रिफाइनरी से प्राप्त उपचारित अपशिष्ट जल जब बालू से होकर बहता है तो इस पर प्रदूषक-भक्षी जीवाणुओं की एक परत निर्मित कर देता है, जो पानी से हानिकारक यौगिकों को दूर करती है।

आईआईटी मुंबई ने विकसित की फ्यूल-सेल आधारित विद्युत वाहन के घटकों के आकार अनुकूलन की नवीन पद्धति।

Read time: 1 min
Mumbai
24 जुलाई 2024
प्रातिनिधिक छवि (श्रेय : डेनिस जॉय )

ऊर्जा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के प्राध्यापक प्रकाश सी घोष एवं प्रधानमंत्री अनुसंधान अध्येता (पीएमआरएफ) नादिया फिलिप द्वारा फ्यूल-सेल आधारित विद्युत वाहन (एफसीईवी) के क्षेत्र में एक नवीन अनुकूलन कार्यप्रणाली (ऑप्टिमायजेशन मेथडोलॉजी) विकसित की गयी है। यह कार्यप्रणाली फ्यूल-सेल आधारित विद्युत वाहन के विभिन्न घटकों के भार एवं आकार के आदर्श वितरण को सुनिश्चित कर उनकी दक्षता बढ़ाने के साथ-साथ व्यवसायीकरण में तीव्रता लाने में सहायक हो सकती है।

विद्युत वाहन आधुनिक समय में अत्यंत लोकप्रिय हुए हैं एवं इन्हें हरित आवागमन (ग्रीन मोबिलिटी) के भविष्य तथा जीवाश्म ईंधन के लिए एक स्वच्छ विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। सर्वाधिक प्रचलित विद्युत कार ब्रैंडों में से एक, टेस्ला, पहले ही विश्व भर में कई आंतरिक दहन (इन्टरनल कम्बशन) इंजन कारों को पीछे छोड़ रहा है। वाहन पोर्टल के सरकारी आँकड़ों के अनुसार 2024 में भारत में विद्युत वाहन बाजार के शेअरों में 41% की वृद्धि हुई है, जिनमें अधिकांश विक्रय टू-व्हीलर वाहनों का था।

विद्युत वाहन दो प्रकार के हो सकते हैं - बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (बीईवी) अथवा फ्यूल-सेल इलेक्ट्रिक वाहन (एफसीईवी), इसके अतिरिक्त हाइब्रिड वेहिकल, जिनमें किन्हीं दो प्रकार के इंजनों के संयोजन का उपयोग किया जाता है। बीईवी में बैटरी का उपयोग किया जाता है जिसे आवेशित करने (चार्जिंग) की आवश्यकता होती है, जबकि एफसीईवी में वाहन को चलाने हेतु फ्यूल सेल का उपयोग होता है। फ्यूल सेल विद्युत-रासायनिक सेल होते हैं जो विद्युत उत्पादन के लिए रासायनिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं। वाहनों में हाइड्रोजन फ्यूल सेल को वरीयता दी जाती है। ये ऊर्जा उत्पादन हेतु, संग्रह की गयी हाइड्रोजन एवं वातावरण से ली गयी ऑक्सीजन गैसों को मिलाते हैं। जल वाष्प एफसीईवी के इंजन से निकलने वाले एकमात्र सह-उत्पाद होने के कारण इनको बहुधा शून्य-उत्सर्जन (ज़ीरो एमिशन) वाहन के रूप में जाना जाता है। साथ ही बीईवी के विपरीत, एफसीईवी का आवेशन (चार्जिंग) भी आवश्यक नहीं होता क्योंकि आंतरिक दहन इंजन वाहनों के समान इनमें हाइड्रोजन को भरा (रीफिल) जा सकता है।

यद्यपि एफसीईवी में कुछ दोष भी हैं। फ्यूल सेल द्वारा उत्पन्न अत्यधिक तापीय ऊष्मा इनमें से एक है। फ्यूल सेल में ऊर्जा रूपांतरण की क्षमता कम होती है जिससे इसके शक्ति-निर्गम (पावर आउटपुट) के समतुल्य मान की तापीय ऊष्मा भी उत्पन्न होती है। यह अतिरिक्त संचित ऊष्मा वाहन के प्रदर्शन को क्षीण करती है तथा वाहन एवं इसकी हाइड्रोजन भंडारण टंकी भी संकट में आ सकते हैं। इन स्थितियों में फ्यूल सेल को शीतल करने के लिए बड़े रेडिएटर का उपयोग करना आवश्यक हो जाता है, जिससे वाहन का भार एवं आकार बढ़ जाता है।

