आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया है कि आनत (टिल्टेड) सतह पर रक्त की बूँदें कैसे सूखती हैं एवं फटों (क्रैक्स) के अवशेष इन रक्त बूँदों के विषय में क्या कहते हैं।

पार्किंसंस रोग में प्रोत्साहन एवं प्रेरणा जैसे कारकों का बाधित व्यवहार

Mumbai
3 मई 2025
Graphical representation of removed puzzle pieces of the brain

पार्किंसंस डिसीज़ (PD) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम) को प्रभावित करने वाला एक तंत्रिका संबंधी विकार है। 2020 में विश्व भर के एक करोड़ से भी अधिक लोग पार्किंसंस से पीडित थे, एवं इनमें से 10% केवल भारत में थे। पार्किंसंस पीडित व्यक्तियों के अंगों में कंपन, मांसपेशियों में जड़ता एवं मंद गति जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं। यद्यपि पार्किंसंस रोग से पीडित व्यक्तियों में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने वाले गति संबंधी लक्षणों (मोटर लक्षणों) के अतिरिक्त अन्य ऐसे लक्षण भी होते हैं जो गति से संबंधित नहीं होते (नॉन-मोटर)। डोपामाइन हार्मोन की न्यूनता से उत्पन्न होने वाले ये लक्षण हैं, प्रेरणा (मोटीवेशन) की कमी या आनंद की अनुभूति न होना। ‘फील-गुड’ के नाम से जाना जाने वाला डोपामाइन हार्मोन सामान्यतः आनंदित करने वाले कार्यों को करने या प्रोत्साहन प्राप्त होने पर उत्पन्न होता है। 

आनंद एवं प्रोत्साहनों को अनुभूत करने की क्षमता, मानव के स्वास्थ्य एवं जीवन की गुणवत्ता की दिशा में एक अत्यंत मौलिक पक्ष है। आनंद की अनुभूति प्रदान करने वाला डोपामाइन हार्मोन व्यक्ति को अधिकाधिक आनंद की अनुभूति को प्राप्त करने अथवा प्रोत्साहन जन्य व्यवहार की पुनरावृत्ति के लिए प्रेरित करता है। किंतु पार्किंसंस रोग से पीडित व्यक्तियों में डोपामाइन की न्यूनता होने के कारण मस्तिष्क की गतिविधि परिवर्तित हो जाती है एवं प्रोत्साहन तथा प्रेरणा के प्रसंस्करण की प्रक्रिया क्षीण (इम्पेअर्ड रिवार्ड प्रोसेसिंग) हो जाती है। दूसरे शब्दों में, प्रोत्साहन देने वाली उत्तेजनाओं (रिवार्डिंग स्टिमुलीज) को पहचानने, मूल्यांकन करने एवं प्रतिक्रिया देने की मस्तिष्क की क्षमता प्रभावित होती है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई के जीव विज्ञान एवं जैव अभियांत्रिकी विभाग की ह्यूमन मोटर न्यूरोफिजियोलॉजी लैब में शोधकर्ताओं के द्वारा एक नवीन अध्ययन किया गया है, जिसके अंतर्गत उन्होंने पार्किंसंस रोग से पीडित व्यक्तियों में प्रोत्साहन प्रसंस्करण (रिवॉर्ड प्रॉसेसिंग) का अध्ययन उनके मस्तिष्क संकेतों के आधार पर किया है।

“जड़ता एवं कंपन जैसे गतिशील या मोटर लक्षण सामान्यतः पार्किंसंस रोग में ध्यान आकर्षित कराने वाले प्रारंभिक लक्षण होते हैं, जबकि संज्ञानात्मक (बोध संबंधित) एवं भावनात्मक परिवर्तन जैसे अन्य नॉन-मोटर लक्षण तो वर्षों पूर्व ही उत्पन्न हो जाते हैं। कुछ रोगी संज्ञानात्मक या भावनात्मक परिवर्तनों का अनुभव प्रारंभ में ही कर लेते हैं, जबकि अन्य में यही लक्षण विकसित होने में बहुत अधिक समय लग सकता है। इससे लक्षणों के उत्पन्न होने का क्रम असंगत हो जाता है,” प्रमुख अध्ययनकर्ता प्राध्यापक निवेदिता का कहना है।

मस्तिष्क कोशिकाएं (न्यूरॉन्स) परस्पर संवाद के लिए विद्युत संकेतों का उपयोग करती हैं। इलेक्ट्रो-एन्सेफेलोग्राफी (EEG) खोपड़ी पर रखी गई धातु की छोटी चकतियों (डिस्क्स) के माध्यम से मस्तिष्क में होने वाली विद्युतीय गतिविधि का मापन करने की तकनीक है। जब कोई व्यक्ति एक निश्चित कार्य कर रहा होता है, तो EEG उस कार्य में संलग्न, मस्तिष्क के विभिन्न भागों के विद्युत गतिविधि पैटर्न में परिवर्तन का पता लगाता है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक प्रोत्साहन-आधारित प्रशिक्षण कार्य करते हुए 28 पार्किंसंस रोगियों एवं 28 स्वस्थ व्यक्तियों से प्राप्त EEG डेटा का विश्लेषण किया। पार्किंसंस रोगियों का EEG परीक्षण दो बार किया गया - एक बार ऑफ अवस्था में अर्थात डोपामाइन दवा लेने से पूर्व (पूर्व में ली गई मात्रा के 15 घंटे बाद) एवं एक बार ऑन अवस्था में अर्थात डोपामाइन दवा लेने के उपरांत। इन स्थितियों के तुलनात्मक अध्ययन के द्वारा शोधकर्ताओं को प्रोत्साहन प्रसंस्करण पर डोपामाइन औषधि के प्रभाव को समझने में सहायता मिली।

शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क की प्रोत्साहन प्रसंस्करण (रिवार्ड प्रोसेसिंग) से संबंधित गतिविधियों की जानकारी हेतु तीन प्रकार की विश्लेषण पद्धतियों का उपयोग किया। प्रथमत: उन्होंने प्रोत्साहन के प्रभाव स्वरुप मस्तिष्क में उत्पन्न प्रतिक्रिया की गणना करने वाली, इवेंट रिलेटेड पोटेंशियल एनालिसिस (ERP) पद्धति का उपयोग किया। उन्होंने पाया कि प्रोत्साहन प्राप्ति के 250 - 500 मिली सेकण्ड उपरांत मस्तिष्क के अग्र भाग से सकारात्मक ERP प्रतिक्रिया प्राप्त होती है एवं यह घटना प्रोत्साहन सकारात्मकता (रिवार्ड पाजिटिविटी) के नाम से जानी जाती है (किसी प्रोत्साहन के प्रति EEG पर एक सकारात्मक तरंग-रूप प्रतिक्रिया)। प्रोत्साहन सकारात्मकता ध्यान देने, सीखने एवं भावनात्मक प्रतिक्रियाओं जैसी संज्ञानात्मक (कॅग्नीटिव) प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक है। 

शोधकर्ताओं ने जो द्वितीय विश्लेषण किया वह था टाइम-फ्रीक्वेंसी विश्लेषण जो मस्तिष्क की गतिविधि में आवधिकता या लय (रिदम) की पहचान करता है। उन्होंने 5-7 हर्ट्ज के मध्य स्थित मंद मस्तिष्क तरंगों अर्थात थीटा तरंगों तथा 30-55 हर्ट्ज के मध्य स्थित तीव्र मस्तिष्क तरंगों अर्थात गामा तरंगों की पहचान की, जिनमें से प्रत्येक विशिष्ट संज्ञानात्मक अवस्थाओं या मस्तिष्क गतिविधियों से संबंधित हैं। थीटा तरंगें प्रोत्साहन प्रसंस्करण एवं रचनात्मकता से सम्बन्ध रखती हैं, जबकि गामा तरंगे निर्णय-क्षमता एवं समस्या-समाधान से सम्बंधित हैं। अंतत: फेज-एम्प्लीट्यूड कपलिंग (PAC) नामक एक विधि का उपयोग करके उन्होंने थीटा एवं गामा तरंगों के मध्य समकालन स्तर (सिंक्रोनाइजेशन लेवल) को मापा, जो मस्तिष्कीय क्षेत्रों के मध्य संचार का आधार मानी जाती है। थीटा-गामा कपलिंग (PAC) या सिंक्रोनाइजेशन, प्रोत्साहन प्रसंस्करण एवं लक्ष्योन्मुख व्यवहार (रिवार्ड प्रोसेसिंग एंड गोल-ओरिएंटेड बिहेविअर) जैसे संज्ञानात्मक कार्यों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इस अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि पार्किंसंस के रोगियों में प्रोत्साहन सकारात्मकता (रिवार्ड पाजिटिविटी) दुर्बल थी। यह दर्शाता है कि उनके मस्तिष्क, प्रोत्साहनों को प्रभावी रूप से संसाधित नहीं कर सके। साथ ही प्रोत्साहन सकारात्मकता को पुनर्जीवित करने में उन्होंने डोपामाइन औषधि को भी विफल पाया। 

“सामान्यत: प्रोत्साहन की प्रतिक्रिया के रूप में मस्तिष्क डोपामाइन को छोटे-छोटे प्रस्फुटन (शॉर्ट बर्स्ट) के रूप में मुक्त करता है, किंतु पार्किंसंस के रोगियों में, ये प्रस्फुटन दुर्बल होते हैं। यद्यपि औषधि मस्तिष्क में डोपामाइन के स्तर की पुनःपूर्ति करती है, तथापि यह प्राकृतिक रूप से होने वाले डोपामाइन प्रस्फुटन जैसे संकेत उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होती। यह एक कारण हो सकता है कि क्यों औषधीय डोपामाइन मोटर लक्षणों में संशोधन करने में सक्षम है, किंतु प्रोत्साहन प्रसंस्करण जैसे संज्ञानात्मक कार्यों में नहीं। अत: पार्किंसंस रोग में संज्ञानात्मक क्षति को दूर करने हेतु सहायक उपचार रणनीतियों की आवश्यकता हो सकती है,” प्रा. निवेदिता कहती हैं।

