मानव शरीर की एक विशिष्ट कोशिका साइटोप्लाज्म नामक द्रव से पूरित होती है और इसमें एक नाभिक और कई अन्य अंग होते हैं। साइटोप्लाज्म के अंदर निलंबित वसा (लिपिड) की द्रव्य बूंदें होती हैं जो तेल की बूंदों की तरह ही अणुओं से बनी एक प्रकार की पुटिकाएं या थैली होती है। इसका एक अन्य अंग, अन्तः प्रदव्ययी जालिका (एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम) (ईआर) है जो कोशिका के नाभिक को घेरा हुआ नलीदार संजाल (ट्यूबूलर नेटवर्क) का एक अंतःस्थापित जाला (वेब) है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी बॉम्बे, मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई के शोधकर्ताओं के एक दल ने अवलोकन किया है कि वसा (लिपिड) की द्रव्य बूँदें किसी प्राणी के अन्न भक्षण करने के उपरांत और जीवाणु संक्रमण के समय भी यकृत की कोशिकाओं के अंदर ईआर के साथ संलग्न हो जाती हैं अथवा एकरूप हो जाती हैं। प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित यह अध्ययन उन अणुओं की पहचान करता है जो इस प्रक्रिया में मध्यस्थता करते हैं। ये निष्कर्ष रक्त में वसा (लिपिड) के स्तर को कम करने के लिए निर्देशित भविष्य के अध्ययनों में सहायक हो सकते हैं, जो एक रोचक विषय है क्योंकि अतिरिक्त वसा (लिपिड) मोटापा, मधुमेह और हृदय संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता हैं।
वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदों के अंदर समाविष्ट यह वसा (लिपिड) यकृत से रक्त में कैसे निर्गमित किया जाता है? भोजन करने के उपरांत, रक्त में शर्करा (ग्लूकोज) का स्तर बढ़ जाता है, जिससे इंसुलिन उत्पादन में वृद्धि होती है। इंसुलिन वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदों को आबद्ध करने के लिए काइनेसिन (Kinesin) नामक प्रोभूजिन (प्रोटीन) को सक्रिय करता है। काइनेसिन (Kinesin) एक रेलवे इंजन के रूप में कार्य करता है और प्रोभूजिन तंतुओं (प्रोटीन फिलामेंट्स) से बने आणविक मार्ग (ट्रैक) पर वसा (लिपिड) द्रव्य बूंदों को ईआर के आसपास के क्षेत्र में चिपका देता है। वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदें तब अपने वसा (लिपिड) के भार को ईआर को प्रदान करती है और बदले में, ईआर से जीवाणुरोधी प्रोभूजिन (प्रोटीन) की एक विशाल मात्रा (कार्गो) भी प्राप्त करता है।
यद्यपि उन्हीं शोधकर्ताओं के काम से यह ज्ञात हुआ कि वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदें एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम की ओर कैसे आती हैं, अपितु किन परिस्थितियों में वे ईआर और इस संलयन को सुविधाजनक बनाने वाले आणविक घटक (मॉलिक्युलर प्लेयर) के साथ एकरूप होते है, जो पहले ज्ञात नहीं था। यहां शोधकर्ताओं ने ईआर के आसपास के क्षेत्र में वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदों के प्रवेश करने के बाद की घटनाओं पर ध्यान केन्द्रित किया। यकृत सहित अधिकांश ऊतकों के अंदर ऐसी घटनाओं का अवलोकन करना चुनौतीपूर्ण होता है। प्राकृतिक परिस्थितियों की नकल करने के लिए, शोधकर्ताओं ने चूहों के यकृत से ईआर के टुकड़ों का उपयोग किया। उन्होंने ईआर के टुकड़ों को एक सूक्ष्मदर्शी पट्टिका (माइक्रोस्कोप स्लाइड) पर एक झिल्ली के रूप में जमा किया जो ईआर की नकल करता है और इसे माइक्रोसोमल सपोर्टेड लिपिड बाईलेयर (एमएसएलबी) के रूप में नामित किया। टीम ने उसी यकृत कोशिकाओं से वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदों को भी अलग किया और वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदों का एमएसएलबी के साथ आबद्धन का अध्ययन करने के लिए उनका उपयोग किया। ऐसा पाया गया कि जब नमूने एक उपवासी (बिना खिलाये) चूहे के यकृत से होते हैं तब केवल 20% वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदें एमएसएलबी से आबद्ध होती हैं जबकि भरे पेट चूहों की स्थिति में 80% वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदें एमएसएलबी से आबद्ध होती हैं।
उपवास की स्थिति में, वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदें सामान्य स्तर से दस गुना अधिक मात्रा में यकृत कोशिकाओं के अंदर एकत्रित हो जाती हैं| जो उन सभी वसा (लिपिडों) द्रव्य बूँदों को ईआर में प्रवेश करने से बचाती हैं, जो अन्यथा रक्तप्रवाह में पहुंच सकती हैं।
