प्राध्यापक अमर्त्य मुखोपाध्याय ने अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए दिसंबर में टाटा ट्रांसफॉर्मेशन पुरस्कार 2024 जीता है।

बैटरी के दीर्घकालिक समाधान हेतु सोडियम-आयन प्रौद्योगिकी में संभावनाएं खोजते: अमर्त्य मुखोपाध्याय

Mumbai
24 जनवरी 2025
Winners of Tata Transformation Prize.

दिसंबर 2024 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी मुंबई) के धातुकर्म अभियांत्रिकी एवं पदार्थ विज्ञान विभाग के प्राध्यापक अमर्त्य मुखोपाध्याय को भविष्य के टिकाऊ समाधान, सोडियम-आयन (Na-ion) बैटरी तकनीक विकसित करने के अभूतपूर्व कार्य के लिए ‘सस्टेनेबिलिटी’ के टाटा ट्रांसफॉर्मेशन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सोडियम-आयन बैटरी तुलनात्मक रूप से मितव्ययी एवं सुरक्षित, उत्तम आवेशन (चार्जिंग) क्षमता युक्त, तापमान की व्यापक सीमा में कार्य-सक्षम, साथ ही 'पारंपरिक' लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी की तुलना में अधिक टिकाऊ है। सोडियम-आयन बैटरी की दिशा में शोध कार्य कर, प्रा. मुखोपाध्याय देश के लिए एक स्वच्छ एवं अधिक आत्मनिर्भर ऊर्जा भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।

2023 में प्रारम्भ किए गए टाटा ट्रांसफॉर्मेशन पुरस्कार का उद्देश्य भारत में उन दूरदर्शी वैज्ञानिकों को प्रोत्साहन एवं सहायता प्रदान करना है, जो खाद्य सुरक्षा (फ़ूड सेक्युरिटी), सतत विकास (सस्टेनेबिलिटी) एवं स्वास्थ्य सेवा (हेल्थकेअर) के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रौद्योगिकी विकसित कर, भारत की प्रमुख सामाजिक चुनौतियों के समाधान हेतु तत्पर हैं।

दुर्गापुर से ऑक्सफोर्ड तक - पदार्थ विज्ञान की यात्रा पर

बचपन से ही मुखोपाध्याय की विज्ञान के प्रति गहन रुचि थी। एक ओर किशोरावस्था में माता-पिता के समर्थन एवं प्रोत्साहन ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया, तो दूसरी ओर उनके विद्यालय के शिक्षकों की प्रदर्शन के साथ विज्ञान पढ़ाने की क्रियात्मक शैली ने भी उन्हें प्रेरित किया। विद्यालयीन समय में मुखोपाध्याय का आकर्षण विज्ञान की ओर रहा, जो अंततः उन्हें पदार्थ विज्ञान (मैटेरियल साइंस) एवं अभियांत्रिकी के अंतर्विषयक क्षेत्र में ले गया। वर्ष 2003 में क्षेत्रीय प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, दुर्गापुर (वर्तमान में एनआईटी दुर्गापुर) से धातुकर्म अभियांत्रिकी विषय में स्नातक की उपाधि एवं 2006 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर से पदार्थ एवं धातुकर्म अभियांत्रिकी में परास्नातक करने के उपरांत वे पदार्थ विज्ञान में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (डी फिल) प्राप्त करने हेतु ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, यूके चले गए।

“मैं भाग्यशाली एवं गौरवान्वित था कि मुझे ऑक्सफोर्ड जैसे शीर्ष संस्थान में अध्ययन करने का अवसर मिला। वहाँ मुझे शिक्षण एवं शोध के प्रति अत्यंत सजग वातावरण देखने को मिला। आपके क्षेत्र के विशेषज्ञ न होने पर भी लोग वैचारिक-मंथन प्रेरित कर देने वाले प्रश्न पूछते एवं अकादमिक/शोध संबंधी वार्तालाप में उत्सुकतापूर्वक सम्मिलित होते थे। वहाँ रहकर मैंने बहुत कुछ सीखा,” मुखोपाध्याय ऑक्सफोर्ड में व्यतीत किये गए अपने उत्तम समय के सम्बन्ध में बताते हैं।

