शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

चॉल के पुनर्निर्माण से ताज़ी हवा की आवाजाही

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मुंबई
16 जनवरी 2019
छायाचित्र: अर्बझू  [ CC BY 2.0 ]

आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं द्वारा निम्न-आय वर्ग के रहवासियों पर खराब रहवासों से होने वाले प्रभाव का अध्ययन 

जिस तेज़ी से दिन प्रतिदिन शहरों का विकास होता जा रहा है उसी तेज़ी के साथ शहरों में घर छोटे और महंगे होते जा रहे हैं। विशेषतौर पर निम्न आय वर्ग वाले परिवार के लिए, आर्थिक स्थिति के अनुसार जिन घरों में वे रह सकते हैं उन घरों का वातावरण उच्च तापमान और आर्द्रता वाला होता है। ऐसे वातावरण में रहने से श्वसन संबंधी समस्याएँ, हृदय रोग, लगातार दर्द बने रहना और सिर दर्द की समस्याएँ होती हैं। लेकिन डैटा की कमी के अभाव के चलते इस कमी को पूरा नहीं किया जा सका है। अपनी तरह का यह पहला अध्ययन है जिसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है कि चॉल जैसी हवा की आवाजाही न होने वाले आवासों में रहने से वहाँ के रहवासियों के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है। और साथ ही इन घरों के पुनर्निर्माण के लिए भी कुछ उद्देशात्मक सुझाव दिए गए हैं।

यह अध्ययन हेबिटेट इंटरनेशल पत्रिका में प्रकाशित हुआ है इसमें शोधकर्ताओं ने मुंबई के चार इलाकों में पूर्ववर्ती बॉम्बे विकास विभाग द्वारा निर्मित १२० घरों में रहने की स्थिति की जांच की। मूलरूप से ये चॉलें एक व्यक्ति के रहने की जगह के तौर पर बनाई गईं थी जो केवल २०० वर्ग फीट का क्षेत्र है। इस इमारत में रहने के एक कमरे में ही किचन और इमारत के किनारे पर साझा  शौचालय की व्यवस्था है। घुटन भरी रहने की जगह, रखरखाव और स्वच्छता की कमी, पास की सड़कों का प्रदूषण और खाना पकाने के लिए केरोसीन का इस्तेमाल साथ ही हवा की आवाजाही न होने के कारण यहाँ रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य प्रभावित होता है।

हालाँकि स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने स्वास्थ्य केन्द्रों में इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की संख्या में   लगातार वृद्धि  देखी है और उनका कहना कि इसका कारण खराब हवा की गुणवत्ता हो सकती है लेकिन वे बिना डैटा के यह दावा नहीं कर सकते। चॉल के रहवासी स्वास्थ्य-सम्बंधी जानकारी नहीं देना चाहते थे। स्थानीय स्वास्थ केन्द्रों पर अपनी आवाजाही को सभी रहवासी साझा करने को तैयार थे, शोधकर्ताओं ने इस डैटा बिन्दुओं का उपयोग रहवासियों के स्वास्थ्य को बतलाने के लिए इस्तेमाल किया।

शोधकर्ताओं ने हवा की गुणवत्ता को मापने के लिए हवा का ‘स्थानीय माध्य आयु’ (LMA) मात्रक चुना। प्राध्यापक रोनीता बर्धन जो इस अध्ययन का नेतृत्व कर रही हैं बताती हैं कि, “हवा की औसत उम्र को औसत समय जो इमारत के एक क्षेत्र में संग्रहित खराब हवा के द्रव्यमान के रूप में परिभाषित किया जाता है।” 

वेंटिलेशन की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारक है। सरल शब्दों में, यह वह समय है कि ताज़ी हवा के प्रतिस्थापित करने से पहले कमरे में बासी हवा कितने समय तक बनी रही। इस प्रकार एक उचित हवादार कमरे में एलएमए कम पाया जाता है क्योंकि ताज़ी हवा का संचार लगातार होता रहता है। प्रायोगिक अध्ययन से पता चलता है कि यदि एक इमारत क्षेत्र के दरवाज़े और खिड़कियाँ बन्द हैं तो एलएमए मान ४६ मिनिट के करीब होता है जबकि वही दरवाज़ें और खिड़कियाँ खुली हैं तो एलएमए मान तीन मिनिट से भी कम हो सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि एलएमए एक ऐसा मानक है जो स्थानीय भाषा मराठी में समझना और समझाना आसान है।

शोधकर्ताओं ने इमारत की दिशा, उद्यानों,  सड़कों की उपस्थिति और इमारत के चारों ओर की बाधाओं, इमारत के क्षेत्र, दीवारों की मोटाई और उस क्षेत्र में खिड़कियों व दीवारों का अनुपात जैसे कारकों पर भी विचार किया। उन्होंने रहवासियों के दरवाज़े-खिड़कियाँ कितने समय तक खुले रहते हैं का भी सर्वे किया। उन्होंने स्थानीय मौसम डैटा लेने के साथ ही कुछ घरों में तापमान और आर्द्रता मापने वाले सेंसर भी स्थापित किए थे। शोधकर्ताओं ने इस जानकारी को इकट्ठा कर एक गणितीय मॉडल की मदद से एलएमए का आकलन किया।

अध्ययन के नतीजे इस ओर इशारा करते हैं कि खराब हवा में रहने वाले लोगों की तुलना में हवादार घरों के रहवासी कम बीमार पड़ते हैं और स्वास्थ केन्द्रों पर कम जाते हैं । हालाँकि ताज़ी हवा और स्वास्थ केन्द्रों पर जाने वाले लोगों की संख्या के बीच कोई महत्वपूर्ण सम्बंध नहीं देखा गया।

शोधकर्ताओं ने पाया है की  बाहरी व्यवधान एलएमए को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इनको हटाने से एलएमए को आधे तक कम किया जा सकता है। वह कहते हैं कि, “ इन परिवर्तनों के लिए नीति के स्तर पर कारवाई करने की आवश्यकता है ताकि उचित संशोधन किया जा सके और साथ ही ताज़ी हवा वाले रहवास के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ाई जा सके।”

शोधकर्ताओं का यह कहना है कि, “स्थानीय अधिकारियों की भागीदारी से हमें चॉल में रहने वालों के वातावरण को समझने में बेहतर मदद मिली। हम वास्तविक समय में रहवासों के मानव-जगह परस्पर क्रियाओं का अध्ययन कर सकते हैं और लोगों के बीच रहने की जगह के सुग्राहीकरण की संरचना को संभव बना सकते हैं।”

नियोजन प्राधिकरणों के लिए अध्ययन के निष्कर्ष और सुझाव महत्वपूर्ण परिणाम  की तरह हो सकते हैं जो इन इमारतों की संरचना  को बदलने में मदद कर सकते हैं और साथ ही बीडीडी चॉल में रहने वाले लोगों को अपेक्षाकृत स्वस्थ जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।