भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने चेन्नई में बाढ़ का पूर्वानुमान लगाने के लिए एक प्रणाली डिज़ाइन की है।
२०१५ के अंतिम दिनों के दौरान चेन्नई गंभीर बाढ़ से त्रस्त रहा, जिसके परिणामस्वरूप लगभग ५०० लोग मारे गए और लगभग ५०,००० करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ। बाढ़ ने शहर को अस्त-व्यस्त कर दिया, और इसे लापरवाह जल प्रबंधन और तेजी से हो रहे शहरीकरण के परिणामस्वरूप एक 'मानव निर्मित आपदा' करार दिया गया। साल के उत्तर-पूर्व मानसून ने दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों को तबाह कर दिया, जिससे पता चलता है कि हमारे शहर इस तरह के विनाश का सामना करने के लिए कितने अप्रस्तुत हैं।
"इसके फलस्वरूप प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय ने शहरी बाढ़ के पूर्वानुमान की एक समयोचितऔर एकीकृत, प्रणाली विकसित करने की बड़ी पहल की, जो इससे पहले हमारे देश में गैर-मौजूद थी। उन्होंने कई सरकारी एजेंसियों से विशेषज्ञों और शिक्षाविदों की बैठक बुलाई," प्राध्यापक सुबिमल घोष याद करते हैं। ये वर्तमान में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आई.आई.टी. बॉम्बे) के स्थापत्य अभियांत्रिकी विभाग में प्राध्यापक हैं।
इसके तुरंत बाद, देश भर के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों की एक टीम के साथ ये भारत में पहली बार बाढ़ की भविष्यवाणी करने के लिए विशेषज्ञ प्रणाली विकसित करने में जुट गए।
विशेषज्ञ प्रणाली एक कंप्यूटर-आधारित कार्यक्रम होता है जो डेटासेट के आधार पर निर्णय और भविष्यवाणियाँ करता है। शोधकर्ताओं ने डेढ़ साल के रिकॉर्ड समय में इस बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली को विकसित किया।
"यह कई विषयों को जोड़कर किया गया काम था, और ८ संस्थानों के ३० वैज्ञानिकों की एक टीम ने इसकी जिम्मेदारी ली। मैंने इस परियोजना का नेतृत्व किया, और यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा सीखने का अनुभव रहा है," प्राध्यापक घोष ने कहा।
करंट साइंस में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने स्वचालित बाढ़ पूर्वानुमान विशेषज्ञ प्रणाली के विकास पर प्रकाश डाला। यह अध्ययन भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय द्वारा वित्तपोषित किया गया था और इसमें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एम.ओ.ई.एस.) के पूर्व सचिव डॉ. शैलेश नायक की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति थी। शोध दल में भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास, अन्ना विश्वविद्यालय, भारत मौसम विभाग (आई.एम.डी.), राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केन्द्र (एन.सी.एम.आर.डब्लू.एफ.), नोएडा, राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (एन.सी.सी.आर.), चेन्नई, भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आई.एन.सी.ओ.आई.एस.), हैदराबाद और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), हैदराबाद के वैज्ञानिक शामिल थे।
शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई विशेषज्ञ प्रणाली के छह अंग हैं - कुछ समानांतर में चलते हैं और बाकी एक-दूसरे पर निर्भर हैं। इसमें कम्प्यूटेशनल मॉडल बने हैं जो क्षेत्रीय मौसम और तूफान अथवा ज्वार के उमड़ने का अनुमान लगा सकते हैं। इसमें सेंसरों के डेटा भी हैं जो नदियों में जल स्तर को मापते हैं। जलाशयों और नदी के प्रवाह को ध्यान में रखने वाले हाइड्रोलॉजिकल मॉडल भी इस सिस्टम में शामिल हैं, साथ ही बाढ़ के मॉडल भी, जो ये गणना करते हैं कि कौन से क्षेत्रों में बाढ़ आएगी। ये तमाम सिस्टम पूर्वानुमानित बाढ़ के मानचित्र प्रकट करते हैं। ये सभी अंग स्वचालित हैं और इनमें किसी भी स्तर पर मानवी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
विशेषज्ञ प्रणाली के डेटा में वर्षा और मौसम के मापदंड; चेन्नई में अडयार, कोउम और कोशस्तलैयार नदियों के मुहाने से प्राप्त ज्वार और समुद्र की गहराई के आंकड़े; इन नदियों का जल स्तर; चेम्बरमबक्कम और पूंडी जलाशयों का स्तर; वर्षा पर ऐतिहासिक डेटा, और वर्तमान भूमि उपयोग, स्थलाकृति और जल निकासी सम्बंधित डेटा शामिल हैं। इस प्रणाली से मिलने वाला आउटपुट हर वार्ड पर तीन-आयामी मानचित्रों के साथ ६-७२ घंटे का एक पूर्वानुमान देता है, जो भविष्यगत बाढ़ की गहराई और उसके क्षेत्र को दर्शाता है।
विशेषज्ञ प्रणाली में इन मापदंडों पर आधारित जटिल गणना एक क्षण में होती है।
"आम तौर पर एन.सी.एम.आर.डब्लू.एफ. शाम ३ बजे पूर्वानुमान जारी करता है, और अगले दो घंटों के भीतर हमारी विशेषज्ञ प्रणाली अगले तीन दिनों के लिए अपना पहला पूर्वानुमान जारी करती है," प्राध्यापक घोष ने कहा। "अगर भारी बाढ़ का पूर्वानुमान है, तो समयोचित कंप्यूटिंग संचालन शुरू हो जाते हैं, और पूर्वानुमान हर ६ घंटे में अपडेट होता है," वे बताते हैं। इस प्रकार प्राप्त विवरण बचाव और सतर्क करने के काम में मदद कर सकते हैं।
पूर्वानुमान की प्रक्रिया को तेज करने के लिए विशेषज्ञ प्रणाली में एक डेटाबैंक भी है। इसमें अतिशय वर्षा से होने वाले जल प्रवाह और ज्वार की अलग-अलग गंभीरता, और पिछली वर्षा से निकले ७९६ परिदृश्य हैं।
"बड़े शहरों के लिए बाढ़ का सिमुलेशन करने में बहुत लंबा समय लगता है। इसलिए, हमने डेटाबैंक में अतिशय वर्षा से संभावित मामलों को शामिल किया है," प्राध्यापक घोष ने कहा। जैसे ही इनपुट पूर्वानुमान आते हैं, एक सर्च एल्गोरिथ्म डेटाबैंक से निकटतम परिदृश्य से मेल करता है और पहला पूर्वानुमान जारी करता है।
शोधकर्ताओं ने दिसंबर २०१५ की बाढ़ के आंकड़ों के साथ अपनी प्रणाली की पुष्टि की है। उन्होंने पाया कि बाढ़ की गहराई के साथ वास्तविक बाढ़ वाले क्षेत्रों की तुलना में उनका नक्शा एक मीटर के दायरे में ८०% सटीक था।
"हमने चेन्नई में सर्दियों के मानसून के दौरान इसके काम की प्रयोगात्मक रूप से पुष्टि की और पाया कि यह अच्छी तरह से काम कर रहा था," प्राध्यापक घोष कहते हैं।
वर्तमान में इस पूरी विशेषज्ञ प्रणाली को एन.सी.सी.आर., चेन्नई में स्थानांतरित किया गया है, जो इसकी देखभाल कर रहा है। यह फिलहाल प्रायोगिक आधार पर काम कर रहा है और एक साल बाद पूरी तरह से चालू हो जाएगा। शोधकर्ताओं का मानना है कि उनका सिस्टम दूसरे शहरों में भी बाढ़ की भविष्यवाणी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
"इसकी संरचना काफी मजबूत है, और मुंबई में एक मिलती-जुलती पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करने के लिए एम.ओ.ई.एस. इसका उपयोग कर रहा है। हमें खुशी है कि एम.ओ.ई.एस. हमारे दृष्टिकोण को उपयोगी मानता है और अन्य शहरों के लिए लागू कर रहा है," प्राध्यापक घोष अपनी बात ख़त्म करते हुए कहते हैं।