आईआईटी मुंबई का सूक्ष्म-द्रव उपकरण मानव कोशिकाओं की कठोरता को तीव्रता से मापता है, एवं रोग की स्थिति तथा कोशिकीय कठोरता के मध्य संबंध स्थापित करने में सहायक हो सकता है।

ठोस पदार्थों में त्रुटियों को समाविष्ट करके संगणन की गति बढ़ाई जा सकती है

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Mumbai
14 सितंबर 2020
ठोस पदार्थों में त्रुटियों को समाविष्ट  करके संगणन की गति बढ़ाई जा सकती है

 

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों (जैसे अर्धचालक (सेमिकंडक्टर) यंत्र जो आमतौर पर सिलिकॉन से बने होते हैं) में उपयोग किए जाने वाले ज़्यादातर ठोस पदार्थों में क्रिस्टल को विकसित करते समय उसकी क्रिस्टल संरचना में त्रुटि उत्पन्न हो जाती है। वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक इन त्रुटियों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है। यहाँ तक कि जान-बूझकर इन त्रुटियों को समाविष्ट कर पदार्थों में दिलचस्प गुणों को प्राप्त किया है। उदाहरण के लिए, अर्धचालकों में एक अलग तत्व के कुछ परमाणुओं को जोड़कर उनके वैद्युतीय गुणों में सुधार किया जाता है।

हाल ही के एक अध्ययन में शोधकर्ताओं की एक टीम जिसका नेतृत्व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई (आईआईटी बॉम्बे) के डॉ. गोपाल दीक्षित और मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रक्चर एंड डायनॉमिक्स ऑफ मैटर्स, हैम्बर्ग, जर्मनी के डॉ. एंजेल रुबियो कर रहे हैं, ने विश्लेषण किया कि कैसे षट्कोण वाले बोरॉन नाइट्राइड की त्रुटियाँ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की क्षमता को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं। यह अध्ययन एनपीजे कंप्यूटेशनल मटेरियल  नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। 

क्रिस्टल संरचना में परमाणुओं की नियमित व्यवस्था अलग-अलग तरीकों से बाधित होने पर ठोस पदार्थों में त्रुटियाँ उत्पन्न होती हैं। उदाहरण के लिए, संरचना से एक परमाणु को हटाना या किसी अन्य तत्व के परमाणु से बदलना एक क्रिस्टल त्रुटि मानी जा सकती है। भौतिक विज्ञानी क्रिस्टल की त्रुटियों पर प्रकाश के प्रभाव का अध्ययन कंप्यूटर पर अनुरूपण करके करते हैं। लेकिन अब तक इस तरह के अध्ययनों की कुछ सीमाएँ थी।

पिछले अध्ययनों में केवल एक आयाम में, यानी परमाणुओं की श्रृंखला के साथ, त्रुटियों को देखा गया था, लेकिन वास्तविक पदार्थों को एक आयाम में वर्णित नहीं किया जा सकता है। जबकि दूसरी तरफ, सांख्यिकी विधियों का इस्तेमाल करके वास्तविक पदार्थों में उपस्थित जटिल त्रुटियों से निपटा जा सकता है लेकिन इसके लिए बहुत ज़्यादा गणना बल की ज़रूरत होती है जिससे यह अव्यवहार्य बन जाता है। “लेकिन हम अपने अनुरूपणों (simulations) में एक व्यावहारिक और वास्तविक संतुलन बनाने में सक्षम हो गए  हैं ,” डॉ. दीक्षित कहते हैं।

शोधकर्ताओं ने दो-आयामी षट्कोण क्रिस्टल संरचना वाले बोरॉन नाइट्राइड के संख्यात्मक मॉडल का अध्ययन किया। उन्होंने पदार्थ के मूलभूत गुणधर्म पर ध्यान केंद्रित किया, जिसे स्पिन कहा जाता है, जो दो प्रकारों में होता है – “ऊपर” और “नीचे”। मूल षट्कोण बोरॉन नाइट्राइड में शून्य कुल स्पिन होता है क्योंकि इसके बोरॉन और नाइट्रोजन परमाणुओं में समान मात्रा में विपरीत स्पिन होता है जो एक-दूसरे को संतुलित करते हैं। लेकिन, जब शोधकर्ताओं ने षट्कोण बोरॉन नाइट्राइड मॉडल में, या तो बोरॉन परमाणु या नाइट्रोजन परमाणु को हटाकर दो प्रकार की त्रुटियों की रचना की, तो पाया कि पदार्थ में कुल स्पिन ऊपर या नीचे की तरफ था।

