शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

तरल पदार्थों का व्यवहार सपाट सतहों की तुलना में वक्र सतहों पर अलग होता है

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बेंगलुरु
23 नवंबर 2020
तरल पदार्थों का व्यवहार सपाट सतहों की तुलना में वक्र सतहों पर अलग होता है

[अनपलाश पर तेवरक फंदूंग द्वारा चित्र]

क्या आपने इस बात पर कभी  विचार किया है कि एक फुटबॉल की सतह को छोटे छोटे  पंचकोणों और षट्कोणों के रूप में एक साथ सिला जाता है, जबकि कोई भी फर्श टाइलिंग कभी पंचकोण के आकार में  नहीं होता? गणितज्ञ यह बात लंबे समय से जानते हैं कि टाइलिंग फर्श, जो आमतौर पर सपाट होते हैं, पंचकोणों का उपयोग करने से अनिवार्य रूप से कई खाली जगह  छोड़ देंगे। हालाँकि , सतह के वक्र  होने पर स्थिति बदल जाती है, जैसे कि एक गेंद में । ठोस पदार्थों की भी, बिलकुल एक फुटबॉल की तरह, इनके घटक परमाणुओं या अणुओं की एक दोहराई गई संरचना है।

तरल पदाथों की बात अलग है ।उनके अणुओं को उनके पदों में किसी भी आवधिकता के बिना बेतरतीब ढंग से वितरित किये होते हैं। एक सपाट सतह पर, वे अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग अवधियों में अलग-अलग घनत्व के साथ स्वतंत्र रूप से प्रवाह करते हैं। काँच एक ऐसा पदार्थ है जो ठोस पदार्थों की तरह कठोरता प्रदर्शित करता है लेकिन इसमें तरल पदार्थों की तरह आवधिक संरचना नहीं होती है। एक निश्चित तापमान से ऊपर, जब काँच एक सपाट सतह तक सीमित होता है, तो यह एक तरल पदार्थ में परिवर्तित हो जाता है, और इसे ग्लास (काँच) ट्रांजीशन (संक्रमण) कहा जाता है। यदि तरल पदार्थ एक वक्र  सतह, जैसे कि एक गोले तक ही सीमित हो, तो इसका क्या परिणाम होता है? क्या वे एक ठोस पदार्थ की तरह अपने घनत्व में परिवर्तन दिखाते हैं? क्या काँच का संक्रमण (ग्लास ट्रांजीशन) भी होगा यदि काँच स्वयं एक गोलाकार सतह तक सीमित हो ?

एक नवीन अध्ययन ने गोलाकार सतहों तक सीमित तरल एवं काँच के प्रयोगों के माध्यम से इन सवालों का जवाब दिया है। नेचर कम्युनिकेशन्स नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित यह अध्ययन, जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जे. एन. सी. ए. एस. आर.), बेंगलुरु और भारतीय विज्ञान संस्थान (आई. आई. एस. सी.) बेंगलुरु, के भौतिकविदों द्वारा संचालित किया गया था। यह अध्ययन वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी. एस. आई. आर.) एवं विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डी. एस. टी.), भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया था।

जे. एन. सी. ए. एस. आर. के एक सह-प्राध्यापक  और अध्ययन के सह-लेखक राजेश गणपति कहते हैं, "कुछ सबसे बेहतरीन  दिमाग इस समस्या से जूझ चुके हैं, और हम इसे अब प्रयोगों के माध्यम से संबोधित करने लगे हैं।"।

वह हाल ही में घोषित शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, भारत में विज्ञान के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के प्राप्तकर्ता भी हैं।

शोधकर्ताओं ने गोलाकार सतहों पर तरल एवं काँच के कांच पदार्थों के आचरण का अध्ययन करने के लिए प्रयोगशाला में नवीन प्रयोगों को रूपांकित किया।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर डेविड ए. वाईट्ज़  ने एक बार मजाक में कहा था, “ ग्लास ट्रांजीशन के सिद्धांत का प्रस्ताव रखने वाले सिद्धांतकारों से कहीं ज़्यादा सिद्धांत  मौजूद हैं । "।

"विभिन्न सिद्धांत अलग-अलग परिणामों की भविष्यवाणी करते हैं, इसलिए प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण हैं।", राजेश कहते हैं।

