आईआईटी मुंबई के अध्ययन ने पाया कि कोलेजन के कारण पेनक्रियाज में हार्मोन के गुच्छों (क्लम्पिंग) का निर्माण होता है, जिससे मधुमेह की उत्पत्ति के एक अज्ञात कारण एवं इसके उपचारार्थ औषधि की पहचान हो सकेगी।

टाइप 2 मधुमेह को और विकृत कर सकता है कोलेजन: एक अध्ययन

मुंबई
1 जुलाई 2025
टाइप 2 मधुमेह को और विकृत कर सकता है कोलेजन: एक अध्ययन

विश्व भर में टाइप 2 मधुमेह रोगियों की संख्या 50 करोड़ से भी अधिक है, एवं आगामी दशकों में और वृद्धि होने का अनुमान है। यह एक बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट को जन्म दे रहा है। जीवनशैली, आनुवंशिकता एवं जटिल जैविक प्रक्रियाओं का मिश्रण इस रोग की वृद्धि को प्रेरित करते हैं। इस रोग का कारण अग्न्याशय (पेनक्रियाज) में स्थित β-कोशिकाओं की बढ़ती हुई शिथिलता है। ये β-कोशिकाएं रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित रखने हेतु आवश्यक इंसुलिन हार्मोन का उत्पादन करती हैं। टाइप 2 मधुमेह में या तो पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं होता या इंसुलिन के प्रति शरीर की कोशिकाओं की प्रतिक्रिया कम हो जाती हैं, जिससे रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है।
 
इन्सुलिन के साथ-साथ एमायलिन नामक एक अन्य हार्मोन भी भोजनोपरांत रक्त शर्करा के नियंत्रण में सहायक है। β-कोशिकाएं अग्न्याशय में इंसुलिन एवं एमायलिन दोनों हॉर्मोनों को मुक्त करती है। मधुमेह की स्थिति में शरीर जब और अधिक इंसुलिन मुक्त करने का प्रयास करता है, तब यह एमायलिन का निर्माण भी अधिक मात्रा में करता है। यद्यपि इंसुलिन के विपरीत एमायलिन अणु, विशिष्टत: उच्च सांद्रता पर अपने सामान्य आकार से भिन्न एक विकृत संरचना निर्मित करने लगते हैं (एक ऐसा विकृत स्वरूप जो सामान्य कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है)। ये विकृत एमायलिन अणु एक दूसरे से जुड़ कर गुच्छे (क्लम्प) निर्मित करने लगते हैं, जो कोशिकाओं के लिए विषाक्त होते हैं। पूर्व के शोधकार्य बताते हैं कि ये गुच्छे कोशिकाओं की बाह्य परत को नष्ट करके पोषक पदार्थों की प्राप्ति अवरुद्ध कर सकते हैं। इससे कोशिकाओं की मृत्यु तक हो सकती है। यद्यपि मधुमेह से ग्रसित मानव ऊतकों (टिशु) में गुच्छों के निर्माण के लिए उत्तरदायी कारक अब तक अज्ञात है।
 
जर्नल ऑफ दि अमेरिकन केमिकल सोसाइटी नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी मुंबई) एवं सहयोगी संस्थाओं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर (आईआईटी कानपुर) तथा चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (सीएनसीआई), कोलकाता के शोधकर्ताओं ने कोशिकाबाह्य आधात्री (एक्सट्रा सेल्युलर मैट्रिक्स) के एक प्रमुख घटक फाइब्रिलर कोलेजन-1 के रूप में एक तथ्यपरक खोज की है।

“प्रत्येक ऊतक कोशिकाओं एवं एक अकोशिकीय घटक पदार्थ अर्थात कोशिकाबाह्य आधात्री से निर्मित होता है। यह कोशिकाबाह्य आधात्री सभी कोशिकाओं को एक साथ रखता है तथा अंगों को आकार देता है,” आईआईटी मुंबई के जैव विज्ञान एवं जैव अभियांत्रिकी विभाग में कार्यरत एवं इस अध्ययन परियोजना के प्रमुख, प्राध्यापक शमिक सेन बताते हैं।

