भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई से SASIITB नाम का एक छात्र-नेतृत्व वाला दल XPRIZE कार्बन रिमूवल स्टूडेंट प्रतियोगिता के 23 विजेता दलों में से एक है। दल ने कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के लिए एक प्रणाली का प्रस्ताव दिया है जो गैसीय औद्योगिक अपशिष्टों से कार्बन डाइऑक्साइड को हटा कर इसे व्यावसायिक और औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण रसायनों में परिवर्तित कर सकता है। उत्साहित छात्र सदस्य, श्रीनाथ अय्यर, अन्वेषा बनर्जी, सृष्टि भामरे और शुभम कुमार ने कहा कि, "इस प्रतियोगिता को जीतना हमारे लिए एक सपने के सच होने जैसा है क्योंकि हमने सदैव एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करने का सपना देखा है।" उन्हें इस हेतु प्राध्यापक अर्नब दत्ता और प्राध्यापक विक्रम विशाल ने प्रेरित किया है।
प्रत्येक विजेता दल को लगभग 1 करोड़ 86 लाख रूपये ($250,000) की पुरस्कार राशि मिलेगी। निष्पक्ष विशेषज्ञ निर्णायकों ने शोध प्रस्ताव की नवीनता, व्यवहार्यता, संभावित प्रभाव और कार्बन डाइऑक्साइड के गीगाटन को हटाने की क्षमता के आधार पर विजेता दलों को चुना। उन्होंने दल के सदस्यों के संसाधनों और क्षमताओं पर भी विचार किया। SASIITB ने कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल डिमॉन्स्ट्रेशन श्रेणी के अंतर्गत यह पुरस्कार अपने नाम किया है।
पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारण उत्पन्न जलवायु आपातकाल से निपटने की तत्काल आवश्यकता है। मानव गतिविधियों से उत्सर्जन यथा ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधन को जलाना, औद्योगिक प्रक्रियाएं, वाहन, और अत्यधिक कृषि पद्धतियां, पृथ्वी के प्राकृतिक संतुलित कार्बन चक्र को बिगाड़ रही हैं। मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी अन्य ग्रीनहाउस गैसों केअतिरिक्त, कार्बन डाइऑक्साइड तापमान में वृद्धि के एक प्रमुख घटक के रूप में उभरा है।
गत दशकों में, हमने कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की सुरक्षित सीमा को पार कर लिया है। कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल में प्रवेश करने से रोकना ही हमारे लिए पर्याप्त नहीं है, किन्तु हमें इसे हवा, धरती और महासागरों से पर्याप्त मात्रा में अवशोषित करने की विधियां भी खोजनी। यह आवश्यकता, तात्कालिक होने के साथ-साथ दीर्घकालिक भी है। अतः कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने का एक उपयुक्त समाधान तत्काल व्यवहार्य, बड़े पैमाने पर प्रभावी और दीर्घ अवधि के लिए टिकाऊ होना चाहिए।
SASIITB दल ने कार्बन डाइऑक्साइड हटाने की प्रक्रिया के लिए दो तरफे दृष्टिकोण का प्रस्ताव दिया है। पहले चरण में गैसीय औद्योगिक कचरे से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण किया जाता है एवं दूसरे चरण में उपयोगी औद्योगिक रसायनों में परिवर्तित किया जाता है, इस प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड को स्थायी रूप से समाप्त किया जा सकता है।
अमोनिया और मोनोएथेनॉलमाइन (एमईए) जैसे पदार्थ, जिन्हें अमीन-आधारित कार्बनिक क्षार कहा जाता है, वर्तमान में औद्योगिक फ्लू गैसों से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए प्रयुक्त। तथापि, ये रसायन संक्षारक हैं और इसलिए हानिप्रद हैं। प्राध्यापक दत्ता बताते हैं कि, "हम कम हानिकारक अमीन युक्त जलीय विलयन का उपयोग करने का सुझाव देते हैं जो एक उपयुक्त योजक की उपस्थिति में अवशोषण (कार्बन डाइऑक्साइड अणुओं को विलयन की सतह से चिपका कर) द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड को हटा सकता है"। शोधकर्ता वर्तमान में एक जलीय माध्यम में अवयवों का सही संयोजन विकसित कर रहे हैं ताकि विभिन्न तापमान और दबाव श्रेणियों पर कार्बन डाइऑक्साइड का कुशलता से अवशोषण सुनिश्चित किया जा सके।
