भवनों की छतों पर छोटे-छोटे पेड़-पौधों का रोपण कर, घने नगरीय क्षेत्रों में बाढ़ के प्रकोप एवं अपवाह (रनऑफ) को घटाया जा सकता है।

प्रवर्धित विकेंद्रीकरण की ओर स्थानान्तरण : नगर जल अवसंरचना का भविष्य

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Mumbai
3 नवंबर 2023
A small-scale wastewater treatment plant. Photo: H. S. Sudhira

नगरों में पानी की बढ़ती मांग को पूरा करने, विषम परिस्थितियों का प्रबंधन एवं संसाधन उपभोग तथा पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए आज वैश्विक स्तर पर भारी दबाव है। केंद्रीकृत जल अवसंरचना (सेंट्रलाइज्ड वाटर इन्फ्रास्ट्रक्चर) योजना के वर्तमान मॉडल को अस्थाई बताते हुए आलोचना की गई है। नगर जल अवसंरचना में जल आपूर्ति, अपशिष्ट जल संचयन प्रणालियों तथा जल उपचार संयंत्र सम्मिलित है।

वर्तमान में अधिकांश नगर जल अवसंरचनायें केंद्रीकृत प्रणालियों के रूप में हैं। अर्थात पानी के कुछ-एक स्रोत होते हैं जिन्हें केंद्रीय रूप से उपचारित किया जाता है एवं जल आपूर्ति तंत्र के माध्यम से वितरित किया जाता है। इसी प्रकार अपशिष्ट जल का संग्रह भी किया जाता है एवं नगर के बाह्य क्षेत्रों में स्थित बड़ी सीवेज उपचार इकाइयों में इसे उपचारित किया जाता है। यह नगर जल अवसंरचना की केंद्रीकृत प्रणाली को अपरिहार्य बनाता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटीबी) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया एक वर्तमान अध्ययन बताता है कि अरबन वाटर इन्फ्रास्ट्रक्चर (यूडब्ल्यूआई) में स्थिरता और परिवर्तनशीलता लाने के लिए प्रवर्धित विकेंद्रीकृत प्रणालियों वाला एक आमूल-चूल परिवर्तन आवश्यक है। नगर जल अवसंरचना के जीवन-चक्र में स्थायित्व एवं परिवर्तनशीलता दोनों दृष्टिकोण सम्मिलित किये जाने की आवश्यकता को शोध व्यक्त करता है।

प्रचलित केंद्रीकृत प्रणालियों पर चिंता व्यक्त करते हुए, शोध आलेख के लेखक तथा आईआईटी मुंबई में नगर विज्ञान एवं अभियांत्रिकी केंद्र (सीयूएसई) के प्राध्यापक प्रदीप कालबर तथा सुश्री श्वेता लोखंडे ने पाया कि, "विफलताओं या बाढ़ जैसी चरम घटनाओं की स्थिति में उत्पन्न विभिन्न बाधाओं के समय केंद्रीकृत प्रणालियां सेवा देने में अशक्त सिद्ध होती हैं। उनके पास स्थान-विशेष की आवश्यकताओं, जैसे कि अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण आदि को पूरा करने की क्षमता की कमी है। जल-अवसंरचना की क्षमताओं का पूर्ण दोहन न हो पाना एक अन्य प्रमुख कमी है, जिसके परिणामस्वरूप परिवहन तंत्र एवं उपचार संयंत्रों का अक्षम संचालन होता है।”

वे आगे कहते हैं कि "उच्चस्तरीय केंद्रीकृत तंत्र निवेश की एक निश्चित अवधि से जुड़े होते हैं, जो नवाचारों के माध्यम से स्थितिजन्य अनुरूपता (फ्लेक्सिबिलिटी) को अवरुद्ध करते है। इसके अतिरिक्त, एक विशिष्ट सीमा से अधिक कोई आर्थिक लाभ भी प्राप्त नहीं होता। वास्तव में ऊर्जा एवं संसाधन के अधिक व्यय के कारण पर्यावरण पर केंद्रीकृत प्रणालियों का दबाव एक सीमा से अधिक हो जाता है।”