जैसे-जैसे पदार्थों की संरचना, यांत्रिकी एवं विद्युत-रसायन विज्ञान तथा उनके गुणों के सम्बन्ध में अधिक जानकारी होती गयी, अभियांत्रिकी के प्रति मुखोपाध्याय की रुचि बढ़ती गई, जिसने पदार्थ विज्ञान एवं अभियांत्रिकी में व्यवसाय के रूप में उनके भविष्य की आधारशिला रखी। अध्ययन के उपरांत अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अवसर प्राप्त होने पर भी वे देश की समृद्धि एवं विकास में योगदान देने हेतु भारत प्रत्यागमन को प्रतिबद्ध रहे।

मुखोपाध्याय कहते हैं, “मैं देश के लिए योगदान देना चाहता था, अत: भारत प्रत्यागमन मेरी योजना में सम्मिलित था।”

भारत वापसी - ऑक्सफोर्ड से आईआईटी मुंबई तक

आईआईटी मुंबई से मुखोपाध्याय को विशेष लगाव था। विज्ञान एवं अभियांत्रिकी शिक्षा/शोध की उत्कृष्टता के लिए संस्थान की प्रतिष्ठा एवं मुंबई के प्रति आकर्षण ने मुखोपाध्याय को यहाँ के लिए स्वाभाविक रूप से प्रेरित किया। सचिन तेंदुलकर एवं लता मंगेशकर जैसे महान हस्तियों का घर होने के कारण बचपन से ही मुखोपाध्याय का मुंबई के प्रति आकर्षण था। इन महा-नायकों ने युवा काल में उन्हें अत्यधिक प्रेरित किया था।आईआईटी मुंबई के आरंभिक अनुभव का स्मरण करते हुए वे कहते हैं,

“एक युवा शोधकर्ता के रूप में, मैं विशिष्ट उपकरणों हेतु संस्थान से वित्तपोषण का अनुरोध करने में भी संकोच कर रहा था। किन्तु लगभग 5-10 मिनट के संक्षिप्त वार्तालाप के पश्चात ही उन्होंने वित्तपोषण की स्वीकृति प्रदान कर दी, जो एक युवा शिक्षक के लिए बहुत उत्साहजनक है। यहाँ के छात्र एवं शिक्षक औपचारिकता से दूर एवं प्रेरित हैं, जो समस्त वातावरण को उत्साहजनक बनाता है।”

आईआईटी मुंबई में कार्य करते हुए मुखोपाध्याय ने शीघ्र ही बैटरी के क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती को स्वीकार किया: ‘सोडियम-आयन बैटरी का विकास’। भारत में लिथियम एवं कोबाल्ट जैसी महत्वपूर्ण लिथियम-आयन बैटरी सामग्रियों का भंडार सीमित होने के कारण व्यवहार्य विकल्पों की तत्काल आवश्यकता है। सोडियम-आयन तकनीक का आगमन एक उत्तम विकल्प प्रदान करता है जो 'पारंपरिक' लिथियम-आयन तकनीक की तुलना में अधिक लाभप्रद होने के साथ अधिक टिकाऊ एवं मितव्ययी है।

“मुझे स्मरण है कि इलेक्ट्रिक वाहनों के बढ़ते चलन को देखकर मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा था कि आने वाले समय में हमें मध्य पूर्व से पेट्रोकेमिकल्स आयात करने के स्थान पर विश्व के अन्य भागों से लिथियम का आयात करना होगा। यह बात मेरे मस्तिष्क में सदैव विद्यमान रही एवं स्मरण कराती रही कि हमें एक ऐसी तकनीक की आवश्यकता है जिसका उत्पादन कच्चे माल सहित स्वदेश में ही हो सके एवं हम आत्मनिर्भर हो सकें,” मुखोपाध्याय ने सोडियम-आयन बैटरी को विकसित करने की अपनी प्रेरणा के संबंध में बताया।

