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भारत का मानसिक स्वास्थ्य संकट परिदृश्य - एक विवादास्पद विषय पर चर्चा

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बेंगलुरु
29 जनवरी 2021
भारत का मानसिक स्वास्थ्य संकट परिदृश्य - एक विवादास्पद विषय पर चर्चा

बेंगलुरु निवासियों की ३ सितंबर, २०१३ की सुबह इस भयावह समाचार शीर्षक के साथ हुई ‘सतर्क रहें, मनोविकृत रोगी बेंगलुरु में खुलेआम घूम रहा है’ (वॉच आउट, देयर इज साइको ऑन द लूज़)। यह​ समाचार तमिलनाडू के सलेम शहर के एक ट्र्क चालक एम. जयशंकर के विषय में था, जो जेल से दो बार भाग चुका था व १३ महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्या के अपराध के लिये अभियोजित था। दोबारा पकड़े जाने तक​, जयशंकर पर बलात्कार, हत्या और डकैती के ३० मामलों के आरोप थे। उसे मानसिक रूप से अस्थिर घोषित कर दिया गया और वह 'साइको शंकर' का भयावह उपनाम अर्जित कर चुका था।

कौन था साइको शंकर? हम केवल इतना जानते हैं कि उसने राजमार्गों और फार्महाउसों पर अकेली महिलाओं को अपना निशाना बनाया। उसके अधिकांश पीड़ित वेश्यावृत्ति से जुड़े लोग थे, जिन्हें उसने सड़क किनारे स्थित ढाबों से अपहृत किया था। वह अपने साथ छुरा रखता था और जो भी उसका विरोध करता था, उसे वह मौत के घाट उतार देता था। उसके और संयुक्त राज्य अमेरिका के ऊटा राज्य के एक मनोरोगी गैरी रिजवे , या ग्रीन रिवर किलर, के आपराधिक रिकॉर्ड में विलक्षण समानता है। गैरी के मुसीबतों व हिंसा में गुजरे बचपन के इतिहास की तो काफी जानकारी है, किन्तु जयशंकर के विषय में कोई जानकारी नहीं है। २०१८ में उसने खुद को जेल की उसी कोठरी में मार दिया जिसमें उसे कैद किया गया था। उसके दुखद जीवन का अंत एक मनोरोगी होने की सहानुभूति के साथ नहीं, बल्कि एक खलनायक ‘साइको’ के रूप में हुआ।

अपराधिक मनोरोगी व्यवहार दुर्लभ है, परन्तु अवसाद और घबराहट जैसी मानसिक बीमारियां नहीं। यह अनुमानित है कि भारत में लगभग २८-८३% मानसिक विकार रोगियों और ८६% शराब की लत वाले रोगियों को अपेक्षित पेशेवर मदद नहीं मिलती है।

अनुपचारित मनोरोगों के प्रभाव गंभीर हो सकते हैं, क्योंकि यह रोग जैसे-जैसे और निकृष्ट होते चले जाते हैं, ये रोगी के व्यावसायिक और सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित करते हैं। कभी-कभी, इन रोगों के कारण शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी क्षय होता है, जिससे शरीर संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील बन जाता है। इन परिस्थितियों में मानसिक रूप से बीमार रोगी का पृथकृकरण मानसिक आघात को बढ़ा सकता है। इसके अतिरिक्त समाज में ऐसे व्यक्ति पर तब आक्रमण हो सकता है जब वह सामान्य रूप से प्रतिक्रिया देने में असमर्थ हो। ये सभी कारक जीवन को असहनीय और सोच को तर्कहीन बना सकते हैं, जो आत्महत्या के कारण बन सकते हैं। यदि १९५० के दशक से गिनती की जाये, तो अनुमानित है कि विश्व स्तर पर आत्महत्या के ९०% प्रकरण मानसिक बीमारियों के कारण हुए हैं।

हम में से कई लोग बहुधाअनभिज्ञ होते हैं या मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों के प्रति दुर्भावना रखते हैं, इसलिए प्रायः आशंका और असहिष्णुता उन्हें सहायता पहुंचाने के रास्ते में आते हैं।

