पार्किंसन रोग का उसके प्रारंभिक चरण में पता लगाने हेतु, चलने की शैली के गणितीय विश्लेषण का उपयोग करता एक नवीन अध्ययन।

कैंसर, विस्फोटकों इत्यादि को ‘सूँघकर’पहचानने के लिए नैनो कणों का उपयोग

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Bengaluru
18 फ़रवरी 2019
छायाचित्र : पूरबी देशपांडे, गुब्बी लैब्स

भारतीय प्रौद्योगिकी संसथान के संशोधकों ने रेणुओं को जलद तथा सटीक तरह से भांपने की प्रणाली विक्सित की

कैंसर (कर्क रोग), एक ऐसी बीमारी है जिससे हमारे शरीर की कुछ कोशिकाएँ  बिना किसी रोक टोक के बढ़ती रहती हैं और अगर शुरुआत में ही इसका पता नहीं चले तो ये घातक हो सकती है। कैंसर कोशिकाओं के कुछ संकेत कैंसर की शुरुआत का पता लगाने में मदद कर सकते हैं; उदाहरण के लिए, कुछ रसायनों का हमारे साँस के माध्यम से बाहर निकलना, फेफड़ों के कैंसर का सूचक हैं। लेकिन कैंसर का पता लगाने के लिए पारंपरिक साँस का परीक्षण रोगी के पलंग के पास नहींकिया  जा सकता हैं। ये बोझिल, समय लेने वाला होता  हैं और केवल तभी विश्वसनीय परिणाम देता है जब यह रसायन बड़ी मात्रा में मौजूद हो। हाल के एक अध्ययन में, प्राध्यापक चंद्रमौली सुब्रमण्यम और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के उनके दल ने एक प्रणाली विकसित की है जो लगभग एक मिनट में एकल आणविक स्तरों में ऐसे रसायनों का पता लगाने में मदद कर सकती है। दिलचस्प बात यह है कि वायु प्रदूषण के स्तर की निगरानी करने या टीएनटी (ट्राइनाइट्रोटोल्यूइन) जैसे विस्फोटकों का पता लगाने के लिए भी इसी तकनीक का उपयोग किया जा सकता है।

रासायनिक पदार्थो (एक विश्लेष्य पदार्थ) का पता लगाने के लिए दो प्रकार की तकनीकें हैं: अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष। सबसे आम उपयोग की जाने वाली  अप्रत्यक्ष विधि में अन्य अणु जिन्हें 'सूचक पत्र ' कहा जाता है, विशेष रूप से विश्लेष्य पदार्थ से जुड़ते हैं और प्रतिदीप्त प्रकाश उत्सर्जित करते हैं जिसका पता लगाया जाता है। प्रत्यक्ष विधि में, विश्लेष्य पदार्थ द्वारा बिखरे हुए प्रकाश में एक विशिष्ट संकेत होता है जिसका पता लगाया जाता है। अप्रत्यक्ष विधि के कुछ नुकसान हैं कि पहचान प्रणाली के पास विश्लेष्य पदार्थों के प्रकार के रूप में कई विशिष्ट सूचक पत्र होने चाहिए। इसमें विश्लेष्य पदार्थों  की अधिक सांद्रता की भी आवश्यकता होती है।

" ‘सूचक पत्र मुक्त’ विधि के कई लाभ हैं जैसे न्यूनतम नमूने लेने का समय, अधिक निश्चितता और सटीक पहचान ", प्राध्यापक  सुब्रमण्यम बताते हैं।

आईआईटी बॉम्बे का यह अध्ययन ‘एसीएस सस्टेनेबल केमिस्ट्री एंड इंजीनियरिंग’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के नैनो-मिशन कार्यक्रम द्वारा वित्त पोषित, विशिष्ट पदार्थों का पता लगाने के लिए रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी नामक सीधी (सूचक पत्र-मुक्त) तकनीक का उपयोग करता है।  परन्तु,रामन प्रकीर्णन में एकत्रित प्रकाश की तीव्रता स्वाभाविक रूप से बहुत कम होती है। इससे उबरने के लिए, दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने सरफेस एन्हांस्ड प्रकीर्णन (सतह बृद्धित रामन प्रकीर्णन) (एसईआरएस) नामक एक विधि विकसित की है, जिससे धातु नैनोपार्टिकल की सतह के नजदीक में स्थित एक अणु द्वारा प्रकीर्णित प्रकाश, अधिक तीव्रता प्रदर्शित कर सकता है और इस प्रकार इसका पता लगाया जा सकता है। यद्यपि यह विश्लेष्य पदार्थ के लिए एक विशिष्ट अत्यधिक संवेदनशील संकेत देता है, एक विश्वसनीय संकेत प्राप्त करना एक समस्या है क्योंकि इन कोलोइड की ब्राउनियन गति के कारण नैनोकण अत्यधिक गतिशील होते हैं। यहाँ आईआईटी बॉम्बे के वैज्ञानिकों ने विश्लेष्य पदार्थो को कैद करने के लिए नैनोकणों का  " पिंजरा " बनाने का अनूठा विचार प्रस्तावित किया है।