दूसरे शब्दों में, प्रचलित यूडब्ल्यूआई युक्ति के साथ एक प्राथमिक चिंता इसकी रैखिक 'टेक-मेक-डिस्पोज' व्यवस्था है जो ताजे पानी के लगातार निष्कर्षण पर आधारित है एवं अनुपचारित पानी को प्राकृतिक निकायों को वापस करती है। यद्यपि संसाधनों के बढ़ते हुए अभाव एवं पर्यावरणीय चिंताओं के साथ यह दृष्टिकोण अब टिकाऊ नहीं है। अध्ययन इसे चक्रीय व्यवस्था युक्ति के रूप में परिवर्तित करने का प्रस्ताव करता है जो जल प्रबंधन में पुनर्प्रयोग एवं पुनर्चक्रण के सिद्धांतों को सम्मिलित करता है।

इसके अतिरिक्त अध्ययन में नगरीकरण से जुड़ी अनिश्चितताओं एवं बढ़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए लचीली अवसंरचना योजना के महत्व पर बल दिया गया है। बड़े नगरों को, जो अनिश्चितताओं की स्थिति में सर्वाधिक असुरक्षित हैं, लचीला यूडब्ल्यूआई तंत्र अपनाना चाहिए जो आपात स्थितियों में सेवाकार्यों के पृथक-पृथक स्तरों के अनुकूल हो सके।

यद्यपि बहुत कम वर्तमान अध्ययन यूडब्ल्यूआई योजना में स्थिरता एवं लचीलापन दोनों को एक साथ प्रमुखता देने का विचार रखते हैं। अवसंरचना में लचीलापन लाना स्थायित्व वाले दृष्टिकोण में अपेक्षाकृत एक नया संयोग है। जल-अवसंरचना को लचीला बनाने के लिए और अधिक निवेश की आवश्यकता है। इसमें केंद्रीकृत प्रणालियों से विकेंद्रीकृत यूडब्ल्यूआई की ओर एक कदम के रूप में, नगर जल प्रबंधन के प्रचलित दृष्टिकोण में एक आधारभूत परिवर्तन की संभावना है।

इस महत्वपूर्ण परिवर्तन पर बल देते हुए प्राध्यापक प्रदीप कालबर और सुश्री श्वेता लोखंडे निष्कर्ष देते हैं, "केवल तकनीकी एवं आर्थिक आधार पर नगर जल अवसंरचना की योजना में स्थिरता एवं लचीलापन दोनों पक्षों पर विचार करना जटिल है। विकेंद्रीकृत अवसंरचना को लागू करने के लिए हम इसके साथ एक उपयुक्त प्रवर्धक (स्केल) को अपनाने का सुझाव देते हैं जो नगर की स्थिति अर्थात नगर में उत्पन्न कुल सीवेज के आधार पर निश्चित किया जाएगा।”

1900 के प्रारम्भ में कल्पित यूडब्ल्यूआई का केंद्रीकृत दृष्टिकोण, वर्तमान नगरों की परिवर्तित होती स्थितियों का सामना करने के लिए पर्याप्त लचीला नहीं है। उपयोगिता को लेकर विभिन्न विभागों के मध्य समन्वय में जटिलता, चरम स्थितियों में विफलता संबंधी जोखिम एवं विकसित देशों में लागू प्रणालियों की विकासशील देशों में उपयोग की अनुपयुक्तता जैसी चुनौतियाँ विद्यमान हैं।

