कर्नाटक में खोजी गयी छिपकली की एक नयी प्रजाति को हेमिडेक्टीेलस विजयराघवानी नाम दिया गया है, जो भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, प्राध्यापक विजयराघवन के नाम से प्रेरित है।
इस खोज के श्रेयस्कर राष्ट्रीय जीवविज्ञान केंद्र (एन सी बी एस), बेंगलुरु स्तिथ प्राध्यापक विजयराघवन की प्रयोगशाला से जुड़े शोधकर्ता श्री जीशान मिर्ज़ा हैं. इस अध्ययन के परिणाम, शोधपत्रिका फैलोमेडुसा में प्रकाशित हुए हैं, और इसे सिन्गिनवा कन्सेर्वटिव फाउंडेशन एवं न्यूबै ट्रस्ट लिमिटेड की ओर से आंशिक वित्तीय सहायता प्राप्त हुई है।
रिसर्च मैटर्स से साक्षात्कार में श्री मिर्ज़ा ने बताया कि इस प्रजाति का नामकरण प्राध्यापक विजयराघवन पर करने कि मूल प्रेरणा इन वैज्ञानिक का अभिनंदन करना है, जो कि देश में विज्ञान सम्बन्धी शोध ओर शिक्षा के प्रसार के लिए उद्यम कर रहे हैं. प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त होने से पहले प्राध्यापक विजयराघवन एन सी बी एस के निर्देशक के तौर पर सेवा दे रहे थे. वे रॉयल सोसाइटी, लंदन के विशिष्ट प्राध्यापक ओर फैलो भी हैं।
उत्तर कर्नाटक के बागलकोट जिले में स्तिथ झाड़ीदार इलाकों में पायी जाने वाली इस नयी प्रजाति की छिपकली का सम्बन्ध हेमिडेक्टीेलस श्रेणी से है। "लगभग १५३ प्रजातियाँ हेमिडेक्टीेलस श्रेणी की छिपकलियों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिनमें थलचर सदस्यों का एक समूह (क्लेड) भारत में मूल रूप से स्थानीय है (सिवाए पाकिस्तान में एक प्रजाति के)", श्री मिर्ज़ा ने बताया, यह जोड़ते हुए कि यह नयी प्रजाति इसी समूह से संबंधित एक थलचर छिपकली है। यहाँ 'समूह' का प्रयोजन जीवों के ऐसे समुदाय से है जिसके सभी वंशज एक समान पूर्वज से उद्धभवित हों। इस श्रेणी की छिपकलियों को अक्सर घरेलू छिपकलियों के तौर पर जाना जाता है क्योंकि ये बहुत तीव्रता से मनुष्य के अनुकूल ढलने, एवं उनके साथ रहने में सक्षम होती हैं।
हेमिडेक्टीेलस विजयराघवानी छोटी, सुडौल ओर हल्के भूरे रंग कि दिखाई देती है, एवं पूँछ पर पीले-नारंगी रंग का छींटभर आभास देती है। यह दक्षिण भारत में पायी जाने वाली एक और चकत्तेदार थलचर छिपकली से काफी मेल खाती है। कीटभक्षक, ये छिपकलियाँ शाम ७ बजे से ७.४५ बजे तक आहार खोजने और ग्रहण करने हेतु सक्रिय रहती हैं।
दूसरी प्रजातियों से अन्यत्र जो पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर भारत के जैवविविध क्षेत्रों में पायी गयीं हैं, यह नयी छिपकली एक असंभाव इलाके में पायी गयी है। "यह ऐसी जगह खोजी गयी जहाँ आम तौर पर कैसे भी जीवन की संभावना दुष्कर लगेगी। एक नयी प्रजाति की क़ानूनन असरंक्षित क्षेत्र में खोज संरक्षित क्षेत्रों के बाहर वन्यजीवन की उपस्तिथि पर रोशनी डालती है”, श्री मिर्ज़ा ने बताया, जो अब तक लगभग ३७ प्रजातियों की छिपकलियाँ, बिच्छू, सांप, और मकड़ियां खोज चुके हैं।
वन्य-संरक्षण के बहुत से प्रयास राष्ट्रीय उद्यानों व वन्यजीव अभ्यारण्यों तक ही केंद्रित रहते हैं, अतैव इस तरह की खोजें संरक्षित क्षेत्रों के बाहर भी प्रयास केंद्रित करने के महत्व पर प्रकाश डालती हैं।