शोधकर्ताओं ने चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, ताइवान और भारत में धूम्रपान प्रवृत्तियों का अध्ययन किया।
दुनिया में अनुमानित ७० लाख लोग हर साल धूम्रपान के कारण अपनी जान गँवा देते हैं, और यह संख्या तेजी से बढ़ती ही जा रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि २०३० तक यह संख्या ८३ लाख तक पहुँच सकती है और अगर यह प्रवृत्ति इसी तरह जारी रहती है, तो सदी के अंत तक, दुनिया में क़रीब एक अरब लोग धूम्रपान के कारण अपना जीवन गँवा देंगे । इनमें से ज्यादातर मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होने की सम्भावना है जहाँ तेजी से सामाजिक और आर्थिक बदलाव हो रहा है। एशिया में, तंबाकू की महामारी बढ़ती जा रही है, और दुनिया के धूम्रपान करने वाले आधे पुरुष चीन, भारत, और इंडोनेशिया में रहते हैं। एशिया दुनिया में तम्बाकू का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता भी है।आखिर तम्बाकू की महामारी एशिया में कितनी गंभीर है ?
एक नए अध्ययन में, वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी, यूएसए के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक अंतर्राष्ट्रीय समूह ने चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, ताइवान, और भारत में तंबाकू के उपयोग की प्रवृत्तियों का अध्ययन किया है। यह अध्ययन, जिसमें एक दस लाख प्रतिभागी शामिल थे, इन देशों में २० समूह अध्ययनों का एक मेटा-विश्लेषण है, जिसने ३५ वर्ष से अधिक उम्र के प्रतिनिधि व्यक्तियों से तंबाकू सेवन की आदतों पर तथ्य एकत्र किये गए थे। ‘जेएएमए नेटवर्क ओपन’ में प्रकाशित परिणाम, क्षेत्र-विशिष्ट तंबाकू धूम्रपान के पैटर्न और परिणामी मृत्यु दर को प्रकट करते हैं।
शोधकर्ताओं ने २० समूह अध्ययनों के आँकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें प्रतिभागियों के सामाजिक जनसांख्यिकीय, जीवन शैली, और चिकित्सा से संबंधित जानकारी शामिल थी। भारत के समूह अध्ययन में १९९१-१९९७ के बीच एकत्र किए गए १५०,००० मुंबई निवासियों का विवरण था। धूम्रपान की आदतों के विवरण में यह भी शामिल था कि क्या प्रतिभागी वर्तमान में धूम्रपान करते हैं या उन्होंने धूम्रपान छोड़ दिया था, उन्होंने किस आयु में धूम्रपान करना शुरू किया था, एवं प्रतिदिन वह कितनी सिगरेट पी लेते थे। बाद में इन आँकड़ों का प्रतिभागियों के जन्म-वर्ष, लिंग और देश / क्षेत्र के अनुसार विश्लेषण किया गया।
अध्ययन में पाया गया कि एशिया में औसतन ६५.४% पुरुष और ७.८% महिलाएँ तंबाकू का सेवन करती हैं। २२.८ वर्ष औसत आयु है जिस पर उन्होंने धूम्रपान शुरू किया था जो की पुरुषों के लिए २२.१ वर्ष और महिलाओं के लिए २८.२ वर्ष थी। प्रतिदिन धूम्रपान करने वाले प्रतिभागियों में सिगरेट की संख्या १६.५ थी, जो पुरुषों के लिए १७.२ सिगरेट और महिलाओं के लिए ११.२ थी। भारत में, प्रतिदिन ६.८ सिगरेट की औसत के साथ पहली बार तम्बाकू सेवन करने की औसत आयु २२.६ वर्ष थी।
चीन को छोड़कर सभी देशों में, १९२० के दशक में पैदा हुए पुरुषों में धूम्रपान की उच्चतम दर देखी गयी। शहरी चीनी महिलाओं को छोड़कर, प्रतिदिन धूम्रपान करने वाले लोगों में हाल के वर्षों में पैदा हुए प्रतिभागियों में सिगरेट की संख्या में वृद्धि देखी गयी, जापानी पुरुष इस सूची में सबसे ऊपर हैं। एक सकारात्मक पहलू यह सामने आया कि अपने पुराने समकक्षों की तुलना में काम आयु वाले पुरुषों ने कम उम्र में धूम्रपान छोड़ दिया।
हालाँकि अन्य पश्चिमी देशों की तुलना में इन देशों में महिलाओं में धूम्रपान का प्रचलन बहुत कम था, फिर भी ग्रामीण चीन, जापान और भारत में इसका चलन बढ़ा है। पश्चिमी महिलाओं की तुलना में एशियाई महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर की दर भी अधिक पायी गयी।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि धूम्रपान से होने वाली मृत्यु दर, जिसमें फेफड़े के कैंसर के कारण शामिल हैं, सभी देशों में बढ़ी हैं। तम्बाकू धूम्रपान कुल मौतों के १२.५% और १९२० से पहले जन्म लेने वाले पुरुषों में ५६.६% फेफड़ों के कैंसर से होने वाली मौतों से जुड़ा था। १९३० के दशक या उसके बाद पैदा हुए पुरुषों के लिए, ये संख्या बढ़कर २९.३% हो गई एवं फेफड़ों का कैंसर ६८.४% मृत्युओं का कारण बना। हालाँकि धूम्रपान करने वाली महिलाओं पर सीमित विवरण उपलब्ध है, किंतु शोधकर्ता महिलाओं में भी एक समान प्रवृत्ति की भविष्यवाणी करते हैं।
शोधकर्ताओं ने चेतावनी देते हुए कहा, "अगर एशियाई आबादी में तंबाकू की महामारी बनी रहती है या लगातार बढ़ती रहती है, तो ज्यादातर एशियाई देशों को धूम्रपान एवं अन्य कारकों के कारण फेफड़े के कैंसर के दोहरे बोझ का सामना करना होगा ”।
शोधकर्ताओं का सुझाव है कि एशिया के सारे देशों में तम्बाकू के नियंत्रण के लिए विस्तृत नीतियाँ , जैसे तम्बाकू के दाम और करों पर वृद्धि , तम्बाकू रहित क्षेत्रों के बारे में अधिनियम लागू करना, तम्बाकू के विज्ञापन और प्रचार पर प्रतिबन्ध लगाना, जो धूम्रपान को छोड़ चुकें हैं उन्हें सहायता देना और तम्बाकू के पैकेटों पर चेतावनी के लेबल लगाना लागू करें जिससे कि इस महामारी को रोका जा सके।
शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि , "धूम्रपान करने वालों के लिए, जितनी जल्दी हो सके, धूम्रपान छोड़ना ही इससे होने वाले जोखिम को कम करने के लिए सबसे अच्छी रणनीति है।"