दीपावली जैसे त्योहारों के दौरान आतिशबाजी का व्यापक उपयोग, बड़ी मात्रा में हानिकारक गैसों और विषाक्त पदार्थों को वायुमंडल में छोड़ता है। परिणामस्वरूप, वायु प्रदूषित हो जाती है जो हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। हाल ही के अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली के शोधकर्ताओं ने दीपावली के दौरान पटाखों से होने वाले अत्यधिक वायु और ध्वनि प्रदूषण और स्वास्थ्य पर उनके संभावित प्रभाव का विश्लेषण किया है। अध्ययन के परिणाम स्वास्थ्य और प्रदूषण की विख्यात पत्रिका ‘जर्नल ऑफ हेल्थ एंड पॉल्युशन ‘में प्रकाशित किए गए हैं ।
शोधकर्ताओं ने २०१५ में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी परिसर में दीपावली के त्यौहार के दौरान हवा की गुणवत्ता और शोर के स्तर का अध्ययन किया। उन्होंने १० माइक्रोमीटर या व्यास में उससे छोटे, हवा में तैरते कणों को पीएम-१० की सघनता से मापा और शोर के स्तर को भी। उन्होंने दीपावली में १० दिनों की अवधि के दौरान पीएम-१० में मौजूद धातु, जैसे कैडमियम, कोबाल्ट, लोहा, जस्ता और निकल एवं आयन, जैसे कैल्शियम, अमोनियम, सोडियम, पोटेशियम, क्लोराइड, नाइट्रेट और सल्फेट की सांद्रता को मापा। स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए, शोधकर्ताओं ने उस अवधि के दौरान संस्थान के अस्पताल में जाने वाले रोगियों के स्वास्थ्य का सर्वेक्षण भी किया।
हालाँकि देश में वायु गुणवत्ता और स्वास्थ्य पर पटाखों के प्रभाव पर कई अध्ययन किये गए हैं, लेकिन शोधकर्ताओं के अनुसार अभी तक पूर्वोत्तर भारत से केवल दो ही अध्ययन हुए हैं। पिछले कई अध्ययनों की तरह, इस अध्ययन में भी दीपावली समारोह के दौरान प्रदूषकों के स्तरों में वृद्धि देखी गई। शोधकर्ताओं ने देखा कि दीपावली के दौरान पीएम-१० की सांद्रता अन्य समय की तुलना में ८१% अधिक थी, और धातुओं एवं आयनों की सांद्रता में काफी वृद्धि हुई। ६५% की वृद्धि के साथ, शोर का स्तर भी समान रूप से अत्यधिक था।
दिलचस्प बात यह है कि, शोधकर्ताओं ने पाया कि अन्य दिनों की तुलना में दीपावली के दौरान पीएम-१० में बैक्टीरिया की सांद्रता में ३९% कमी थी। “भारी धातुओं जैसे सीसा, लोहा और जस्ता को उनके विषाक्त प्रकृति के कारण माइक्रोबियल गतिविधि पर संभावित प्रभाव डालने के लिए जाना जाता है और ये आतिशबाजी के निर्माण में मुख्य घटक होते हैं। यह दीपावली की अवधि के दौरान बैक्टीरिया की कम सांद्रता का कारण हो सकता है" लेखकों ने स्पष्ट किया।
शोधकर्ताओं के अनुसार दीपावली के दौरान लोगों के स्वास्थ्य पर इसके दुष्प्रभाव में बढ़त देखी गई। शोधकर्ताओं ने कहा, "छोटे कणों के स्तर में वृद्धि के साथ, दीवाली की अवधि के दौरान अस्पताल में जाने वाले रोगियों की संख्या में ६७% की वृद्धि हुई"। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अवधि में सिरदर्द, थकान, आँखों में जलन, खाँसी, छींकने और साइनुसाइटिस की शिकायत वाले रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई।
हालाँकि, पटाखों के बिना दीपावली का मनाना, वायु प्रदूषण और संबंधित जोखिमों को दूर करने के लिए आदर्श होगा पर पटाखों का एक नियंत्रित उपयोग, वायु प्रदूषण और संबंधित जोखिमों को कम करने में मदद कर सकता है। ”यह अध्ययन उच्च आबादी घनत्व वाले क्षेत्रों में विनियमित और निगरानी किए गए पटाखों के प्रयोग के महत्व पर जोर देता है। पीएम-१० सांद्रता और स्वास्थ्य जोखिमों के बीच संबंध को निर्धारित करने के लिए अतिरिक्त आतिशबाज़ी जलाने की घटनाओं से एकत्र किए गए आँकड़ों का उपयोग करके भविष्य में समय श्रृंखला विश्लेषण की आवश्यकता है।" लेखकों ने निष्कर्ष निकाला।