तब शोधकर्ताओं ने त्रुटि वाले पदार्थ पर लेज़र प्रकाश की तीव्र लेकिन अल्प कंपन रोशनी के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए संगणक अनुरूपण किया। ठोस पदार्थों में इलेक्ट्रॉन विभिन्न ऊर्जा स्तरों पर फैल जाते हैं जिन्हें सम्मिलित रूप से ऊर्जा बैंड कहा जाता है। उन्होंने पाया कि त्रुटिपूर्ण ठोस के इलेक्ट्रॉन लेज़र प्रकाश की कई गुना आवृत्ति पर दोलन करते हैं। मिलने वाला ‘वर्णक्रम’ या उत्सर्जित प्रकाश की तीव्रता के फैलाव को इसकी आवृत्ति के खिलाफ आयोजित किया गया तो पाया कि यह मूल ठोस और इसके त्रुटिपूर्ण संस्करणों के लिए भिन्न था। इसके अलावा, मिलने वाला वर्णक्रम भी दो प्रकार की त्रुटियों के लिए भिन्न था क्योंकि उसमें विपरीत प्रकार के कुल स्पिन थे।

आगे की जाँच में टीम ने पाया कि लेज़र के प्रभाव में त्रुटिपूर्ण ठोस कैसे व्यवहार करते हैं इसमें एक भूमिका इलेक्ट्रॉनों के बीच परस्पर क्रिया की भी होती है। संयुक्त प्रभाव के परिणामस्वरूप लेज़र की आवृत्ति से कुछ अलग आवृत्तियों में प्रकाश उत्पादन में ज़बरदस्त वृद्धि हुई। जब लेज़र आवृत्ति की आवृत्तियाँ तीन गुनी हो, तब मिलने वाली तीव्रता दो त्रुटियों वाले पदार्थ के लिए समान है। हालाँकि जब निकलने वाले प्रकाश की तीव्रता तीन गुना से ज़्यादा होती है तो निकलने वाली तीव्रता दो पृथक त्रुटियों के लिए भिन्न होती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह भी अपेक्षित है क्योंकि दो प्रकार की त्रुटियों के लिए इलेक्ट्रॉनों के ऊर्जा बैंड अलग-अलग हैं।

शोधकर्ताओं ने बोरॉन या नाइट्रोजन परमाणु को हटाने की बजाय, उन्हें कार्बन परमाणु के साथ बदलकर होने वाले प्रभाव का भी अध्ययन किया, ठीक वैसे ही जैसे डोपिंग नामक एक प्रक्रिया होती है जो आमतौर पर अर्धचालक उपकरणों के लिए इस्तेमाल की जाती है। बोरॉन परमाणु को कार्बन परमाणु के साथ बदलना ठीक उसी तरह था जैसा नाइट्रोजन परमाणु के प्रभाव को पूरी तरह से हटाना। उन्होंने पाया कि नाइट्रोजन परमाणु को कार्बन परमाणु के साथ बदलना भी ठीक उसी तरह था जैसा बोरॉन परमाणु को पूरी तरह से हटाना।

माइक्रोप्रोसेसर चिप्स जैसे उपकरणों की गति स्वाभाविक रूप से इलेक्ट्रॉनिक संकेतों के स्थानांतरण की गति से सीमित होती है, जो इलेक्ट्रॉनों के माध्यम से होती है। डॉ. दीक्षित कहते हैंं,“ पहली बार हमने दिखाया है कि इलेक्ट्रॉनों की स्पिन का इस्तेमाल उनके दोलनों की आवृत्तियों पर नियंत्रण करने के लिए किया जा सकता है जो वर्तमान आवृत्तियों की तुलना में बहुत अधिक है। सावधानीपूर्वक त्रुटि समाविष्ट किये गए पदार्थों पर लेज़र कंपन करने से प्रोसेसर की क्लॉकस्पीड को कम-से-कम एक हज़ार गुना ज़्यादा बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है, ”

यह देखते हुए कि तकनीक कितनी जल्दी अपने आपको मूलभूत विज्ञान के अनुरूप बना रही है, शोधकर्ताओं को लगता है कि उनके विचार का उपयोग अगले दशक में नए और तेज़ गति के प्रोसेसर बनाने के लिए किया जा सकता है। उनके शोध से और भी जटिल त्रुटियों और अधिक वास्तविक ठोस पदार्थों के प्रभाव की जाँच के नए रास्ते खुलेंगे।