शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

अजित, भारत में रचित और निर्मित प्रथम माइक्रोप्रोसेसर

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मुंबई
29 जनवरी 2020
अजित, भारत में रचित और निर्मित प्रथम माइक्रोप्रोसेसर

आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं ने देश का पहला स्वदेशी रूप से रचित और निर्मित माइक्रोप्रोसेसर विकसित किया है।

भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार अब तक के सबसे बड़े उछाल में है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मांग के कारण, इसे २०२० तक अमरीकी डॅलर ४०० बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। देश में केवल एक चौथाई उपकरणों का ही उत्पादन होता है जबकि अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को हम आयातित करते हैं। आंकड़ों के अनुसार, भारत में इलेक्ट्रॉनिक सामान कुल आयात के १०% से अधिक है जो पेट्रोल उत्पादों के आयात के बाद दूसरे स्थान पर है। किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में माइक्रोप्रोसेसर हमेशा होता है और वह इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के दिमाग की तरह कार्य करता है।

माइक्रोप्रोसेसर एक एकीकृत परिपथ है जिसमें कुछ लाखों ट्रांजिस्टर (अर्धचालक-आधारित इलेक्ट्रॉनिक उपकरण) शामिल होते हैं, जो अर्धचालक चिप पर संगलित होते हैं। यह आयाम में सिर्फ कुछ मिलीमीटर हैं और इसका उपयोग लगभग हर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, जैसे घरों में माइक्रोवेव और वॉशिंग मशीन से लेकर स्पेस स्टेशन के उन्नत सुपर कंप्यूटर तक, में किया जाता है। हालाँकि, माइक्रोप्रोसेसर का विकास और निर्माण आसान नहीं है, यह महंगा और जोखिम भरा है, साथ ही साथ इसमें बहुत कौशल की आवश्यकता है। इसलिए, दुनिया भर में केवल कुछ ही कंपनियां सफलतापूर्वक माइक्रोप्रोसेसरों का निर्माण और बिक्री कर पाई हैं।

माइक्रोप्रोसेसर निर्माण के अत्यधिक प्रतिस्पर्धी खंड में अपनी पहचान बनाने की कोशिश में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के अभियंताओं ने अजित नामक एक नया माइक्रोप्रोसेसर विकसित किया है। यह पहली बार है कि किसी माइक्रोप्रोसेसर की अवधारणा और संरचना सहित, पूरी तरह से भारत में विकसित और निर्मित किया गया है। यह नवाचार न केवल देश के आयात को कम कर सकता है, बल्कि भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स में आत्मनिर्भर भी बना सकता है।

अजित के विकास को लेकर, देश के इतिहास में पहली बार ऐसा चिह्नित किया गया है जहाँ उद्योग, शिक्षा और सरकार एक साथ आए हैं। प्राध्यापक माधव देसाई और आईआईटी मुंबई के लगभग नौ शोधकर्ताओं के समूह ने माइक्रोप्रोसेसर को पूरी तरह से संस्थान में संरचित और विकसित किया है। इस परियोजना को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और आईआईटी मुंबई द्वारा वित्त पोषित किया गया है। मुंबई की एक कंपनी, पवई लैब्स ने भी उद्यम में निवेश किया है जो इस उत्पाद का स्वामित्व, विपणन और समर्थन करेगी।

"मैं इस परियोजना को आर्थिक रूप से और उद्योग साझेदार के रूप में समर्थन देने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से डॉ देबाशीष दत्ता और पवई लैब्स से रीपन टीकू का शुक्रगुजार हूं," प्राध्यापक देसाई ने साझेदार संस्थानों के योगदान को स्वीकार करते हुए कहा।  “हम इस प्रोसेसर संरचना पर दो साल से अधिक समय से काम कर रहे हैं, रचना को पहले प्रोग्रामेबल अर्धचालक चिप्स पर परीक्षित किया गया"।

अनेक सुविधाओं के साथ परिपूर्ण: अजित माइक्रोप्रोसेसर

आज उपलब्ध अधिकांश माइक्रोप्रोसेसरों की तरह, अजित एक अंकगणित तर्क इकाई के साथ आता है जो बुनियादी अंकगणितीय और तार्किक संचालन, जैसे जोड़, घटाव और तुलना कर सकता है, और एक स्मृति प्रबंधन इकाई जो मेमोरी से आंकड़े संग्रहीत और पुनर्प्राप्त करता है। गैर-पूर्णांक संख्याओं के साथ गणना को कुशलतापूर्वक संभालने के लिए डिज़ाइन की गई एक फ्लोटिंग पॉइंट यूनिट भी है। जो लोग माइक्रोप्रोसेसर को प्रोग्राम करना चाहते हैं, उनके लिए प्रोसेसर को मॉनिटर करने और नियंत्रित करने में मदद करने के लिए एक हार्डवेयर डीबगर यूनिट है।

