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कोहरे की चादर पर शहरों से बने सुराख़

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मुंबई
18 जुलाई 2018
चित्र:३० जनवरी २०१४ (स्थानीय समय करीब १०.३० AM) पर लिए गए NASA के MODIS sensor से भारत और पाकिस्तान के ऊपर के भाग के चित्र, जिनमे हम दिल्ली और गंगा नदी के मैदानों में बसे  कई नगरों के ऊपर काफी बड़े कोहरा-सूराख देख सकते हैं।

​उत्तर भारत की सर्दी हमेशा चर्चा में रहती है। बर्फीली ठंडी हवाएँ और घने  कोहरे के कारण ​दिल्ली जैसे नगरों में, रेल  एवं  हवाई यातायात और  कई लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी, एकदम  ठप पड़ जाती है।​

कोहरे का सही अनुमान काफी हद तक यातायात और दूसरी गतिविधियों की योजना ​बनाने में सहायक होगा। ​भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बम्बई ( Indian Institute of technology Bombay)​ द्वारा एक अध्ययन के अनुसार एक और कारण सामने आया है - शहरों का गरमाना। ग्रामों के मुकाबले नगरों  की भूमि की सतह का बढ़ा हुआ ताप , कोहरे की चादर को छितरा  करा उसमे एक बहुत बड़ा  छेद -दिल्ली नगर के आकार  के बराबर - बना देता है  जिसे अंतरिक्ष से ​ भी ​देखा  जा  सकता है। 

नमी / आर्द्रता  के घनीकरण से बना निचली ऊँचाई का ​​ ​​​​बादल ​ ही कोहरा है।  खेती बारी वाली ​ज़मीन, जलाशयों से पर्याप्त मात्रा में  उठती नमी​ और ​उत्तर भारत ​के प्रशांत  पवन  के कारण घना  कोहरा बन जाता है। ​ यह एक परेशानी ​ज़रूर खड़ा करता है परन्तु किसी भी क्षेत्र के पर्यावरण में ​ न केवल ​एक महत्त्वपूर्ण भूमिका  ​निभाता ​है बल्कि ​कुछ फलों की पैदावार की वृद्धि में  भी सहायक ​होता ​ है। ​

​शोधकर्ताओं ने नासा (NASA) के उपग्रह MODIS​ (​ Moderate Resolution Imaging Spectroradiometer ​) ​के 17 वर्ष ( 2000-2016) के आंकड़ों का अध्ययन किया। ​ गंगा के आस  पास की मैदानी ​जगहों ​ ​के ऊपर, ​जो शहरों के पास थे ,कई जगहों पर ' कोहरा - छिद्र ' पाए  गए जिसमे सबसे उन्नत छिद्र ​दिल्ली के ​ ऊपर ​था ।  'कोहरा - छिद्र '​,​  ​घने कोहरे की चादर में अलग अलग आकार के सूराख को कहते हैं।

​जिओफिसिक रिसर्च पेपर्स  नामक  जर्नल ​में प्रकाशित एक अध्ययन से प्रकट हुआ है कि इस ' कोहरा - छिद्र ' का परिमाण और एक नगर की जनसंख्या में  पारस्परिक सम्बन्ध ​है। जितनी अधिक जनसँख्या होगी , उतना ही बड़ा छेद  होगा। ​ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बम्बई ​ ​के भूतपूर्व प्रोफेसर रितेश गौतम , जिन्होंने इस अध्ययन का नायकत्व किया ,का कहना है ," ​यू.एस ए ​ , यूरोप और एशिया के ​13 ​नगरों के आँकणों के अनुसार कोहरा छिद्र के क्षेत्र और नगर की जनसंख्या में प्रबल पारस्परिक सम्बन्ध पाया गया। तुलना करने पर पाया गया कि विश्व के अन्य देशों के मुकाबले ,दिल्ली की शहरी गर्मी का कोहरे के निर्माण के दुर्बलीकरण पर सबसे अधिक  प्रभाव पड़ा है।

​तो अब सवाल ये उठता है कि तापमान कोहरे के निर्माण पर कैसे  प्रभाव डालता है ? देहाती  क्षेत्र में तापमान कम रहता है और अधिक  हरियाली के कारण नमी ​भी ​अधिक होती  है। शहरीकरण के कारण शहर,​ ​गाँवों ​से अधिक गर्म होते हैं,विशेषकर सर्दियों के महीनों में। ​शहरों में हरियाली भी कम होती है-क्योंकि पेड़ ,खेती ,और  घास के मैदान कम ​होते हैं​ ​ जिसके कारण  शहर के  अंदर सापेक्षिक  आर्द्रता ​देहात के मुकाबले कम होती  है और परिणामस्वरूप  शहर और गाँव में कोहरे के निर्माण में बहुत अंतर पाया जाता  है।

" देखा  गया है कि 17 वर्ष की अवधि ​(2000 -2016 ) ​में दिल्ली के ऊपर ,आस पास के इलाके की ​तुलना में,कोहरा छिद्र का निर्माण ​इतना व्यापक था  कि इसके कारण कोहरे की आवृत्ति में लगभग 50 प्रतिशत की कमी हो गयी। ", प्रोफेसर गौतम ने टिप्पणी की।

अध्ययन में ये भी पाया गया  कि हवा में उपस्थित एरोसोल्स ( हवा में निलंबित महीन कण जो शहरी प्रदूषण से आते हैं )  ​से कोहरे के निर्माण में तीव्रता आती है। परन्तु , शहरों के ताप में वृद्धि का असर  एरोसोल्स से कहीं ज़्यादा होता है जिसके फलस्वरूप कोहरा -छिद्र का निर्माण होता है।

इस निष्कर्ष का कोहरे के पूर्वानुमान ​प्रणाली ​ पर गहरा असर पड़ेगा. ​​"​अध्ययन  कोहरे के निर्माण की प्रक्रिया को समझने में ​ सहायक है  और  नगरीय तापमान का कोहरे पर विशिष्ट ​प्रभाव ​ भी दर्शाता है।  एक  परिष्कृत कोहरा पूर्वानुमान  प्रणाली को विकसित  करने की ज़रुरत है जो वायु प्रदूषण और शहरीकरण , दोनों के प्रभावों  को  ध्यान में रख कर बनाया जाए।

कोहरा छिद्र  के निर्माण में शहरी ताप ​के  प्रभाव का प्रमाण इस अध्ययन से एकदम साफ़ है। जैसा प्रोफेसर गौतम कहते हैं," कोहरा केवल एक स्थानीय नहीं बल्कि क्षेत्रीय समस्या है।"  उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों के जन जीवन पर कोहरे के पर्यावरणीय महत्व की गुरुता को नकारा  नहीं​ ​जा सकता अतः,कोहरे के निर्माण की प्रक्रिया, वायु प्रदूषण एवं  शहरी करण का कोहरे के निर्माण पर असर​, इस विषय ​​​पर एक गहन अध्ययन की आवश्यकता है  जो  ​केवल दिल्ली के शहरी क्षेत्र तक ही न सीमित हो बल्कि  उत्तर भारत के दूसरे  हिस्सों को भी हिसाब में ले।