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टैंकरों के द्वारा भारतीय शहरों में जल की आपूर्ति के लिए एक रूपरेखा

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Mumbai
5 अक्टूबर 2020
टैंकरों के द्वारा भारतीय शहरों में जल की आपूर्ति के लिए एक रूपरेखा

निजी जलापूर्ति के लिए एक टैंकर [फोटो श्रेय: सुधीरा एच एस]

केवल पर्याप्त जल स्रोतों की कमी ही हमारे शहरों में पानी के संकट के लिए जिम्मेदार नहीं है। बढ़ते शहरी क्षेत्रों के कई हिस्से आज भी पानी की लाइनों (पाइप्ड पानी) की प्रतीक्षा कर रहे हैं, अनियमित आपूर्ति से निपटने के लिए नागरिक अथवा शहर के जलापूर्ति बोर्ड दोनों ही जलापूर्ति के लिए समान रूप से टैंकरों पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली जल बोर्ड के पास लगभग 800 टैंकरों की व्यवस्था है, जो शहर के विभिन्न हिस्सों में लोगों को पानी उपलब्ध कराता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के प्राध्यापक रविंद्र गुड़ी कहते हैं कि, "बड़े पैमाने पर संचालन के कारण, जल आपूर्ति बोर्ड जलापूर्ति श्रृंखला तंत्र में पारदर्शिता बनाए रखने में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं"। बोर्डों को जलापूर्ति की लागत को कम करने और पानी की चोरी रोकने के साथ-साथ जल उपचार सुविधाओं के सुचारु संचालन को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। हाल ही के एक अध्ययन में, प्राध्यापक गुड़ी और उनकी टीम ने पानी वितरण की लागत को सस्ता बनाने हेतु जल स्रोतों से जल उपचार सुविधाओं और उपभोक्ताओं तक टैंकरों के माध्यम से पानी के वितरण के लिए एक योजना और समयबद्ध रूपरेखा (फ्रेमवर्क) तैयार की है।

शहरों की वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक मजबूत जल आपूर्ति तंत्र की आवश्यकता है। प्राध्यापक गुडी कहते हैं कि, "पानी आपूर्ति सम्बंधित बोर्डों को ऐसे नियोजन और टैंकर शेड्यूलिंग ढाँचे की आवश्यकता है, जो पानी के वितरण के नियमन में सुधार, और एक बड़ी आबादी को शुद्ध और साफ पानी की आपूर्ति के लिए काम करें"। इस अध्ययन को मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा यूरोपीय संघ-भारत सहयोग कार्यक्रम के "लोटस परियोजना" के तहत वित्त पोषित किया गया हैं।

प्रस्तावित रूपरेखा में, शोधकर्ता समय क्षमता नामक एक नई अवधारणा पेश करते हैं, जो दो बिंदुओं के बीच एक इकाई मात्रा की पानी को ले जाने के लिए आवश्यक समय की गणना करता है। पानी की आपूर्ति करने के लिए आवश्यक कुल समय, पानी को ले जाने की मात्रा को इकाई मात्रा में लगने वाले समय से गुणा करके निर्धारित किया जाता है। प्राध्यापक गुडी बताते हैं कि हमने "जलस्रोत और उपभोक्ता के मध्य सर्वोत्तम मार्ग बताने के लिए, टैंकर वितरण को पूरा करने के लिए कुल उपलब्ध समय और हमारे गणना किये हुए समय को संतुलित करके एक अभिकलनात्मक रूप से सक्षम रुपरेखा बनायी है।” इस रूपरेखा में एक वितरण विशेष के लिए उपयोग किए जाने वाले टैंकर के आकार को भी दर्शाया गया है।

