भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आई आई टी बॉम्बे) के शोधकर्ताओ ने एक जीवन-रक्षक यंत्र विकसित किया है जो स्मार्ट फोन की मदद से दिल का दौरा पड़ने से पहले ही उसका पता लगा सकता है। इस अभिनव सेन्सर की संकल्पना शोध छात्रों, देबास्मिता मोंडोल और सौरभ अग्रवाल, ने प्रोफेसर सौम्यो मुखर्जी के मार्गदर्शन में की है। इसके लिए हाल ही में उन्हें गांधीवादी युवा प्रौद्योगिकी अभिनव पुरस्कार 2018 से पुरस्कृत किया गया है।
यह यंत्र बहुत ही छोटे सेन्सर की मदद से दिल का दौरा पड़ने के दौरान निकले रसायन से कार्डियक बायोमार्कर्स का पता लगा सकता है जिसे स्मार्ट फोन की मदद से पढ़ा जा सकता है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि यह सफलता संभावित रूप से हमारे देश में कई जानें बचा सकती है क्यूँकि हमारे देश में दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों की संख्या बहुत ज़्यादा है।
भारत में, हृदय रोग से होने वाली मौतों की संख्या सिर्फ एक ही दशक में (2003 और 2013 के बीच) 17 से 23 प्रतिशत तक पहुँच गई है और आगामी सालों में यह और बढ़ने की संभावना है। जबकि हृदय संबंधी रोग में प्रारम्भिक निदान मददगार हो सकता है लेकिन छाती में होने वाले दर्द के कारणों को समझना मुश्किल है। हालाँकि इलेक्ट्रोकार्डिओग्राम्स जैसे यंत्र मददगार हैं लेकिन वे भी दिल कि धडकनों में होने वाले सूक्ष्म बदलावों को मापने में पर्याप्त रूप से संवेदनशील नहीं है। इसलिए, रोगी के रक्त में मायोग्लोबिन और मायलोपेरॉक्सिडेस जैसे बायोमार्कर प्रोटीन का परीक्षण अधिक विश्वसनीय माना जाता है।
मायोग्लोबिन एक लौह-युक्त प्रोटीन है जो म्योकार्डियल इंफार्क्शन -दिल में रक्त प्रवाह की अचानक कमी या अवरोध-के बाद रक्त प्रवाह में जारी होता है और दिल के धड़कन की रुकावट का कारण बनता है। जबकि एक स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में लगभग 25-72 ng/mL मायोग्लोबिन होता है, यह स्तर 4-8 गुना यानी 200 ng/mL तक जा सकता है, और कभी कभी और भी अधिक यानी 100 गुना (900 ng/mL) तक बढ़ सकता है, इस प्रकार मायोकार्डियल इंफार्क्शन के एक घंटे के भीतर ही ह्रदय गति की रुकावट का संकेत मिल सकता है।
मायलोपेरॉक्सिडेस एक एंज़ाइम है जिसका उत्पादन हमारी श्वेत रक्त कोशिकाओं में होता है और यह तब जारी होता है जब रक्त वाहिकाएँ घायल हो जाती हैं या उनमें सूजन आ जाती है। अब इसे एक तीव्र कोरोनरी सिंड्रोम (एसीएस) के संकेतक के रूप में पहचाना जाता है- एक ऐसी स्थिति जहाँ दिल में रक्त प्रवाह कम हो जाता है। इस एंज़ाइम का उच्च स्तर हृदय रोगों के अधिक जोखिम की ओर इशारा करता है।
शोधकर्ताओं द्वारा विकसित इस यंत्र में एक फ़िल्टर पेपर सेन्सर होता है जो पोलीएनिलीन नामक चालक पॉलिमर से लेपित होता है। एंटीबॉडी जो मायोग्लोबिन और मायलोपेरॉक्सिडेस के साथ बंध सकती हैं, इसकी सतह पर एम्बेडेड होती हैं। जब हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति का रक्त इस सेन्सर के संपर्क में आता है तो ये दो प्रोटीन सेन्सर से बंध जाते हैं और सेन्सर के द्वारा प्रवाह में अवरोध डालते हैं, यही अवरोध दिए गए वोल्टेज की विभिन्न आवृत्तियों में मापा जाता है।
