शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

रस के अलावा अनार में और भी बहुत कुछ है

Read time: 1 min
मुंबई
29 अगस्त 2018
छायाचित्र  : समय भावसार, द्वारा अनस्प्लैश

हम सभी अनार के स्वास्थ्यवर्धक, स्वादिष्ट और ताज़े रस का आनंद लेते हैं। हममें से कई अनार के दाने खाने की बजाय उसका रस पीना पसंद करते हैं क्योंकि उसका बीज हमें बेस्वाद लगता है। परन्तु क्या आप जानते हैं कि ये बीज एक बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक तेल का स्रोत है? भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के प्रोफेसर अमित अरोड़ा और उनकी टीम ने एक अध्ययन में अनार के बीज से तेल निकालने के लिए एक ऐसा तरीका सुझाया है जिसमे एक तो लागत कम है और कोई  अपशिष्ट भी नहीं निकलता, इसके साथ ये तरीका  उच्च-गुणवत्ता के प्रोटीन और आहार योग्य फाइबर भी देता है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा अनार उत्पादक देश है जिसने केवल २०१६ में ही २.३ लाख टन अनार का उत्पादन किया । अनार के रस की बढ़ती खपत के साथ ही इसके अपशिष्ट पदार्थ - बीज, जो अनार के पूरे वज़न का लगभग १० प्रतिशत होता है- में भी अत्यधिक वृद्धि हुई है। एक तरफ जहाँ बीजों से निकाले गए तेल, अपने कैंसर-रोधी, ऑक्सीकरण-रोधी और मधुमेह-रोधी गुणों के कारण उच्च औषधीय मूल्य के होते हैं वहीं ये प्रोटीन और आहार योग्य फाइबर से भी समृद्ध होते हैं।

अनार के बीज में तेल और प्रोटीन की गुणवत्ता के कारण ये सन (फ्लैक्स) के  बीजों की जगह भी ले सकता है। ये गुणों में  चिया (chia) के  बीज के सामान हैं। प्रचलित चिया और सन के बीजों से तुलना के सन्दर्भ में प्रोफेसर अरोड़ा का कहना है कि “अनार के बीज पहले से प्रचलित चिया बीज और सन के बीज की जगह ले सकते हैं क्योंकि इनमें कई विशेष गुण विद्यमान हैं ”।

हालाँकि पहले भी अनार के बीज से तेल निकालने के प्रयास किए गए हैं, जिसमें आंशिक मात्रा में  ही तेल प्राप्त हो पाता है और एक बड़ा भाग अपशिष्ट के रूप में बेकार हो हो जाता है। आमतौर पर  उपयोग में लाई जाने वाली कोल्ड-प्रेस तकनीक - जहां बीज से तेल निचोड़ने के लिए हाइड्रोलिक दबाव का इस्तेमाल किया जाता है, से केवल  ४०-५० प्रतिशत तेल ही निकाला सकता है और ऊर्जा की खपत भी ज़्यादा होती है। एक प्रचलित निष्कर्षण प्रक्रिया में हेक्सेन जैसे कार्बनिक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें पर्यावरण प्रदूषण और स्वास्थ्य सम्बंधी खतरों को टालने के लिए  इन रसायनों के साज-संभाल और निपटान में बहुत ज़्यादा सावधानी बरतनी पड़ती है और इससे यह प्रक्रिया बहुत महंगी हो जाती है। कुछ अन्य विधियों में उच्च तापमान और मशीनी दबाव के कारण न केवल तेल की गुणवत्ता में कमी आती है बल्कि प्रोटीन भी कम हो जाता है, इससे तेल का पौष्टिक और आर्थिक मूल्य कम हो जाता है। तेल निष्कर्षण की  अन्य विधियाँ जिनमें अल्ट्रसाउंड और माइक्रोवेव का इस्तेमाल किया जाता है, ९५-९९ प्रतिशत तक तेल प्रदान करती हैं परन्तु ये जटिल एवं महंगी हैं।

इस अध्ययन में प्रोफेसर अमित अरोड़ा और उनकी टीम ने इन्हीं कमियों को नए दृष्टिकोण के साथ सुधारने की कोशिश की है। उन्होंने तेल-निकालने के लिए वन-पॉट निष्कर्षण विधि का इस्तेमाल किया है, जो न केवल पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि इससे उच्च पोषण युक्त तेल भी प्राप्त होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह विधि बहुत सरल है और इसका इस्तेमाल बीज की कम मात्रा के साथ भी किया जा सकता है।

इस विधि में अनार के सूखे बीज को पीसा जाता है और फिर इसमें सोडियम फॉस्फेट डालकर इसे १० मिनट के लिए ४५ डिग्री सेल्सियस ताप पर गर्म किया जाता है। इसके बाद इसमें प्रोटीएज़ नामक एक एंज़ाइम मिलाया जाता है यह एंज़ाइम बीज की बाहरी परत को हटाता है और तेल का स्राव शुरू हो जाता है। बीज-एंज़ाइम के मिश्रण को लगातार ४ से १६ घंटों तक हिलाया जाता है और फिर २० मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद शुद्ध तेल, प्रोटीन और फायबर की स्पष्ट परतें बनती हैं, इन परतों को अलग अलग निकला जा सकता है।

शोधकर्ताओं ने निष्कर्षण के कई परीक्षण प्रोटीएज़ की विभिन्न सांद्रता के साथ किए और पाया कि एक इष्टतम मात्रा बीज में मिलाने पर १४ घंटों के भीतर ही बीज से पूरी तरह से तेल, प्रोटीन और फायबर अलग हो जाते हैं। उन्होंने इस विधि से ९८  प्रतिशत तेल और ९३ प्रतिशत प्रोटीन प्राप्त किया, जो किसी भी अन्य विधि की तुलना में काफी ज़्यादा है।

शोधकर्ताओं को विश्वास है कि अनार के तेल पर किया गया यह अध्ययन चिकित्सा और सौंदर्य प्रसाधन उद्योग सहित कुछ अन्य रोचक उपयोगों और प्रयोगों में भी मददगार हो सकता है। चूंकि यह शोध एक छोटे पैमाने पर किया गया है तेल निष्कर्षण को औद्योगिक पैमाने पर करने के लिए और भी अध्ययन की आवश्यकता है। इस शोध की उपयोगिता के बारे में बात करते हुए प्रोफेसर अरोरा कहते हैं कि , “अभी तक अनार के बीज के तेल का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पाया गया है। चूँकि तेल को लंबे समय तक रखने पर यह खराब हो जाता है, इसके खाद्य नियमन के सन्दर्भ में शैल्फ-लाइफ और स्थिरता को समझने के लिए और अध्ययन की आवश्यकता है।”