शरीर को बाँध के रखने वाले त्वचा एवं हड्डियों जैसे ऊतकों में कोलेजन-1 प्रोटीन प्रचुरता में पाया जाता है। कोलेजन-1 प्रोटीन मधुमेह से ग्रसित अग्न्याशय (पैंक्रियास) ऊतक में अत्यधिक मात्रा में होता है। अब इस अध्ययन के उपरांत यह ज्ञात हुआ है कि अग्न्याशय में कोलेजन-1 प्रोटीन की उपस्थिति एमायलिन के एकत्रीकरण के लिए उत्तरदायी है। इससे अंततः इंसुलिन उत्पन्न करने वाली β-कोशिकाएं नष्ट होती हैं एवं एमायलिन अधिक विषाक्त हो जाता है। यह हानि, शरीर की रक्त शर्करा को नियंत्रित करने की क्षमता को कम करती है, जिससे रोगी में मधुमेह तीव्र अवस्था में जा पहुँचता है।
 
एमायलिन एकत्रीकरण पर कोलेजन-1 के प्रभाव का अन्वेषण करने हेतु शोधदल ने विविध जैव-भौतिक तकनीकों का उपयोग किया। आईआईटी मुंबई के जैव-विज्ञान एवं जैव-अभियांत्रिकी विभाग के प्राध्यापक आशुतोष कुमार के नेतृत्व में शोधदल द्वारा मानवी एमायलिन को संश्लेषित (सिंथेसाइज़) किया गया। उन्होंने फाइब्रिलर कोलेजन-1 की उपस्थिति में उपयुक्त उपकरणों की सहायता से इसके व्यवहार का अध्ययन किया। उन्होंने प्रोटीन अणुओं की आपस में चिपकने की शक्ति के परीक्षण हेतु सर्फेस प्लास्मोन रेसोनेंस तकनीक की तथा एमायलिन एवं कोलेजन-1 के मध्य स्नेहन (एढेजन) शक्ति की जानकारी हेतु एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोपी तकनीक की सहायता ली। साथ ही गुच्छों के निर्माण की गति पर दृष्टि रखने हेतु उन्होंने थायोफ्लेविन टी फ्लोरसेंस तकनीक का, एवं प्रोटीन के परस्पर क्रियारत भागों की पहचान हेतु एनएमआर स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग किया।

प्रयोगों से ज्ञात होता है कि एमायलिन सीधे कोलेजन-1 फाइब्रिल्स से बंधता है, एवं कोलेजन-1 फाइब्रिल्स की उपस्थिति में एमायलिन का एकत्रीकरण अत्यधिक तीव्रता से होता है।

“प्रायः ऐसा ही प्रतीत होता है कि एमायलिन कोलेजन-1 की संपूर्ण सतह पर स्थिर गुच्छे बनाकर आवरण निर्मित कर लेता है एवं कोशिकाएँ इस अवरोध को दूर नहीं कर पाती। यह हमारे लिए बहुत ही आश्चर्यजनक खोज थी,” प्रा. सेन कहते हैं। “पृथक रूप से एकत्र होने के स्थान पर एमायलिन, कोलेजन फाइबर को आधार बनाकर तीव्रता से संचित होता है जिससे निकटवर्ती कोशिकाओं की विषाक्तता में वृद्धि होती है,” प्रा. सेन आगे बताते हैं।

आईआईटी मुंबई के जैव विज्ञान एवं जैव अभियांत्रिकी विभाग के प्रा. प्रसेनजीत भौमिक के शोधदल द्वारा किया गया आणविक गतिकी प्रतिरूपविधान (मॉलिक्युलर डायनामिक्स कंप्यूटर सिमुलेशन) इस तथ्य का समर्थन करता है कि फाइब्रिलर कोलेजन-1, एमायलिन के एकत्रीकरण को तीव्र करता है।
 