इस रुपरेखा का उपयोग कम अवधि, याने कुछ घंटों से लेकर एक दो सप्ताह, के टैंकर-आधारित जल आपूर्ति तंत्र के संचालन की योजना बनाने के लिए किया जा सकता है। चूंकि स्रोत से उपभोक्ताओं तक पानी पहुँचाने के दौरान  कई कारक होते हैं, इसलिए विभिन्न शहरों के मौजूदा जल वितरण प्रणालियों के अंतर को समायोजित करने के लिए नियोजन रुपरेखा को पर्याप्त रूप से लचीला होना चाहिए।

जल वितरण नेटवर्क के उपभोक्ताओं, जैसे घर, वाणिज्यिक प्रतिष्ठान, अस्पताल और स्कूलों में जल गुणवत्ता आवश्यकताओं में भिन्नता होती है। अध्ययन की लेखक अभिलाषा माहेश्वरी कहती हैं, “जबकि मीठे पानी के स्रोतों से लाये पानी को टैंकरों में क्लोरीन कीटाणुशोधन के माध्यम से सूक्ष्मजीवनिवारक उपचार के बाद घरेलू जरूरतों के लिए उपयोग में लाया जा सकता है, भू-गर्भ जल में हानिकारक भारी धातु और कार्बनिक पदार्थ शामिल हो सकते हैं इसलिए इस पानी को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने से पहले जल उपचार संयंत्र में प्रसंस्करण के लिए भेजा जाता हैं।”

“जल उपचार प्रक्रिया का घटनाक्रम और उसके बाद मिलने वाले पानी की मात्रा, जल आपूर्ति की सारणी को प्रभावित करती है, इसलिए रुपरेखा में  उपचार संयंत्रों के लिए सर्वोत्कृष्ट परिचालन समय की सीमा का नियोजन भी करना होता है। इसके अलावा, रुपरेखा में  परिवहन सारणी में भू-गर्भ जल स्रोतों से  संयंत्रों तक टैंकरों की आवाजाही को भी शामिल करना होता हैं,” इस अध्ययन के शोधकर्ता डॉ शमीक मिश्रा प्रस्तावित पद्धति की क्षमताओं को रेखांकित करते हुए बताते हैं।

शोधकर्ताओं ने इस रूपरेखा के कामकाज को एक प्रतिनिधिक डेटासेट में लागू करके प्रदर्शित किया, जो कि एक शहर में पानी की खपत के पैटर्न और टैंकर आधारित जल वितरण प्रणाली को दर्शाता है। उन्होंने पहले के किये सर्वेक्षण के साथ-साथ "जस्ट पानी” नामक जल आपूर्ति कंपनी द्वारा उपलब्ध कराई गई जल स्त्रोतों के प्रकार, शहर का जल आपूर्ति आधारित क्षेत्रीय विभाजन, सामान्य टैंकर क्षमता और वितरण समय आदि, की जानकारी के आधार पर इस डेटासेट को बनाया हैं।

उदाहरण के लिए शहर को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया, जिसमें जल स्रोतों, उपभोक्ताओं के प्रकार और उपचार संयंत्रों के विभिन्न संयोजन थे। विभिन्न उपभोक्ताओं द्वारा माँगा गया पानी, दिन के समय,  सप्ताह के दिनों और सप्ताहांत पर अलग-अलग पाए गए। शहर में पानी की खपत के पैटर्न के आधार पर आठ दिनों के लिए संचालन और वितरण सारणी तैयार करने के लिए रूपरेखा दिखाई गई। यह किसी भी शहर में टैंकर जल प्रणाली के योजनाकारों और वितरकों के लिए एक उपयोगी साधन के रूप में काम करेगा।

ये रूपरेखा, जब ज़रुरत हो, संसाधनों की आवश्यकता का अनुमान लगा सकती है। उदाहरण के लिए, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में सुबह की तुलना में शाम को पानी की अधिक आवश्यकता होती है। इस स्थिति में, पीने वाले पानी के स्रोत के अलावा, टैंकरों को अतिरिक्त पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए उपचार संयंत्रों से पानी लाने के लिए निर्धारित किया गया।