शोधकर्ताओं ने उनके प्रयोगों के लिए गोलाकार सतह के रूप में, पानी और ग्लिसरॉल में तेल के इमल्शन की बूँदों  को चुना। इन बूँदों  का व्यास लगभग 30 माइक्रोन था। फिर उन्होंने कोलाइडल कणों का निर्माण  किया, जो कि माइक्रोन के माप के पॉलिमर से बने थे। इमल्शन के अंदर होने पर, ये कोलाइडल कण इलेक्ट्रोस्टैटिक आकर्षण द्वारा इमल्शन की बूँदों की आंतरिक परतों से चिपक जाते हैं।

"सही सेटअप तैयार करने में हमें डेढ़ साल लग गए।", JNCASR के पी. एच. डी. स्कॉलर और अध्ययन के मुख्य लेखक नवनीत सिंह कहते हैं।

शोधकर्ताओं ने कोलाइडल कणों की विभिन्न मात्राओं के साथ तेल और पानी के मिश्रण के विभिन्न संयोजनों की आज़माइश  की, ताकि उन्हें इमल्शन की आंतरिक सतह से चिपका दिया जा सके और उन्हें प्रवाहित किया जा सके।

"हम इन विभिन्न घटकों के कुछ भौतिक मापदंडों को जानते थे, जिन्होंने सही संयोजन के लिए हमारी खोज को निर्देशित किया,", नवनीत कहते हैं।

एक ऐसे माइक्रोस्कोप का ,जो स्पष्ट प्रतिबिम्ब पकड़  सके, उपयोग करके शोधकर्ताओं ने अलग-अलग ऊँचाइयों पर गोलाकार बूँदों के दो-आयामी स्नैपशॉट लिए। बाद में उन्होंने एक त्रि-आयामी टाइम-लैप्स वीडियो बनाने के लिए इन छवियों को मिलाया, जो उन्हें यह देखने में मदद कर सके कि कोलाइडल काँच  या तरल पदार्थ इमल्शन  की सतह पर कैसे बहते हैं। शोधकर्ताओं ने यह खोज निकाला कि तरल पदार्थ का आचरण बिल्कुल वैसा हैं जैसे कि थ्री-डायमेंशनल स्पेस में, सिद्धांतो के अनुसार प्रस्तावित है । इसका तात्पर्य यह है कि गोलाकार इमल्शन का वक्र स्थान, जो द्वि-आयामी है, के कारण तरल पदार्थ इस प्रकार व्यवहार करते हैं जैसे कि वे त्रि-आयामी अंतरिक्ष में हो। तो फिर यह तीसरा आयाम कहाँ से आ रहा है?

सिद्धांतो के अनुसार तरल या काँच के पदार्थ अपने घनत्व में भिन्नता दिखाएँगे यदि एक सपाट दो-आयामी स्थान तक सीमित हो।

आई. आई. एस. सी. के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक अजय सूद कहते हैं, "हम इन उतार-चढ़ावों का कोई संकेत नहीं देख पाए  हैं, जो कोलाइडल कणों के आचरण  को तीन-आयामों के समान बनाता है। वक्रता ने इस प्रकार प्रभावी रूप से एक अतिरिक्त आयाम जोड़ा है।"

शोधकर्ताओं ने इमल्शन की  बूँद  की सतह से जुड़ी कोलाइड की संख्या को बदल कर  काँच की अवस्था  से तरल अवस्था तक कोलाइड्स के संक्रमण को देखने की उम्मीद की थी, जो कि कई सिद्धांतों के मुताबिक थी। जबकि भौतिकविदों ने विभिन्न कोलाइडों के लिए विभिन्न सपाट सतहों पर इस संक्रमण को देखा है, यह पहली बार है जब किसी ने इसे वक्र सतह पर देखने का प्रयास किया है। टीम ने पाया कि एक ग्लासी अवस्था से एक तरल अवस्था में संक्रमण ठीक वैसा ही होता है जैसा कि सिद्धांतो द्वारा प्रस्तावित है।

"प्रयोग के परिणाम बेहद विश्वसनीय और पुनरुत्पादनीय प्रतिलिपि प्रस्तुत करने योग्य हैं,", नवनीत का कहना है, जिन्होंने COVID- लॉकडाउन के बाद जे. एन. सी. ए. एस. आर. में वापस आकर इस प्रयोग को दोहराया।

अगले चरण में, शोधकर्ताओं ने विभिन्न सिद्धांतों का परीक्षण करने के लिए, और अधिक प्रयोगों का आयोजन करने की योजना बनाई है कि कैसे  तरल पदार्थ, गोलाकार और अन्य जटिल वक्र सतहों पर कैसे व्यवहार करते हैं। ऐसी सतहों को तैयार करना और उन पर कोलाइडल कणों को संलग्न करने के लिए कई परीक्षण करने पड़ेंगे और यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।