इस यंत्र की अच्छी बात यह है कि सेंसर ऑडियो जैक (जहाँ हैड फोन लगते हैं) के माध्यम से मापे गए अवरोधित डेटा को फोन में संग्रहीत करता है। यह फोन से चलता है और इतना छोटा बनाया गया है कि जेब में डालकर कहीं भी आसानी से ले जाया जा सकता है। इस अवरोधित डेटा को सेन्सर से स्मार्ट फोन तक 10 Hz से 10 kHz तक की ऑडियो रेंज की आवृत्ति के रूप में भेजा जाता है। ये परिणाम स्मार्ट फोन के स्क्रीन पर दिखाई देते हैं जिससे इस यंत्र का उपयोग किसी प्रशिक्षित तकनीशियन की मदद के बिना भी किया जा सकता है।
“स्मार्ट फोन पर आधारित यंत्र बनाने की प्रेरणा स्मार्ट फोन के बढ़ते चलन से आई है। क्यूँकि आजकल सभी के पास स्मार्ट फोन होता है और सभी इस यंत्र का उपयोग सहजता से कर सकते हैं। एक डिस्पोज़ेबल सेन्सर लगाने से ये किफ़ायती हो जायेगा और इसका उपयोग भी आसान हो जायेगा,”सुश्री मोंडोल का कहना है।
आखिर इस यंत्र का उपयोग करते कैसे हैं ? इस यंत्र के प्रत्येक इस्तेमाल के बाद केवल सेन्सर कार्ट्रिज बदलने की ज़रूरत होती है। एक छोटी सुई से छेद करके रक्त की एक बूँद निकालकर उसका परीक्षण किया जाता है। यह यंत्र बीस मिनिट के भीतर ही दो कार्डियक बायोमार्कर्स के जमाव का पता लगा सकता है और शुरुआती अवस्था में ही ह्रदय रोग का सटीक रूप से निदान भी कर सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह यंत्र अस्पतालों में ईसीजी के लिए लगने वाली कतारों से राहत दिला सकता है और रोग का निदान समय रहते हो जाने से दिल के रोगियों के जीवित रहने की संभावना भी बढ़ सकती है।
“किसी व्यक्ति के खून में मायलोपेरॉक्सिडेस के स्तर का तुरंत मापन उन्हें भविष्य में मायोकार्डियल इंफार्क्शन से पीड़ित होने से रोकने के लिए अपनी जीवनशैली, दवाओं आदि के बारे में सावधानी पूर्वक कदम उठाने के लिए पर्याप्त समय प्रदान करेगा। दिल का दौरा पड़ने की संभावना के लगभग 3 से 6 महीने पहले ही इस के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है। मायोग्लोबिन के बढ़े स्तर से दिल के दौरे की शुरुआत का संकेत मिल जाता है जिससे प्रारंभिक निदान और उपचार के सही तरीके के लिए डॉक्टर से संपर्क करने में मदद मिलेगी ,” सुश्री मोंडोल समझाती हैं।
चूंकि शोधकर्ताओं ने कम दाम के पदार्थों का उपयोग किया है, यंत्र की लागत शोध स्तर पर 5,500 रुपये है। शोधकर्ताओं का मानना है कि जब व्यावसायिक स्तर पर इस यंत्र का उत्पादन किया जाएगा, तो लागत 1500 रुपये तक गिर सकती है। यह उन देशों के लिए सुविधाजनक हो सकता है जहां चिकित्सा सुविधाओं की पहुँच एक चुनौती है और चिकित्सा सहायता की पहुँच मुश्किल है। इसके अलावा, सेंसर बायोडिग्रेडेबल है, इसलिए पर्यावरण को नुकसान पहुँचाये बिना ही इसका निपटान किया जा सकता है।
मोंडोल का कहना है कि इसकी कम कीमत के कारण, सेंसर के साथ यह यंत्र अधिकांश लोगों के लिए खरीदना सस्ता पड़ेगा। लोग इसका उपयोग घर पर ही कर पाएँगे जिससे इन मार्करों के परीक्षण के लिए पैथोलॉजी प्रयोगशालाओं के कई चक्कर भी नहीं लगाने पड़ेंगे।
तो, इस यंत्र को कार्यरत देखने में कितना समय लगेगा? मोंडोल का कहना है कि,” फिलहाल हम मनुष्यों के ‘स्पाइक्ड’ सीरम नमूनों के साथ इस सेन्सर का परीक्षण कर रहे हैं। हम सेन्सर का धारक भी विकसित कर रहे हैं ताकि इसे पोर्टेबल यंत्र के साथ एकीकृत कर के एक मॉड्यूल के रूप में उपयोग किया जा सके। हमें इसके क्लिनिकल परीक्षणों के लिए 6 से 12 महीनों तक का समय लगेगा।”ऐसा कहकर सुश्री मोंडोल ने अपनी बात समाप्त की।