मूत्राशय की तंत्रिकोशिकाओं का एक कंप्यूटर आधारित मॉडल
अपना पेशाब रोकना मनुष्य के लिए सबसे कठिन कार्यों में से एक है। हमारा मस्तिष्क मूत्राशय से संकेत प्राप्त करता है कि मूत्राशय भरा हुआ है, और उसे खाली करने की हमारी प्रक्रिया को निर्देशित करता है। विज्ञान हमें बताता है कि पेशाब रोकना अस्वास्थ्यकर है, फिर भी हम कई बार खुद को राहत देने के लिए इंतज़ार करते हैं। हालांकि, ऐसे व्यक्ति जो मूत्राशय विकारों से पीड़ित हैं, जैसे मूत्राशय की सूजन, अतिक्रियता आदि, उनमें आकस्मिक मूत्र रिसाव की सम्भावना अधिक होती है, क्योंकि उनके मूत्राशय से उत्तेजनाओं के विद्युत-रासायनिक संकेतों का संचार सही ढंग से नहीं हो पता है। एक हालिया अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के डॉ दर्शन मांडगे और प्राध्यापक रोहित मनचंदा ने तंत्रिकोशिकी प्रक्रियाओं को समझने के लिए मूत्राशय की आपूर्ति करने वाले सेंसरी तंत्रिकोशिका की कार्यप्रणालियों का एक कंप्यूटर आधारित मॉडल बनाया है। इसके लिये उन्होंने उन तंत्रों की पहचान की है जो सूजन और रीढ़ की हड्डी की चोट जैसी असामान्य स्थितियों के दौरान तंत्रिकोशिका को नियंत्रित करते हैं।
मूत्राशय में सेंसरी तंत्रिकोशिकाएँ (सेन्सरी न्यूरॉन्स) होती हैं, जिन्हें पृष्ठीय मूल नाड़ीग्रन्थि तंत्रिकोशिका (डी.आर.जी. न्यूरॉन्स) भी कहा जाता है। यह तंत्रिकोशिकाएँ मूत्राशय में दबाव, मात्रा और तापमान से संबंधित संकेतों को मस्तिष्क तक पहुंचाते हैं। छोटी डी.आर.जी. तंत्रिकोशिकाएँ पीड़ा अभिग्राहकों का कार्य भी करती हैं एवं मूत्राशय में होने वाली किसी भी असुविधा का संकेत मस्तिष्क को भेजती हैं। चूंकि ये न्यूरॉन्स मूत्राशय में बहुतायत में भरे होते हैं इसलिए इन्हें अलग कर पाना, और इनके शरीर के अंदर रहते हुए इनकी जाँच कर पाना संभव नहीं है। इस स्थिति में न्यूरॉन्स की कार्यप्रणाली को समझने के लिए कम्प्यूटेशनल मॉडल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पी.एल.ओ.एस. कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने छोटे पृष्ठीय मूल नाड़ीग्रन्थि (डी.आर.जी.) तंत्रिकोशिकाओं का एक कम्प्यूटेशनल मॉडल विकसित किया है। उन्होंने प्रायोगिक आंकड़ों के आधार पर मॉडल की प्रामाणिकता को सत्यापित किया है। मॉडल का उपयोग करते हुए उन्होंने इस तंत्रिकोशिका पर विभिन्न उत्तेजनाओं, जैसे गर्मी, मूत्राशय के आयतन एवं दबाव के प्रभावों का आँकलन किया। साथ ही मूत्राशय में विभिन्न रोगों के दौरान होने वाली समस्याओं का विश्लेषण करने की भी कोशिश इस मॉडल में की गई है।
एक सामान्य तंत्रिकोशिका के दो भाग होते हैं: सोमा (सेल बॉडी) एवं अक्षतंतु (ऐक्सान)। अक्षतंतु एक लंबी बेलनाकार संरचना होती है जो तंत्रिकोशिका में संकेतों का संचालन करती है। अक्षतंतु के अंत में पेड़ की शाखाओं के समान टर्मिनल होते हैं जो पड़ोसी तंत्रिकोशिका से संकेत प्राप्त करते हैं। कुछ विशिष्ट अणु सतह के रिसेप्टर्स से बंध जाते हैं और संकेतों को सक्रिय करते हैं। इस सतह पर कुछ विशिष्ट आयन चैनल भी होते हैं, जो आयनों की आवाजाही में सहायता करते हुए एक विद्युत-रासायनिक संकेत उत्पन्न करते हैं, जिससे संकेत एक तंत्रिकोशिका से अगली तंत्रिकोशिका तक बढ़ते हुए अंततः मस्तिष्क तक पहुँच जाता है।
