डॉ विशाल, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के पृथ्वी विज्ञान विभाग में सहायक प्राध्यापक पद पर नियुक्त हैं। हाल ही में इन्हें अपरंपरागत हाइड्रोकार्बन पर अपने काम के लिए प्रतिष्ठित नासी युवा वैज्ञानिक पुरस्कार-2018 से सम्मानित किया गया । डॉ विशाल देश भर के २० युवा शोधकर्ताओं में से एक हैं , जिन्हें इलेक्ट्रॉनिक्स, अभियांत्रिकी, रासायनिक विज्ञान, भौतिक विज्ञान, और वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में असाधारण शोध के लिए वार्षिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस इंडिया द्वारा स्थापित नासी युवा वैज्ञानिक पुरस्कार, भारत के युवा वैज्ञानिकों में रचनात्मकता और उत्कृष्टता को मान्यता देता है। वार्षिक पुरस्कार में उद्धरण, पदक, और २५००० रुपये का नकद पुरस्कार सम्मिलित है। वर्ष २००६ से भारत के १४३ शोधकर्ताओं को इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
यह सम्मान प्राप्त करके डॉ विशाल बहुत प्रसन्न हैं एवं कहते हैं, “नासी भारत में सबसे पुरानी वैज्ञानिक अकादमी है, और कई अन्य युवा वैज्ञानिक पुरस्कारों की अपेक्षा, यह पुरस्कार अत्यधिक प्रतिस्पर्धी है क्योंकि पुरस्कार विजेता विभिन्न विषयों से आते हैं। मैं यह पुरस्कार प्राप्त करके बहुत अच्छा महसूस कर रहा करता हूँ”।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित डॉ विशाल का वर्तमान शोध भारत में अपरंपरागत हाइड्रोकार्बन जलाशयों पर केंद्रित है। अपरंपरागत हाइड्रोकार्बन तेल और गैस के वे स्रोत हैं, जिन्हें हाइड्रोकार्बन के पारंपरिक निष्कर्षण से हट कर अलग तकनीकों का उपयोग करके निकालना पड़ता है। इन हाइड्रोकार्बन के उदाहरणों में शेल गैस (शेल चट्टानों के मध्य फँसी हुई प्राकृतिक गैस), शेल तेल, गैस हाइड्रेट्स (ठोस बर्फनुमा पानी में निहित गैस के अणु) और कोयले की तह पर उपलब्ध मीथेन शामिल हैं । उनका कार्य भारत में विद्यमान शेल गैस की क्षमता का सटीक अनुमान लगाना है। विशाल एवं उनके सहायक शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में ही हाइड्रोकार्बन जलाशयों की सी स्थिति का अनुकरण किया है। शेल के नमूनों को विभिन्न तापमान और दबाव की स्थितियों के अधीन रखते हुए उसकी उनकी गैस बनाने की क्षमता का आकलन किया। इस शोध के निष्कर्षों के अनुसार डॉ विशाल, मौजूदा अनुमान की तुलना में २५-३०% अधिक गैस मौजूद होने का दावा करते हैं।
डॉ विशाल, जिन्हें वर्ष २०१७ में आईएनएसए युवा वैज्ञानिक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था, कहते हैं, “भारत में वर्तमान शेल गैस अनुमान फ़ील्ड स्टडीज या प्रयोगों द्वारा समर्थित नहीं हैं और ना ही उनके पास कोई प्रामाणित आँकड़ें हैं। अतः भारत में इस दिशा में गहन अध्ययन के माध्यम से उचित अनुमान लगाने की आवश्यकता है, जिसमें हम सक्षम हैं”। विशेष तकनीकों और कुशलता के समन्वय से हम इन अपरंपरागत तेल एवं गैस के स्त्रोतों को अधिक समझ सकते हैं।
"शेल गैस और गैस हाइड्रेट्स जैसे अपरंपरागत हाइड्रोकार्बन जलाशयों का पता लगाने के लिए भारत सरकार के हालिया प्रयासों ने मेरे कार्यक्षेत्र और रुचियों के साथ मेल खाया है। एक वैज्ञानिक के रूप में, भारत सरकार के इस सहयोग ने मेरे लिए विभिन्न संभावित तेल एवं गैस स्त्रोतों से नमूने एकत्रित करने और भविष्य में ऊर्जा स्रोत के रूप में प्राकृतिक गैस की संभावना का अनुमान लगाने की नींव रखी है।” डॉ विशाल का मानना है कि यदि इन स्त्रोतों के एक छोटे से भाग का भी प्रयोग किया जाए तो वह कई सदियों तक देश के काम आ सकता है। इस अध्ययन के माध्यम से, अगले पाँच वर्षों में भारतीय तेल आयात में भारी कमी आ सकती है एवं वर्ष २०२२ तक भारत में प्रयोग किए जाने वाले ऊर्जा स्त्रोतों में प्राकृतिक गैस के योगदान में १५ प्रतिशत तक की बढ़त अनुमानित है।