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मशीन लर्निंग द्वारा दवाओं के खोज की प्रक्रिया को तीव्रतर बनाया जा सकता है

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मुंबई
20 जुलाई 2020
Machine Learning for Faster Drug Discovery

मशीन लर्निंग तकनीक के उपयोग से औषधीय रूप से महत्वपूर्ण अणुओं की रासायनिक संरचना में फेरबदल के लिए सर्वश्रेष्ठ उत्प्रेरक की खोज

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए आई) और मशीन-लर्निंग (एम एल) तकनीक ऐसी तकनीक हैं जो आज हमारे दिन प्रतिदिन में होने वाले कई प्रक्रियाओं में उपयोग में लायी जाती हैं। ये तकनीक उपलब्ध तथ्यों का उपयोग करके ऐसे मानक बनाती हैं जो किसी प्रक्रिया में अनुमान लगाने या किसी प्रयोग में निर्णय लेने में सहायक हो सकती हैं। ऐसा ही एक उदाहरण मुंबई के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के शोधकर्ताओं ने हाल ही के एक अध्ययन में प्रस्तुत किया है। उन्होंने कुछ प्रकार के उत्प्रेरण (केटालिसीस) प्रक्रिया से सम्बंधित आणविक निरूपकों का उपयोग करके ऐसे मशीन लर्निंग आधारित प्रोटोकॉल विकसित किये हैं जो कई चिकित्सीय अनुप्रयोगों में उपयोग में लाये जा सकते हैं।

किसी दवा की खोज और उसका सूत्रीकरण एक विस्तृत प्रक्रिया होती है। जैविक अणुओं  के भिन्न भिन्न गुण होते हैं जिनकी जानकारी औषधीय अणुओं को जैविक अणुओं पर लक्ष्य साधने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध  होती है। दवाएँ  हमारे शरीर में जाने के उपरांत अपने निर्धारित लक्ष्य पर असर करती हैं । प्रोटीन और शर्करा जैसे जैविक अणुओं में एक ज्यामितीय गुण होता है जिसे कॉईरालिटी कहा जाता है, जिसके कारण अणु अपनी दर्पण छवि के अनुरूप नहीं होते . इस प्रकार के अणु और उनकी दर्पण छवि को एक दूसरे का इनैंसिओमर अथवा ऑप्टिकल आइसोमर कहते हैं। दूसरे शब्दों में दो संरचनायें (स्टीरिओआइसोमर) जो एक दूसरे की दर्पण छवि हैं परन्तु एक दूसरे से भिन्न है उन्हें इनैंसिओमर कहते हैं (जैसे कि हमारी बाईं और दाहिनी हथेलियाँ असमान होती हैं )।

किसी एक विशेष कॉईरालिटी वाले इस्टीरिओआइसोमर को बनाने के लिए आमतौर पर असममित उत्प्रेरण प्रक्रिया की सहायता ली जाती है जो अत्यंत कठिन होती है। असममित उत्प्रेरण प्रक्रिया में एक कॉईरल उत्प्रेरक इस प्रकार कार्य करता है जिससे एक विशेष कॉईरालिटी वाले संरचना के उत्पादन को दूसरे की अपेक्षा वरीयता अथवा अनुकूलता मिलती है। रासायनिक गुणों से सम्बंधित आणविक विवरणकों का ज्ञान नए असममित उत्प्रेरण प्रोटोकॉल की खोज के प्रयासों को तेज कर सकता है।

चिकित्सीय अनुप्रयोगों में, उच्च-शुद्धता वाले रसायनों (जिनमे एक विशेष कॉईरालिटी की संरचना हो) की बढ़ती मांग को पूरा करने में असममित कटैलिसीस अत्यंत सहायक हो सकते हैं।प्रायः नए उत्प्रेरकों के निर्माण में विस्तृत परीक्षण-त्रुटि चक्र शामिल होते हैं जिसके कारण इस प्रक्रिया में बहुत समय और संसाधन खर्च हो जाते हैं। इसलिए, ऐसे उत्प्रेरक(असममित) का निर्माण करने के लिए एक तेज और विश्वसनीय तकनीक विकसित करना आवश्यक है।

