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आईआईटी मुंबई के शोध दल ने जीता ब्लॉकचेन शोध का अल्गोरंड अनुदान

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मुंबई
11 अक्टूबर 2022
आईआईटी मुंबई के शोध दल ने जीता ब्लॉकचेन शोध का अल्गोरंड अनुदान

वर्तमान समाचारों में 'क्रिप्टोकरेंसी' और 'ब्लॉकचेन ' जैसे शब्द भरे पड़े हैं। “ये क्या है” इसे जानने की क्या आपको कभी उत्सुकता हुई? ब्लॉकचेन एक वितरित डिजिटल डेटाबेस है जिसे कंप्यूटर नेटवर्क का उपयोग करके साझा किया जाता है। यह लेनदेन संव्यवहार को अंकित करने के साथ आपूर्ति-श्रृंखला (सप्लाई चेन) में क्रिप्टोकरेंसी, भूमि अभिलेख एवं अन्य सामग्री जैसी परिसंपत्तियों के स्वामित्व पर दृष्टि रखता है।

संगणक विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग के प्राध्यापक मनोज प्रभाकरन के नेतृत्व में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) का एक शोध दल, अल्गोरंड फाउंडेशन द्वारा चयनित दस शोध-दलों में से एक है। अल्गोरंड फाउंडेशन अल्गोरंड उत्कृष्टता केंद्र (सेंटर ऑफ एक्सिलेंस, एसीई) कार्यक्रम के अंतर्गत कार्य करता है। संगणक विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग के ही प्रा. विनय रिबेरो एवं प्रा. उमेश बेल्लुर इस दल के सह नेतृत्वकर्ता हैं। एसीई कार्यक्रम का लक्ष्य आगामी पांच वर्षों में दस दलों के मध्य 5 करोड़ अमरीकी डालर (लगभग 400 करोड़ भारतीय रुपये) का अनुदान प्रदान करने का है। अल्गोरंड कार्यक्रम को 46 देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले 550 से अधिक प्रतिभागियों के 77 प्रस्ताव इस हेतु प्राप्त हुए। विजेताओं का चयन विविध विषयों के 27 विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय चयन दल द्वारा किया गया।

क्रिप्टो करेंसी, जिसके मूल में ब्लॉकचेन तकनीक है, विश्व भर में पाँव पसार रही है। बिटकॉइन जैसी कुछ व्यापक रूप से जानी पहचानी क्रिप्टोकरेंसी को मात्र एक ही लेनदेन का लेखा-जोखा रखने के लिए शक्ति - नेटवर्क से जुड़े कई संगणकों जैसे भारी संसाधन की आवश्यकता होती है। अधिक विद्युत उपभोग के कारण, कार्बन उत्सर्जन अधिक होता है, जो इसके पर्यावरणीय प्रभाव पर प्रश्न खडा करता है।

अल्गोरंड एक ऐसी कंपनी है जो ब्लॉकचेन तकनीक को अभिकल्पित (डिज़ाइन) करती है और इसका उद्देश्य विद्युत् ऊर्जा के अल्प उपभोग द्वारा कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम करते हुए पर्यावरण पर होने वाले नकारात्मक प्रभाव पर अंकुश लगाना है। अल्गोरंड फाउंडेशन विभिन्न क्षेत्रों में अल्गोरंड ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करके कार्बन-उत्सर्जन रोधी पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने का प्रयास करता है। "कार्बन-प्रतिकूल होने के लिए अल्गोरंड ब्लॉकचेन तकनीक एक ऐसे अभिकल्प एवं नवाचार का उपयोग करती है जिसके लिए बिटकॉइन तथा एथेरियम जैसी अन्य क्रिप्टोकरेंसी के कार्यान्वयन की अपेक्षा कम संगणन शक्ति की आवश्यकता होती है" प्रा. रिबेरो बताते हैं। अल्गोरंड अपने प्रत्येक लेनदेन शुल्क का एक भाग कार्बन प्रति-संतुलन के उद्देश्य से समर्पित करने को प्रतिबद्ध है। हरित ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी की दिशा में अनुसंधान के अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु , कंपनी विश्व भर में अल्गोरंड उत्कर्षता केंद्र (सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, एसीई) स्थापित कर रही है।

ब्लॉकचेन संपत्ति-स्वामित्व के हस्तांतरण के लेन देन को ब्लॉक पर अंकित करने की सुविधा प्रदान करता है, यह ऐसा ही है जैसे कि बैंक के लेनदेन का पृष्ठों पर अंकन। प्रत्येक ब्लॉक पूर्ववर्ती ब्लॉक के मानचित्रण (मैपिंग) को संग्रहित करता है, जिसे हैश मान कहते हैं एवं जो पिछले ब्लॉक के मूल तत्वों को एक अद्वितीय आईडी के रूप में संजोये रखता है। इस प्रक्रिया को हैश पॉइंटर्स के उपयोग द्वारा ब्लॉकों की क्रिप्टोग्राफिक चेनिंग करना कहते हैं। ब्लॉकचेन में अंकित संपत्तियों के स्वामित्व की जानकारी को स्वच्छंदता से संशोधित नहीं किया जा सकता है, इस प्रकार ब्लॉकचेन, सूचना की प्रामणिकता को अक्षुण्ण रखता है। हैश पॉइंटर्स का उपयोग लेन-देन के विवरण का हस्तक्षेप रहित होना सुनिश्चित करता है। बहुधा, लेज़र कहलाने वाले इस डाटाबेस का अनुरक्षण (मेंटिनेंस) एक केंद्रीय वितरक (सर्वर) द्वारा नहीं किया जाता है, अपितु प्रतिभागियों का एक समुदाय इसे बनाए रखता है। इन प्रतिभागियों को उनकी सेवाओं के लिए क्रिप्टोकरेंसी में भुगतान मिलता है। ब्लॉकचेन को मुख्यत: क्रिप्टोकरेंसी के लेन देन के रिकार्ड के सुरक्षित अनुरक्षण के लिए जाना जाता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई का यह दल, बहु-संस्थान उद्यम का एक भाग है, जो पर्ड्यू विश्वविद्यालय के नेतृत्व वाली मेगा-ऐस (MEGA-ACE) नामक एक 3 वर्ष की परियोजना है। MEGA-ACE एक बहु-संस्थान अंतर्विषयक सहभागिता नेटवर्क है जिसका नेतृत्व एवं समन्वय पर्ड्यू ब्लॉकचेन लैब द्वारा किया जाता है। इसमें विश्व भर के शीर्ष विश्वविद्यालयों के भागीदार सम्मिलित हैं। MEGA-ACE दल में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई एवं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के साथ साथ उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका तथा एशिया के विश्वविद्यालय सम्मिलित हैं।

