शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

बहने वाले क्रिस्टलों का अवलोकन

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मुंबई
12 अक्टूबर 2020
बहने वाले क्रिस्टलों का अवलोकन

अन्स्प्लेश छायाचित्र: जाएल वाल्ली

पॉलीक्रिस्टल्स - अर्थात अत्यंत छोटे-छोटे क्रिस्टल्स (ग्रेन) से युक्त समस्त इकाई - जिसका व्यवहार सिंगल क्रिस्टल से एकदम भिन्न हो सकता है। उदाहरण के लिए, कुछ पॉलीक्रिस्टल्स जो माइक्रोमीटर आकार के सिलिका अथवा पॉलीस्टायरीन कणों से निर्मित होते हैं, 'सॉफ्ट' या नर्म कहलाते हैं; एवं  बल लगाये जाने पर, जैसे कि दबाव या गुरुत्व के प्रभाव में, ये बहना प्रारम्भ कर देते हैं। इन पॉलीक्रिस्टल्स के कणों को बाँधकर रखने वाला बल अत्यंत क्षीण होता है, इसलिए बाह्य बल का प्रयोग इन पॉलीक्रिस्टल्स में गतिशीलता प्रदान कर देता है। किंतु सिंगल क्रिस्टल, जो पूर्ण रूप से एक ठोस ग्रेन होता है, पॉलीक्रिस्टल की तरह नहीं बह सकता। तब कोई आश्चर्य नहीं यदि हाल के दशकों में पॉलीक्रिस्टल्स के इन अनूठे गुणों ने वैज्ञानिकों की रुचि को उकसाया है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आई.आई.टी. बॉम्बे) एवं गणितीय विज्ञान संस्थान (आई.एम.एससी.), चेन्नई, के द्वारा किया गया एक नवीन अध्ययन बताता है कि विभिन्न चौड़ाई की वाहिकाओं से बल-पूर्वक प्रवाहित किये जाने पर, ये सॉफ्ट पॉलीक्रिस्टल्स, किस प्रकार से व्यवहार करते हैं। फ़िज़िकल रिव्यू पत्रिका में प्रकाशित यह कार्य, आई.आई.टी. मुंबई स्थित औद्योगिक अनुसंधान एवं परामर्श केंद्र (आईआरसीसी) के द्वारा वित्त-पोषित किया गया था।

शोधकर्ताओं ने माइक्रोमीटर आकार के कणों का उपयोग कर, ग्रेन्स के निर्माण के लिए, सॉफ्ट पॉलीक्रिस्टल्स के कंप्यूटर सिमुलेशन्स चलाये, और दो खुरदरी दीवारों के मध्य निर्मित संकीर्ण वाहिका से बहने के लिए इन्हें बाध्य किया गया। "सॉफ्ट एमॉरफ़स पदार्थों - जिनमें परमाणु पूर्णत: अनियोजित होते हैं - का उपयोग करके ये प्रयोग किए जा चुके हैं, जो कि संकीर्ण वाहिकाओं में जैल और टूथपेस्ट के सदृश है, किन्तु पॉलीक्रिस्टल्स पर अब तक कोई प्रयोग नहीं हुआ", यह कहना है भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के प्राध्यापक अनिरबन सेन का, जिन्होंने आई.एम.एससी. के प्राध्यापक पिनाकी चौधरी के साथ इस अध्ययन का नेतृत्व किया है। 

सिमुलेशन्स में शोधकर्ताओं ने पाया कि दबाव आरोपित करने के बाद भी, प्रारम्भ में पॉलीक्रिस्टल्स वाहिकाओं में जम रहे थे। और उन्होंने गति करना केवल तब प्रारंभ किया जब यह दबाव पर्याप्त रूप से अधिक था। दिलचस्प है कि, वाहिकाओं की चौड़ाई के आधार पर पॉलीक्रिस्टल्स ने अलग-अलग तरह से व्यवहार किया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि कुछ दहाई माइक्रोमीटर तक की चौड़ाई वाली वाहिकाओं में, वाहिका के मध्य में स्थित ग्रेन्स लगभग ठोस खंडों के समान स्थिर चाल से और मंद रूप से गतिमान हुये। किन्तु, दीवार के समीप स्थित ग्रेन्स की गति दीवारों के द्वारा आरोपित घर्षण के कारण लगभग न के बराबर थी।

"ग्रेन्स अपने कणों को अलग-अलग चाल से गतिमान नहीं होने दे सकते, क्योंकि वे टूट जाते हैं," यह कहना है भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के डॉ. तन्मोय सरकार का, जिन्होंने सिमुलेशन्स पर कार्य किया है। क्योंकि दीवार के संपर्क में स्थित ग्रेन्स वाले भाग शेष अन्य भागों के समान तीव्र गति नहीं कर सके, अत: ग्रेन्स कणों में टूट गए। इन कणों का व्यवहार तरल पदार्थों  के समान था और दीवारों के समीप ये प्राय: गतिहीन दिखाई दिये।

तब यह आश्चर्यजनक नहीं है कि, संकीर्ण वाहिकाओं के लिए, पॉलीक्रिस्टल में स्थित अधिकांश ग्रेन्स कणों में टूटे और कुछ एक साबुत ग्रेन्स के साथ मध्य में बहे। सामान्यत: यहाँ कणों की चाल, उनकी दीवार से दूरी के साथ-साथ क्रमिक रूप से बढ़ती हुई दिखाई दी।

इन गतिशील कणों की अनियमितता से एक लुभावना पैटर्न उभरता है। जैसे ही  ग्रेन्स तरल सूप में मंद गति से अग्रसर होते हैं, कुछ कण इन ग्रेन्स के पीछे जुड़ जाते हैं और कुछ आगे से प्रथक हो जाते हैं। इस स्थिर पुनर्संरचना से, ग्रेन्स पीछे की ओर गति करते हुये दिखाई देते हैं, जबकि सभी कण बल के प्रभाव में आगे की ओर गति कर रहे होते हैं !

"इस तरह के पैटर्न्स पहले एमॉरफ़स पदार्थों के संकीर्ण वाहिकाओं में गति के दौरान देखे जा चुके हैं। किन्तु हमने पाया कि, पॉलीक्रिस्टल्स में यह तरल-ठोस मिश्रण के भीतर होता है, जो एक नयी बात है।" प्राध्यापक सेन कहते हैं।

नए पदार्थों के निर्माण के लिए इस तरह के शोध से उपजा ज्ञान महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए,वैज्ञानिक प्रकाश की कुछ आवृत्तियों को फिल्टर करने में सक्षम फोटॉनिक क्रिस्टल्स की उत्पत्ति के लिए, पहले ही सॉफ्ट पॉलीक्रिस्टल्स संरचनाओं का उपयोग कर चुके हैं। इसलिए, यह संभव है कि पदार्थ के गुणधर्मों, जैसे कि उसके प्रवाह की गहरी समझ भविष्य में नए अनुप्रयोगों का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।" हमारा यह कार्य आगे चलकर कोलोइडल पॉलीक्रिस्टल्स में इस तरह के प्रवाह के प्रयोगात्मक अन्वेषण को प्रोत्साहित करेगा," कहकर प्राध्यापक सेन विदा लेते हैं।