कोरोना काल है एवं कोई अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर जाने को है! यह स्मरण कितनी पीड़ा एवं संताप से युक्त है। इस कल्पना मात्र से आप भयभीत हो उठेंगे कि आप अपने नगर में उन असंख्य यात्रियों का स्वागत करने वाले हैं जो उच्च संक्रमण स्थलों से गुजरे हैं। यदि आप एक यात्री हैं तो स्वयं को संक्रमण मुक्त मानते हुए आपकी चेष्टा होगी कि किसी भी ऐसी सूचना को गुप्त रखा जाए जो कोविड-19 प्रभावित नगरों में आपकी उपस्थिति को दर्शाती हो। दूसरी ओर, स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए इन परिस्थितियों का सामना करना एक गंभीर चुनौती है, क्योंकि उनको ऐसे लोगों से अधिकाधिक सत्य जानकारी एकत्र करनी है, जो स्वयं इन सूचनाओं को गोपनीय रखना चाहते हैं। इन परिस्थितियों में स्वास्थ्य अधिकारी केवल प्रश्न पूछ सकते हैं एवं प्रत्युत्तर में प्राप्त सूचनाओं के सत्य होने की आशा कर सकते हैं।           

यदि सत्य जानकारी प्राप्त करने की किसी युक्ति के विषय में आपके मन में संदेह है तो बता दें कि आप निश्चिन्त हो सकते हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के डॉ. अनुज वोरा एवं प्राध्यापक अंकुर कुलकर्णी ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए अपने आप में प्रथम एवं अनोखा अध्ययन किया है। अध्ययन बताता है कि उत्तर देने वाला, अर्थात प्रेषक (सेंडर), जब जानकारी को छिपाने की चेष्टा कर रहा हो, एवं कोलाहल (noise) के कारण वार्तालाप में त्रुटियों की संभावना हो तो जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करने वाला, अर्थात प्राप्तकर्ता (रिसीवर), अपने प्रश्नों को किस प्रकार युक्तिबद्ध करे कि अधिकतम जानकारी को सामने लाया जा सके।

किसी चर्चा अथवा मध्यस्थता वार्ता (निगोशिएशन) आदि के समय लोगों के द्वारा जानकारी प्रकट न करना या  कोई  वांछित जानकारी देने में सहयोग न देना जैसी समस्याएं बहुधा सामने आती हैं। किसी व्यावसायिक वार्ता में प्रेषक पक्ष सम्पूर्ण जानकारी देने से बचते हैं क्योंकि उनके विचार में, तथ्य सामने आने पर वार्ता की सफलता प्रभावित हो सकती है। ऐसे अनिच्छ या असम्मत प्रेषकों से जानकारी प्राप्त करने का अध्ययन व्यापक रूप से ‘तंत्र युक्ति सिद्धांत’ (मेकेनिस्म डिजाइन थ्योरी) में किया जाता है। रॉजर मायर्सन ने तंत्र युक्ति सिद्धांत की आधारशिला रखी एवं 2007 में  लियोनिद हर्विज तथा एरिक मास्किन के साथ संयुक्त रूप से अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार  प्राप्त किया।

“यद्यपि तंत्र युक्ति (मेकेनिस्म डिजाईन) में यह जानने का प्रयत्न कभी नहीं किया गया कि, जहाँ सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकती वहाँ मात्रात्मक रूप से (क्वान्टिटेटिवली) कितनी जानकारी प्राप्त हो सकती है,” प्रा. अंकुर कुलकर्णी कहते है। 

कोविड-19 के समय स्वास्थ्य अधिकारियों को जिन स्थितियों का सामना करना पड़ा, उनमें यात्रियों का सम्पूर्ण यात्रा वृत्तांत प्राप्त करना असंभव है। तथापि यह जानना महत्वपूर्ण है कि जानकारी मात्रात्मक रूप से कितनी है। 

“जानकारी का मात्रा-निर्धारण (क्वान्टिफिकेशन ऑफ इन्फर्मेशन) सूचना सिद्धांत (इन्फर्मेशन थ्योरी) के अंतर्गत आने वाला विषय है। और मुख्यतः तंत्र युक्ति के अंतर्गत आने वाली समस्या का सूचना सिद्धांतक विश्लेषण करने वाले हम प्रथम शोधकर्ता हैं,” प्रा. कुलकर्णी कहते हैं।