"ब्लॉकचेन पर गहन दृष्टि डालने के कई कारण हैं," प्रा. प्रभाकरन बताते हैं। "कुछ एक के लिए, ब्लॉकचेन अभी भी एक अपरिपक्व तकनीक है तथा कई अल्गोरिद्म एवं प्रणालीगत अभिकल्प जैसे विकल्प अभी अनौपचारिक हैं। लॉटरी संचालन के लिए बिटकॉइन के संगणकीय तथा पारिस्थितिक रूप से महंगे प्रोटोकॉल को दूर करने के लिए क्रिप्टोग्राफिक तकनीकों के उपयोग में अग्रणी होना ही अल्गोरंड की प्रसिद्धि का कारण है। किंतु यह कहानी का अंत नहीं है। आईआईटी मुंबई में हमारा शोधकार्य कई अन्य आयाम भी देखता है जिससे ब्लॉकचेन जैसी प्रणाली को सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण से अधिक दृढ़ एवं दक्ष बनाया जा सके। इस प्रकार की इन प्रणालियों में पारदर्शिता एवं गोपनीयता के मध्य संतुलन बनाये रखने हेतु उन्नत क्रिप्टोग्राफिक तकनीकों जैसे सुरक्षित बहु-पक्षीय संगणन प्रणाली (मल्टी पार्टी कम्प्यूटेशन) का उपयोग करते हुए हल करने में भी हमारी रुचि है। इसके अतिरिक्त मेगा-एसीई में, शोधकर्ता ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी के उपयुक्त एवं नए वास्तविक जीवन अनुप्रयोगों तथा जटिल गेम-सैद्धांतिक ऐसे प्रश्नों पर भी दृष्टिपात करेंगे जो क्रिप्टोकरेंसी के प्रति वास्तविक जीवन के प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करते समय उत्पन्न होते हैं।

विशाल मेगा-एसीई दल का मूल, सैद्धांतिक क्रिप्टोग्राफी समुदाय में हैं एवं प्राध्यापक मनोज प्रभाकरन इसका एक भाग रहे हैं। वह वितरित डेटा कोष (डिस्ट्रिब्यूटेड डेटा रिपॉजिटरी) के क्षेत्र में शोध कर रहे हैं। प्रा. रिबेरो एवं प्रा. बेल्लूर प्रति सेकंड लेनदेन की संख्या बढ़ाने तथा ब्लॉकचेन में लेनदेन के पुष्टिकरण के समय को कम करने के अनुसंधान क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। "ब्लॉकचेन कई तकनीकों को एक स्थान पर समाहित करने वाला एक केंद्र है एवं आईआईटी मुंबई में, हमारे पास सिद्धांतकारों एवं अभ्यासकर्ताओं का एक अच्छा संतुलन है जो इस विषय पर एक साथ काम कर सकते हैं," प्रोफेसर बेलूर कहते हैं।

मेगा-एसीई परियोजना के लिए 80 लाख अमरीकी डालर (लगभग 64 करोड़ भारतीय रुपये) के कुल अनुदान में से आईआईटी मुंबई को लगभग 3.50 लाख अमरीकी डालर (लगभग 2.8 करोड़ भारतीय रुपये) प्राप्त होंगे। मेगा-एसीई दल का उद्देश्य विश्व भर के छात्रों को बहुभाषी सामग्री के साथ शिक्षित करना है। आईआईटी मुंबई एवं अन्य सहयोगी संस्थानों के लिए, परियोजना का उद्देश्य कुछ सहभागिता कार्यक्रम जैसे कार्यशालायें, विद्यालय, हैकथॉन एवं ब्लॉकचेन दिवस आदि को आयोजित करना भी है जो ब्लॉकचेन अनुसंधान को प्रोत्साहित करते हैं। मेगा-एसीई दल अल्गोरंड पारिस्थितिकी तंत्र में समाधान खोजने का इच्छुक है, जो आईआईटी मुंबई जैसे भागीदार संस्थानों से सम्बद्ध देशों में स्थित स्थानीय समुदायों में अवसंरचनात्मक समस्याओं का समाधान करती है।

"ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी तीव्र गति से विकसित हो रही है एवं उनके वर्तमान अनुप्रयोग प्रयोगात्मक प्रकृति के हैं। किन्तु भारतीय उद्यमों तथा सरकार की इस ओर अत्यधिक रुचि है। आगे चलकर जैसे-जैसे ये प्रौद्योगिकी और सुदृढ़ होगी, एवं जैसे-जैसे अधिक कुशल एवं पारदर्शी डिजिटल लेनदेन की इसकी संभावना को और भली भांति समझा जाएगा, इन तकनीकों के और अधिक अपनाये जाने की संभावना प्रबल होगी,” प्रा. रिबेरो निष्कर्ष निकालते हैं ।