भवनों की छतों पर छोटे-छोटे पेड़-पौधों का रोपण कर, घने नगरीय क्षेत्रों में बाढ़ के प्रकोप एवं अपवाह (रनऑफ) को घटाया जा सकता है।

कृषि-उपज की निगरानी में सहायक मशीन लर्निंग

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मुंबई
9 नवंबर 2020
कृषि-उपज की निगरानी में सहायक मशीन लर्निंग

अनस्प्लेश छायाचित्र, द्वारा- मेलिसा आस्क्यू 

शोधकर्ता उपग्रहों से प्राप्त रडार के आँकड़ों का उपयोग सोयाबीन और गेहूँ के विकास का निर्धारण करने वाले पैरामीटर्स अर्थात मापदण्डों के आकलन के लिए करते हैं।  

उपग्रह की आँखें वह देख लेती हैं जो हम नहीं देख सकते। उदाहरण के लिए गूगल पथावलोकन आपको आभासी रूप से एक पथ पर ले जाता है जो हजारों मील दूर हो सकता है और आप अपने आपको राह के मध्य में पाते हैं। यह ग्रह के प्रत्येक विवरण को अत्यंत उच्च विभेदन अर्थात हाई रिसॉल्यूशन पर ग्रहण किए गए उपग्रह से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग करके ऐसा कर पाता है। ऐसे बहुत से दूर-संवेदी उपग्रहों का उपयोग सैन्य-अनुप्रयोगों में भी किया जाता है। एक नवीन अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे तथा कृषि एवं एग्री-फूड कनाडा के शोधकर्ताओं ने उपग्रह से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग कृषि-उपज की निगरानी के लिए किया है।

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में कृषि-उपज की निगरानी, खाद्य सुरक्षा एवं अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन कृषि के अंतर्गत आने वाले लगभग 60% क्षेत्र की निगरानी शारीरिक रूप से करना कठिन है और व्यवहार्य नहीं है। और यहाँ हमारी सहायता कर सकते हैं उपग्रह। दूर संवेदी उपग्रहों से प्राप्त आँकड़ों में पृथ्वी की सतह के रडार स्कैन सम्मलित होते हैं और व्यापक रूप से ये वनों के मान-चित्रण और निगरानी के लिए उपयोग किए जाते हैं। विभिन्न जैव-भौतिकीय मापदंडों का उपयोग करते हुए, कोई भी किसी प्रस्तावित क्षेत्र में जैविक-भार अर्थात बायोमास का आकलन कर सकता है।

वर्तमान अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने तीन जैव-भौतिकीय मापदंडों का आकलन किया है जो उपग्रह से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग करके, मॅनिटोबा और कनाडा में गेहूँ और सोयाबीन की कृषि-उपज का निर्धारण करते हैं। इनमें लीफ एरिया इंडेक्स, बायोमास और पौधे की ऊँचाई सम्मिलित है। लीफ एरिया इंडेक्स, जैसा कि नाम से पता चलता है, आकाश को अनावृत प्रति इकाई भूमि सतह पर स्थित पत्ती-क्षेत्र है और पत्र-समूह एवं चंदवा संरचना अर्थात फोलिएज एंड केनोपी स्ट्रक्चर को निर्धारित करता है। जैविक भार मापदंड पानी की मात्रा और संचित कार्बन की मात्रा को निर्धारित करता है।

शोधकर्ताओं ने उपग्रह से प्राप्त आँकड़ों और इनके निरीक्षण से वनस्पति-प्रवर्धन की जानकारी प्राप्त करने के लिए एक गणितीय मॉडल को निर्मित करके  कार्य प्रारम्भ किया। उन्होंने वॉटर क्लाउड नामक एक मॉडल का उपयोग किया, जिसमें ये मान के चलते हैं कि उपज केनोपी में पानी की मात्रा इस प्रकार बिखरी हुई है जैसे कि पानी वाले  बादल में। यह अवधारणा उपग्रह के आँकड़ों  से प्राप्त परावर्तित रडार के संकेतों का विश्लेषण करने के लिए एक सटीक मॉडल प्रदान करती है। मॉडल और गणितीय संबंधों को “मॉडल व्युत्क्रम” अर्थात “मॉडल इन्वर्शन” नामक एक प्रक्रिया का उपयोग करके निर्मित किया गया है, जिनको तब रडार से प्राप्त आँकड़ों को इनपुट के रूप में उपयोग करके विभिन्न पौधों के विकास निरूपकों जैसे कि फसल की ऊँचाई निर्धारित करने के लिए उपयोग किया जाता है।

