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जीनोम - सर्पिल डीएनए का सम्पूर्ण संग्रह – जीन में जीवन के लिए कोड वहन करता है। जीन निर्धारित करते हैं कि एक जीव विभिन्न लक्षणों और विशेषताओं को कैसे प्रदर्शित करता है। तथापि, केवल जीन हमें शरीर की बीमारियों और विकारों के बारे में सभी जानकारियां प्रदान नहीं करते हैं। जीनोम को डिकोड करने में अगला स्तर प्रोटिओम का विश्लेषण करने में है, जो प्रोटीन का पूरा संग्रह है, जिसमें पेप्टाइड्स (कम प्रोटीन) और अमीनों अम्ल (प्रोटीन की एक मूल इकाई) सम्मिलित हैं, जो कि जीन में जानकारी के अनुसार निर्मित होते हैं। ये प्रोटीन हमारी कोशिकाओं के आवश्यक घटक हैं और हमारे शरीर को कार्यशील रखते हैं।
मानव जीनोम संगठन द्वारा मायावी जीनोम के बारे में डीकोड की गई जानकारी के प्रकाशित होने के एक दशक बाद 2010 में मानव प्रोटिओम परियोजना (एचपीपी) का शुभारम्भ किया गया। एचपीपी एक अन्तर्राष्ट्रीय सहभागिता है जिसका उद्देश्य प्रोटिओम की आणविक प्रकृति को एकत्र करना, विश्लेषण करना और समझना है। एक विगत अध्ययन में, मानव प्रोटिओम संगठन (एचयूपीओ) के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे (आईआईटी बॉम्बे) के शोधकर्ताओं ने एचपीपी द्वारा मानव प्रोटीन के प्रसंस्करण और वर्गीकरण के अत्यधिक कठोर मानकों पर चर्चा की है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
परियोजना के दो मुख्य उद्देश्य हैं। प्रथमतः , यह विश्वसनीय मानकों की स्थापना करके जटिल मानव प्रोटिओम के भागों को सूचीबद्ध करता है। इसके, अतिरिक्त यह जीवन विज्ञान के अध्ययन के एक महत्त्वपूर्ण भाग के रूप में प्रोटिओमिक्स को एकीकृत करने का उद्देश्य रखता है, जो कि बीमारियों में प्रोटीन की असीमित भूमिका को समझने का प्रयास है। एचपीपी महत्त्वपूर्ण जैव रासायनिक डेटा प्रदान करता रहता है, जैसे कि एक प्रोटीन के संश्लेषित होने के बाद का परिवर्तन, जो अकेले जीनोम से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
“जैव सूचना विज्ञान की विकासशील तकनीक काफी सीमा तक डेटा विश्लेषण पर निर्भर करती है, जो अभी भी प्रोटीन कृत्य की गलत खोज की बाधाओं का सामना करती है। प्रोटिओमिक्स क्षेत्र की वृद्धि ने इस समस्या को समझा है और प्रोटीन और पेप्टाइड पहचान के सन्दर्भ में कठोरता प्रदान की है, “भारत से इस अध्ययन के प्रमुख लेखक आईआईटी बॉम्बे के प्राध्यापक संजीव श्रीवास्तव बताते हैं।
एचपीपी प्रोटीन को सही ढंग से पहचानने और वर्गीकृत करने में इसकी कठोरता को लागू करने के लिए चार संसाधनों पर निर्भर करता है। पहला, यह प्रोटीन की पहचान करने के लिए प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी) का उपयोग करता है और, यहाँ, यह परियोजना प्रोटीन की स्थिति को खोजने और उसकी भूमिका को समझने के लिए प्रतिरक्षा-आधारित (एंटीबॉडी बेस्ड) तकनीकों का विवरण देती है। इसके बाद, यह मास स्पेक्ट्रोमेट्री (एमएस), नामक विधि का उपयोग करता है, जो प्रोटीन संरचना का पता लगाने के लिए प्रयुक्त किया जाता है, जो कच्चे एमएस डेटा को संसाधित करने में लगाए गए उपकरणों और कार्य प्रवाह के लिए कुछ निश्चित मानकों का पालन करता है।
