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सुदूर क्षेत्रों में सौर माइक्रोग्रिड, दीर्घकालिक एवं स्वच्छ ऊर्जा स्रोत

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मुंबई
14 सितंबर 2021
सुदूर क्षेत्रों में सौर माइक्रोग्रिड, दीर्घकालिक एवं स्वच्छ ऊर्जा स्रोत

छायाचित्र : सिक्किम में स्थापित सौर पैनल (छविश्रेय: प्राध्यापक प्रकाश सी  घोष, आईआईटी मुंबई )

अप्रेल 2021 में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) स्थित ऊर्जा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग के एक शोध-दल ने सिक्किम स्थित एक आर्मी बेस कैम्प के लिए 50 किवापीक  (किलोवाटपीक) के एक सौर माइक्रोग्रिड सुविधा की स्थापना की है। सस्टेनेबल एनर्जी स्टोरेज सुइटेबल फॉर माइक्रोग्रिड (SENSUM) नामक यह परियोजना मिशन इनोवेशन इंडिया के अंतर्गत आती है। यह भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्य अक्षय (रिन्यूवेबल) ऊर्जा स्रोतों के दोहन, की दिशा में एक कदम है, तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार ने 95 लाख रुपये लागत के इस उद्यम को वित्त-पोषित किया है।

प्राध्यापक प्रकाश सी घोष के नेतृत्व में, 17000 फीट की ऊंचाई पर स्थापित की जाने वाली यह परियोजना अपने आप में अनूठी है। यह सौर माइक्रोग्रिड, वेनेडियम रेडॉक्स फ्लो बैटरी (वीआरएफबी) एवं हाइड्रोजन ईंधन सैल धारित एक संकर (हाइब्रिड) ऊर्जा भंडारण प्रणाली के साथ एकीकृत किया गया है। वर्तमान में यह माईक्रोग्रिड, स्वच्छ एवं पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा स्रोतों की प्राथमिकता को सुनिश्चित करते हुए, इस स्थान की 30 केवीए के डीज़ल जनरेटर पर  निर्भरता को घटाता है।

कार्यदल ने माइक्रोग्रिड स्थापित करने हेतु रूक्ष भू-भागों, अल्प ऑक्सीजन स्तर  तथा मौसम की अप्रत्याशित स्थितियों का धैर्यपूर्वक सामना किया। “अपने उपकरणों को ढ़ोना एक बड़ी चुनौती थी।” स्मरण करते हुए कि कैसे उन्होंने भारी-भारी बैटरी उपकरणों को बिना क्रेन की सहायता से स्थानांतरित किया था, प्रा. घोष कहते हैं। “इसके अतिरिक्त सुविधा स्थापित करने हेतु हमारे पास मात्र दो माह थे, इसके पूर्व कि प्रावृष् (मानसून) इस स्थान तक पहुँच को ही बाधित कर दे,” वह आगे कहते हैं।  

सौर माइक्रोग्रिड

माइक्रोग्रिड, प्राथमिक बिजली आपूर्ति ग्रिड के लिए पॉवर बैकअप के रूप में स्व-संचालित होते हैं। जब कभी बिजली की कमी, कटौती अथवा मरम्मत के कारण मुख्य बिजली आपूर्ति बाधित होती है, तो माइक्रोग्रिड विद्युत् आपूर्ति के भार को वहन कर लेते हैं। डीजल जनित्र (जनरेटर) के विपरीत, माइक्रोग्रिड अक्षय स्रोतों जैसे सौर अथवा पवन ऊर्जा से बिजली उत्पन्न करते हैं। सुदूर एवं दुर्गम क्षेत्रों (जैसे सिक्किम स्थित सैन्य शिविर) में, जहां केंद्रीय बिजली आपूर्ति नहीं है, माइक्रोग्रिड क्षेत्र की विद्युत मांगों को पूर्ण करने हेतु एक आकर्षक तथा दीर्घकालिक विकल्प प्रदान करते हैं।