लिथियम के विपरीत, भारत में सोडियम की प्रचुर मात्रा उपलब्ध हैं, जो इन बैटरियों के उत्पादन हेतु एक स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के साथ-साथ देश की आयात निर्भरता को कम करती है। सोडियम-आयन बैटरियां लागत-प्रभावी भी हैं, जो कम से कम 20-25 % तक अल्पमूल्य हैं। इसके अतिरिक्त ये बृहत तापमान सीमा में कार्य कर सकती हैं तथा इनके भंडारण में संकट भी कम है, जिससे ये अधिक सुरक्षित हो जाती है। ये कारक सोडियम बैटरी को भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश के लिए आदर्श बनाते हैं।

भारत के लिए स्वदेशी एवं दीर्घकालिक बैटरी विकल्प

मुखोपाध्याय ने शीघ्र ही आईआईटी मुंबई में क्षारीय धातु-आयन (अल्कली मेटल-आयन) बैटरी प्रणाली पर केन्द्रित ‘उन्नत बैटरी एवं सिरामिक प्रयोगशाला’ (अडवांस्ड बैटरी एंड सिरामिक लैबोरेटरी) की स्थापना की। उन्होंने सोडियम-आयन बैटरी की स्वीकार्यता के मार्ग में आने वाली बाधाओं पर कार्य करना प्रारम्भ किया।

“उस समय बहुत से लोगों ने मुझे कहा कि यह असंभव है एवं सोडियम-आयन कभी भी लिथियम-आयन बैटरी का स्थान नहीं ले सकता। किंतु डीएसटी, एसईआरबी एवं कुछ उद्योगों को मैं उनके शोध अनुदानों के लिए धन्यवाद दूँगा, जिनके माध्यम से मुझे इस शोधकार्य को आगे ले जाने में सहायता मिली,” मुखोपाध्याय कहते हैं।

वर्तमान में प्रयोगशाला में किये जा रहे शोध ऐसे अनेकों बाधाओं को संबोधित कर रहे हैं जो आज तक सोडियम-आयन बैटरी की स्वीकार्यता को सीमित करते रहे हैं। उदाहरण स्वरुप, पर्यावरणीय कारकों के संपर्क में आने पर प्रभावित होने वाला बैटरी का ऊर्जा घनत्व एवं स्थायित्व (एनर्जी डेंसिटी एंड स्टेबिलिटी)। वायु एवं पानी में स्थिर रहने में सक्षम सोडियम-संक्रमण धातु ऑक्साइड (सोडियम-ट्रांज़िशन मेटल ऑक्साइड) कैथोड विकसित करने के उनके अभिनव कार्य ने अधिक टिकाऊ एवं व्यावहारिक बैटरी की दिशा में एक उत्तम समाधान प्रस्तुत किया है। परिवेशी वायु, आर्द्रता एवं जल जनित हानियों जैसी पर्यावरणीय चुनौतियों का प्रतिरोध करने में मुखोपाध्याय के शोध दल द्वारा प्रयुक्त किए हुए कैथोड पूर्णत: सक्षम हैं। पारंपरिक बैटरी सामग्री के प्रसंस्करण में ये समस्त उपरोक्त अवरोध बहुत ही सामान्य हैं।

सोडियम-आयन बैटरी की स्वीकार्यता के मार्ग में आने वाली चुनौतियों के सम्बन्ध में मुखोपाध्याय कहते हैं, “सोडियम-आयन बैटरियों को अभी भी ऊर्जा घनत्व एवं बैटरी स्थायित्व जैसे कारकों में संशोधन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सोडियम-आयन बैटरियों के लिए उच्च क्षमता युक्त कैथोड सामग्रियों को संभालना भी कठिन होता है क्योंकि वे अत्यधिक आर्द्रताग्राही (आर्द्रता पकड़ने वाली) होती हैं। हम इन समस्याओं के निराकरण हेतु कार्यरत हैं।"

