भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के दो नवीन अध्ययन स्फटिक (क्रिस्टल) में परमाणुओं की व्यवस्था में अन्तर्निहित स्थानच्युति (डिस्लोकेशन) नामक दोषों के महत्व को प्रदर्शित करते हैं, जो धातुई मिश्र धातुओं के भौतिक गुणों के गठन में सक्षम है।
स्फटिक (क्रिस्टल) की बहुधा परमाणुओं की आवधिक रूप से व्यवस्थित सरणियों में, अथवा पंक्तियों एवं स्तंभों में आवधिक रूप से व्यवस्थित अणुओं के रूप में कल्पना की जाती है। तथापि, आदर्श स्फटिक (क्रिस्टल) वास्तविकता में कदाचित ही देखे जाते हैं। अधिकांश स्फटिक जालक (क्रिस्टल लैटिस) में दोष होते हैं, एवं स्थानच्युति नामक दोष इन्हीं का एक प्रकार है। एक स्थानच्युति दोष (डिस्लोकेशन) तब उत्पन्न होता है जब स्फटिक (क्रिस्टल) में परमाणुओं या अणुओं की आवधिक व्यवस्था में अनियमितता या विराम होता है। अपरिहार्य रूप में, यह नियमित क्रिस्टल पैटर्न में विलुप्त परमाणुओं का आस्तरण (शीट) है, जिसमें विलुप्त परमाणुओं द्वारा छोड़े गए रिक्त स्थान को भरने के लिए निकटवर्ती परमाणुओं के समतल स्थानांतरित हो जाते हैं।
यद्यपि विस्थापन जैसे एक दोष की उपस्थिति पदार्थ के भौतिक गुणों को परिवर्तित कर देती है - यह एक ऐसा तथ्य है जिसका उपयोग पदार्थ वैज्ञानिक पदार्थों के भौतिक गुणों यथा ढृढ़ता, लचीलापन एवं विद्युत चालकता को भली-भाँति अभियन्त्रित (इंजीनिअर) करने के लिए कर रहे हैं।
लोहे की मिश्र धातुओं, जैसे मोलिब्डेनम युक्त मैरेजिंग स्टील में मोलिब्डेनम परमाणुओं को लौह परमाणुओं के एक आव्यूह (मैट्रिक्स) में वितरित किया जाता है। जब स्थानच्युति (डिस्लोकेशंस) उपस्थित होती हैं, तो वे नलिका (पाइप) की तरह कार्य करती हैं जिसके माध्यम से विलेय मोलिब्डेनम परमाणु, स्थानच्युति रहित पदार्थ की तुलना में अत्यंत तीव्रता से चलायमान हो सकते हैं। इस प्रक्रिया को नलिका-विसरण (पाइप-डिफ्यूजन) कहा जाता है। स्थानच्युति के माध्यम से विलेय परमाणुओं का तीव्रता से चलायमान होना मिश्र धातु की एजिंग प्रक्रिया में सहायक है। एजिंग प्रक्रिया जिसे अवक्षेपण सुदृढीकरण (प्रेसिपिटेशन हार्डनिंग ) भी कहा जाता है, एक पदार्थ को दीर्घ काल तक ऊष्णीकरण (हीटिंग) के द्वारा सुदृढ़ीकरण की एक विधि है, जब तक कि यह वांछित सुदृढ़ता प्राप्त नहीं कर लेता। ऊष्णीकरण के समय, विलेय परमाणुओं के अवक्षेप (इस अध्ययन में, Fe2Mo) समस्त विलायक पदार्थ में निर्मित होते हैं, एवं इस प्रकार मिश्र धातु को सुदृढ़ता प्रदान करते हैं। स्थानच्युति की संख्या जितनी अधिक होती है उतनी ही तीव्रता से विलेय परमाणुओं का विसरण (डिफ्यूजन) पदार्थ के माध्यम से होता है। यह एजिंग प्रक्रिया के वांछित स्तर को प्राप्त करने के लिए आवश्यक समय एवं ऊर्जा को न्यून करने में सहायक है।
आईआईटी मुंबई के प्रथम अध्ययन में कार्य दल ने अवलोकन किया कि नलिका-विसरण (पाइप डिफ्यूजन) के कारण निर्मित अवक्षेपों के आकार, विलेय के तीव्र विसरण द्वारा परिवर्तित कर दिए गए थे। ये अवक्षेप (प्रेसिपिटेट्स) पदार्थ में गतिमान विलेय परमाणुओं के गुच्छों द्वारा बनते हैं। वे अब अपने नियमित गोलाकार रूप में न होकर पट्टिका जैसी संरचना में चपटे हो चुके थे। कार्यदल ने यह दर्शाने के लिए संगणक निदर्श (कम्प्युटर मॉडल) एवं अनुरूपण (सिमुलेशन) का