इस 'अतिकाय रेडिएटर' की समस्या के समाधान हेतु आईआईटी मुंबई के प्रा. घोष एवं नादिया फिलिप ने एक सुसंबद्ध (कॉम्पैक्ट) रेडिएटर तथा थर्मल एनर्जी स्टोरेज (टीईएस) प्रणाली से युक्त एक नवीन ऊष्मीय प्रबंधन प्रणाली का प्रस्ताव दिया है। शोध-दल ने एक सामान्य पद्धति भी विकसित की है जो इष्टतम प्रदर्शन के लिए रेडिएटर एवं टीईएस इकाइयों के आदर्श आकारों को निर्दिष्ट करती है।

नादिया के अनुसार, “टीईएस के दो मुख्य लाभ हैं – प्रथम, यह फ्यूल सेल चिति (स्टैक) द्वारा उत्पन्न ऊष्मा ऊर्जा की कुछ मात्रा का संग्रह करता है, जिससे रेडिएटर के आकार में कमी आती है, तथा द्वितीय, यह फ्यूल सेल के शीतलन हेतु उसमें वापस प्रवेश करने वाले शीतलक का तापमान स्थिर बनाए रखता है। इसके अतिरिक्त टीईएस प्रणाली में संग्रह की गयी ऊष्मा ऊर्जा का उपयोग विभिन्न अनुप्रयोगों, जैसे कि कोल्ड स्टार्टअप (कार्यकारी तापमान से कम तापमान पर इंजन का कार्य प्रारम्भ करना), केबिन हीटिंग, या फ्यूल सेल में उपयोगी अभिकारक गैसों (हाइड्रोजन और ऑक्सीजन) के पूर्वतापन (प्रीहीटिंग) हेतु किया जा सकता है।”

कार्यदल द्वारा अपने पूर्व के अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि कोल्ड पैकिंग में उपयोगी पदार्थ के समान पैराफिन मोम जैसे अवस्था परिवर्तन पदार्थ (पीसीएम अर्थात फेस चेंजिंग मटेरियल) का उपयोग करके, कार जैसे अल्प-भार वाहनों में न्यूनतम आवश्यक रेडिएटर क्षेत्र को अत्यधिक कम किया जा सकता है। एफसीईवी निर्माताओं द्वारा शीतलन प्रणालियों के आकार को कम करने हेतु टीईएस प्रणाली के उपयोग पर अब तक कोइ विचार नहीं किया गया है।

अधिकांश एफसीईवी, बैटरी या सुपरकैपेसिटर युक्त विद्युत ऊर्जा भंडारण (इलेक्ट्रिक एनर्जी स्टोरेज) प्रणाली का उपयोग करते हैं, जो फ्यूल सेल द्वारा उत्पन्न ऊर्जा के कुछ भाग को संग्रहीत करते हैं ताकि यह ऊर्जा फ्यूल सेल से उत्पन्न ऊर्जा के पूरक हो।

नादिया के अनुसार, “फ्यूल सेल वाहनों में विद्युत ऊर्जा भंडारण प्रणाली का उपयोग, परिवर्तित होने वाले भार की (डायनामिक लोड) मांगों का ध्यान रखते हुए फ्यूल सेल प्रणाली के आकार को कम करने में सहायक है।”

वाहन को गति देने पर जबकि अधिकांश शक्ति फ्यूल सेल से आती है, विद्युत ऊर्जा भंडारण प्रणाली पीक पॉवर प्रदान करती है। यह अकेले फ्यूल सेल से प्राप्त की गई शक्ति को सुरक्षित करते हुए एक छोटे आकार की फ्यूल सेल प्रणाली को सुनिश्चित करता है।