लेखों की इस श्रृंखला द्वारा, रिसर्च मैटर्स में हम​ भारत के मानसिक स्वास्थ्य की परिस्थितियों और इसके विभिन्न पहलुओं, जिसमें सामान्यतः मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता की कमी भी शामिल है, पर विज्ञान के माध्यम से सूक्ष्मदृष्टि डालने का प्रयत्न करेंगे। इसका उद्देश्य सार्वजनिक वार्तालाप में मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दे, जिन्हें प्रायः दबा दिया जाता है, को सामने लाना है ताकि इससे जुड़े कलंक को दूर किया जा सके और जिन्हें आवश्यकता है, उन्हें सहायता मिलना आसान हो जाये। इसके अतिरिक्त, केवल एक जागरूक समाज ही मानसिक स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर अनुसंधान और नीति परिवर्तन की मांग कर सकता है।

क्या है मानसिक बीमारी? प्रारंभिक वार्तालाप

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कहता है कि मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति को अपनी क्षमताओं को साकार करने में सक्षम होना चाहिए, नियमित तनाव का सामना करना आना चाहिए, और समुदाय के प्रति उत्पादक होना चाहिए।

पत्रकार जॉन रॉनसन ने अपनी २०११ की पुस्तक "द साइकोपैथ टैस्ट : अ जर्नी थ्रू द मैडनेस इनडस्ट्री" में " विक्षिप्त​" और "समझदार​" में भेद करने में कठिनाई के बारे चर्चा की है। वे कहते हैं इसका कारण जटिल मानव व्यवहार का अत्यधिक बारीकी से विश्लेषण करना है। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में मनोरोग के प्रोफेसर एवं मनोचिकित्सक रॉबर्ट स्पिट्ज़र के साथ मानसिक विकारों के अति-वर्गीकरण पर चर्चा की। प्रोफेसर स्पिट्ज़र डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मैन्टल डिस्ऑर्डस (मानसिक विकारों के नैदानिक और सांख्यिकीय की निर्देशपुस्तिका) या डीएसएम के रचयिता भी हैं - जो मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं के निदान के लिए आदर्श पुस्तक है।

अपनी वार्तालाप पर रॉनसन लिखते हैं,

“जब मैंने रॉबर्ट स्पिट्ज़र से इस संभावना के बारे में पूछा कि उन्होंने अनजाने में एक ऐसी दुनिया सृजित कर दी है जिसमें सामान्य व्यवहारों पर​ मानसिक विकारों का ठप्पा लगाया जा रहा था, तो वे चुप हो गए। मैंने उनके जवाब का इंतजार किया। लेकिन चुप्पी तीन मिनट तक चली। अंत में उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता।"”

मानसिक रोगों को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विकारों, जैसे आत्म केन्द्रीयता विकार (ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर), की विशिष्ट विशेषताएं होती हैं। जबकि एलिस इन वंडरलैंड सिंड्रोम जैसे दुर्लभ विकारों की कोई भी ऐसी विशिष्टता नहीं होती जिन्हें नैदानिक अभ्यास में जाना जाता हो। मनोचिकित्सकीय​ विकार को पहचानने की इस समस्या को हल करने के लिए डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मैन्टल डिस्ऑर्डर्स को 1952 में पहली बार जारी किया गया था। दुनिया भर के शोधकर्ताओं और चिकित्सकों ने 2013 में जारी डीएसएम 5 नामक इस मैनुअल के पांचवें संस्करण को संकलित करने के लिए एक दशक तक काम किया। विश्व भर के पाठकों को लक्षित करते हुए स्पष्टतापूर्वक लिखी गयी यह पुस्तक नए अनुसंधान और नैदानिक अनुभव को जोड़ती है, जिससे मानसिक रोगियों के उचित निदान में सहायता मिलती है। हालांकि, यह​ किसी भी उपचार पद्धति को प्रस्तुत नहीं करती है।