उपयोग किया कि जैसे-जैसे स्थानच्युति क्षेत्रों के निकट अवक्षेप बढ़ता गया, वैसे-वैसे स्थानच्युति के साथ इसकी अंत:क्रिया के आधार पर अवक्षेप का आकार भी परिवर्तित हुआ। "अवक्षेप की आकारिकी (मोर्फोलॉजी) में परिवर्तन मिश्र धातु के गुणों, विशेष रूप से इसकी तन्यता (डक्टिलिटी) में अवनति का कारण बनता है, जो उचित नहीं है। अध्ययन संकेत करता है कि पूर्व विकृतियों (डिफॉर्मेशन) को कैसे नियंत्रित किया जाए कि केवल एजिंग प्रक्रिया का लाभ प्राप्त करने हेतु पर्याप्त स्थानच्युति प्रस्तुत की जा सके एवं सुनिश्चित किया जा सके कि बहुत अधिक चपटे अवक्षेप उत्पन्न नहीं हुए हैं” अध्ययन दल में से एक, प्राध्यापक नागमणि जया स्पष्ट करती है।
आगे के अध्ययन में कार्यदल यह जानना चाहता था कि मिश्र धातु में विलेय एवं एकल स्थानच्युति के मध्य अंत:क्रिया कैसे संपन्न हुई, विशेष रूप से अवस्था पृथक्करण (फेज सेपरेशन) के समय। अवस्था पृथक्करण तब होता है जब दो अवस्थाएं एक सजातीय (होमोजीनिअस) मिश्रण से पृथक होती हैं। उदाहरण के लिए, तेल और पानी को मिलाते समय, दो तरल पदार्थ, पानी एवं तेल की अलग-अलग परतें निर्मित करने हेतु पृथक-पृथक अवस्थाओं से गुजरते हैं। दल यह अध्ययन करना चाहता था कि धातुई मिश्र धातुओं में स्थानच्युति की उपस्थिति, अवस्था पृथक्करण (फेज सेपरेशन) में कैसे सहायक हुई या कैसे इसे प्रभावित किया। उन्होंने धातुइ मिश्र धातु में निहित स्थानच्युति के प्रतुतिकरण हेतु पुन: एक संगणक निदर्श एवं अनुरूपण चलाया।
अवस्था पृथक्करण (फेज सेपरेशन) सामान्यत: दो प्रकार से होता है - केन्द्रक निर्माण (न्यूक्लिएशन) तथा विकास एवं स्पिनोडल पृथक्करण। केन्द्रक निर्माण प्रक्रिया तब प्रारंभ होती है जब मिश्र धातु के विलेय परमाणुओं की अल्प मात्रा मिश्रण के अन्दर एक बिंदु पर एकत्रित हो जाती है। एक बार जब यह संचित द्रव्यमान एक क्रांतिक आकार (क्रिटिकल साइज़) को प्राप्त कर लेता है तो इसमें वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है। उदाहरण के लिए, Fe2Mo पर पुन: विचार करते है। यहाँ मोलिब्डेनम परमाणु लौह आव्यूह (मैट्रिक्स) में एक केन्द्रिक बिंदु पर एकत्र होकर विकसित होंगे एवं अंततः दोनों को पृथक करेंगे। स्थानच्युति संजाल (डिस्लोकेशन नेटवर्क) सामान्यत: संचय प्रक्रिया आरम्भ करने के लिए पदार्थ में एक अनुकूल क्षेत्र प्रदान करते हैं एवं इस प्रकार से केन्द्रिक निर्माण एवं विकास प्रक्रिया प्रारम्भ करते हैं। दूसरी ओर, स्पिनोडल अपघटन, यादृच्छिक (स्पोंटेनिअस) होता है, जहाँ कुछ विशिष्ट संरचनाओं में मिश्र-धातु के दो घटक पृथक-पृथक होते हैं। यह पानी एवं तेल के समान दो पृथक-पृथक परतों में यादृच्छिक रूप से पृथक होने सदृश है। यद्यपि दोनों चिर-परिचित घटनाएँ हैं, किंतु उस विचार के विपरीत हैं कि एक ही पदार्थ में दो प्रक्रियाएँ कभी भी एक साथ नहीं होती हैं।