आईआईटी मुंबई का यह नवीन अध्ययन रेडिएटर, फ्यूल सेल, ईईएस एवं टीईएस प्रणाली के आदर्श आकार की गणना करने हेतु ईईएस और टीईएस के संयुक्त उपयोग पर विचार करने वाला प्रथम अध्ययन है। शोधदल ने इन घटकों के आदर्श आकार का निर्धारण करने हेतु पिंच अनॅलिसिस नामक गणितीय विश्लेषण विधि का उपयोग किया।

“पिंच अनॅलिसिस न्यूनतम संसाधनों के साथ मांगों को पूर्ण करने की एक बीजगणितीय अनुकूलन तकनीक है। वर्तमान अध्ययन में दो पिंच अनॅलिसिस अनुकूलनों का उपयोग किया गया है - एक विद्युत स्रोतों (फ्यूल सेल तथा बैटरी) के आकार निर्धारण हेतु एवं दूसरा ऊष्मीय प्रबंधन प्रणाली घटकों (रेडिएटर एवं पीसीएम) के आकार निर्धारण हेतु,” नादिया बताती हैं।

इष्टतम ऊर्जा भंडारण एवं शीतलन प्रणाली प्राप्त करने हेतु अध्ययन में इन घटकों को किसी पहेली (पजल) के खंडों को जोड़ने के समान एकीकृत किया गया है।

सामन्यतः बड़े आकार के फ्यूल सेल सन्निहित विद्युत स्रोतों के कुल द्रव्यमान का बड़ा भाग होते हैं। आयतन के दृष्टिकोण से विभिन्न घटकों में बैटरी सबसे कम जबकि रेडिएटर सर्वाधिक स्थान लेता है। लागत की दृष्टि से बैटरी की तुलना में फ्यूल सेल अधिक मूल्यवान है। आकार नियंत्रण सम्बंधित इस अध्ययन के परिणाम वाहन के भार, आयतन, मूल्य एवं पहुँच सीमा को अनुकूलित करने की दिशा में भी प्रभाव रखते हैं।

“यदि लागत को कम करना प्राथमिक उद्देश्य है तो ऐसे संयोजन को चुना जाना चाहिए जो फ्यूल सेल को लघुतम आकार देता हो। किन्तु यदि लागत हमारी प्राथमिकता नहीं है, तो फ्यूल सेल के प्रदर्शन को उन्नत करने एवं रेडिएटर के आकार को कम करने हेतु फ्यूल सेल का बड़ा आकार चुनना चाहिए,” नादिया बताती हैं।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि प्रस्तावित विधि केवल भागों के आकार को इष्टतम बनाते हुए ट्रकों जैसे भारी वाहनों में रेडिएटर के आकार को सामान्य से लगभग 2.5 गुना कम करने में सक्षम हो सकती है। यह विधि वाहन निर्माता की प्राथमिकताओं के आधार पर फ्यूल सेल वाहनों में विभिन्न ऊर्जा स्रोतों एवं ऊष्मीय प्रणालियों को इष्टतम रूप से एकीकृत किये जाने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। निर्माता का चुनाव चाहे कम विस्तार, कम शक्ति वाला अल्प लागत वाहन हो अथवा अधिक विस्तार, अधिक शक्ति वाला उच्च लागत वाहन, आईआईटी मुंबई की यह विधि उन्हें सर्वोत्तम समाधान चुनने में सहायक हो सकती है। यह शोधकार्य इन वाहनों के अधिक दक्ष एवं लागत-प्रभावी शीतलन प्रणालियों के निर्माण में सहायक हो सकता है।

इस शोध के भविष्य के सम्बन्ध में नादिया निष्कर्ष देती हैं कि, “प्रस्तावित ऊष्मीय प्रबंधन प्रणाली के प्रभावों का अध्ययन करने हेतु, प्रयोगशाला-स्तरीय परीक्षण करना हमारा आगामी कदम होगा। साथ ही कार्यप्रणाली का परीक्षण दीर्घ-अवधि के विभिन्न परिचालन चक्रों (विभिन्न ड्राइविंग स्थितियों) के साथ किया जाएगा ताकि विभिन्न प्रकार की परिचालन स्थितियों का अध्ययन किया जा सके। इसके उपरांत प्रत्यक्ष वाहनों में परीक्षण (रियल टाइम टेस्टिंग) करना हमारा लक्ष्य है।”