डीएसएम ५ मैनुअल पंचअक्षीय व्याख्या करता है जिसका अनुसरण मानसिक विकार के अभिनिर्धारण का प्रयास कर रहे किसी भी व्यक्ति को करना है। पहला अक्ष ​वे नैदानिक ​​लक्षण हैं जो रोगी की दैनिक गतिविधियों को प्रभावित करते हैं, जैसे खाना खाना। दूसरा अक्ष व्यक्तित्व और मानसिक मंदता पर है, जिसके दीर्घकालिक प्रभाव होते हैं। तीसरे में चोट और रोग संचार संक्रमण को शामिल किया गया है जिनसे मस्तिष्क की सामान्य गतिविधियां प्रभावित होती हैं, जबकि चौथा तलाक, बेरोजगारी या मृत्यु जैसे सामाजिक परिवर्तनों पर केंद्रित है। अंतिम अक्ष में रोगी की मानसिक गतिविधि के समग्र मूल्यांकन को देखा जाता है। यह पांच-अक्षीय विश्लेषण चिकित्सकों को प्रमुख कारक और अन्य कारकों से इसकी अंतः क्रिया को स्थापित करने में मदद करता है जिनके परिणामस्वरूप एक मानसिक विकार होता है। हालांकि, मानसिक रूप से बीमार और स्वस्थ व्यक्ति के मध्य सीमांकन करने के लिए कोई स्पष्ट रेखा नहीं है। डीएसएम निर्देश पुस्तिका द्वारा परिभाषित अक्ष अभिन्न हैं। मनोचिकित्सक कुछ व्यवहारों को एक मानसिक बीमारी के रूप में तभी वर्गीकृत करता है जब किसी व्यक्ति के व्यवहार में भारी और चिंताजनक बदलाव आता है।

चूँकि हम सामाजिक प्राणी हैं, संस्कृति यह निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि लोग किस प्रकार​ से मानसिक वेदना को समझते हैं। ऑस्ट्रेलिया के जेम्स कुक विश्वविद्यालय में कला, समाज और शिक्षा के कॉलेज में सामाजिक कार्य के वरिष्ठ व्याख्याता, डॉ नारायणन गोपालकृष्णन मानसिक स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा करते हैं जो संस्कृति से प्रभावित हो सकते हैं। वे कहते हैं, '' किसी बीमारी के रोगहेतु-विज्ञान के प्रति धारणाएं विभिन्न संस्कृतियों में भिन्न भिन्न हो सकती हैं। संस्कृतियों में भिन्नता है कि वे मुख्य रूप से किस प्रकार से उपचार करते हैं। और सांस्कृतिक समूह अपने द्वारा अनुभव किए जाने वाले तनावदाताओं में भिन्न हो सकते हैं। ”

भारत जैसे बहु सांस्कृतिक देश में, संस्कृतियों के पारस्परिक प्रभाव से मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भ्रम उत्पन्न हो सकता है। और यही ब्रिघम महिला चिकित्सालय में मनोचिकित्सा, कानून और समाज विभाग की निदेशक डॉ. झीलम विश्वास ने एक अध्ययन में पाया। उन्होंने और उनके सहयोगियों ने भारत और अमेरिका में रोगियों के मानसिक बीमारी के निदान में अंतर का विश्लेषण किया। अध्ययन में बताया गया कि भारत में अवसाद के रोगी सामान्यतः शारीरिक लक्षणों जैसे दर्द और विकृत नींद की रिपोर्ट करते हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में रोगी अधिक मनोवैज्ञानिक तथ्यों यथा आशाहीनता या निराशावाद को रिपोर्ट करते हैं। लेखकों का निष्कर्ष है कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े सामाजिक कलंक के कारण भारत के लोग अवसाद का अनुभव मानसिक के स्थान पर एक शारीरिक बीमारी के रूप में कर सकते हैं। इस विचार का समर्थन इस तथ्य से हुआ कि ‘पारिवारिक शर्मिंदगी’ मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँचने की दिशा में एक बड़ी बाधा थी।

मानसिक बीमारियों के प्रकार: एक व्यापक वर्गीकरण

प्रसिद्ध भारतीय मनोचिकित्सक और "वेयर देयर इज नो साईकैट्रिस्ट: अ मैन्टल हैल्थ केयर मैनुअल" पुस्तक के लेखक डॉ. विक्रम पटेल ने व्यष्टि अध्ययन का उपयोग करते हुए भारत में छह प्रकार के मानसिक रोगों की व्याख्या की है।

