[Photo by Basile Ugnon-Coussioz via Unsplash]
मधुकोष (हनीकॉम्ब) की संरचना ने लगभग दो शताब्दियों से मानव को मोहित किया है।
अलेक्जेंड्रिआ के यूनानी गणितज्ञ पप्पस (pappus) (२९०-३५० ई.) ने सुझाया कि, षट्कोणीय जाल (ग्रिड) या मधुकोष (हनीकॉम्ब) किसी सतह को न्यूनतम कुल परिधि के साथ बराबर भाग में बाँटने का सबसे अच्छी विधि है, जो पदार्थ की न्यूनतम मात्रा से एक व्यापक संरचना बनाने का मार्ग बताता है।
मधुकोषीय (हनीकॉम्ब) संरचनाओं का उपयोग कई अनुप्रयोगों में किया गया है, जैसे कि थ्री-डी प्रिन्टिंग में एक रचनात्मक तत्व के रूप में।
सामान्यतया , ग्रिड (आयताकार, वर्गाकार, षट्कोणीय या त्रिकोणीय) प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं, और कई ऐसे पदार्थ हैं जो ऐसी ग्रिड्स की कई पंक्तियों, जिन्हें 'लैटिस' कहा जाता है से बनी हुई होती हैं, जो परमाणुओं या अणुओं से बनी होती हैं। ग्राफीन, जो कि कार्बन का एक रूप है, इसका एक उदाहरण है। इस लेख में हम षट्कोणीय या मधुकोषीय(हनीकॉम्ब) लैटिस वाले ग्रिड पर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे।
भारतीय औद्योगिकी संस्थान बॉम्बे (आई आई टी बॉम्बे), भारतीय औद्योगिकी संस्थान कानपुर (आई आई टी कानपुर) और स्वानसी विश्वविद्यालय , यूनाइटेड किंगडम के शोधकर्ताओं के एक समूह ने अध्ययन किया है कि लैटिस हमारे आस पास के किसी पदार्थ के गुणों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
ऐसे पदार्थ जिसमें विभिन्न दिशाओं में वांछित यांत्रिक गुण हों, की थ्री-डी प्रिन्टिंग करने की उपयोगिता को विस्तार देने में इस शोध के परिणाम उपयोगी होंगे ।
ये शोध परिणाम ‘एक्सट्रीम मेकैनिक्स लेटर्स’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं , यह शोध आई आई टी बॉम्बे, आई आई टी कानपुर और यूरोपियन कमीशन द्वारा आंशिक वित्तपोषित है।
जब किसी पदार्थ का कोई भौतिक गुण जैसे कि लचीलापन (इलास्टिसिटी), यदि उस दिशा पर निर्भर नहीं करता जिसमें अध्ययन किया जा रहा है तो भौतिक- शास्त्री इसको सावर्तिक (आइसोट्रॉपिक) कहते हैं और यदि दिशा पर निर्भर करता है तो असावर्तिक (एनाइसोट्रॉपिक) गुण कहते हैं जिसका परिमाण उसके लैटिस की संरचना पर निर्भर करता है।
प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले या मानव निर्मित पदार्थ के गुण लैटिस की आतंरिक ज्यामिति पर कैसे निर्भर करते हैं इसका सैद्धांतिक विश्लेषण शोध कर्ताओं ने वर्तमान अध्ययन में किया है। आई आई टी बॉम्बे की प्राध्यापक सुष्मिता नस्कर, जो इस अध्ययन की सह-लेखक हैं, कहती हैं, हमने व्यवस्थित रूप से सावरतिकता (आइसोट्रॉपी) या असावरतिकता (एनाइसोट्रॉपी) और लैटिस ज्यामिति के बीच संबंध को जोड़ने के सिद्धांत का पता लगाया।
ठोस पदार्थों के गुणों, जैसे कि लचीलापन (इलास्टिसिटी), जो बाहरी बल लगने से होने वाली विरूपता के प्रति प्रतिरोध का मापन करती है, पर शोधकर्ताओं ने ध्यान केंद्रित किया।
लैटिस के व्यवहार को निर्धारित करने वाले समीकरणों को हल करके, उन्होंने यह जाँच की कि पदार्थ की संपूर्ण लोच (इलास्टिसिटी) लैटिस की ज्यामिति पर कैसे निर्भर करती है। फिर उन्होंने पदार्थ की लोच (इलास्टिसिटी) की लैटिस की रचना और उसके ज्यामितिक मापदंड, जैसे कि कोण और घटकों के बीच की दूरी पर गणितीय निर्भरता का विवरण दिया।