प्रत्येक क्षेत्र के वितरण की समय सारणी और मार्गों के सही अनुमान निकालने  के लिए पानी के उपलब्ध टैंकरों की संख्या और उनके प्रकार का ध्यान रखना होगा। उदाहरण के लिए, केवल एपॉक्सी-कोटेड आंतरिक सतहों वाले टैंकरों का उपयोग स्वच्छ पानी के परिवहन के लिए किया जा सकता है और केवल छोटे टैंकर संकीर्ण सड़कों वाले क्षेत्रों में जा सकते हैं। इस फ्रेमवर्क में न्यूनतम परिवहन लागत सुनिश्चित करने के साथ पानी की मात्रा के आधार पर विभिन्न क्षमताओं के टैंकरों को रखा गया। इसमें समय पर माँगों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त टैंकरों को किराए पर लेने का निर्णय भी लिया गया।

शोधकर्ताओं ने एक ऐसे परिदृश्य का भी परीक्षण किया जहाँ रखरखाव के लिए दो जल उपचार संयंत्रों में से एक को बंद कर दिया गया। रूपरेखा ने स्वयं को स्थिति के अनुरूप ढाला और अन्य उपचार संयंत्र के संचालन में बदलाव किया ताकि पानी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।

शोधकर्ताओं ने भू-गर्भ जल स्रोतों से बड़े पैमाने पर पानी के अत्यधिक निष्कर्षण को भी घ्यान में रखा, जिससे जल स्तर में तेजी से क्षरण हो जाता है। ग्राउंड वॉटर कंट्रोल बोर्ड द्वारा निर्दिष्ट अनुमेय मात्रा के आधार पर, बनाये गए फ्रेमवर्क में एक मापदंड शामिल है जो भू-गर्भ जल स्रोतों से पानी की निष्कर्षण मात्रा को सीमित रखता है।

इसके अलावा, शोधकर्ता एक सॉफ्टवेयर प्लेटफ़ॉर्म विकसित कर रहे हैं जो योजनाकारों को शहर की आवश्यकताओं के अनुसार रूपरेखा को परिवर्तित करने में मदद करेगा। बेंगलुरु में, शोधकर्ताओं की टीम "लोटस” सेंसर्स लगाने की योजना बना रही है जो पीएच स्तर और क्लोरीन, आर्सेनिक और फ्लोराइड के स्तर जैसे पानी की गुणवत्ता के मापदंडों की माप कर सकते हैं। इकोल पॉलिटेक्निक पेरिस, "हॉरिजोन 2020" के अंतर्गत चल रहे "यूरोपीय संघ-भारत" जल सहयोग कार्यक्रम के हिस्से के रूप में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी के सहयोग से पानी के टैंकरों के लिए लोटस सेंसर्स प्रदान करेगा।

आईआईटी गुवाहाटी से इस अध्ययन के एक शोधकर्ता डॉ सेंथिलमुरुगन कहते हैं कि, "सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल पानी उपचार संयंत्र और टैंकरो से सेंसरों में दर्ज क्लोरीन कीटाणुशोधन इकाइयों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए किया जाएगा।" इससे हमें निर्धारित मानक के अनुसार पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

यह सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन आपूर्तिकर्ताओं और ग्राहकों दोनों के लिए उपलब्ध होगा। प्राध्यापक गुड़ी कहते हैं कि, “यह उपभोक्ताओं के लिए प्रणाली के संचालन को पारदर्शी बनाएगा। उदाहरण के लिए, वे टैंकर वितरण आदेश की स्थिति जानने और पानी की गुणवत्ता के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सक्षम होंगे ”। “हमारे उद्योग भागीदारों, यूरेका फोर्ब्स और जस्ट पानी के सहयोग से, मई २०२१ तक बेंगलुरु में एकीकृत सॉफ्टवेयर समाधान के प्रदर्शन की योजना है”। डॉ  सेंथिलमुरुगन कहते हुए अपनी बात ख़तम करते हैं।