शोधकर्ताओं ने नैनो-कण समूह (जैसे पत्थर की गाँठों का गुच्छा) बनाने के लिए नैनोमीटर स्तर पर उष्ण-विसरण या सोरेट प्रभाव नामक एक विधि का उपयोग किया, जिसमें वे विश्लेष्य पदार्थ फँस कर एक प्रकाशीय संकेत देते हैं जो लगभग लाखों गुना अधिक होता है। अपनी प्रणाली के एक सिरे को  -१० डिग्री सेल्सियस तक ठंडा करके और दूसरे छोर को सामान्य तापमान पर रखने पर नैनोकण (चांदी और सोने के) एक ओर विस्थापित हो जाते हैं  और "पिंजरे" बनाने के लिए एक-दूसरे से चिपक जाते हैं। उन्होंने देखा कि इस समूह में फँसे विश्लेष्य पदार्थ से बिखरी हुई रोशनी विशिष्ट और तीव्र थी। जिससे उनका पता लगाना शीघ्र और सटीक था, भले ही विश्लेष्य पदार्थ का केवल एक ही अणु मौजूद था।

यह तरीका किसी भी रूप के गैसीय, तरल या ठोस पदार्थों का पता लगा सकता है। तरल पदार्थो या गैसों को उन्हें सोरेट कोलाइड के साथ मिलाकर और फिर रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी के अध्ययन से पहचाना जाता है। ठोस पदार्थों के मामले में, इनके अणुओं को सोरेट कोलाइड में ले जाने के लिए गैस को विश्लेष्य पदार्थ पर प्रवाहित किया जाता है। यह प्रक्रिया हवाई अड्डे पर खतरनाक रसायनों की उपस्थिति की जाँच के लिए हवाई-पर्दे के समान है। यह इस सिद्धांत का उपयोग करता है कि किसी भी ठोस पदार्थ के सतह पर अणुओं की एक परत वाष्प अवस्था में होगी। इस प्रक्रिया ने टीएनटी जैसे पदार्थ को इसके ठोस रूप में ‘सूँघने’ में मदद की। एक महत्वपूर्ण कामयाबी यह है यह कि इनका पता लगाने के लिए ठोस पदार्थों को अन्यथा विघटित करके विलयन बनाने या उच्च तापमान तक गर्म करने की आवश्यकता नहीं होती है। इस विधि ने सफलतापूर्वक समरूप, गैर-विस्फोटक लेकिन रासायनिक रूप से समान पदार्थों जैसे डीएनटी (डीनिट्रोटोल्यूने) और नाइट्रोबेंज़ीन की उपस्थिति में टीएनटी की पहचान की।

भविष्य के लिए यह तकनीक कितनी आशाजनक है? पोर्टेबल स्पेक्ट्रोमीटर बनाने के लिए इस मंच का उपयोग किया जा सकता है। "हम एक वहनीय हाथी (दस्ता) रामन स्पेक्ट्रोमीटर विकसित करने के लिए एक भारतीय कंपनी के साथ चर्चा कर रहे हैं। इसके बाद हम इसे निदानकारी उपकरण बनाने के लिए हमारे एसईआरएस मंच के साथ जोड़ सकते हैं, जिससे हमें फेफड़ों के विकारों के लिए प्रारंभिक चेतावनी का संकेत प्रदान करने में मदद मिलेगी मिलती है। एक सुरक्षा जाँच उपकरण भी संभावित रूप से बनाया जा सकता है।'' डॉ सुब्रमण्यम कहते हैं।