वर्तमान अध्ययन से ज्ञात होता है कि प्रेषक का असहयोगात्मक व्यवहार एवं कोलाहल-बाधित संचार होने पर भी, प्राप्तकर्ता एक बड़ी संख्या में संभावित सत्य उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। किंतु साथ ही, बहुत से सत्य उत्तर ऐसे भी होंगे जिन्हें प्राप्त कर पाना असंभव होगा, प्रश्नावली को कितनी भी चतुराई से क्यों न निर्मित किया गया हो।

“प्रथम तो हमारे शोध परिणाम बताते हैं कि प्रेषकों या उत्तर देने वालों से जानकारी प्राप्त करने हेतु, प्रश्नकर्ता की प्रश्नावली निर्माण संबंधी रणनीति क्या होगी, दूसरी ओर शोध यह भी इंगित करता है कि कुशल रणनीति होने पर भी कुछ जानकारियाँ ऐसी होती हैं, जिनके सम्बन्ध में प्राप्तकर्ता अँधेरे में रह सकता है,” शोधकर्ताओं का कहना है।     

वोरा और कुलकर्णी ने जानकारी को मात्रात्मक रूप से व्यक्त किया है, जिससे किसी मात्रा को 'जानकारी निष्कर्षण क्षमता' (इन्फर्मेशन एक्सट्रैक्शन कपैसिटी) के रूप में परिभाषित करके निकाला जा सकता है। उन्होंने इस मात्रा के मानों के विस्तार (ऊपरी एवं अधो सीमा) की गणना करने हेतु एक पद्धति स्थापित की है और दर्शाया है कि विभिन्न स्थितियों में ‘जानकारी निष्कर्षण क्षमता’ की गणना सटीक रूप से की जा सकती है। उनका अध्ययन प्राप्तकर्ता के लिए प्रश्नावली निर्मित करने की रणनीतियों के साथ-साथ संरचनात्मक बोध भी प्रदान करता है कि किस प्रकार की जानकारी को प्राप्त किया जा सकता है।

अध्ययन के अनुसार प्राप्तकर्ता केवल एक प्रश्न पूछते हुए संभावित उत्तरों की एक सूची प्रस्तुत करेगा, जिसमें से प्रेषक को एक सही उत्तर चुनना होगा। उदाहरणार्थ एक स्वास्थ्य अधिकारी वर्तमान नगर पर आने से पूर्व भ्रमण किये गए समस्त नगरों का अनुक्रम (सीक्वेंस) प्रस्तुत कर सकता है। अर्थात अधिकारी सभी संभावित अनुक्रमों को विकल्प के रूप में सूचीबद्ध करेगा। यद्यपि, यात्री यदि कोई जानकारी छिपाना चाहते है, तो यह पद्धति उन्हें जानकारी छिपाने के अधिक अवसर भी प्रदान करती है। सीमित विकल्पों की स्थिति में, ऐसे यात्री जो कुछ यात्राओं को तो प्रकट करना चाहते हैं किंतु कुछ अन्य यात्राओं को छिपाना चाहते हैं, वे अधिक सत्यता से जानकारी प्रस्तुत करते हैं। अध्ययन के अनुसार विकल्पों की संख्या को इष्टतम सीमा (ऑप्टीमल रेंज) में रखते हुए, अधिकारी  सर्वाधिक सत्य जानकारी को प्राप्त कर सकते हैं।