तीसरे संसाधन के अंतर्गत, एचपीपी कई विकारों के लिए ज़िम्मेदार प्रोटीन का पता लगाने के लिए आवश्यक महामारी विज्ञान साक्ष्य, नैदानिक नमूनों तक पहुँच और नैदानिक नियामक नीतियां प्रदान करने के लिए प्रोटीन विकृति विज्ञान पर निर्भर करता है। अन्त में, यह इस समूची जानकारी को एक ज्ञान आधार (KB) के रूप में संकलित करता है जिसमें प्रोटीन के बारे में सभी संरचनात्मक और कार्यात्मक जानकारी होती है जिसे यह समुदाय को उपलब्ध कराता है। ऐसे ही एक KB, neXtProt, में MS डेटा (विभिन्न अन्य डेटाबेसेज से प्राप्त), एण्टीबॉडी डेटा , प्रोटीनों के बीच परस्पर सम्पर्क और जीन के प्रभाव के बारे में जानकारी सम्मिलित है।
नेक्स्टप्रोट डेटाबेस मौजूदा प्रोटीन को विश्वसनीयता की पाँच श्रेणियों में वर्गीकृत करता है जिसे प्रोटीन अस्तित्व (पीई) स्तर कहा जाता है। पीई 1 स्तर में वे प्रोटीन सम्मिलित हैं जिनकी संरचना और कार्य के लिए स्पष्ट प्रयोगात्मक साक्ष्य हैं। पीई 2 स्तर में वे प्रोटीन सम्मिलित हैं जिनकी संरचना और कार्य पूरी तरह से पहचाने नहीं गए हैं। पीई 3 स्तर हमें प्रोटीन के बीच सम्भावित समानता के बारे में बताता है। पीई 4 स्तर प्रोटीन केवल अग्रगामी जीनोमिक डेटा प्रदान करता है। पीई 5 में सामान्यतः अशुद्ध विधि से विश्लेषण किए गए प्रोटीन होते हैं। सन 2020 तक, मानव प्रोटीओम के 90.4 प्रतिशत (लगभग 17900 प्रोटीन) विश्वसनीय पीई 1 साक्ष्य हैं। यह हमारे प्रोटीओम के पीई 2, पीई 3 और पीई 4 स्तरों पर शेष बचे 9.6 प्रतिशत (लगभग 1800 प्रोटीनों, जिन्हें लापता प्रोटीओम भी कहा जाता है) को छोड़ देता है, जिन्हें उच्च कठोरता पर पहचाना जाना बाकी है।
प्रोटीन परख परीक्षण हमेशा चिकित्सा निदान में उपयोग किया गया है, और इसमें अशुद्धि होने की संभावना है। जीनोमिक्स के साथ प्रोटिओमिक्स के उपकरण, SARS-CoV-2 (COVID-19) सहित कई रोगजनक संक्रमणों का पता लगाने के लिए वांछित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं, और कैंसर और हृदय सम्बंधी विकारों को समझ सकते हैं।
“मानव प्रोटिओम की पहचान और विशेषता जानने में एचपीपी की पहल ने प्रोटिओमिक्स के क्षेत्र में नए मार्ग खोले हैं। समय और प्रौद्योगिकी का अभ्युदय नए मील के पत्थर सिद्ध होंगे जो मानव जीव विज्ञान की समझ को बढ़ाएँगे और निदान, रोगनिरोधी और सटीक दवा-आधारित अनुप्रयोगों में प्रोटिओमिक्स की भूमिका में तीव्रता लाएँगे,” यह कहना है आईआईटी बॉम्बे के एक शोध छात्र श्री दीप्तरूप विश्वास का जो कि इस अध्ययन का भाग रहे हैं।