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भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में अपशिष्ट निवारण के चिरकालिक समाधान हेतु एक अत्यावश्यक विश्लेषणात्मक अध्ययन

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Mumbai
23 जून 2024
छवि सौजन्य: वेपिक एआई इमेज जनरेटर

2020 में भारत का जैवचिकित्सा अपशिष्ट 774 टन प्रतिदिवस था। इसके अतिरिक्त बड़ी मात्रा में प्रयुक्त, अप्रयुक्त एवं संक्रमित औषधियों, उपकरणों, सुरक्षा गियर तथा संवेष्टन (पैकेजिंग) सामग्री का निवारण किया गया। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए आवश्यक विशेष विधियों एवं प्रौद्योगिकी के अभाव में स्वास्थ्य सेवा अपशिष्ट का सुरक्षित निवारण एक चिंतनीय विषय है। इस दिशा में सार्वजनिक जानकारी एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण अपर्याप्त है तथा प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों से सम्बंधित उचित योजना एवं इनके कार्यान्वयन के लिए निधि की पर्याप्तता नहीं है।

चक्रीय अर्थव्यवस्था पद्धति (सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल) नामक 'रिड्यूस-रीयूज-रीसायकल’ दृष्टिकोण (संसाधनों का मर्यादित उपयोग एवं पुनर्प्रयोग-पुनर्चक्रण करना), प्रदूषण एवं पर्यावरण क्षति से सुरक्षा देने एवं इसे घटाने में सहायक है। 'टेक-मेक-डिस्पोज' दृष्टिकोण (संसाधनों का उपयोग कर उन्हें फेंक देना) पर्यावरण क्षति जैसे विपरीत परिणामों का एक संभावित कारण है। यद्यपि अन्य क्षेत्रों में कुशल अपशिष्ट प्रबंधन एवं अपशिष्ट घटाव के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था पद्धति की प्रभावशीलता भलीभांति सिद्ध हुई है, किन्तु स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में इसे पर्याप्त रूप से परखा नहीं जा सका है। स्वास्थ्य सेवा अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में इसे कार्यान्वित करने की अपनी अलग चुनौतियाँ हैं।

शैलेश जे. मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के डॉ. अनुज दीक्षित एवं प्राध्यापक पंकज दत्ता ने एक अध्ययन किया जो स्वास्थ्य सेवा अपशिष्ट प्रबंधन के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था पद्धति के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु प्रमुख कारकों की पहचान करता है। उनका यह शोध क्लीन टेक्नोलॉजीज़ एंड एन्वायरनमेंटल पॉलिसी नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

विश्व के विभिन्न स्थानों में चक्रीय अर्थव्यवस्था पद्धति को अंगीकार करने संबंधी प्रथाओं, कारकों एवं बाधाओं की जानकारी हेतु, आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं ने कई उद्योगों के पूर्व शोधकार्यों का अध्ययन किया, जैसे कि स्वास्थ्य-सेवा, चिकित्सा उपकरण, स्टेनलेस स्टील सर्जिकल उपकरण, प्लास्टिक स्वास्थ्य उत्पाद एवं जैव चिकित्सा अपशिष्ट। इनमें से अधिकांश अध्ययन गुणात्मक (क्वालिटेटिव) प्रकृति के थे।

विश्लेषणात्मक अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए डॉ. अनुज दीक्षित कहते हैं, "चक्रीय अर्थव्यवस्था पद्धति को अंगीकार करने की दिशा में, विभिन्न उपलब्ध गुणात्मक अध्ययन स्वयं स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में मात्रात्मक (क्वांटिटेटिव) अनुसंधान की अनुशंसा करते हैं ताकि अधिक अंतर्दृष्टि (इनसाइट) प्राप्त हो सके।"

शोधकर्ताओं ने सर्वेक्षण प्रतिभागियों द्वारा अपशिष्ट प्रबंधन, पूंजी, प्रौद्योगिकी, अपशिष्ट पृथक्करण/संकलन एवं विभिन्न हितधारकों के उत्तरदायित्व, जागरूकता एवं प्रशिक्षण जैसे विभिन्न कारकों के महत्व को आँकने से संबंधित डेटा एकत्र किया। यह डेटा एक वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली सर्वेक्षण के माध्यम से, भारत के 54 स्वास्थ्य सेवा संगठनों के चिकित्सकों एवं अन्य व्यवसाइयों से एकत्र किया गया। संगठनों के अंतर्गत निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के चिकित्सालय, उपचार गृह, स्वास्थ्य सेवा अपशिष्ट पुनर्चक्रण केंद्र, पैथोलॉजी प्रयोगशालाएं तथा औषधि निर्माणियाँ सम्मिलित हैं, जो न्यूनातिन्यून 10 वर्षों से एवं ₹10 करोड़ के वार्षिक राजस्व के साथ कार्य करते हुए एक प्रगतिशील संगठन की ओर अग्रसर हैं।

प्राध्यापक पंकज दत्ता ने बताया, "स्वास्थ्य सेवा अपशिष्ट के प्रकार एवं प्रकृति के अनुसार उपयुक्त स्वास्थ्य संगठनों का चयन करना हमारे लिए बड़ी चुनौती थी।"

शोधकर्ताओं ने भली-भाँती स्थापित ANOVA, F-DEMATEL तथा ISM नामक सांख्यिकीय तकनीकों के संयोजन का उपयोग किया, जो गुणात्मक अध्ययन के साथ-साथ मात्रात्मक अंतर्दृष्टि देने में सक्षम था। इन तकनीकों का संयोजन किसी प्रणाली के योगदान कारकों की प्राथमिकता निश्चित करने, व्यावहारिक अंतर्दृष्टि प्रदान करने एवं अनिश्चितता की स्थिति में निर्णय लेने में सहायक है। शोधकर्ताओं के अनुसार इस अध्ययन के निष्कर्ष साधारण सर्वेक्षणों की तुलना में जटिल प्रणालियों का गहन, अधिक व्यवस्थित एवं विश्लेषणात्मक रूप से सटीक ज्ञान प्रदान करते हैं।

शोधकर्ताओंने अनुसंधान एवं विकास, शिक्षा एवं सामाजिक व्यवहार, आर्थिक पक्ष, उत्तरदायित्व तथा अनुसरण प्रणाली नामक पाँच व्यापक प्रभाव-क्षेत्रों के अंतर्गत 17 प्रासंगिक एवं पर्याप्त कारकों की खोज की, जिन्हें 'महत्वपूर्ण सफलता कारक' (क्रिटिकल सक्सेस फैक्टर) कहा जाता है। उपरोक्त पाँच प्रभाव-क्षेत्रों को 'निहितार्थ-आयाम' (इम्प्लीकेशन डाईमेंशन्स) कहते हैं, जो स्वास्थ्य सेवा अपशिष्ट प्रबंधन में चक्रीय अर्थव्यवस्था पद्धति की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। महत्वपूर्ण सफलता कारक, जिनमें अनुमान, युक्ति, प्रशिक्षण, बोध, आय-व्यय, उत्तरदायित्व एवं पारदर्शिता से संबंधित कुछ कारक सम्मिलित हैं, उन वास्तविक गतिविधियों को दर्शाते हैं जिनके लिए प्रयास किए जा सकते हैं।

अपने विश्लेषण के आधार पर, शोधकर्ताओं ने कार्यान्वयन को बेहतर बनाने हेतु महत्वपूर्ण सफलता कारकों को कारणात्मक (कॉज़ल) तथा प्रभाव (इफेक्ट) कारकों के रूप में वर्गीकृत किया। बारह महत्वपूर्ण सफलता कारकों की पहचान कारणात्मक-समूह में की गई एवं शेष पांच महत्वपूर्ण सफलता कारक प्रभाव-समूह में रखे गए। निर्धारित कारकों का उनके प्रभाव की तीव्रता के आधार पर भी मूल्यांकन किया गया, जो नीति निर्माण के समय प्रयासों की प्राथमिकता सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता है।

'सरकार का दायित्व' एवं 'हितधारकों की सहभागिता' जैसे कारकों की कार्यान्वयन क्षमता उच्चतम पाई गई, जबकि 'पृथक्करण एवं संकलन' जैसे महत्वपूर्ण माने गए कारक, अन्य कारणात्मक कारकों पर निर्भर पाए गए। 'सूचना दृश्यता एवं पारदर्शिता', 'निर्माता/संगठन का दायित्व', 'प्रशिक्षण एवं सशक्तीकरण' तथा 'पूंजी आवंटन' जैसे कारकों ने स्वास्थ्य सेवा अपशिष्ट प्रबंधन को सर्वाधिक प्रभावित किया।

नीतियों के लक्ष्यों के आधार पर विशिष्ट प्रकरण के निहितार्थ-आयामों को ध्यान में रखते हुए, आवश्यक कारकों पर प्रयास केन्द्रित किये जा सकते हैं। इस शोध के निष्कर्ष व्यावहारिक एवं साध्य योजनाएं निर्मित करने में सहायक हो सकते हैं, जो नीति निर्माताओं एवं शासकीय निकायों द्वारा स्वास्थ्य सेवा अपशिष्ट प्रबंधन के स्थायित्व की दिशा में चल रहे प्रयासों की सफलता को बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं का मानना है कि प्राप्त परिणाम यद्यपि भारत विशिष्ट हैं, तथापि ये अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी उपयोगी हो सकते हैं। सर्वेक्षण में और अधिक विशेषज्ञों एवं नीति निर्माताओं को सम्मिलित कर अधिक व्यापक एवं सुदृढ़ परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

प्रोफेसर पंकज दत्ता के अनुसार “जब चक्रीय अर्थव्यवस्था पद्धति का कार्यान्वयन संतोषजनक सफलता प्राप्त कर ले तो महत्वपूर्ण सफलता कारकों का पुनर्मूल्यांकन किया जाना भी आवश्यक हो जाता है।"