जब स्वास्थ्य अधिकारी पूर्व में भ्रमण किये गए केवल कुछ नगरों की जानकारी चाह रहे हों तो नगरों के 'अनुक्रम' की लंबाई केवल कुछ नगरों तक सीमित हो सकती है। जबकि अन्य स्थितियों में वांछित अनुक्रम की लंबाई अधिक होगी, जैसे कर-अधिकारी द्वारा वित्तीय आदान-प्रदान की किसी श्रृंखला की जानकारी प्राप्त करते समय। साथ ही अधिकारियों द्वारा पूछे जाने वाले बहुवैकल्पिक प्रश्न के लिए अधिक चयन विकल्पों की आवश्यकता होगी। अर्थात प्राप्त किए जाने वाले अनुक्रम की लंबाई में वृद्धि के साथ प्रस्तावित किये जाने वाले इष्टतम विकल्पों की संख्या बढ़ेगी। इष्टतम विकल्पों की संख्या में वृद्धि की दर को, शोधकर्ता ‘जानकारी निष्कर्षण क्षमता’ के रूप में परिभाषित करते हैं। यदि कोई प्रेषक असहयोगात्मक व्यवहार कर रहा है तो उसके साथ संचार करते समय आवश्यक संचार संसाधन, ‘जानकारी निष्कर्षण क्षमता’ पर निर्भर करते हैं।

वोरा एवं कुलकर्णी ‘सूचना सिद्धांत’ के एक दृष्टिकोंण के अनुसार, संचार के कोलाहल-बाधित (noisy) या सटीक नहीं होने की स्थिति में इसे तदनुसार प्रतिरूपित (मॉडल) करते हैं । उदाहरणस्वरूप, यदि किसी प्रेषक के द्वारा प्रेषित किये गए किसी संदेश में संचार पथ के द्वारा अक्षर B बारम्बार अक्षर D में परिवर्तित कर दिया जाता है। इन स्थितियों में चूंकि प्राप्तकर्ता को B के स्थान पर अक्षर D मिलता है, वे इसे D ही मानेंगे यद्यपि उनको अक्षर B प्रेषित किया गया था। इसका अर्थ यह है कि बिना त्रुटि के भेजे जाने की संभावना कुल 26 अक्षरों में से केवल 24 अक्षरों की है। त्रुटि-रहित भेजी जा सकने वाली जानकारी की मात्रा संचार मार्ग की ‘शून्य-त्रुटि क्षमता’ (जीरो एरर कैपेसिटी) कहलाती है। वर्तमान अध्ययन में, वोरा एवं कुलकर्णी ने यह प्रमाणित किया है कि प्रेषक की ‘जानकारी निष्कर्षण क्षमता’ का उपयोग करने के लिए, संचार माध्यम की ‘शून्य-त्रुटि क्षमता’ को ‘जानकारी निष्कर्षण क्षमता’ से अधिक होना चाहिए। इस स्थिति में प्राप्तकर्ता बड़ी संख्या में अनुक्रमों को निकाल सकता है।

अध्ययन बोध कराता है कि कुछ प्रश्नावलियों जैसे कि आव्रजन (इमिग्रेशन) में अथवा ग्राहक सेवा बॉट्स में प्रदान किए गए विकल्प विस्तृत क्यों नहीं होते हैं। एक उपयोगकर्ता के रूप में जब हमें एक सटीक चयन विकल्प नहीं मिलता, तो बहुधा निकटता से मेल खाने वाला एक विकल्प आवश्यक हो जाता है। यह सीमित किन्तु सत्य जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से लाभप्रद है। 

“हमारा अध्ययन दर्शाता है कि बहुवैकल्पिक प्रश्नों के उत्तरों के रूप में सीमित विकल्प प्रदान करना, आवश्यक नहीं  कि एक प्रतिकूल योजना हो, अपितु यह एक रणनीति है जो बड़ी संख्या में उपयोगकर्ताओं से यथासंभव एवं सत्य जानकारी प्राप्त करने हेतु निर्मित की गई है,” प्रा. कुलकर्णी ने स्पष्ट किया।

इस शोध को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान मंडल, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित किया गया है।
 
यह खोज विभिन्न क्षेत्रों जैसे वित्त, नियंत्रण प्रणाली, गुप्तचर तंत्र एवं राष्ट्रीय सुरक्षा, बाजार अनुसंधान एवं कूटनीतिक वार्ता आदि में उपयोगी हो सकती है। 

“हमारे इस शोध पत्र में प्राप्तकर्ता के लिए रणनीतियाँ प्रदान की गई हैं, साथ ही यह भी बताया गया है कि किस प्रकार की जानकारी को संभावित रूप से प्राप्त किया जा सकता है,” प्रा. कुलकर्णी निष्कर्ष देते हैं।