साथ हीं कैथोड के “जलीय प्रसंस्करण” (एक्वियस प्रोसेसिंग) का प्रारम्भ बैटरी इलेक्ट्रोड प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण नवाचार है। यह बैटरी इलेक्ट्रोड के निर्माण के समय विषैले कार्बनिक विलायकों को जल से प्रतिस्थापित कर प्रक्रिया लागत एवं पर्यावरणीय प्रभाव को उल्लेखनीय मात्रा में कम कर देता है। इस जल-आधारित विधि को स्वीकार करने से निर्माण लागत में लगभग 15% की बचत होगी, साथ ही ऊर्जा क्षय एवं संकटपूर्ण उत्सर्जन भी कम होंगे। उदाहरण स्वरुप, जलीय प्रसंस्करण पर आधारित 1 गीगावाट-अवर की सोडियम-आयन बैटरी निर्माण सुविधा, संभावित रूप से लगभग 20 लाख किलोवाट-अवर ऊर्जा की बचत कर सकती है एवं प्रतिवर्ष 1,000 टन कार्बन उत्सर्जन का निवारण कर सकती है।

मुखोपाध्याय ने इस कार्य के लिए अनेकों पुरस्कार जीते हैं, जिनमें भारतीय सिरामिक सोसाइटी द्वारा युवा वैज्ञानिक पुरस्कार, भारतीय राष्ट्रीय अभियांत्रिकी अकादमी के युवा सहयोगी, नवगठित बैटरी रिसर्च सोसाइटी (भारत) के संस्थापक सदस्य एवं उपाध्यक्ष, स्वर्णजयंती फेलोशिप तथा अब टाटा ट्रांसफॉर्मेशन पुरस्कार सम्मिलित हैं।

Amartya Mukhopadhyay recieving the Tata Transformation Prize
Amartya Mukhopadhyay recieving the Tata Transformation Prize. Credit: New York Academy of Sciences

भविष्य में मुखोपाध्याय इस प्रौद्योगिकी को व्यापक अनुप्रयोगों की दिशा में ले जाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं एवं उनकी मान्यता है कि

“यह पुरस्कार इन प्रयासों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रोत्साहन है, जो सोडियम-आयन बैटरियों के व्यवसायीकरण हेतु अनुसंधान एवं मूलभूत संरचना के विकास में सहायक है।”

अमर्त्य मुखोपाध्याय की जीवन यात्रा विज्ञान से प्रेरित विद्यालयीन छात्र से लेकर आईआईटी मुम्बई में अग्रणी शोधकर्ता होने तक की यात्रा है, जो अत्याधुनिक तकनीकों पर कार्य करते हुए देश की समस्याओं के समाधान में रत हैं। सोडियम-आयन बैटरी तकनीक के अग्रणी के रूप में, वे भारत में सामग्रियों के अभाव एवं ऊर्जा चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं, साथ ही स्वच्छ एवं सतत ऊर्जा समाधानों की दिशा में वैश्विक गतिविधियों में भी योगदान कर रहे हैं।

युवा शोधकर्ताओं को संदेश देते हुए मुखोपाध्याय का कहना है कि “आज विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के मध्य बहुत अधिक अंतर नहीं है एवं यह सब अंतर्विषयक है, जिसे प्रत्येक को अंगीकार करना चाहिए। चुनौतीपूर्ण प्रश्नों को हल करने का प्रयास ही वास्तविक रूप से प्रभावकारी होता है, चाहे वह असंभव ही क्यों न लगे। विज्ञान को केवल एक जीवनवृत्ति के रूप में न करते हुए सदैव राष्ट्रीय एवं सामाजिक हित का लक्ष्य निर्मित करना चाहिए।”

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