टाइम-फ्रीक्वेंसी विश्लेषण के परिणाम दर्शाते हैं कि स्वस्थ व्यक्ति जहाँ प्रोत्साहन प्राप्ति के पश्चात प्रोत्साहन-प्रसंस्करण तरंग गतिविधियों का प्रदर्शन करते हैं वहीं पार्किंसंस रोगी ऑफ एवं ऑन दोनों ही स्थितियों में दुर्बल संकेत देते हैं। यह इंगित करता है कि पार्किंसंस से पीडित व्यक्तियों में डोपामाइन लेने के उपरांत भी प्रोत्साहन के प्रति अल्प संवेदनशीलता होती है। 

“परिणाम यह भी स्पष्ट करते हैं कि थीटा गतिविधि के माध्यम से संचालित प्रोत्साहन प्रसंस्करण कदाचित पूर्ण रूप से डोपामिनर्जिक तंत्र द्वारा संचालित नहीं होता एवं मस्तिष्क में अन्य रसायनों (न्यूरोट्रांसमीटर) की भूमिका पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है,” प्रा. निवेदिता कहती हैं।

PAC विश्लेषण इंगित करता है कि पार्किंसंस रोगियों में थीटा-गामा समकालन (सिंक्रोनायजेशन) दुर्बल होता है, जिससे मस्तिष्क के प्रोत्साहन संबंधी जानकारी का प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) करने वाले एवं लक्ष्य-निर्देशित व्यवहार के लिए इसका उपयोग करने वाले भागों के मध्य संवाद अवरुद्ध होता है। पार्किंसंस के रोगियों में प्रेरणा की कमी एवं निर्णय लेने में अक्षमता का यह संभावित कारण हो सकता है। डोपामाइन औषधि थीटा-गामा सिंक्रोनाइजेशन को आंशिक रूप से स्थापित करने में सक्षम थी। पार्किंसंस रोग में प्रोत्साहन प्रसंस्करण की क्षीणता की पहचान करने हेतु यह खोज, थीटा-गामा कपलिंग को एक संभावित बायोमार्कर (किसी जैव गतिविधि का निर्देशक) के रूप में प्रकट करती है। 

“प्रोत्साहन प्रसंस्करण की क्षीणता न केवल पार्किंसंस रोग में अपितु अन्य न्यूरो साइकियाट्रिक स्थितियों में भी देखी जाती है, जैसे अवसाद, स्किज़ोफ्रेनिया एवं अन्य गतिक विकार। इन विकारों के समान लक्षणों के कारण पार्किंसंस रोग के एक विशिष्ट प्रारंभिक बायोमार्कर के रूप में थीटा-गामा कपलिंग का उपयोग जटिल हो जाता है, जब तक कि अतिरिक्त समर्थनकारी साक्ष्य उपलब्ध न हों,” प्रा.निवेदिता कहती हैं। 

शोधकर्ताओं ने यह भी निष्कर्ष दिया कि रोगियों के मस्तिष्क के पीछे वाले भाग में उच्च स्तर की तीव्र गामा गतिविधियाँ देखी गईं जो स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में अधिक थीं। साथ ही दीर्घकाल से रोग का सामना कर रहे रोगियों में भी गामा गतिविधियां उच्च थी। यह तथ्य इंगित करता है कि गामा गतिविधि का पैटर्न स्वयं रोग प्रक्रिया से जुड़ा हो सकता है किंतु प्रोत्साहन प्रसंस्करण से नहीं। सारांशत: यह अध्ययन पार्किंसंस के रोगियों में मस्तिष्क के बाधित गतिविधि पैटर्न की भूमिका एवं प्रोत्साहन प्रसंस्करण जैसे विशिष्ट संज्ञानात्मक कार्यों पर इसके प्रभाव को स्पष्ट करता है। 

आईआईटी मुंबई का यह अध्ययन, पार्किंसंस रोगियों में प्रोत्साहनों को अनुभूत करने की क्षमता में क्षीणता एवं मस्तिष्क की असामान्य गतिविधियों के मध्य संबंध को भलीभांति प्रकट करता है। साथ ही साथ हमारे दैनिक जीवन में प्रोत्साहन एवं प्रेरणा के प्रसंस्करण को गहराई से समझने में भी सहायक है। यह पार्किंसंस रोग में अन्तर्निहित जटिल तंत्रिका विन्यास (न्यूरल मेकेनिज़्म) के सम्बन्ध में बहुमूल्य दृष्टि प्रदान करता है। अध्ययन पार्किंसंस से पीड़ित व्यक्तियों में नॉन-मोटर लक्षणों में संशोधन हेतु ऐसे सहायक उपचारों की आवश्यकता पर जोर देता है, जो चीर-फाड़ रहित (नॉन-इनवैसिव) एवं मस्तिष्क उत्तेजना पर आधारित हों। अध्ययन विशिष्टत: इस बात पर प्रकाश डालता है कि प्रोत्साहन प्रसंस्करण के माध्यम से प्रेरणा के इष्टतम स्तर को बनाए रखना हमारे जीवन की गुणवत्ता में कैसे योगदान कर सकता है।

Hindi