अजित माइक्रोप्रोसेस की विशेषताओं की तुलना आज के बाज़ार में उपलब्ध इसके आकार के कई माइक्रोप्रोसेसरों से की जा सकती है। अजित एक मध्यम आकार का प्रोसेसर है, इंटेल के डेस्कटॉप में उपयोग किए गए जेनॉन (Xenon) से छोटा। इसे सेट-टॉप बॉक्स के अंदर, ऑटोमेशन सिस्टम के लिए कंट्रोल पैनल बनाने के लिए, ट्रैफिक लाइट कंट्रोलर या रोबोट सिस्टम में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि जब ज्यादा मात्रा में इसका उत्पादन किया जाएगा तो तो इसका मूल्य १०० रूपये से भी कम होगा। अजित हर क्लॉक चक्र में एक निर्देश चला सकता है और ७०-१२० मेगाहर्ट्ज के बीच क्लॉक चक्र गति पर काम कर सकता है, जो बाजार में अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ तुलना योग्य है।

शोधकर्ताओं ने अजित से जुड़े सॉफ्टवेयर साधनों को सभी के लिए निःशुल्क रूप से उपलब्ध कराया है। प्रोसेसर एक 'सॉफ्टकोर' के रूप में भी उपलब्ध है, जहां विक्रेता माइक्रोप्रोसेसर की संरचना का उपयोग करने के लिए एक लाइसेंस खरीद सकते हैं और इसे अपने सिस्टम में उपयोग करने के लिए इसे तैयार कर सकते हैं। शोधकर्ता विशिष्ट अनुप्रयोगों के लिए प्रोसेसर को अनुकूलित करने का भी प्रस्ताव रखते हैं।

प्राध्यापक देसाई कहते हैं कि "प्रोसेसर का ढाँचा मॉड्यूलर है जिससे  विक्रेता को अपने  लिए किसी संरचना का निर्माण करने के लिए  उपयुक्त लक्षणों के साथ सुसज्जित प्रोसेसर सेट मिल सकता है। "

'मेड-इन-इंडिया' के लाभ

प्रा. देसाई और उनके छात्रों का दल, सी.अरुण, एम.शरथ, नेहा करंजकर, पीयूष सोनी, टीटू अनबदन, अशफाक अहमद, आश्विन जीथ, सीएच. कल्याणी और नंदिता राव ने एएचआईआर-वि२ नामक एक उपकरण सेट का उपयोग किया, जो कि एक एल्गोरिथ्म को हार्डवेयर में बदल सकता है और जिसे माइक्रोप्रोसेसर परिपथ को संरचित करने के लिए, पूरी तरह से आईआईटी मुंबई में विकसित किया गया है। प्राध्यापक देसाई ने उल्लेख किया कि प्रोसेसर के निर्माण की दिशा में आईआईटी मुंबई में उनके सहयोगियों, प्राध्यापक वी.आर. सुले, प्राध्यापक एम शोजै-बागिनी और प्राध्यापक एम. चंदोरकर ने अपने प्रोजेक्ट के लिए कई उपयोगी चर्चा की। प्राध्यापक देसाई ने सेमीकंडक्टर लैब्स,चंडीगढ़ के एच. जट्टाना, पूजा धनकर और शुभम के योगदान को स्वीकार किया।

पहले चरण में, अजित को सरकारी स्वामित्व वाली अर्धचालक प्रयोगशाला, चंडीगढ़ में निर्मित किया गया, जिसमें एक तकनीक है जो १८० नैनोमीटर के आकार के सबसे छोटे बिल्डिंग ब्लॉक की पेशकश करती है। शोधकर्ताओं ने व्यावसायिक रूप से अधिक उन्नत तकनीकों का उपयोग करके प्रोसेसर का निर्माण करने की योजना भी बनाई है जो ६५ नैनोमीटर या ४५ नैनोमीटर के आकार का सबसे छोटा बिल्डिंग ब्लॉक प्रदान करता है।

१८० नैनोमीटर तकनीक का उपयोग करके इसे बनाना पहला कदम है। यद्यपि यह नवोत्तम तकनीक नहीं है, लेकिन यह अधिकांश लक्षित अनुप्रयोगों के लिए पर्याप्त है। प्राध्यापक देसाई की टिप्पणी के अनुसार, बड़ी विनिर्माण मात्रा के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के बाद लागत कम हो जायेगी।

भारत में बना एक प्रोसेसर मूल्य प्रभावी होने के साथ साथ देश को इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता प्रदान करता है और दुनिया के अन्य हिस्सों से आयातित प्रौद्योगिकी पर हमारी निर्भरता को कम करता है। भारत में विकसित होने के कारण हमारी सुरक्षा प्रणाली को और बेहतर सुनिश्चित करता है, जिससे अन्य घुसपैठिया देशों या संगठनों द्वारा डिजिटल गड़बड़ी को भी रोकता है। हालाँकि भारतीय दलों ने भारत में प्रोसेसरों का पूर्ण विकास किया है, लेकिन अभी तक किसी भी भारतीय कंपनी के पास अपना ख़ुद का व्यावसायिक माइक्रोप्रोसेसर उपलब्ध नहीं है। आशा है अजीत इसको बदल पाएगा।