इससे वे पदार्थ की लोच (इलास्टिसिटी) का लैटिस की ज्यामिति से सम्बन्ध जोड़ सके।
उन्होंने प्रदर्शित किया कि पूर्व धारणा के विपरीत सावरतिकता (आइसोट्रोपी) लैटिस ज्यामिति से अपेक्षाकृत स्वतंत्र है। प्राध्यापक नस्कर कहते हैं कि पारंपरिक तरीकों से सावरतिकता (आइसोट्रोपी) का आकलन कई अनुप्रयोगों जैसे कि थ्री -डी प्रिन्टिंग में रिक्तताभरण के क्षेत्र को सीमित कर देती है।
बाएं: पदार्थ पर लगने वाले बल या विरूपता का स्थूल (मैक्रोस्कोपिक) दृश्य। मध्य: किसी पदार्थ के एक घटक पर आधारित लैटिस संरचना का सूक्ष्मदर्शी दृश्य। दाएं: बहुघटकीय लैटिस संरचना का सूक्ष्मदर्शी दृश्य।
[छवि आभार: एनाइसोट्रोपी टेलरिंग इन जिऑमेट्रिकली आइसोट्रॉपिक मल्टी-मैटीरियल लैटिसेस बाई तन्मय मुखोपाध्याय, सुष्मिता नस्कर, और संदीपन अधिकारी]
इसके अतिरिक्त शोधकर्ताओं नें यह पता लगाया कि किस प्रकार लैटिस में और पदार्थ लाने से सावरतिकता (आइसोट्रोपी) में परिवर्तन आ जाता है। उन्होंने प्रदर्शित किया कि लैटिस के ऐसे घटकों, जिनसे ज्यामितीय संरचना अक्षुण्ण रहती हो, को बढ़ाने से त्रिआयामी संरचना में सावरतिकता (आइसोट्रोपी) प्राप्त करने की संभावना पूर्व के अनुमान से कहीं अधिक बढ़ जाती है। इनका यह अध्ययन अब वैज्ञानिकों को ज्यामितीय गुणों और लैटिस के घटकों को विशिष्ट शैली में डिजाइन करके, पदार्थ की वांछित असावरतिकता (एनाइसोट्रोपी) प्राप्त करने में सहायक होगा।
ऐसे तंत्र जहाँ भिन्न-भिन्न दिशाओं में लचीलेपन के विविध गुणों की आवश्यकता होती है वहां असावरतिकता (एनाइसोट्रोपी) एक महत्वपूर्ण डिजाइन विनिर्देश है, ऐसा प्राध्यापक नस्कर कहते हैं। इस अध्ययन में सम्मिलित एक अन्य शोधकर्ता आई आई टी कानपुर के तन्मय मुखोपाध्याय कहते हैं “थ्री-डी प्रिंटिंग के लिए लैटिस की संरचना और त्रिआयामी यांत्रिक गुणों पर नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण है। यह आवश्यक है कि लैटिस विन्यास में पर्याप्त विकल्प हों, जिसमें से डिज़ाइनर आवश्यकतानुसार सबसे उपयुक्त विकल्प चुन सके।”
अध्ययन के एक अन्य लेखक स्वानसी विश्वविद्यालय के प्राध्यापक संदीपन अधिकारी कहते हैं, "आवश्यकताएं ज्यामितीय डिजाइन और विनिर्माण बाध्यताओं के साथ आती हैं।"पदार्थों की लैटिस संरचना में असावरतिकता (एनाइसोसोट्रॉपी) के मूल को समझना उन्हें बाध्यताओं को समाप्त करने में समर्थ बनाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि हाल के वर्षों में बहु-घटकीय लैटिस का उत्पादन बहुत सुगम हो गया है। उनका सैद्धांतिक अध्ययन ऐसी रूपरेखा प्रस्तुत करता है जिसका उपयोग उन अभ्युदयों के त्वरित अनुप्रयोगों के लिए किया जा सकता है जहाँ पदार्थ के गुणों में विशिष्ट मात्रा में सावरतिकता (आइसोट्रोपी) या असावरतिकता (एनआइसोट्रोपी) की आवश्यकता होती है। शोधकर्ताओं की परिकल्पना है कि ऐसे मानव निर्मित कृत्रिम पदार्थों का अनुप्रयोग विभिन्न क्षेत्रों जैसे अंतरिक्ष (एयरोस्पेस) उद्योग, सॉफ्ट रोबोटिक्स और जैव चिकित्सकीय उपकरणों (बायोमेडिकल डिवाइस) और प्रत्यारोपण में हो सकेगा।