वास्तविक जैविक ऊतकों में इस अंत: क्रिया के बोध हेतु प्रा. सेन ने आईआईटी कानपुर के प्रा. हमीम ज़फ़र एवं प्रा. साई प्रसाद पैडी तथा सीएनसीआई के डॉ. शंखदीप दत्ता के सहयोग से कार्य किया। उन्होंने मधुमेह से पीड़ित चूहों के अग्न्याशय के ऊतक का अध्ययन किया एवं मानव अग्न्याशय के ऊतक से प्राप्त एकल कोशिका डेटा का विश्लेषण भी किया। उनकी खोज से स्पष्ट होता है कि मधुमेह में वृद्धि के साथ कोलेजन तथा एमायलिन दोनों के स्तर में एक साथ वृद्धि होती है। यह दर्शाता है कि ये दोनों निकटता से जुड़े हुए हैं। अग्न्याशय में कोशिकाओं के समूह स्थित होते हैं (पेनक्रिएटिक आइलेट्स) जिनमें इंसुलिन उत्पादक β-कोशिकाएं निवास करती हैं। मधुमेह की प्रगति के साथ ही अग्न्याशय की इन समूहों की संरचनाओं में भी विकृति उत्पन्न होती है। 

कोशिकाओं पर एमायलिन तथा कोलेजन के संयुक्त प्रभाव का परीक्षण करने हेतु प्रा. सेन ने प्रयोगशाला में निर्मित इंसुलिन उत्पादक β-कोशिकाओं का उपयोग कर कुछ प्रयोग किए। उन्होंने एमाइलिन युक्त कोलेजन जेल पर इन β-कोशिकाओं का परिवर्धन (ग्रोथ) किया, तत्पश्चात कोशिकाओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया। कोलेजन एवं एमायलिन के बिना परिवर्धित की गई कोशिकाओं की तुलना में, एमायलिन एवं कोलेजन के साथ परिवर्धित की गई कोशिकाओं में अधिक कोशिका मृत्यु, हानिकारक अणुओं से उच्च तनाव (ऑक्सीडेटिव तनाव), इंसुलिन का अल्प उत्पादन, एवं कोशिकाओं में मृत्यु के दिशा में अधिक सक्रियता देखी गई। ये निष्कर्ष विषाक्तता वृद्धि में कोशिकाबाह्य आधात्री के स्थिति (जैसे कोलेजन) की महत्वपूर्ण भूमिका व्यक्त करते हैं।

अध्ययन यह भी स्पष्ट करता है कि, कोशिकाओं की अंत: प्रक्रियाओं पर आधारित कुछ मधुमेह उपचार, रोग की तीव्रता को कम करने में बहुत प्रभावी नहीं हो सकते।

“जब तक एमायलिन एवं कोलेजन की परस्पर क्रिया को बाधित नहीं किया जाता, हम अग्न्याशय में निर्मित हुए विषाक्त सूक्ष्म वातावरण को पूर्ण रूप से समाप्त नहीं कर सकते,” प्रा. सेन का कहना है।

नवीन औषधियों के विकास हेतु, शोध दल एमायलिन तथा कोलेजन के मध्य परस्पर क्रिया का बोध कराने में सक्षम क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी मॉडल के विकास पर कार्य कर रहा है। इसके साथ ही वे अग्न्याशय के उपचार की नई विधियाँ भी खोज रहे हैं जिससे कोई विशेष हानि होने के पूर्व ही β-कोशिका के कार्य को सुचारू किया जा सके। इसमें ऐसे समूहों का (पेनक्रिएटिक आइलेट्स) प्रत्यारोपण सम्मिलित हैं जो प्राकृतिक वातावरण का अनुकरण करने वाले त्रिविमीय (3-डी) संरचना से युक्त हो। 


 वित्तपोषण :
यह अध्ययन वाधवानी रिसर्च सेंटर फॉर बायो-इंजीनियरिंग, आईआईटी मुंबई एवं डिपार्टमेंट ऑफ बायो टेक्नोलॉजी, सीएसआईआर, यूजीसी के द्वारा वित्तपोषित किया गया। 

 

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