एक बार जब अवशोषित करने वाली इकाई (यूनिट) कार्बन डाइऑक्साइड को अलग कर लेती है, तो इसे एक पृथक इकाई में उपयोगी रसायनों में परिवर्तित कर दिया जाता है। इनके अवशोषण और रूपान्तरण इकाइयों को व्यावहारिक आवश्यकताओं के अनुसार संयोजित किया जा सकता है। दल अवशोषित की गई कार्बन डाइऑक्साइड को ठोस कार्बोनेट लवण में बदलने के लिए रासायनिक प्रतिक्रियाओं की खोज कर रहा है, जो क्रिया मिश्रण से तुरत फुरत तलछट के रूप में बैठ जाएगी। शेष विलयन कार्बन अवशोषित करने वाली इकाई में पुन: उपयोग किया जा सकता है। इसकी व्यावसायिक व्यवहार्यता और संभावित अनुप्रयोगों के आधार पर चयनित एक विशिष्ट कार्बोनेट साल्ट का उत्पादन करने के लिए रासायनिक प्रतिक्रिया का चयन करना संभव हो सकता है।
अन्वेषा बनर्जी कहती हैं कि, "हमारा प्रस्ताव सबसे अलग है क्योंकि यह प्रक्रिया उद्योगों को कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण और रूपान्तरण दोनों विकल्पों की संभावना प्रदान करती है, इसकेअतिरिक्त, हमारे उपाय ऊर्जा-कुशल और लागत प्रभावी भी हैं"।
कार्बन अवशोषित करने वाली इकाई जोड़ने हेतु पहले से कार्यरत प्रक्रिया को संशोधित करने के लिए अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता है। कार्बोनेट लवण; कृषि, जैव रासायनिक, औषध और अन्य औद्योगिक अनुप्रयोगों में उपयोगी होते हैं। जिन उद्योगों को कार्बन अवशोषण योजनाओं को वापस लेने की आवश्यकता होती है, वे ऐसे समाधान ले सकते हैं जो उपयोगी रसायनों का उत्पादन करता है, क्योंकि यह व्यय की भरपाई करने में सहायता कर सकता है।
शुभम कुमार टिप्पणी करते हैं कि, "भारत, कार्बन अवशोषण, उपयोग और भंडारण के लिए विश्व में टिकाऊ, मापनीय और लागत प्रभावी तकनीक विकसित करने में प्रमुख हो सकता है।"
“मुझे भारतीय विजेता टीम का सदस्य होने पर बहुत गर्व का अनुभव हो रहा है। हमारा दल विजेताओं की सूची में स्थान प्राप्त किसी भी विकासशील देश की एकमात्र संस्था है” श्रीनाथ अय्यर कहते हैं।
कार्बन से निपटने कि दिशा में ये छात्र पुरस्कार प्रतियोगिता मस्क फाउंडेशन द्वारा समर्थित पहल $100M XPRIZE के रूप में एक बड़ी पहल का भाग है। छात्र प्रतियोगिता के विजेता XPRIZE कार्बन रिमूवल माइलस्टोन और ग्रैंड प्राइज प्रतियोगिता में भाग लेने के पात्र हैं। इस प्रतियोगिता में, भाग लेने की अर्हता प्राप्त करने हेतु दलों को वातावरण या महासागरों से 1000 टन कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने में सक्षम समाधान का प्रदर्शन करना होगा। उन्हें एक वर्ष में एक मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने के लिए एक लागत अनुमान मॉडल देना होगा और यह प्रदर्शित करना होगा कि एक गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने के लिए उनके द्वारा सुझाई गयी विधि को कैसे उन्नत किया जा सकता है।
“मात्र कार्बन उत्सर्जन को कम करना विश्व के लिए पर्याप्त नहीं है। कार्बन डाइआक्साइड को सक्रिय रूप से हटाने की विधियों (जैसे हमारी) को विकसित और उन्नत करने की आवश्यकता है, ”प्राध्यापक विक्रम विशाल कहते हैं। इस विचार को सफल बनाने के लिए हमारा दल आश्वस्त है। "भविष्य के लिए हमारा मुख्य ध्यान ऊर्जा आवश्यकताओं को कम करने और संपूर्ण कार्बन अवशोषण, उपयोग और भंडारण प्रणाली की लागत को अनुकूलित करने पर होगा," शोधकर्ता निष्कर्ष निकालते हैं।