एप्लाइड अर्थ ऑब्जर्वेशन एंड जियोइन्फॉर्मेशन नामक अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित एक वर्तमान अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने मॉडल-इन्वर्शन को प्राप्त करने के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग किया है। मशीन लर्निंग में सांख्यिकीय मॉडल और एल्गोरिदम का एक सेट होता है, जो स्पष्ट निर्देशों को दिये बिना एक कंप्यूटर प्रणाली को उपलब्ध आँकड़ों से स्वत: ही सीखने में सक्षम बनाता है। सामान्य क्रियाकलापों में मशीन लर्निंग का एक परिचित उदाहरण अनुशंसित उत्पादों का समूह है जो आपको अपनी खोज और ख़रीददारी के इतिहास के आधार पर ऑनलाइन ख़रीददारी वेबसाइट पर दिखाया जाता है।

मशीन लर्निंग की विधियाँ एक आउटपुट को निर्धारित करने के लिए विशिष्ट रूप से कई इनपुट मापदंडों का मानचित्रण करती हैं। यदि विविध आउटपुट चाहिए होते हैं, तो इन एल्गोरिद्म को अनिवार्य रूप से प्रत्येक आउटपुट के लिए चलाये जाने की आवश्यकता होती है। यद्यपि, जब आउटपुट अरेखिक संबंध में होते हैं, तो अंतिम परिणाम त्रुटि-प्रवण अर्थात एरर-प्रोन हो जाता है। इसलिए, हमें एक ऐसा एल्गोरिद्म चाहिए होता है जो आउटपुट संबंधों को नजरअंदाज नहीं करता हो।

"हमने यह पहचान की है कि मॉडल इन्वर्शन के लिए लीफ एरिया इंडेक्स और प्लांट बायोमास के मध्य इस प्रकार के संबंध को संरक्षित करने  की आवश्यकता है, क्योंकि ये सीधे-सीधे कृषि-उपज से संबंधित हैं।" यह कहना है श्री दीपांकर मंडल का जिन्होंने अपने डॉक्टरेट अनुसंधान कार्य के एक भाग के रूप में इन प्रयोगों को परखा है।

मल्टी आउटपुट सपोर्ट वेक्टर रिग्रेशन जैसे पारंपरिक एल्गोरिद्म, स्मृति गहन अर्थात मेमोरी इंटेन्सिव हैं और वृहद आँकड़ा-समूह के साथ अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं। वर्तमान अध्ययन के शोधकर्ताओं ने मल्टी-टार्गेट रेंडम फॉरेस्ट रिग्रेसन (MTRFR) नामक एक एल्गोरिद्म का उपयोग किया, जो आउटपुट के बीच संबंधों को ध्यान में रखता है। उन्होंने दक्षिणी मॅनिटोबा के रेड रिवर वाटरशेड में गेहूँ और सोयाबीन के लिए लीफ एरिया इंडेक्स, बायोमास और पौधे की ऊँचाई का आकलन करने के लिए उपग्रह से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग किया। उन्होंने पाया कि नए प्रारूप के मॉडल ने, न केवल आँकड़ों की पुनरावृत्ति की, बल्कि आउटपुट के बीच संबंध को संरक्षित भी किया। यह पद्धति पारंपरिक एल्गोरिद्मों की तुलना में अधिक सटीक थी।

यद्यपि इस मॉडल का उपयोग कनाडा में उपज मापदंडों के आकलन हेतु किया गया था, शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में इसको कुछ बदलावों के साथ उपयोग किया जा सकता है।

“कनाडा के क्षेत्रों के विपरीत, भारतीय क्षेत्र आकार में छोटे हैं और इनके उपज स्वरूप विविध हैं। इसलिए हमें उच्च विभेदन और समयाश्रित आँकड़ों की आवश्यकता हो सकती है,” इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले आई.आई.टी. बॉम्बे के डॉ. अविक भट्टाचार्य का कहना है।

परिणामत: आवश्यक इन्वर्शन रणनीति को भी बदलना होगा। 

इस शोध के आगामी चरण के रूप में, शोधकर्ताओं ने कृषि उत्पादन में जोखिम का आकलन करने के लिए अपने निष्कर्षों का उपयोग करने की योजना बनाई है। वे अपने एल्गोरिद्म को और अधिक अनुकूलित करने के मार्ग भी खोज रहे हैं ताकि वे इसका उपयोग वृहद परिमाण वाले आँकड़ों पर कर सकें।