प्रा. देसाई कहते हैं कि “देश में विकसित प्रोसेसर से आयात के बोझ को भी कम करने की संभावना है। इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के निर्माता, डिजाइन और समर्थन टीम के पास होने के अतिरिक्त लाभ के साथ, भारतीय आविष्कार की तैयार उपलब्धता और प्रतिस्पर्धी मूल्य का लाभ उठा सकते हैं। यदि उपकरण निर्माता को किसी संशोधन या अनुकूलन की आवश्यकता होती है, भौगोलिक निकटता के अनुसार समर्थन दल आसानी से उपलब्ध हो सकता है"।

चुनौतियाँ एवं कार्य योजना 

स्वदेशी माइक्रो-प्रोसेसर के निर्माण का कारनामा चुनौतियों से अछूता नहीं था। प्राध्यापक देसाई के पास अत्यंत प्रतिभाशाली एवं जोशीला किन्तु अनुभवहीन स्नातक छात्रों का समूह मात्र था, जिन्होंने प्रोसेसर की संरचना के पूर्व एक सार्थक नमूने को सुनिश्चित करने के लिए एक छोटे से अर्थसङ्कल्प अर्थात बजट पर काम किया। “प्रारूप की संरचना एवं इसका उचित विभाजन ताकि ये अपने ढांचे में भली-भांति कार्यान्वित किया जा सके एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। प्रारंभिक परीक्षण को दिशा देने के लिए, हमने प्रोसेसर का एक संगणक आधारित प्रतिरूप निर्मित किया जो प्रोसेसर की कार्यक्षमता का विस्तार से प्रतिरूपण अर्थात सिमुलेशन कर सकता था। इससे प्रोसेसर का परीक्षण इसके निर्माण से बहुत पहले ही संभव हो गया,” प्राध्यापक देसाई याद करते हैं।

यद्यपि अभी यह पूर्ण नहीं हुआ है; प्रोसेसर को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए, ताकि इसे सफलता के भव्य शिखर तक पहुंचाया जा सके, टीम के लिए आगे कठिन चुनौतियां हैं।

“अजित के लिए, हमें इसके अधिकाधिक उपयोगकर्ताओं की आवश्यकता है। प्राथमिक परीक्षणों ने संकेत दिया है कि प्रोसेसर का विनिर्देश अर्थात स्पेसिफिकेशन प्रतिस्पर्धा में बहुतों से मेल खाता हैं साथ ही नया प्रोसेसर लागत-प्रतिस्पर्धी भी है। यदि व्यापारिक समुदाय बड़े पैमाने पर इस प्रोसेसर को अपनाये, और अपनी प्रणाली का निर्माण इससे सम्बद्ध होकर करे ताकि उपयोगकर्ताओं, साथ ही इसके समर्थकों को यह मूल्यपरक लगे और वे इसके माध्यम से धनार्जन कर सकें, तब यह प्रयास स्थायी हो सकता है”, प्रा. देसाई कहते हैं।

शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि चूंकि अजित दूसरे आयातित प्रोसेसर के साथ तुलना कर पाने में भली-भाँति सक्षम है, इसलिए यह बहुत से प्रारंभिक रूप से अपनाने वाले लोगों को रिझा सकता है। उनकी योजना अजित को शैक्षणिक समुदाय से जोड़ने की भी है ताकि इसकी पहुंच के विस्तार के साथ-साथ स्नातक छात्रों को हस्तपरक अर्थात हेण्ड्स-ऑन अनुभव प्रदान किया जा सके।

“हम इंजीनियरिंग कॉलेजों में पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में लागू करके इस नए माइक्रोप्रोसेसर के उपयोग को बल दे सकते हैं। इसके साथ प्रयोग करने के लिए, छात्रों एवं अन्य उत्साही लोगों को एक अच्छी तरह से अभिकल्पित सिंगल-बोर्ड कंप्यूटर सिस्टम कम लागत पर उपलब्ध कराया जा सकता है,” प्रा. देसाई का सुझाव है।

सरकार की ओर से, इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने प्रोसेसर के विस्तार एवं सरकार द्वारा उपनीत परियोजनाओं में इसके बेहतर उपयोग के लिए दी जाने वाली राशि बढ़ा दी है। इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत भारत सरकार की एक स्वतंत्र प्रयोगशाला, प्रायोगिक सूक्ष्मतरंग इलेक्ट्रॉनिक अभियांत्रिकी तथा अनुसंधान संस्था (सोसायटी फॉर एप्लाइड माइक्रोवेव इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग एंड रिसर्च), भारतीय क्षेत्रीय मार्गनिर्देशन उपग्रह तंत्र (आईआरएनएसएस या नाविक) के लिए विकसित रिसीवर में अजित का उपयोग करने की योजना बना रही है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के लिए एक स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली है।

“हमें विश्वास है कि कि लोग अजित का उपयोग करेंगे साथ ही इसके उपयोग से उपकरणों के निर्माण की योजना बनाएंगे। हम उनके समर्थन के लिए तैयार हैं। हमारे पास एक बीज है, जिसे एक फलदार वृक्ष के रूप विकसित करने के लिए हमें अपने लोगों की आवश्यकता है,” प्रा. देसाई संकेत करते हैं।