सौर माइक्रोग्रिड में सौर पैनल, फोटोवोल्टेइक सैल एवं सुविधाजनक संग्रह बैटरी होती हैं। फोटोवोल्टिक सैल विद्युत् भार को वहन करने तथा बैटरी को आवेशित (चार्ज) करने के लिए सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। बैटरियां ऊर्जा को विद्युत रासायनिक रूप में संग्रहित करती हैं एवं रात्रि के समय में अथवा प्रतिकूल वातावरण में विद्युत् भार वहन करती हैं।

शिविर में वर्ष में लगभग 300 दिनों तक उपलब्ध रहने वाले सूर्य के पर्याप्त  प्रकाश का लाभ उठाते हुए, कार्यदल ने वैनेडियम रेडॉक्स फ्लो बैटरी और हाइड्रोजन संग्रहण सैल की संकरित भंडारण प्रणाली के साथ 50 किवापीक (किलोवाटपीक) फोटोवोल्टेइक  सैल का प्रस्ताव रखा। यह एकीकृत तंत्र, समस्त ऋतु-स्थितियों में  रहते हुए शिविर की विद्युत आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकता है। प्रा. घोष कहते हैं, “माइक्रोग्रिड, शिविर के 30 केवीए की जनित्र (जनरेटर) व्यवस्था के लिए 20 किलोवाट/200 किलोवाट-अवर बैकअप प्रदान करता है।”

वेनेडियम फ्लो बैटरीज ही क्यों?

यद्यपि विभिन्न प्रकार की बैटरियां उपलब्ध हैं, वेनेडियम फ्लो बैटरीज की उदीयमान तकनीक के अनेकों दीर्घकालिक लाभ हैं। "लेड-एसिड बैटरी का जीवनकाल अल्प है तथा न्यून तापमान पर इसकी क्षमता काफी सीमा तक घट जाती है, जबकि सुपर कैपेसिटर व्यापक मानदंड पर ऊर्जा भंडारण के लिए उपयुक्त नहीं होते। अतएव हमने इनकी विश्वसनीयता, अल्प लागत, दीर्घकालिक स्थिरता एवं बैटरी जीवनकाल  ध्यान में रखते हुए फोटोवोल्टेइक सौर सैल के साथ संयोजित रूप में वीआरएफबी का उपयोग किया," प्रा. घोष कहते हैं।

वीआरएफबी के मूल में दो ऊर्जा भंडारण विद्युत अपघट्य (इलेक्ट्रोलाइट) टंकिया होती हैं जिनमें गंधक अम्ल के साथ मिश्रित रासायनिक रूप से सक्रिय वेनेडियम यौगिक (V4+ एवं V3+ आयनिक अवस्थाओं में) होते हैं। विद्युत अपघट्यों को एक आयनिक झिल्ली के द्वारा पृथक किये गए, एक के ऊपर एक स्थित (स्टेक), द्वि-कोष्टीय वैद्युत रासायनिक सैल के माध्यम से पम्प किया जाता है। इन कोष्ठों में विद्युत वाहक विद्युताग्र (इलेक्ट्रोड्स) होते हैं।

आवेशन चक्र (चार्जिंग साइकिल)  के समय, फोटोवोल्टेइक सैल , विद्युताग्रों के माध्यम से विद्युत् धारा प्रवाहित करते हैं। V4+ धारण करने वाला विद्युत अपघट्य धनाग्र (एनोड) की ओर गति करता है तथा एक इलेक्ट्रॉन देकर V5+ में ऑक्सीकृत हो जाता है। यह इलेक्ट्रॉन बाह्य परिपथ के माध्यम से प्रवाहित होता हुआ ऋणाग्र ( कैथोड) पर पहुँचता है जहाँ V3+ के द्वारा अवशोषित हो कर V2+ में अपचयित हो जाता है। पृथक्करण झिल्ली इलेक्ट्रॉन के अवांछित प्रवाह को रोक कर उदासीन (न्यूत्ट्रलाइज़) होने से रोकती है। सम्मिलित रूप में, एक अकेला सैल 1.26 वोल्ट विद्युतवाहक विभव उत्पन्न करता है, प्रा. घोष कहते हैं। इस प्रकार आवेशन प्रक्रिया सतत होने लगती है, एवं टंकियों में बैटरियों के आवेशन अवस्था का निर्माण प्रारम्भ हो जाता है। टंकियों की एक जोड़ी 50 किलोवाट-अवर ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम है।