  • सामान्य मानसिक विकार: इनमें चिंता, अवसाद, और अन्य उपश्रेणियाँ जैसे घबराहट, बाध्यकारी जुनूनी व्यवहार और भय (फोबिया) शामिल हो सकते हैं।
  • बुरी आदतें: इनमें मादक द्रव्यों और शराब का सेवन शामिल है ।
  • मनोविकृति (साइकोसेस): ये गंभीर मानसिक विकार हैं जैसे कि विखंडित मनस्कता (स्कीज़ोफ़्रेनिया), द्विध्रुवी विकार और उन्माद के संक्षिप्त प्रकरण जो मस्तिष्क के भीतर संक्रमण के कारण हो सकते हैं।
  • विकासात्मक विकार: ये उन शिशुओं में होते हैं जिन्हें या तो आनुवांशिक बीमारी होती है या जिनके प्रसव के दौरान दुर्घटनाएं होती हैं जो सामान्य मस्तिष्क के विकास को रोकती हैं। ये बच्चे सीखने की अक्षमता से पीड़ित होते हैं और विकास संबंधी मील के पत्थर जैसे कि भोजन करना , चलना, भाषा के विकास और सामाजिक संबंधों को प्राप्त करने में अधिक समय लगा सकते हैं। इस तरह के विकारों के उदाहरण बौद्धिक विकलांगता, डाउन सिंड्रोम, एंजेलमैन सिंड्रोम, आत्म केन्द्रीयता (ऑटिज्म) और वाक विकार (डिस्लेक्सिया) हैं।
  • बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं: ये विकार विशिष्ट रूप से बच्चों को होते हैं और पारिवारिक वातावरण या आनुवांशिकता के कारक इनका कारण हो सकते हैं। इनमें वाक विकार (डिस्लेक्सिया), अति सक्रियता (हाइपरएक्टिविटी), आचरण विकार, बिस्तर गीला करना, और अवसाद शामिल हैं। वयस्कता के दौरान उनके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार की उच्च संभावना होती है।
  • बुजुर्गों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं: वृद्ध लोग अकेलेपन के कार​ण मनोभ्रम या अवसाद से पीड़ित हो सकते हैं। मनोभ्रम में स्मृति और व्यक्तित्व में इतना ह्वास हो जाता है कि व्यक्ति जीवन​ की दिन प्रतिदिन की गतिविधियों को करने में असमर्थ हो जाता है। यद्यपि मनोभ्रम वृद्ध लोगों में होता है, परन्तु यह सामान्य उम्र बढ़ने का सूचक नहीं है। सामान्य प्रकार के मनोभ्रम अल्ज़ाइमर्स , हटिंगटन्स , पार्किंसंस आदि हैं।

मानसिक बीमारियों की यह सूची न केवल बेहतर निदान में सहायता करती है, बल्कि मानसिक विकारों के पीछे प्रचलित कई मिथकों को भी विनष्ट करती है। बच्चों और वृद्ध लोगों के लिए मानसिक विकारों की अलग अलग श्रेणियां खराब पालन-पोषण या बुढ़ापे पर दोषारोपण करने के स्थान पर किसी विशेष व्यवहार के कारण को पहचानने में मदद करती है। इसी प्रकार , नशे और शराब की लत को "बुरी आदत" की श्रेणी में रखने से इन समस्याओं का निदान इच्छाशक्ति या पसंद की कमी के बजाय बीमारियों के रूप में किया जा सकता है। हालांकि, तंत्रिका विज्ञान (न्यूरोसाइंस) समुदाय में यह विचार तेज़ी से बढ़ रहा है कि विभिन्न मनोविकारों में परस्पर संबंध है।

दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे अधिक शराब खपत और एक-चौथाई अवसाद पीड़ित किशोरों के साथ भारत एक नए दशक में प्रवेश कर रहा है। हम मानसिक बीमारियों के प्रति एक पूर्वाग्रह रखते हैं और फिर भी आर्थिक विकास के लिए आतुर हैं। इन सब में सुधार केवल ज्ञान, जागरूकता और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुली चर्चा के माध्यम से आ सकता है। यही कारण है कि हम रिसर्च मैटर्स में भारत में मानसिक स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं और उसकी स्थिति की अभिव्यंजना प्रारम्भ कर रहे हैं । इस श्रृंखला के हमारे अगले भाग के लिए जुड़े रहें, जिसमें हम​ देश भर में प्रचलित विभिन्न मानसिक विकारों के प्रसार पर ध्यान केंद्रित करेंगे।