अपने अध्ययन में, आईआईटी मुंबई के शोध दल ने पाया कि पदार्थ में एक ही समय में केन्द्रक निर्माण एवं विकास तथा स्पिनोडल अपघटन दोनों हो सकते हैं। जब एक एकल स्थानच्युति स्पिनोडल अपघटन में सहायक हुई, तो जब वहाँ दो अन्तर्विभाजक स्थानच्युति (इंटरसेक्टिंग डिस्लोकेशन) थे, तो इससे केन्द्रक निर्माण एवं विकास में भी सहायता मिली। "हमने पाया कि संघटकों (कम्पोजीशन) के एक विशिष्ट स्तर (मिश्र धातु में दो धातुओं का प्रतिशत) से परे, स्थानच्युति रेखा के साथ स्पिनोडल अपघटन हो सकता है। लेकिन जब हम एकल स्थानच्युति के स्थान पर एक स्थानच्युति संजाल पर विचार करते हैं, तो उस संधि पर जहाँ दो स्थानच्युति मिलती हैं, केन्द्रक निर्माण (न्यूक्लियेशन) भी होता है। अध्ययन के एक लेखक अर्जुन वर्मा आर कहते हैं, हमारी सर्वोत्तम जानकारी के अनुसार यह शोध साहित्य में प्रथम है, जब स्पिनोडल पृथक्करण एवं केन्द्रक निर्माण (न्यूक्लियेशन) दोनों को एक ही समय में होते हुए पाया गया है।" शोध दल ने अपने अनुरूपण (सिमुलेशन) हेतु विमा-रहित राशियों (नॉन डायमेंशनलाइज्ड पैरामीटर अर्थात चर या राशि जो किसी विशेष पदार्थ से स्वतंत्र हैं) का उपयोग किया, जिसका तात्पर्य यह था कि एक ही प्रतिमान का उपयोग विभिन्न धातुइ मिश्र धातुओं का अध्ययन करने हेतु किया जा सकता है।
"जब हमने प्रथम बार स्पिनोडल पृथक्करण एवं केन्द्रक निर्माण को एक साथ होते हुए देखा, तो आशंका हुई कि हमारे नमूने में ही कुछ त्रुटि है क्योंकि हम इन मिश्र धातुओं के सम्बन्ध में ऐसा मंतव्य रखने के लिए प्रशिक्षित नहीं थे। मुझे यह स्वीकार करने में कुछ समय लगा कि यह वास्तव में सत्य था,” प्रो. एमपी गुरुराजन, जो दोनों अध्ययनों का भाग थे, उत्साहित होकर कहते हैं। लौह-मैंगनीज मिश्र धातु के एटम प्रॉब परिणामों (परमाणु संरचनाओं का अध्ययन करने के लिए एक प्रकार की माइक्रोस्कोपी) से सम्बंधित शोध साहित्य से तुलना करके उनके प्रतिमान (मॉडल) की आगे भी पुष्टि हुई, जो स्थानच्युति पर होने वाले स्पिनोडल के प्रमाण प्रदर्शित करते हैं। इसके अतिरिक्त, इस प्रतिमान का उपयोग करते हुए उन्होंने संघटकों के सीमा विस्तार (रेंज) का पूर्वानुमान भी किया है जिसके अंतर्गत विभिन्न मिश्र-धातुओं के लिए स्थानच्युति के साथ स्पिनोडल अपघटन की संभावना होती है।
दोनों अध्ययनों से हमें ज्ञात होता है कि मिश्र-धातुओं के भौतिक गुणों को निर्धारित करने में विस्थापन कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह हमें स्थानच्युति को सटीक रूप से अभियन्त्रित (इंजीनियर) करने की अनुमति देता है ताकि इसके दोषों को दूर करते हुए इससे लाभ उठाया जा सके। अनुप्रयोगों के अतिरिक्त, यह अध्ययन हमें स्थानच्युति के व्यवहार के मूलभूत विज्ञान एवं धातुइ मिश्र धातुओं के परमाणुओं के साथ इनकी अंत:क्रिया के सम्बन्ध में भी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
इसके अतिरिक्त, धातुकर्म के पाठ्य से पृथक, इस अध्ययन ने कोडिंग एवं कंप्यूटर मॉडल के संस्थानिक विकास को भी प्रोत्साहित किया, जिसका उपयोग अन्य धातु प्रणालियों एवं मिश्र धातुओं के अध्ययन हेतु किया जा सकता है। "अवस्था क्षेत्र (फेज फील्ड) मॉडलिंग, उच्च गतिक संगणन (हाई-स्पीड कंप्यूटिंग) के लिए मानक समस्याओं में से एक है एवं प्रयुक्त सुपर कम्प्यूटर के अनुरूप संगणन में अधिक समय व्यय करता है। मॉडल निर्मित करने एवं स्वयं से कोड लिखने के उपरांत, हमारे समूह के पास अब इन पदार्थों की जानकारी को और उन्नत करने की विशेषज्ञता है। इन अध्ययनों के समय विकसित ये कौशल हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण पक्षों में से एकहै ," प्राध्यापक गुरुराजन टिप्पणी करते हैं।