प्रस्तावित विकल्प अर्थात तथाकथित प्रवर्धित विकेंद्रीकरण के रूप में ऐसी प्रणालियां हैं जो न तो अत्यधिक केंद्रीकृत हैं और न ही अत्यधिक विकेंद्रीकृत। इसके स्थान पर यूडब्ल्यूआई की योजना, कार्यान्वयन और रखरखाव को नगर के संदर्भ एवं स्थितियों के आधार पर एक इष्टतम स्तर तक विकेंद्रीकृत किया जाएगा। प्रवर्धित विकेंद्रीकरण के संभावित लाभों में, जीवन-चक्र लागत एवं पर्यावरणीय प्रभाव में कमी, उन्नत प्रशासन, लचीलेपन एवं पुनर्चक्रण क्षमता में वृद्धि सम्मिलित है।

प्रवर्धित विकेंद्रीकृत प्रणालियों की दिशा में परिवर्तन जल प्रबंधन को एक चक्रीय दृष्टिकोण प्रदान करता है तथा उपचारित पानी के पुनर्चक्रण एवं नवीन जल स्रोतों के निर्माण को प्रोत्साहित करता है। इससे यूडब्ल्यूआई के उपयोग सामर्थ्य एवं अनुकूलनशीलता में भी वृद्धि होती है, जो जलवायु संबंधी चरम घटनाओं के समय इसे लचीला रखने के लिए आवश्यक है।

यद्यपि यह स्थानांतरण तकनीकी नवाचार, पर्यावरणीय जानकारी, लागत-प्रभाविता एवं प्रशासनिक क्षमताओं सहित विकेंद्रीकरण को चलाने वाले कारकों की गहन जानकारी के बिना असंभव है। तकनीक चाहे उच्च हो अथवा निम्न, किसी दिए गए संदर्भ में एक विशिष्ट तकनीक की उपयुक्तता अधिकांशत: स्थान विशेष की स्थिति एवं कार्यान्वयन के स्तर पर निर्भर करती है।
इसके अतिरिक्त प्राध्यापक प्रदीप कालबर और सुश्री श्वेता लोखंडे ने प्रवर्धित विकेंद्रीकरण में सहायक कारकों की पहचान की है: प्रथम, सक्षम प्राधिकारियों एवं नगर के स्थानीय निकायों के मध्य प्रवर्धित विकेंद्रीकृत प्रणालियों के लाभ के सम्बन्ध में जागरूकता उत्पन्न करना। द्वितीय, प्रवर्धित विकेंद्रीकरण को लागू करने हेतु नीतिकारों एवं अभियंताओं के लिए निर्णय युक्तियाँ/रूपरेखा/तकनीकें एवं तृतीय, भविष्य के संभावित परामर्शदाता एवं निर्णयकर्ता अर्थात सिविल इंजीनियरिंग के छात्रों और योजनाकारों की क्षमता निर्माण के माध्यम से योजना में आमूल-चूल परिवर्तन लाना ताकि प्रवर्धित विकेन्द्रीकृत प्रणालियों के माध्यम से नगर जल अवसंरचना को प्राप्त किया जा सके।

शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि यूडब्ल्यूआई की समग्र योजना विशिष्ट प्रौद्योगिकी विकल्पों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। यह लचीली एवं टिकाऊ नगर जल प्रबंधन प्रणाली के निर्माण हेतु केंद्रीकृत एवं विकेंद्रीकृत उपचार प्रणालियों के संयोजन वाले एक इष्टतम तंत्र की ओर अग्रसर होने की बात करती है। यह दृष्टिकोण विकसित एवं विकासशील दोनों देशों के लिए लाभप्रद होगा, जो क्रमश: पुराने यूडब्ल्यूआई को परिवर्तित करने एवं नवीन अवसंरचना को आकार देने में सहायक होगा।

अध्ययन के लेखक बल देते हैं कि शोधकर्ताओं, व्यवसाइयों एवं नगर स्थानीय निकायों द्वारा विकेंद्रीकरण का आर्थिक स्तर पर आकलन करना महत्वपूर्ण है, जो श्रेष्ट इष्टतम मॉडल, विषय अध्ययन एवं नीति निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगा।