आईआईटी मुंबई एवं भारतीय रेलवे के शोधकर्ता रेलवे समय -सारणी प्रबंधन के लिए प्रतिदिन न चलने वाली रेलगाड़ियों को एक समूह में मानकर कर भारतीय रेलवे को और दक्ष बनाएंगे।

भारतीय रेलमार्गों का उन्नत नियोजन — ट्रेन अथवा पटरी को स्पर्श किये बिना

Mumbai
18 मार्च 2025
Railway tracks in India, with one track occupied

अत्यंत जटिल प्रणालियों से युक्त होने पर भी हमारा शरीर असाधारण रूप से कार्य कुशल होता है। किंतु यदि ऐसा नहीं होता तो ? क्या होगा यदि हमारे मस्तिष्क को निरंतर योजनाएँ निर्मित करनी पड़ें जैसे कि, किस समय किन-किन धमनियों के माध्यम से कौन सा रक्त प्रवाहित होता है?

यदि विश्व के चौथे सबसे बड़े रेल-नेटवर्क को भारतीय अर्थव्यवस्था की धमनियां कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भारतीय रेल एक ऐसा तकनीकी चमत्कार है जो देश के विभिन्न भागों में अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक एवं आर्थिक विकास को गति देता है। किंतु 160 वर्षों से देश की माटी में दृढ़ता पूर्वक स्थापित इसकी पथ सामग्री को सरलता से प्रतिस्थापित कर क्या आप इसमें संशोधन कर सकेंगे ? जी नहीं! आपको ऐसा करने की आवश्यकता ही नहीं होगी अपितु केवल एक नवीन दृष्टिकोण से अवलोकन करने पर आप इसे संभव कर सकेंगे। क्षेत्रीय रेलवे, रेल सूचना प्रणाली केंद्र (सेंटर फॉर रेलवे इंफॉर्मेशन सिस्टम्स; CRIS) एवं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के संयुक्त सहयोगी दल का निष्कर्ष है। 

आईआईटी मुंबई के विद्युत अभियांत्रिकी विभाग के प्राध्यापक मधु बेलुर, औद्योगिक अभियांत्रिकी एवं परिचालन अनुसंधान विभाग (इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग एंड ऑपरेशन्स रिसर्च) के प्राध्यापक नारायण रंगराज एवं क्षेत्रीय रेलवे तथा CRIS के विशेषज्ञों के द्वारा किये गए इस नवीन शोध को जानने के लिए सर्वप्रथम यह देखते हैं कि रेलगाड़ियों की समय-सारणी (टाइम टेबल) कैसे निर्मित की जाती है।

इस अध्ययन में शोध दल ने भारतीय रेलों को दो प्रमुख समूहों में विभाजित किया: सप्ताह में नगरों के बीच चलने वाली लम्बी दूरी की ट्रेने प्रतिदिन चलती हैं। इसके विपरीत, समय के साथ यातायात में वृद्धि होने पर जब दो नगरों के मध्य नयी रेलगाड़ी प्रारम्भ की जाती है, तब इनके बीच ट्रेने सप्ताह के विशेष दिनों में ही चलती हैं। भारतीय रेलवे की समय-सारणी में जहाँ नित्य चलने वाली ट्रेने सरलता से समायोजित हो जाती हैं, वहीं अनित्य रूप से चलने वाली ट्रेने कठिन चुनौती निर्मित करती हैं।

अनित्य ट्रेने पूरे सप्ताह भर अस्त-व्यस्त रूप से वितरित रहती हैं, अत: इनको प्रभावी रूप से समयबद्ध कर पाना कठिन हो जाता है। अन्य चुनौती यह है कि विभिन्न क्षेत्रीय रेलवे (zones) अपने अनुभागीय संसाधनों के आधार पर अपनी-अपनी स्थानीय समय-सारणी का नियोजन करते हैं। इस कारण अनित्य चलने वाली ट्रेने व्यस्त स्टेशनों पर अवरुद्ध हो सकती हैं अथवा बड़े रेल-नेटवर्क के गतिरोधी संसाधनों (बॉटल नेक रिसोर्सेस) का सीमित उपयोग कर सकती हैं। इस समस्या के समाधान हेतु सहयोग दल ने ‘डेलीजिंग’ (dailyzing; दैनिकीकरण) नामक एक पद्धति विकसित की है, जो अनित्य चलने वाली रेलगाड़ियों को समूहीकरण के द्वारा समयसूची में कुशलतापूर्वक समायोजित करती है। 

डेलीजिंग में अनित्य चलने वाली “एक सामान” ट्रेनो को एक समूह में एकत्रित किया जाता है जिससे उनके चलने के विन्यास (pattern) का पूर्वानुमान इस प्रकार किया जा सकता है, जैसे कि वे दैनिक सेवा ट्रेने हों। “एक सामान” ट्रेने वे है जो सप्ताह के विभिन्न दिनों में किंतु लगभग समान पथ-संसाधनों का उपयोग करने वाली एवं लगभग समान समय (15 मिनिट की समय सीमा में) में चलने वाली ट्रेने है, जो एक साथ समूहीकृत की जाती हैं। समय-सारणी में यत्र-तत्र वितरित इन रेलगाड़ियों को पृथक मानाने के स्थान पर अब रेलवे प्रबंधन इन्हे 24 घंटे की समयसूची में समायोजित कर सकता है। इस प्रकार रिक्त स्थानों को भरते हुए एक व्यवस्थित एवं अधिक दक्ष समय-सारणी प्राप्त होगी। 

समान मार्ग पर एवं समान समय में किंतु सप्ताह के पृथक-पृथक दिनों में चलने वाली गाड़ियों को सूचीबद्ध करने के लिए सहयोग दल ने हायरार्किकल एग्लोमरेटिव क्लस्टरिंग (HAC) नामक एक युक्ति का उपयोग किया जो बहुत से आँकड़ों में विन्यास को पहचाने में सक्षम है। एकल समूह (Single Cluster) के रूप में सूचीबद्ध ये ट्रेने एक सरल एवं अधिक उपयोगी समय-सारणी निर्मित करती हैं। शोध दल ने पाया कि समूह की किसी एक प्रतिनिधि गाड़ी को दैनिक गाड़ी के रूप में समयबद्ध कर देने से उस समूह की समस्त अनित्य चलने वाली ट्रेनों को सरलतापूर्वक समयबद्ध किया जा सकता है। 

वर्तमान में भारतीय रेलवे समस्त भारत में प्रतिदिन 13150 यात्री गाड़ियों का संचालन करता है। यद्यपि कई गाड़ियाँ सप्ताह भर असंगत रूप से अनित्य चलती हैं। समय-सारणी के इस अस्त-व्यस्त वितरण के कारण कुछ दिन रेलपथ का संपूर्ण उपयोग ही नहीं हो पाता, तो कुछ दिन यह अत्यधिक दबाव में रहता है। शोधकर्ताओं ने देखा कि ट्रेनों को समूहीकृत करके वे इनकी समय-प्रबंधन प्रक्रिया में संशोधन कर सकते हैं, क्योंकि एक समूह के समयबद्ध होने के साथ ही इसके अंतर्गत आने वाली प्रत्येक गाड़ी स्वचालित रूप से इस समय-सारणी का अनुसरण करेगी। 

कल्पना करें कि यह एक व्यस्त नगर के जंक्शन की बस समय-सारणी है एवं एक ही जंक्शन से पांच पृथक-पृथक बसें, एक ही समय पर किंतु सप्ताह के अलग-अलग दिनों में गुजरती हैं। तो इसे पाँच दिनों के लिए समयबद्ध करना थकाऊ एवं अकुशल हो सकता है। किंतु यदि समस्त बसों को एक “दैनिक” पथ में समूहित कर लिया जाये तो आपको केवल एक बस की योजना निर्मित करनी होगी, जो स्वचालित रूप से उस समूह की समस्त बसों का समय निर्धारण कर देगी। 

शोध में बताया गया है कि इस समूहन पद्धति में नवीनतम ट्रेनों को भी स्थान दिया जा सकता है। यदि एक समूह में सात से कम ट्रेनें हैं (सप्ताह के प्रत्येक दिन एक ट्रेन), तो नयी ट्रेनों को इन रिक्त दिनों में स्थान दिया जा सकता है। इस प्रकार व्यस्ततम अनुभागों का अधिक प्रभावी रीति से प्रबंधन कर के ट्रेनों के प्रवाह में वृद्धि के साथ-साथ विलम्ब को दूर किया जा सकता है।

अपने मॉडल के परीक्षण हेतु शोधकर्ताओं ने भारत के गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल एवं डायगोनल्स (GQD) नेटवर्क पर ध्यान केंद्रित किया जो कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई एवं कोलकाता को जोड़ने वाला एक विशाल रेल मार्ग है। उन्होंने वास्तविक ट्रेन डेटा का विश्लेषण किया तथा हायरार्किकल एग्लोमरेटिव क्लस्टरिंग (HAC), डेंसिटी-बेस्ड स्पेशियल क्लस्टरिंग ऑफ एप्लिकेशन्स विद नॉइज (DBSCAN) एवं K-मीन्स (K-means) जैसी लोकप्रिय क्लस्टरिंग (समूहन) तकनीकों को प्रयुक्त किया। परीक्षण के अद्भुत परिणाम दर्शाते हैं कि HAC ने सर्वोत्तम समूह निर्मित किये जो यह सुनिश्चित करते थे कि अनित्य ट्रेनें भलीभांति एक दूसरे की “पूरक” हैं, एवं समय-सारणी में इनकी मेल नहीं खाने की संभावना न्यूनतम है। यद्यपि समूह के लिए पूरकता का अर्थ है कि इसके अंतर्गत आने वाली समस्त ट्रेनें समान मार्ग-खंड एवं समान समय पर किंतु सप्ताह के पृथक-पृथक दिनों में चलनी चाहिए। 

अन्य तकनीकों में जहाँ इस कार्य के लिए बहुधा कई मिनट का समय लगता था, HAC के माध्यम से कुछ ही सेकंडों में अवरोध रहित समूह निर्मित किये जा सके। HAC के उपयोग वाली इस त्वरित पद्धति के माध्यम से दक्षता बढ़ने वाले कुछ तथ्य भी सामने आये, जैसे कि रेल प्रणाली को बाधित किए बिना नवीनतम ट्रेनों को कहाँ पर समाविष्ट किया जा सकता है।

प्राध्यापक मधु बेलुर ने प्रतिपादित किया कि जीक्यूडी नेटवर्क पर आधारित इस मॉडल को यहाँ निर्मित करने के पीछे दो कारण थे - जीक्यूडी भारतीय रेलवे के कुल माल एवं रेलयान यातायात का एक महत्वपूर्ण एवं बड़ा भाग है। दूसरा, जीक्यूडी नेटवर्क में नहीं आने वाले एवं कम आवागमन वाले रेलवे क्षेत्रों की समय-सारणी अधिकांशत: क्षेत्रीय स्थितियों के अनुरूप होती है, जो पर्याप्त रूप से सरलीकृत होती है। चूंकि इन क्षेत्रों में ट्रेनों का आवागमन कम होता है अत: यहाँ समय-सारणी का निर्धारण करना सरल हो जाता है। 

प्राध्यापक बेलुर ने बताया कि समय-सारणी के परिवर्धन हेतु भारतीय रेलवे पहले ही जीक्यूडी पर डेलीज़िंग मॉडल के संशोधित संस्करण को प्रयुक्त कर रहा है। इसके लिए समूहीकरण पर आधारित एक स्वचालित प्रणाली बनाने में शोध-दल का सहयोग रेलवे को मिल रहा है। भविष्य के संशोधनों में सूक्ष्म समायोजन के द्वारा समूहों को और अधिक ट्रेनों को सम्मिलित करने योग्य बना कर तथा वास्तविक समय में समायोजन के द्वारा ट्रेनों के संचालन को और उन्नत एवं अनुकूलनशील बनाया जा सकता है। 

शोधकर्ता मानते हैं कि मॉडल के विस्तार के साथ-साथ नई चुनौतियाँ उत्पन्न होंगी। लंबी दूरी की ट्रेनें बहुधा अनेकों व्यस्ततम मार्गखंडों से गुजरती हैं, जहां मात्र एक समूहीकरण पर्याप्त नहीं हो सकता है। एक ट्रेन जो अपनी यात्रा के किसी मार्गखंड में एक समूह में भलीभांति समायोजित होती है, वह अन्यत्र किसी खंड में अवरोधों का सामना कर सकती है। इसके निराकरण हेतु विभिन्न मार्गखंडों के लिए एक पृथक समूहीकरण रणनीति की आवश्यकता होती है। साथ ही, चूंकि क्षेत्रीय रेलवे वर्तमान में अपनी-अपनी समय सारणी को स्वतंत्र रूप से देखते हैं, अत: भविष्य के समय-सारणी संशोधनों के लिए क्षेत्रीय रेलवे के मध्य श्रेष्ट समन्वय की आवश्यकता होगी ताकि डेलीजिंग के माध्यम से भारतीय रेलवे पूर्ण रूप से लाभान्वित हो सके। इन जटिलताओं का समाधान आगामी वर्षों में भारतीय रेलवे को और भी दक्ष एवं अनुकूलनशील बनाने में सहायक होगा।

Hindi