होने जैसे कारकों ने भी इसमें सकारात्मक भूमिका निभाई थी। स्थानीय सरकार के साथ एक विश्वसनीय रिश्ते वाले परिवारों ने राजकीय प्रक्रियाओं के साथ सहयोग किया, जिसने इस प्रक्रिया को भी तीव्रता से आगे बढ़ाया। मछुआरा समुदाय के भीतर सामंजस्य, नौकाओं पर अधिकार के साथ-साथ आय के अलग-अलग स्रोत तक पहुँच द्वारा कुल आय की बहाली की गई थी। अध्ययन में पाया गया कि स्थानीय सरकारों ने प्रभावित परिवारों की सहायता करने के काफी प्रयास किए।

बहाली के सभी संकेतकों को मिलाकर, अध्ययन से पता चलता है कि 2018 में, चक्रवात पूर्व के समय तक 50 प्रतिशत से अधिक मछुआरा परिवारों की बहाली हुई थी। वे परिवार जो तनिक भी बहाल नहीं हुए या केवल आंशिक रूप से बहाल हुए थे, उनकी संख्या समय के साथ घटती गई थी, जो 2018 में क्रमशः 9.7 प्रतिशत और 38.6 प्रतिशत है। “कमज़ोर समुदायों को ऋण और सहायता प्रदान करने की नीतियाँ पहले से ही हैं। यद्यपि, उन्हें नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता है ताकि क्रियान्वयन और उनके लाभों तक पहुँच में सुधार हो,” प्राध्यापक मिश्रा कहती हैं। “उदाहरण के लिए, ऋण योजनाएँ जो समुदाय अनावृत्ति और चरम घटनाओं के समय उनकी आजीविका की भेद्यता पर विचार करती हैं, और उन्हें अनुवृत्तित ब्याज दरों पर दी जाती हैं, सहायक हो सकती हैं,” वह विदा लेते हुए कहती हैं।