परंपरागत रूप से, ऐसे उत्प्रेरक का निर्माण करने के लिए बहुत से गणितीय मॉडल जो कई कारकों को विचार में लाते हैं, जिनमें कॉईरालिटी भी शामिल हैं, का उपयोग किया गया है। ये मॉडल ऐसे आणविक मापदंडों का उपयोग करते हैं जो उत्कृष्ट अनुमान लगाने वाले प्रतिगमन समीकरण में सही बैठते हैं । परन्तु ये मॉडल अन्य गैर-रेखीय मापदंडों को समीकरण में नहीं रख पाता है। इन चुनौतियों को समझते हुए, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ता यह जानने के लिए मशीन लर्निंग की ओर रुख करते हैं कि क्या मशीन लर्निंग असममित उत्प्रेरक की पहचान करने के प्रयासों में मदद कर सकता है।

शोधकर्ताओं ने रैंडम फारेस्ट और डिसीजन ट्री जैसी एमएल तकनीकों का उपयोग करके बेहतर असममित उत्प्रेरक की खोज करने के लिए एक प्र्रफ ऑफ़ कांसेप्ट (अवधारणा-प्रमाण) मॉडल का प्रदर्शन किया है। शोधकर्ताओं के कथनानुसार यह विधि न केवल प्रक्रिया को तेज कर सकती है, बल्कि इसकी  क्षमता को भी बढ़ा सकती है।प्रस्तावित विधि में, एक मशीन लर्निंग आधारित गणितीय मॉडल को ज्ञात उत्प्रेरकों पर प्रशिक्षित किया जाता है, जो तब अन्य उत्प्रेरकों की प्रभावशीलता का अनुमान लगाने में सहायता करता है। इस तरह से और उत्प्रेरक सम्बंधित पूर्वज्ञात मापदंडो पर प्रशिक्षण के बाद, मॉडल को कुछ परीक्षण समूह के साथ परख कर पुष्टि की गयी। अभ्यास-अनुमान-अभ्यास के चक्र की यह प्रक्रिया अनुकूल उत्प्रेरक की खोज को गति प्रदान करती है।

एक उत्प्रेरक-सब्सट्रेट के जोड़े के सन्दर्भ में इनके आणविक मापदंडों से बना रैंडम फारेस्ट मॉडल की अनुमान लगाने की क्षमता बहुत प्रभावशाली पायी गयी। रैंडम फारेस्ट की सटीकता अन्य एम एल (ML) तरीकों से बेहतर पायी गयी। इस विधि से उत्प्रेरकों के निर्माण प्रक्रिया को बल मिलने और असममित उत्प्रेरक और सब्सट्रेट के अध्ययन और इनकी संख्या के विस्तार में व्यापक प्रभाव की आशा है ।

प्रो राघवन बी सुनोज (रसायन विज्ञान विभाग) , जिन्होंने इस अध्ययन  का नेतृत्व किया ) और प्रो पी बालामुरुगन (औद्योगिक अभियांत्रिकी और संचालन अनुसंधान) के कथनानुसार -

"हम मानते हैं कि मशीन लर्निंग के माध्यम से प्राप्त उत्प्रेरक और सब्सट्रेट के सुझावों के सफल होने की संभावना अधिक है और इन्हे स्वचालित प्रयोगात्मक प्रोटोकॉल के साथ भी जोड़ा जा सकता है। हमारी विधि का उपयोग अन्य कई असममित अभिक्रियाओं में भी किया जा सकता है और इस प्रकार सस्ते और  बेहतर असममित उत्प्रेरकों के  निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर  सकता है "