शोधकर्ताओं द्वारा विकसित यह कम्प्यूटेशनल मॉडल रिसेप्टर्स, आयन चैनल, और संकेतों सहित तंत्रिकोशिका सोमा के सभी घटकों को सम्मलित करता है, एवं आयनों की गति के परिणामस्वरूप संभावित परिवर्तन का आँकलन करने में भी सक्षम है। कुल मिलाकर, इस मॉडल में २२ सेलुलर तंत्र शामिल हैं। शोधकर्ताओं ने इसे सटीक बनाने के लिए मॉडल के हर पहलू का आँकलन प्रायोगिक आँकड़ों के आधार पर किया है।
डॉ दर्शन मांडगे कहते हैं, "प्रयोगात्मक रूप से मॉडल को मान्य करने के लिए प्रत्येक आयनिक तंत्र के मापदंडों पर मॉडल ट्यूनिंग करना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक था। प्रत्येक चैनल को कई अवकल समीकरण और मापदंडों द्वारा दर्शाया जाता है। २२ विभिन्न तंत्रों के मॉडल के साथ, मापदंडों की संख्या १०० के करीब थी।"
आयन चैनलों का सक्रिय होना तंत्रिक-संकेतों के उत्पादन में संचारन को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण क़दम है। उदाहरण के लिए एस.के.सी.ए (SKCa) नामक एक कैल्शियम-सक्रिय पोटेशियम चैनल कोशिकाओं में कैल्शियम आयनों की एकाग्रता के आधार पर सक्रिय होता है। आयनों में अंतर के कारण एक छोटा विद्युत-रासायनिक प्रवाह उत्पन्न होता है, जो धनात्मक एवं ऋणात्मक विभवांतर, दोनों स्थितियों में सक्रिय होता है। प्रायोगिक आंकड़ों से पता चलता है कि ऋणात्मक विभवांतर के मुक़ाबले धनात्मक विभवांतर में विद्युत-रासायनिक प्रभाव कम होता है। यह दर्शाता है कि किसी भी प्रकार का परिवर्तन तंत्रकोशिकाओं द्वारा संसाधित संकेतों को प्रभावित करता है। मगर एक सवाल जिसका उत्तर शोधकर्ता कई वर्षों से खोज रहे थे वह यह था कि - विभवांतर का तंत्रिकोशिकाओं के फायरिंग दर पर क्या प्रभाव पड़ता है?
वर्तमान अध्ययन के शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि एस.के.सी.ए (SKCa) आयन चैनलों के माध्यम से अनुकूल आवक संचार तंत्रिकोशिका की फायरिंग को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने इस प्रवित्ति को मॉडल में शामिल कर परिणाम का परीक्षण किया और देखा कि आयन चैनलों के माध्यम से कोशिकाओं के बाहर अपेक्षाकृत एक छोटा आयनिक संचालन स्पाइकिंग गतिविधि को बढ़ावा देता है, जो असामान्य सक्रियता वाले मूत्राशय के संवेदी तंत्रकोशिकाओं के प्रयोगात्मक अध्ययन में भी देखा गया है।
शोधकर्ताओं ने मॉडल में छह ऐसे पोटेशियम चैनलों को समल्लित किया जिनके प्रयोगात्मक साक्ष्य उपलब्ध हैं, जिनमें एस.के.सी.ए. (SKCa) और ए-प्रकार (A-type) चैनल शामिल हैं। इस अध्ययन के माध्यम से शोधकर्ताओं ने एक अन्य परिकल्पना भी प्रस्तावित की है जिसके अनुसार ए-प्रकार पोटेशियम आयन चैनल कोशिकाओं के विभवांतर को कम कर उसे विश्राम अवस्था में लाने का काम करते हैं। उनका मानना है कि विद्युत-रासायनिक धारा को नीचे लाने के लिए चैनल के विभिन्न हिस्से जिम्मेदार हो सकते हैं। जब इस परिकल्पना का परीक्षण मॉडल द्वारा किया गया, तो उन्होंने देखा कि विद्युत-रासायनिक धारा के दो चरण- एक तीव्र चरण और एक धीमा चरण- चैनल के दो भागों में प्रोटीन के संयोजन के कारण होता है।
डॉ मैंडगे कहते हैं, “संवेदी न्यूरॉन्स की मॉडलिंग कर, एवं उन्हें तंत्रिक अनैच्छिक मार्ग के अन्य घटकों से जोड़कर सामान्य परिस्थितियों के दौरान मूत्राशय की तंत्रकोशिका पर नियंत्रण को समझा जा सकता है। इसके अतिरिक्त, मॉडलिंग के मद्यम से रोगग्रस्त तंत्रकोशिकाओं में होने वाली विकृतरियों जैसे की बार-बार फायरिंग एवं मूत्राशय की अतिसक्रियता की भविष्यवाणी भी की जा सकती है।“
शोधकर्ताओं ने अक्षतंतु और अक्षतंतु टर्मिनलों के कार्यों को शामिल करने और प्रायोगिक तथ्यों की सहायता से अपने मॉडल को सुधारने की योजना बनाई है।