शोध का नेतृत्व करने वाले प्राध्यापक रूप मलिक कहते हैं, "जब भी हम उपवास करते हैं तब यह जहरीले वसा (लिपिड) रक्तप्रवाह से हृदय के ऊतकों के अंदर एकत्रित हो सकते हैं, जिसके परिणाम भयावह हो सकते हैं।"
एक अन्य प्रयोग में, उन्होंने जीवाणु संक्रमण का अनुकरण करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करने के लिए चूहे में लिपोपॉलीसेकेराइड (Lipopolysaccharide) नामक एक अणु को अंतःक्षेपित (इंजेक्ट) किया। पुनः यह देखा गया कि प्रतिरक्षा प्रणाली सक्रियण ने वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदों के एमएसएलबी से आबद्धन को २०% से ७०% तक बढ़ा दिया। ईआर, कोशिकाओं के अन्तस्थ एक निर्माणशाला जैसा है जहां प्रोभूजिन (प्रोटीन) बनाया जाता है। प्राध्यापक मलिक कहते हैं, "यह संभावना है कि ईआर पर संश्लेषित जीवाणुरोधी प्रोभूजिन (प्रोटीन) प्राप्त करने के लिए वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदों के लिए ईआर के साथ परस्पर अन्तः क्रिया की आवश्यकता होती है, और इसके बाद वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदें जीवाणु (बैक्टीरिया) को विनष्ट करने के लिए इन प्रोभूजिन (प्रोटीन) का उपयोग करती हैं।"
शोधकर्ताओं ने ऐसे संपर्कों में सम्मिलित प्रमुख वसा (लिपिड) अणु की भी पहचान की, जिसे फॉस्फेटिडिक एसिड- पीए (Phosphatidic acid - PA) कहा जाता है। पीए की भूमिका जानने के लिए, उन्होंने वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदों पर पीए की मात्रा को फॉस्फेटिडिलकोलाइन - पीसी (Phosphatidylcholine-PC) नामक एक अन्य लिपिड के साथ अलग-अलग मात्रा में मिलाकर किया और एमएसएलबी के साथ लिपिड द्रव्य बूंदों की आबद्धन क्षमताओं का परीक्षण किया। उन्होंने यह अवलोकन किया कि पीए युक्त वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदें, पीए से रहित वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदों की अपेक्षा एमएसएलबी के साथ दृढ़ता से और अधिक संख्या में आबद्ध होती हैं| अतः यह प्रतीत होता है कि, ईआर को बूंदों के आबद्धन के लिए वसा (लिपिड) द्रव्य बूँद पर पीए का होना आवश्यक है।
पीए शंक्वाकार आकार वाला एक असामान्य वसा (लिपिड) अणु है। पीए को ईआर के लिए वसा (लिपिड) द्रव्य बूँद के आबद्धन और स्थानांतरण के लिए आवश्यक अन्य प्रोटीन (जैसे काइनेसिन) की नियुक्ति का कारक भी जाना जाता है। वसा (लिपिड) द्रव्य बूँद गोलाकार होती है और इसे एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम (endoplasmic reticulum) से संलग्न करना आवश्यक होता है, जिसकी सतह सपाट होती है। वसा (लिपिड) द्रव्य बूँद और सपाट ईआर के जुड़ाव के बीच, बूंद के गोलाकार झिल्ली को सपाट ईआर झिल्ली के साथ विलय करने के लिए बाहर की ओर झुकना पड़ता है । यदि वसा (लिपिड) अणु नियमित दंड के आकार के स्थान पर शंक्वाकार (PA) हों तो झुकना सुविधा जनक हो सकता है।
जब कोशिकांग (सेल ऑर्गेनेल) के बीच आबद्धन त्रुटिपूर्ण हो जाता है, तो इससे अल्जाइमर और पार्किंसन जैसे रोग हो सकते हैं। शोधकर्ताओं को आशा है कि वसा (लिपिड) द्रव्य बूंदों और ईआर के बीच आबद्धन प्रक्रिया के बारे में उनके अध्ययन में प्राप्त जानकारी ऐसे रोगों को समझने में सहायता कर सकती है। वसा (लिपिड) द्रव्य बूंदों के आबद्धन में भी हस्तक्षेप करना संभव हो सकता है। शोधकर्ता वर्तमान में यकृत के अंदर वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदों के लिए काइनेसिन के आबद्धन को अवरुद्ध करने के लिए काम कर रहे हैं। यद्यपि, समस्या यह है कि इसे इस तरह से किया जाना है, कि जिससे अन्य अंगो (गैर- वसा (लिपिड) द्रव्य बूँदों) के साथ काइनेसिन (Kinesin) आबद्धन प्रभावित ना हो। यदि यह सफल होता है, तो ईआर और फिर रक्तप्रवाह में वसा (लिपिड) वितरण को नियंत्रित किया जा सकता है।
प्राध्यापक मलिक इस अध्ययन द्वारा भविष्य के लिए प्राप्त दिशानिर्देशों को अधोरेखित करते हुए कहते है कि "हम यह परीक्षण करना चाहते हैं कि जो ह्रदय घात के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं ऐसे रक्त (सीरम ट्राइग्लिसराइड्स) में वसा (लिपिड) के उच्च स्तर वाले रोगियों को क्या इस तरह के हस्तक्षेप से लाभ हो सकता है|"