जब बैटरी विद्युत भार के चलते अनावेशित होती है, तब प्रतिलोम (रिवर्स ) प्रक्रिया होने लगती है। V2+ इलेक्ट्रॉन्स को मुक्त करता है एवं पुन: V3+ में परिवर्तित होता है। प्रतिलोम विद्युत् धारा अब बैटरी से संलग्न भार को वहन करती है तथा इलेक्ट्रॉन सैल के धन विद्युताग्र की ओर पहुँचते है, जहाँ V5+ इसे अवशोषित करता है एवं V4+ में परिवर्तित कर देता है। इस प्रकार, वीआरएफबी अत्यधिक ऊर्जा भंडारण क्षमता से युक्त, अज्वलनशील एवं दीर्घकालिक बैटरी हैं।
 

परियोजना का आरेखित निरूपण  (छवि श्रेय : प्रकाश सी  घोष, आईआईटी मुंबई )

“एक मूलक (रेडॉक्स) बैटरी का दूसरा लाभ यह है कि ऊर्जा एवं शक्ति क्षमता (किलोवाट एवं कि. वा. अवर) को पृथक किया जा सकता है। अतएव, टंकी क्षमता में वृद्धि करने से  (अधिक विद्युत् अपघट्य), ऊर्जा क्षमता वाला भाग बढ़ता है। इसके विपरीत, क्रमबद्ध संख्या (स्टेक) में वृद्धि, निर्गत शक्ति (आउटपुट पॉवर) को बढ़ाएगा,” प्रा. घोष कहते हैं। 

परियोजना परिनियोजन 

परियोजना का प्रथम चरण नवम्बर 2019 में आया। सर्वप्रथम कार्यदल ने पर्वतीय भू-भाग पर आठ सौर श्रंखलाओं का ढांचा खड़ा किया। इष्टतम रूप से संरेखित संरचना ही 50 किवापीक (किलोवाट पीक) शक्ति उत्पन कर सकती थी। “यह हमारे लिए अत्यधिक कठिन कार्य था कयोंकि वर्षा प्रारम्भ होने के पूर्व संरचना को पूर्ण करने के लिए हमारे पास न्यूनतम शारीरिक सहयोग था” प्रा. घोष कहते हैं। यद्यपि आगामी सुलभ समय प्रभाग अप्रेल 2020 में था, किंतु प्रचंड विश्वमारी ने  उनके कार्यक्रम को बाधित कर दिया। परिणामत: आगामी चरण नव्यसा (रीसेंटली) पूर्ण हुआ।

कार्यदल माइक्रोग्रिड को एकीकृत करने के लिए आगामी चरण में हाइड्रोजन भंडारण प्रणाली के साथ 5 किलोवाट क्षमता का ईंधन सैल (फ्यूल सैल ) स्थापित करेगी। ईंधन सैल एक दूसरी कम लागत वाली विद्युत रासायनिक भंडारण प्रणाली है जो बैटरी को आवेशित करने के लिए हाइड्रोजन का उपयोग करती है। ईंधन सैल का उपयोग तब किया जाएगा जब प्रवाह-बैटरी प्रतिकूल वातावरण अथवा ऋतु परिवर्तन के कारण पर्याप्त निर्गम (आउटपुट) प्रदान नहीं कर सकती है। प्रवाह-बैटरी एवं ईंधन सैल के संयुक्त भंडारण से माइक्रोग्रिड की समग्र विद्युत शक्ति विश्वसनीयता में प्रगति होगी।

“ईंधन सैलों का एक उपयोगी उप-उत्पाद ऊष्मीय ऊर्जा है। ईंधन सैल से ~ 45-50% की विद्युत दक्षता के साथ कार्यान्वित होने  की अपेक्षा है, अर्थात सैल द्वारा लगभग इतनी ही मात्रा में ऊष्मा का उत्सर्जन किया जाता है। ऊष्मा का उपयोग प्रवाह बैटरी के ऑपरेटिंग तापमान को बनाए रखने और परिसर को गर्म करने के लिए किया जा सकता है,” प्रा. घोष अवगत कराते हैं। कार्यदल सिक्किम पर्यटन के लिए भी इसी प्रकार के माइक्रोग्रिड प्रदान करने की संभावना पर विचार कर रहा है।